एपेंडिक्स क्या है, कारण, लक्षण, यौगिक चिकित्सा, आहार और कैसे होता है

एपेंडिक्स क्या है, कारण, लक्षण, यौगिक चिकित्सा, आहार और कैसे होता है। एपेंडिक्स (एपेंडिसाइटिस) को आंत्रपुच्छ भी कहा जाता है। छोटी आंत की समाप्ति पर बड़ी आंत की शुरुआत जहाँ होती है, वहाँ एक छोटी-सी पूँछनुमा थैली होती है जो लीवर के नीचे और नाभि के दायीं ओर होती है। कुछ लोगों का मानना है कि एपेंडिक्स (Appendicitis) आहार नाल की एक विशिष्ट संरचना तो है परन्तु यह क्रिया विहीन व्यर्थ का अवयव है। लेकिन यह बात सर्वथा गलत है क्योंकि प्रकृति की इस सृष्टि में कोई भी संरचना व्यर्थ नहीं है।

एपेंडिक्स क्या है, कारण, लक्षण, यौगिक चिकित्सा, आहार और कैसे होता है

एपेंडिक्स क्या है

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वस्तुत: यह विशिष्ट संरचना ही है क्योंकि 1964 में मैकवे ने अपने शोध से यह प्रमाणित किया है कि जिन लोगों ने शल्य क्रिया द्वारा एपेंडिक्स निकलवा दिया है। उनमें आंत्र कैंसर होने की सम्भावना अधिक हो जाती है। एपेण्डिक्स से कुछ ऐसे अज्ञात स्राव मिलते हैं जो कैंसर उत्पादक जैव तत्वों तथा कैंसर पैथोजेनिक कीटाणुओं से लोहा लेने में सक्षम हैं।

एपेंडिक्स का कारण

एपेंडिक्स (एपेंडिक्स क्या है) का संक्रमित होना ही एपेंडिसाइटिस कहलाता है। यह आधुनिक चिकनी-चुपड़ी सभ्यता की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह किसी भी उम्र के व्यक्ति को हो सकता है बूढ़े व बच्चों में यह रोग खतरनाक साबित होता है। पुराने कब्ज के कारण बड़ी आंत में मल के कण तथा गन्दा रस एपेण्डिक्स (आंत्रपुच्छ) की थैली में जमा होते रहने के कारण यह रोग उत्पन्न हो जाता है और एपेण्डिक्स में सूजन के साथ दर्द पैदा हो जाता है।

चाय, चीनी, तले-भुने बेसन तथा मावे की बनी पकौड़ियाँ, कचौड़ियाँ, समोसे, पूड़ियाँ आदि आहार गर्म-मिर्च मसाले, अण्डा, मछली, माँस, कॉफी, बिस्कुट, ब्रेड, जैम, जैली, टॉफी, सॉफ्ट ड्रिंक, शराब, धूम्रपान, पान मसाला आदि के अत्यधिक प्रयोग से यह रोग उत्पन्न होता है।

ब्रिटेन के डॉ. रेडशीर्ट ने 1920 में एक शोध निष्कर्ष निकाला था कि जिसके अनुसार एपेंडिसाइटिस का प्रबल प्रकोप आधुनिक परिशोधित आहार जैसे रेशे की कमी वाले आहार के सेवन के कारण बढ़ा है। बाद में, अन्य देशों जैसे फ्रांस, जर्मनी तथा अमेरिका के विज्ञानियों ने भी अपने शोध के आधार पर डॉ. रेडशार्ट के निष्कर्ष की पुष्टि की है। तब से सारी दुनिया इस सिद्धान्त को मानती है कि हमारी आहार व्यवस्था अर्थात् रेशे सेल्युलोज रहित आहार इस रोग को उत्पन्न करने में मुख्य भूमिका निभाते हैं।

वस्तुतः परिशोधित आहार के कारण कोष्ठबद्धता (कब्ज) पैदा होता है। मल की गाँठें बन जाती हैं, उनके अन्दर ही अन्दर सड़ने से अनेक प्रकार के पैथोजेनिक रोगाणुओं की संख्या में तीव्रता से वृद्धि होती है और आँतों में रोगाणुओं की कालोनियां बस जाती हैं। इन्हीं के कारण सीकम तथा बड़ी आँत संक्रमित हो जाती है और अन्त में एपेण्डिक्स भी संक्रमित हो जाता है।

एपेंडिक्स के लक्षण

एपेंडिसाइटिस (एपेंडिक्स क्या है) का प्रारम्भिक लक्षण पेट के बीचों-बीच नाभि या एपिगैस्ट्रियम के आस-पास दर्द उठना है। यह दर्द प्राय:काल 3 से 7 बजे के बीच उठता है । प्रारम्भ में दर्द सारे उदर में होता है तत्पश्चात् दर्द नाभि से खिसक कर पेट के निचले दाहिने भाग अर्थात् मैकवर्निंग प्वाइण्ट पर केन्द्रित हो जाता है। उस स्थान को थोड़ा-सा भी स्पर्श करने पर तीव्र दर्द होता है।

दर्द उठने के कुछ देर बाद मितली की इच्छा होती है। कुछ देर में उल्टियाँ भी हो सकती हैं। उल्टी होने से जब पेट खाली हो जाता है तो उल्टियाँ स्वतः रुक जाती हैं। इस रोग के आक्रमण के प्रारम्भिक 6 घण्टे में तापमान तथा नाड़ी में कोई परिवर्तन नहीं होता । पर 6 घण्टे बाद नाड़ी की गति सामान्य से 20 ज्यादा अर्थात् 80-100 तक हो जाती है। ज्वर भी बढ़कर 100 से 101 डिग्री फारेनहाईट तक हो जाता है।

