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आज की युवा पीढ़ी पर निबंध? युवा-वर्ग और राष्ट्र निर्माण?

आज की युवा पीढ़ी पर निबंध (Aaj Ki Yuva Pidi Par Nibandh), युवा वर्ग अथवा युवा पीढ़ी का आशय है-आज का भारतीय तरुण-वर्ग आज जब समाज के विभिन्न पक्षों की चर्चा आती है तो उसमें भारत के तरुणों की ओर दृष्टि का जाना स्वाभाविक है; कारण युवक सदैव से ही उत्साह, साहस और उमंग के प्रतीक माने गये हैं। कविवर माखनलाल चतुर्वेदी ने अपनी ‘जवानी’ कविता में युवक वर्ग का ही आह्वान किया है और उसे विश्व की अभिमान मस्तानी जवानी’ के नाम से सम्बोधित किया है।

आज की युवा पीढ़ी पर निबंध

आज की युवा पीढ़ी पर निबंध

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आज की युवा पीढ़ी पर निबंध

वास्तव में यौवन का काल ही मस्ती और निश्चितता का होता है। कुछ को छोड़ कर अधिकांश तरुणों को आर्थिक चिन्ता नहीं होती, क्योंकि उनकी यह चिन्ता उनके माता-पिता को रहती है किसी भी देश को संघर्ष में विजय दिलाने में उसके युवा वर्ग का बड़ा हाथ रहता है। यदि किसी देश को समाप्त करना हो तो उस देश के युवा वर्ग को पथ भ्रष्ट कर दो; फिर किसी अन्य साधन की आवश्यकता नहीं। एक विदेशी विद्वान् ने भी कहा है कि-“यदि किसी देश को पराजित करना है तो उसको युवा पीढ़ी को ‘पथ-भ्रष्ट’ कर दो।” इससे स्पष्ट होता है कि किसी भी देश के लिए उसके तरुण वर्ग का कितना अधिक महत्त्व है।

तरुणों की शक्ति

किसी भी देश में क्रान्ति का सूपात नवयुवक ही करते हैं। चाहे वह क्रान्ति राजनीतिक हो, सामाजिक हो, आर्थिक हो या अन्य प्रकार की हो। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास को देखने से भी पता चलता है कि उसमें युवकों का योगदान अत्यधिक रहा है। गाँधीजी भी जानते थे कि तरुणों में अपार उत्साह होता है। अतः उन्होंने भी छात्रों को स्कूल-कालेज छोड़ कर स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़ने की प्रेरणा दी थी। उनके आह्वान पर अनेक तरुण पढ़ाई छोड़ स्वाधीनता के संघर्ष में कूद पड़े थे। अमर हुतात्मा पण्डित चन्द्रशेखर ‘ आजाद’, भगतसिंह, राजगुरु, अशफाकउल्ला खाँ ने अपनी भरी जवानी में ही देश के लिए फाँसी को हँसते-हँसते चूम लिया था।

स्वामी विवेकानन्द ने भी यौवन में ही भारत के उत्थान के लिए देश विदेश का भ्रमण किया और विशेष कर तरुण वर्ग को ही भारत की पीड़ित-दलित जनता की सेवा करने की प्रेरणा दी। युवाशक्ति के इसी महत्त्व को जानते हुए भारतीय राजनीतिक दलों ने भी अपनी युवा-शाखाएं स्थापित कर रखी हैं तथा अपने आन्दोलनों में उनको वे आगे रखते हैं। युवकों के सामर्थ्य की पहचान कर ही सन् 1980 में राजीव सरकार ने मतदाताओं की उम्र कम-से-कम 18 वर्ष की कर दी और उसी युवक वर्ग ने उत्साह में आ कर कांग्रेस को पराजित करने में पर्याप्त योग दिया।

युवाओं का यह उत्साह और उमंग यदि उचित दिशा में लगाया जाए, उसे रचनात्मक और विधायक कार्यों में लगाया जाए, तो देश का कायाकल्प हो सकता है। पर यदि उसे उचित दिशा न मिले तो वही विनाश भी उपस्थित कर सकता है। युवा वर्ग की उस उमंग को उचित दिशा न दे पाने की हानियों को आज हम प्रत्यक्ष देख रहे हैं। वास्तव में आज के तरुण-वर्ग में उत्साह होता है, साहस भी होता है, पर उसका सदुपयोग कैसे किया जाए, यह उसको भी पता नहीं। आज वह लक्ष्यहीन हो चुका है।

