आदर्श अध्यापक पर निबंध: आज का विद्यार्थी कल का राष्ट्र-निर्माता है। इस कल के नागरिक का निर्माता अध्यापक है। वह सक्षम नागरिक को रचने वाला ब्रह्मा है, मानवता की रक्षा करने वाला विष्णु है और कुप्रवृत्तियों का संहार करने वाला महेश है। वही नागरिक के व्यक्तित्व का निर्माण करता है।
आदर्श अध्यापक पर निबंध

यदि आचार्य चाणक्य न होते तो चन्द्रगुप्त जैसा कुशल सम्राट् भी न होता, जिसने देश की बिखरी हुई इकाइयों को संगठित करके विदेशियों को देश से बाहर खदेड़कर भारत को एक राष्ट्र बनाया। यदि गुरु रामदास न होते तो यवनों के अत्याचारों से पीड़ित जनता की रक्षा करने वाले छत्रपति शिवाजी भी न होते।
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अध्यापक की महत्ता
हमारे देश में प्राचीन काल में अध्यापन का कार्य ऐसे ही व्यक्तियों को सौंपा जाता था जो हर प्रकार से योग्य होते थे। आदर्श अध्यापक की सर्वप्रथम विशेषता है, उसकी विद्वता। वह अपने विषय का पंडित हो। उसने अपने विषय रूपी समुद्र का खूब मंथन किया हो और उसमें से ज्ञान रूपी अमृत • निकाल लिया हो। उसकी विद्वता की धाक चारों ओर जमी हुई हो।
परन्तु केवल विद्वता ही पर्याप्त नहीं है, अपने ज्ञान को विद्यार्थियों तक पहुँचाने की अध्यापन कुशलता भी उसमें होनी चाहिए। उसकी अध्यापन शैली रोचक हो। विषय के शुष्क-से-शुष्क अंश को वह सरस बना सके। उसका समझाने का ढंग सरल एवं सुबोध हो, जिससे उसके द्वारा प्रदत्त ज्ञान को विद्यार्थी भली-भाँति समझ सकें।
आदर्श अध्यापक की विशेषताएँ
अध्ययनप्रियता आदर्श अध्यापक की प्रमुख विशेषता है। जितना भी समय मिले, उसे वह स्वाध्याय में व्यतीत करे वह विद्यार्थी की भाँति जिज्ञासु हो, ज्ञान का भूखा हो और नवीनतम पुस्तकों की सहायता से ज्ञान वृद्धि करता रहे।
अध्यापक के लिए सच्चरित्रता की विशेष आवश्यकता है, क्योंकि उसका सम्पर्क कोमल अवस्था वाले विद्यार्थियों से रहता है। आदर्श अध्यापक में समस्त सद्गुण होने चाहिए, जिससे वह विद्यार्थियों को सच्चरित्रता के साँचे में ढाल सके। अध्यापक के चरित्र की छाप विद्यार्थियों पर पड़ती है। वास्तव में अध्यापक वह प्रकाश-स्तम्भ है जो अपने विद्यार्थियों के जीवन को आलोकित करता रहता है।
विद्यार्थियों के प्रति असीम स्नेह होना भी आदर्श अध्यापक की एक विशेषता है। वह सभी विद्यार्थियों को पिता की भाँति अपने स्नेह का पात्र बनावे। स्नेह के कारण कमजोर से कमजोर विद्यार्थी भी निर्भय होकर उसके सामने अपनी कठिनाइयाँ प्रस्तुत कर सकेगा और अपनी कठिनाई का निवारण करके लाभान्वित हो सकेगा।
आदर्श अध्यापक में सादगी भी हो। ‘सादा जीवन उच्च विचार’ उसके जीवन का मूल मंत्र हो। भोजन, वस्त्र, वेश-भूषा आदि में वह प्राचीन गुरुओं से प्रेरणा प्राप्त करने वाला हो।
अध्यापक की भूमिका
समाज के बदलते परिवेश में अध्यापक की अहम् भूमिका है। उसे भारतीय प्रजातान्त्रिक प्रणाली को सफल बनाने के लिए विद्यार्थियों में आदर्श नागरिकता के गुणों का विकास करना चाहिए। विद्यार्थियों में राष्ट्रीय एकता और अन्तर्राष्ट्रीय सद्भावना का विकास करना चाहिए। साथ ही छात्रों के भविष्य के लिए किसी व्यावसायिक या उत्पादक कार्य की शिक्षा देनी चाहिए।
उपसंहार
निष्कर्ष रूप में आदर्श अध्यापक पारसमणि के समान होता है। जिस प्रकार पारसमणि का स्पर्श पाकर लोहा सोना बन जाता है, उसी प्रकार आदर्श अध्यापक से शिक्षा प्राप्त करके, उसके सम्पर्क में रहकर विद्यार्थी मानव-रत्न बन जाता है। सचमुच वह राष्ट्र की अमूल्य निधि है। वह राष्ट्र-निर्माता है। उसके ऋण से कोई भी उऋण नहीं हो सकता है। तभी तो कबीर ने कहा है
“गुरु गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूँ पाँय? बलिहारी उन गुरु की, जिन गोविन्द दियौ मिलाय।”