औरंगजेब का इतिहास, औरंगजेब मुगलवंश का अन्तिम शक्तिशाली शासक था, उसने मुगल साम्राज्य को दक्षिण तक विस्तार कर दिया। औरंगजेब विशाल साम्राज्य स्थापित करने में सफल रहा, परन्तु इसी समय मुगलवंश पतनोन्मुख हो गया था। औरंगजेब का इतिहास हिंदी में बताइए।
औरंगजेब का इतिहास (Aurangzeb Ka Itihaas)

औरंगजेब का काल (1658 ई० – 1707 ई०)
शाहजहाँ के बाद औरंगजेब 1658 ई० में सिंहासन पर बैठा। उसने शासन की बागडोर सँभालने के बाद तड़क-भड़क का परित्याग करके सादगी का जीवन अपनाया। उसने मदिरा, भाँग आदि के सार्वजनिक सेवन पर प्रतिबन्ध लगा दिया।
अनैतिकता को रोकने व जन आचरण पर नजर रखने हेतु मुहतस्सिब नियुक्त किए। उसने दरबारी नृत्य, संगीत पर भी रोक लगाई किन्तु संगीत को राज्य से प्रतिबंधित नहीं किया। वह स्वयं एक सिद्धहस्त वीणावादक था। समारोहों के समय हरम में संगीत का आयोजन परम्परागत ढंग से होता रहा। मुस्लिमों से जकात धार्मिक कर लिया जा रहा था। गैर मुस्लिमों से “जजिया की पुनः वसूली प्रारम्भ की गई।
यह भी पढ़े – तुगलक वंश
औरंगजेब को शासन ग्रहण करते ही अनेक जटिल समस्याओं का सामना करना पड़ा। मुगल राज्य में अधिकारियों की संख्या बढ़ती जा रही थी, जिनके लिए पर्याप्त जागीरें तथा वेतन की व्यवस्था होना आवश्यक था।
इसके अलावा लगान भी कम मिल रहा था क्योंकि जागीरदार तबादले की आशंका से जागीरों के अन्दर ही खेती बढ़ाने में रुचि नहीं रखते थे। औरंगजेब की स्थिति एक ऐसे वैद्य के समान थी जिसके पास एक अनार हो और सौ बीमार हों।
इस स्थिति से निपटने के लिए एक विकल्प था- दूसरे राज्यों को अपने राज्य में मिलाकर अपने राज्य का विस्तार करना। इसी सोच में उसने अहोम (असम) राज्य बीजापुर और गोलकुण्डा को अपने अधिकार में ले लिया पर जितना लगान इन राज्यों को मिलाने पर मिलता था, उतना ही नये अमीरों पर खर्च करना पड़ता। समय-समय पर उनके विद्रोहों को शान्त करने के लिए धन, समय व ऊर्जा भी व्यय करनी पड़ती।
औरंगजेब को जाटों, बुन्देलों, सिखों, सतनामियों और उत्तर पश्चिम सीमा क्षेत्रों के पठानों के विद्रोह के साथ ही राजपूतों एवं मराठों के साथ भी लम्बे समय तक संघर्ष करना पड़ा। औरंगजेब और जाटों का संघर्ष 1669 में प्रारम्भ हुआ तथा 1691 में उसने जाटों का दमन किया किन्तु यह विद्रोह पूर्ण रूप से शान्त नहीं हुआ और जाटों का संघर्ष चलता रहा।
इसके अतिरिक्त मेवात तथा नारनौल के सतनामियों ने भी समय-समय पर विद्रोह किए। उसके समय तक मुगल तथा सिखों के मध्य सम्बन्ध काफी बिगड़ चुके थे। सिखों की शक्ति निरन्तर बढ़ती जा रही थी जिसको रोकने के लिए उसने पंजाब के मुगल अधिकारियों को आदेश दिये। मुगलों की सेना तथा सिखों के गुरु गोविन्द सिंह के नेतृत्व में युद्ध हुआ जिसमें सिख पराजित हुए।
इसके साथ ही औरंगजेब को पठानों से भी जूझना पड़ा, जो अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित करने के लिए प्रयत्नशील थे तथा अंग्रेजों ने भी इन्हें समाप्त करने का संकल्प किया। उसने कूटनीति तथा दमनकारी नीति अपनाकर सन् 1678 तक पठानों का विद्रोह समाप्त कर दिया।