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आज की स्थिति

आज के तरुण वर्ग के सम्बन्ध में समाचार पत्रों में जो समाचार प्रकाशित होते रहते हैं, उनसे तो लगता है कि वे अपनी सारी शक्ति को अधिकांश विनाश के कार्यों में ही लगा रहे हैं। रेल या बसों में बिना टिकट चलना और टिकट मांगने पर चालक या संवाहक (कंडक्टर) को पीटना या बस को ही आग लगा देना उनके लिए सामान्य सी बात हो गई है। परीक्षा भवन में कोई निरीक्षक यदि उन्हें नकल नहीं करने देता तो उसकी पिटाई तो वे करते ही हैं; कभी-कभी तो उसके प्राण भी ले लेते हैं।

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में तो एक कॉलेज के प्राचार्य को एक छात्र ने इसलिए मार दिया कि उसने उसे नकल करते पकड़ लिया था। नारी-रक्षा जिस देश का धर्म है, उसी में तरुण रावण और दुःशासन बन कर कितनी ही सीताओं का अपहरण कर रहे हैं और कितनी हो द्रौपिदियों का चीर हरण कर रहे हैं।

यह दोष किसका है? यह यूरोपीय सभ्यता के अन्धानुकरण का और तरुणों को स्वतंत्रता के नाम पर स्वछन्दता देने का है। दूसरी ओर शिक्षा के सदाचार को बहिष्कृत करने का यह कुपरिणाम है। आज के तरुणों व तरुणियों में सरल जीवन और उच्च विचार के स्थान पर फैशन परस्ती और अधिकाधिक सुखोपयोग की वृत्ति घर कर गई है। संयम के बांध को तो वे तोड़ ही चुके हैं। उनके आराध्य अब श्रीराम और सीता न हो कर चलचित्रों के अभिनेता और अभिनेत्रियां हो चुकी हैं।

इधर कुछ वर्षों से तरुणों में विशेषकर कालेजों में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं में गांजा, चरस का ऐसा दुर्व्यसन प्रारम्भ हुआ है, जो उनके जीवन को नष्ट करने में लगा है। स्मेक के कारण हजारों तरुण-तरुणियों का जीवन नरक बनता जा रहा है। भले घर नष्ट होते जा रहे हैं।

इस सारी स्थिति को देख कर और सुन-सुन कर मन में रह रह कर प्रश्न उठता है कि आज की युवा पीढ़ी किधर जा रही है? क्या वे उसी भारत के भविष्य निर्माता हैं, जो कभी विश्व गुरु कहलाता था? क्या कभी यथार्थ में श्रीराम, श्रीकृष्ण, योगी शंकर, राणा प्रताप और शिवाजी जैसे महापुरुष यहाँ उत्पन्न हुए थे? यदि यह रोग बढ़ता गया तो क्या भारतीय संस्कृति और सभ्यता बची रह जायेगी? क्या वे युवक राष्ट्र निर्माण में योगदान दे सकेंगे?

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फिर भी निराशा नहीं

उक्त कथन का आशय कदापि नहीं कि आज की सारी युवा पीढ़ी ही पथभ्रष्ट हो चुकी है। जिस प्रकार काँटों में भी फूल खिलते हैं और कीचड़ में भी कमल उत्पन्न होते हैं, उसी प्रकार तरुणवर्ग में अनेक होनहार और सच्चरित्र युवक हैं। उन पर देश को गौरव है। आज भी अनेक युवक विज्ञान में, शिल्प में आगे बढ़े हैं। क्या हम उस तरुण वैज्ञानिक को भूल सकते हैं, जिसके बनाये हथगोले से हम अपने देश की रक्षा विगत युद्ध में कर सके।

आज राष्ट्र के सामने उग्रवाद, आतंकवाद तथा बाहरी शत्रुओं से देश की रक्षा का प्रश्न है। साथ ही देश की आर्थिक सामाजिक उन्नति का भी प्रश्न है। इसका समाधान युवक ही कर सकते हैं।

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उपसंहार

सार यह है कि आज की सारी युवा पीढ़ी ही बुरी भी नहीं। ऐसे युवकों की भी कमी नहीं जो सरल, विनम्र, मेघावी और सच्चरित्र हैं। आवश्यकता है, उन्हें संगठित करने को और उचित दिशा देने की। यदि उन्हें उचित दिशा मिल जाए और वे अपने कर्तव्य को पहचान जाएं तो अपने सुन्दर भविष्य के साथ ही राष्ट्र का गौरव भी बढ़ाने में तथा राष्ट्र का नव-निर्माण करने में समर्थ हो सकते हैं। आज की युवा पीढ़ी पर निबंध

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