इस रोग में रोगी दायें पैर को सिकोड़कर सीधा एवं सुस्त पड़ा रहता है क्योंकि पैर फैलाने से उदर की माँसपेशियाँ खिंचती हैं जिससे दर्द और अधिक बढ़ जाता है। इस रोग में उदर की माँसपेशियाँ थोड़ी अकड़ जाती हैं। कुछ रोगियों के दर्द के दो-चार दिन के अन्तराल में उदर के निचले हिस्से में एक गाँठ-सी बन जाती है। दर्द के बाद यदि पेट में अफरा होने लगे तो यह स्थिति अत्यधिक खतरनाक है क्योंकि इसमें पूरा उदर ही संक्रमित हो जाता है। इसे पेरीटोनाइटिस कहते हैं।

उदर के चारों तरफ सेरसमेम्ब्रेन का आवरण होता है जिसे पेरीटोनियम कहते हैं। बाह्य अंगों को आच्छादित करने वाला सेरस आवरण को पेरायटल पेरिटोनियम कहते हैं, तथा आन्तरिक अन्दर वाले आवरण को विसरेल पेरीटोनियम कहते हैं।

पेरीटोनाइटिस दो प्रकार का होता है-

  1. प्राइमरी पेरीटोनाइटिस, यह कीटाणुओं द्वारा होता है।
  2. सैकण्डरी पेरोटोनाइटिस, यह अपेंडिक्स तथा ड्यूडिनल अल्सर फटने के फलस्वरूप होता है।

उक्त दोनों पेरीटोनाइटिस में पेरोटोनियल कैविटी सूज जाती है, उदर की दीवारें कठोर हो जाती हैं, अचानक तीव्र वेदना होती है।

यौगिक चिकित्सा

उड्डियान बन्ध तथा अग्निसार का प्रतिदिन प्रातःकाल अभ्यास करना चाहिये। इसका समय धीरे-धीरे अपनी सुविधा एवं क्षमतानुसार बढ़ाते जाना चाहिये। प्रारम्भ में सरल आसनों का अभ्यास करें । दर्द में सुधार होने लगे तो आसनों की संख्या बढ़ा लें जैसे पश्चिमोत्तानासन, शशांक आसन, सर्वांगासन एवं मत्स्य आसन आदि।

कुंजल क्रिया

पहले प्रतिदिन बगैर नमक डाले कुंजल करना चाहिये तथा बाद में सप्ताह में एक दिन करना चाहिये।

आहार सम्बन्धी सुझाव

एपेंडिसाइटिस की तीव्र स्थिति में रोगी को रसाहार पर रहना चाहिये, जैसे :-

  • गाजर, लौकी, मौसम्मी, संतरा आदि का रस ढाई तीन घण्टे के अन्तराल पर लें। दर्द की तीव्रता कम होने पर दोपहर के भोजन में घुटा हुआ गेहूँ का दलिया या खिचड़ी दें। शाम के भोजन में एक-दो रोटी तथा लौकी, गाजर, शलजम, परवल, तोरई आदि की उबली सब्जी लें।
  • तीव्र अवस्था में चूँकि बार-बार उल्टी हो सकती है। अतः उबले हुए गर्म पानी में, ऊपर बताई गई चीजों के रस को स्टील के गिलास में रखकर गर्म कर लें फिर उसका सेवन करें । रस को धीरे-धीरे मुँह में अच्छी तरह चलाकर पियें।
  • एपेंडिसाइटिस का मूल कारण कब्जजन्य संक्रमण है और कब्ज का मूल कारण परिशोधित आहार है। अतः जहाँ तक हो सके आहार को मूल रूप में ही खाना चाहिये जिससे सेल्यूलोज पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो सके।
  • इसके लिये छिलका युक्त दाल, चोकरदार मोटे आटे की रोटी, गाजर, मूली, प्याज, ककड़ी, खीरा, लौकी, टिण्डा, टमाटर, पालक, बथुआ, चौलाई, तोरई की सब्जी तथा पर्याप्त मात्रा में सलाद का सेवन करें।
  • सब्जी पकाने से पहले उन्हें अच्छी तरह से धो लेना चाहिये फिर काटकर थोड़े गर्म पानी में हल्की आँच पर सब्जी, हल्दी, धनिया, कालीमिर्च या अदरक डालकर 10-15 मिनट तक उबालें। फिर आँच से उतारकर 15 मिनट तक ठण्डा करके सेवन करें।
  • मोटे आटे की रोटी बनाने के लिए आटे को 4-5 घण्टे पहले गूंथ लें। इच्छानुसार. कर्णयुक्त चावल, बाजरा, ज्वार, मक्का आदि का भी सेवन किया जा सकता है।
  • अंकुरित मूंग, मोंठ, चना, तिल, राई, गेहूँ आदि अनाज दाल एवं बीजों के अंकुरण का भी प्रयोग लाभप्रद है । इनको खूब चबा-चबाकर खाना चाहिये । चबाने से आहार में स्थित रोगाणुओं का संक्रमण दूर होता है। पाचन अच्छी तरह होता है तथा मानसिक तनाव दूर होते हैं।
  • प्रतिदिन कम से कम तीन लीटर पानी अवश्य ही पियें। ताजे फल जैसे : चीकू, मौसम्मी, अमरूद, अंगूर, खजूर आदि पर्याप्त मात्रा में खायें।
  • रोग उत्पन्न करने वाले पदार्थों का जिनके बारे में ‘कारण’ शीर्षक के अन्तर्गत चर्चा की जा चुकी है, उनका सेवन कदापि न करें।

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।