अनोखा सपना: एक था दर्जी अनोखेलाल। वह बेमिसाल कारीगर था। कमाल के कपड़े सिलता था। इसीलिए नगर के अधिकतर लोग उसी से कपड़े सिलवाते थे। हालांकि अनोखेलाल कपड़ों की सिलाई ठोक-बजाकर लेता था और उसी में उसके वारे-न्यारे हो रहे थे। फिर भी वह बड़ा लालची था। और इसी लालच के कारण वह अपने ग्राहकों से जरूरत से कुछ अधिक ही कपड़ा मंगवाता था।
अनोखा सपना

बेचारे भोले ग्राहक क्या जानते, कितना कपड़ा चाहिए। वह जितना कपड़ा मांगता था, वो लाकर दे देते थे। और अनोखेलाल उसमें से काफी कपड़ा बचा लेता था। यदि भूले से कोई ग्राहक बचा हुआ कपड़ा मांग भी लेता तो अनोखेलाल बड़ी चतुराई से उसे टाल जाता था।
एक बार की बात है, एक गरीब बुढ़िया अनोखेलाल के पास आई। उसके पास एक बहुत बड़ा कपड़ा था। कपड़ा दिखाकर उसने अनोखेलाल से कहा- “बेटा, मेरे पास यह कपड़ा बहुत दिनों से पड़ा है। इसमें से तुम मेरे लिए एक कमीज शरारा बना दो।’
“ठीक है” अनोखेलाल ने कहा- और नाप लेकर कापी में लिख दिया।
“बेटा, कब आऊं?”- बुढ़िया ने पूछा।
“एक हफ्ते बाद” -अनोखेलाल ने उत्तर दिया।
बुढ़िया के जाने के बाद अनोखेलाल ने फिर से अनोखेलाल मन ही मन बहुत खुश हुआ। कपड़ा देखा। कपड़ा काफी ज्यादा था।
एक हफ्ते बाद बुढ़िया अपने कपड़े लेने आ गई। अनोखेलाल ने उसे सिले कपडे दे दिए और सिलाई मांगी।
बुढ़िया ने उसे सिलाई देते हुए कहा- “बेटा, कपड़ा तो बहुत ज्यादा था, बचा ही होगा। मुझे वह बचा हुआ कपड़ा लौटा दो।”
यह सुनकर अनोखेलाल ने कहा- “क्या बात कहती हो अम्मां, मुश्किल से तो तुम्हारे कपड़े तैयार किए हैं, तुम कपड़ा बचने की बात कहती हो ।
“कोई बात नहीं बेटा दे देते तो मैं भी किसी को दे ही देती। मुझे अब क्या करना है। न जाने कब बुलावा आ जाए और परलोक में तो ख़ुदा के ही जिम्मे हैं सब काम । ” यह कहकर बुढ़िया चली गई। अनोखेलाल ने बुढ़िया की बात सुनी पर उसकी परवाह किए बिना वह अपने काम में लग गया।
उस रात जब अनोखेलाल सो गया तो उसे एक बड़ा विचित्र सपना आया। सपने में उसने देखा कि वह परलोक में है और उसके साथ उसके कई साथी हैं। वह बुढ़िया भी है, जिसके कपड़े उसने सिले थे। मजे की बात तो यह थी कि वहां सब निर्वस्त्र थे और भगवान सामने खड़े सबको वस्त्र बांट रहे थे। जिसको जैसा चाहिए, वैसा हो मिल रहा था। बांटते- बांटते गरीब बुढ़िया की बारी भी आई।
बुढ़िया को देखकर भगवान बोले- “अम्मां, सारी जिंदगी तो तुमने गरीबी में पुराने वस्त्र पहनकर ही गुजार दी। अब परलोक में तो अपनी कुछ इच्छाएं पूरी कर लो।” यह कहकर प्रभु ने बुढ़िया को बहुत सुंदर वस्त्र दिए। वस्त्र पाकर बुढ़िया प्रसन्न हो गई।
यह सब देखकर अनोखेलाल मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रहा था। जब मेरी बारी आएगी। तो मैं बहुत सुंदर वस्त्र लूंगा” उसने सोचा।
और अनोखेलाल की बारी आई। भगवान ने उसकी ओर देखा और मुस्कराए। फिर बोले ” अरे अनोखेलाल, तुम भी बिना वस्त्रों के। तुम्हें वस्त्रों की क्या कमी! तुमने तो पूरी जिंदगी अपने लिए वस्त्र जोड़ने में ही लगा दी। तुम्हारा तो उन्हीं से गुजारा हो जाएगा।”
यह कहते हुए भगवान ने अनोखेलाल को भी वस्त्र दिए। पर यह देखकर अनोखेलाल दंग रह गया कि उसके वस्त्र उन्हीं कपड़ों को जोड़-जोड़ कर बनाए गए थे जो-जो उसने अपने ग्राहकों के कपड़ों से बचा लिए थे। बुढ़िया का बचा हुआ कपड़ा भी उसमें जुड़ा था।
अनोखेलाल का सिर शर्म से झुक गया और आंखों से टप टप आंसू गिरने लगे। वह भगवान के चरणों में गिर पड़ा और बोला- “भगवन, मुझे माफ कर दीजिए। मैं सारी जिंदगी सबसे झूठ बोलता रहा पर यह भूल गया कि आप अंर्तयामी हैं।
वह स्वप्न में अभी यह बोल ही रहा था कि अचानक उसकी नींद खुल गई। सुबह हो गई थी। “हे भगवान! यह कैसा स्वप्न था!” – वह बोला। और उस दिन से अनोखेलाल ने निश्चय किया कि वह कभी कपड़े की चोरी नहीं करेगा। शायद वह अपना परलोक सुधारना चाहता था।
यह भी पढ़े – बुढ़िया की पोटली: समझदार और नासमझ दो बहनों की कहानी