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आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय? आचार्य विनोबा भावे पर निबंध?

आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय (Acharya Vinoba Bhave Ka Jeevan Parichay), आचार्य विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर, 1895 को महाराष्ट्र प्रदेश के कुलाबा जिले के गागोदा ग्राम में हुआ था। उनके पिता का नाम नरहरी शम्भू राव था। एवं उनकी माता का नाम रुक्मिणी देवी था। जब भूमि को कुछ लोग हथिया लेते हैं तब शेष भूमिहीन हो जाते हैं। भूमिहीन होने के कारण वे जीविकाहीन हो जाते हैं।

जीविकाहीन होने के कारण उनके बाल-बच्चे भूख से बिलबिलाते हैं। उनकी भूख की तड़पन को सुनकर विनोबा भावे जैसे त्यागी, बलिदानी और समाजसेवी आते हैं। ये भूमिहीनों को भूमि देने के लिए जोर-जबर्दस्ती नहीं करते। इनकी शुद्ध और स्वार्थहीन वाणी में ऐसा प्रभाव होता है जिसे सुनकर भू-स्वामी स्वयं भूमि का दान कर देते हैं।

आचार्य विनोबा भावे का जीवन परिचय

आचार्य-विनोबा-भावे-का-जीवन-परिचय

Acharya Vinoba Bhave Ka Jeevan Parichay

जन्म11 सितम्बर, 1895
जन्म स्थानमहाराष्ट्र प्रदेश के कुलाबा जिले के गागोदा ग्राम
पिता का नामनरहरी शम्भू राव
माता का नामरुक्मिणी देवी
मृत्यु15 नवम्बर, 1982

जन्म एवं परिचय

भूदान आन्दोलन के जन्मदाता सन्त विनोबा भावे का जन्म 11 सितम्बर, 1895 में महाराष्ट्र प्रदेश के कुलाबा जिले के गागोदा ग्राम में हुआ था। इनका पूरा नाम विनायकराव भावे था। इनके माता-पिता धार्मिक विचारों के थे। मानव मात्र से प्रेम करते थे। इनके विचारों का प्रभाव विनोबाजी पर भी पड़ा और आपने भी जीवन पर्यन्त अविवाहित रहकर मानव सेवा का व्रत ले लिया।

शिक्षा

विनोबाजी की प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई। इण्टर की परीक्षा देने के लिए आप परीक्षा केन्द्र पर न जाकर संस्कृत पढ़ने के लिए काशी चले गये। यहाँ आप पढ़ाई के साथ-साथ सत्संग भी करने लगे। आपने अपने प्रमाण पत्र भी जला दिये।

गांधीजी से सम्पर्क

काशी छोड़कर आप गांधीजी के सम्पर्क में आये, गांधीजी के साथ में रहने से आप गांधीवादी विचारों से प्रभावित हुए। गांधीजी के कार्यों में सहयोग देने के लिए आप साबरमती आश्रम में रहने लगे। यहीं रहकर आपने नागपुर झण्डा सत्याग्रह में भाग लिया और जेल यात्रा की।

जेल से छूटने के बाद आपने त्रावनकौर में हरिजन मंदिर प्रवेश आन्दोलन में भाग लिया। जलगाँव में सरकार विरोधी भाषण देने के कारण आपको जेल में डाला गया। सन् 1935 में आपने ग्राम सेवा मण्डल की स्थापना की।

पवनार में अपना आश्रम बनाया। सन् 1942 के ‘करो या मरो’, ‘अंग्रेजी भारत छोड़ो’ आन्दोलन में आप भी अन्य नेताओं के साथ गिरफ्तार हुए। आप जीवन भर बापू (महात्मा गांधी) के साथ रहे। उनकी मृत्यु के बाद आपने उनके अधूरे कार्यों को पूरा करने का निश्चय कर लिया।

कार्य क्षेत्र

भूदान यज्ञ विनोबाजी का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है। इसके साथ-साथ उन्होंने भारत की दुःखी जनता के लिए श्रमदान तथा अन्त्योदय आन्दोलन भी आरम्भ किये। आपका ध्यान ग्रामीणों की समस्याओं की ओर गया।

उन्होंने भूमिहीनों को भूमि देने के लिए उन लोगों से प्रार्थना की जिनके पास बहुत अधिक भूमि थी। भूमिहीनों को भूमि देने का कार्य आरम्भ हो गया। सबसे पहले रामचन्द्र रेड्डी ने सौ एकड़ भूमि देने की घोषणा की। इसके बाद अन्य लोगों ने यथाशक्ति भूमि देना आरम्भ किया। श्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने तथा डॉ. प्रकाश इत्यादि ने भूदान किया।

आप प्रतिदिन कुछ न कुछ भूमि प्राप्त करते थे। वे इस भूमि को तुरन्त ही भूमिहीनों को यथोचित रूप में दे देते थे। अपनी दो महीने की यात्रा में आपने 13426 एकड़ भूमि प्राप्त की और भूमिहीनों में बाँट दी।

आपने लगभग सात वर्ष तक पदयात्रा की। इस पदयात्रा में आपने लोगों के हृदय का परिवर्तन किया। लोगों में भूमिहीनों को भूमि देने का उत्साह पैदा हुआ। बड़े-बड़े जमींदार, राजा-महाराजा तथा सेठ-साहूकारों ने इस भूमिदान तथा श्रमदान में भाग लिया।

इस भूमिदान या श्रमदान महायज्ञ में राजनीति बिल्कुल नहीं थी। प्रजा की शुद्ध भावना से सेवा की। अतः लोकनायक जयप्रकाश एवं लाखों लोगों ने अपने आपको इस महायज्ञ की सफलता के लिए समर्पित कर दिया।

विनोबाजी अच्छे लेखक थे। आप गीता के मर्मज्ञ थे। आपने गीता की बहुत सुन्दर टीका की। इसके अतिरिक्त आपने भूदान तथा श्रमदान के सम्बन्ध में अनेक पुस्तकें लिखीं।

आपने डाकू-समस्या को अपने हाथ में लिया। आपने अपने निकट के साथियों के साथ चम्बल के डाकू क्षेत्र में प्रवेश किया। डाकुओं को समझाया। आपके उपदेशों से प्रभावित होकर डाकुओं ने समर्पण कर दिया।

उपसंहार

15 नवम्बर, 1982 की दीपावली के पावन पर्व पर आपका स्वर्गवास हो गया। इसी पर्व पर भगवान स्वामी रामतीर्थ, स्वामी दयानन्द जैसे महान् सन्तों ने मोक्ष प्राप्त किया था।

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