औरंगजेब को राजपूतों का भी सामना करना पड़ा यद्यपि उसे स्वयं राजगद्दी प्राप्त करने में अनेक राजपूत सरदारों का सहयोग प्राप्त हुआ था। उसने राजपूत राजा जयसिंह तथा जसवंत सिंह आदि को उच्च पद तथा मनसय प्रदान किये किन्तु मारवाड़ के शासक जसवंत सिंह की मृत्यु के बाद उस राज्य के उत्तराधिकार के पद को लेकर औरंगजेब तथा राजपूतों के सम्बन्ध खराब हो थे। अतः राजपूत मुगलों के विरुद्ध हो गये जिसका मुगल साम्राज्य पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ा।
मुगल सेना को शिवाजी से भी टक्कर लेनी पड़ी। शिवाजी ने कई बार मुगलों की विशाल सेनाओं को हराया। इन टक्करों में शिवाजी छापामार युद्ध का सहारा लेते थे। पुर्तगालियों तथा अंग्रेजों ने भी औरंगजेब के समक्ष समस्याएँ उत्पन्न की।
पुर्तगालियों ने बंगाल की खाड़ी में जहाजों को लूटना प्रारम्भ कर दिया तथा चटगॉव (बांग्लादेश) को अपना केन्द्र बनाया। अतः वहाँ मुग़ल सेना भेजी गयी जिसने चटगाँव को अपने अधिकार में कर अन्य भागों को भी मुगल साम्राज्य में मिला लिया। पश्चिमी समुद्री तटों पर अंग्रेज भी उपद्रव कर रहे थे। अतः औरंगजेब में उनके इस उपद्रव को भी समाप्त कर दिया।
मुगल साम्राज्य का पतन
औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का तेजी से पतन हुआ। मुगल दरबार सरदारों के बीच आपसी झगड़ों और षड्यंत्रों का अड्डा बन गया और शीघ्र ही महत्वाकांक्षी तथा प्रान्तीय शासक स्वतंत्र रूप में कार्य करने लगे। साम्राज्य की कमजोरी उस समय विश्व के सामने स्पष्ट हो गई। जब सन् 1739 में नादिरशाह ने मुगल सम्राट को बंदी बना लिया तथा दिल्ली को खुले आम लूटा।
मुगल काल में वाणिज्य तथा व्यापार का विकास हुआ परन्तु इस काल में मुगल सरदारों की विलासिता भी अधिक बढ़ गयी। प्रशासनिक स्तर पर व्यापक असतोष और भेद-भाव फैला। इससे जागीरदारी व्यवस्था में गम्भीर संकट पैदा हो गया। अधिकतर सरदारों का यह प्रयास रहता था कि वे अधिक आमदनी वाली जागीर हथिया लें इस कारण मुगल प्रशासन व्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ता गया।
सरदार स्वाधीनता की कल्पना करने लगे। मुगल प्रशासन बहुत हद तक केन्द्रित था और इसकी सफलता सम्राट की योग्यता पर निर्भर करती थी। योग्य सम्राटों के अभाव में वजीरों, सरदारों तथा मनसबदारों मे उनका स्थान लेने की चेष्टा की जो कि मुगल साम्राज्य के पतन का एक कारण बना।
राजनीतिक क्षेत्र में औरंगज़ेब ने कई गंभीर गलतियों की। उसने मराठों एवं राजपूतों को की बजाय उन्हें अपना दुश्मन बना लिया। औरंगजेब की मृत्यु तक मुगल राज्य दक्षिण तक फैल चुका था। पूरे साम्राज्य का नियंत्रण उत्तर भारत से ही होता था। बहुत दूर होने के कारण दक्षिण भाग पर प्रभावशाली नियंत्रण रखना सम्भव नहीं था।
इसके कारण दक्षिण भारत के राज्य अपने को स्वतंत्र कराने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। मुगल साम्राज्य के पतन का कारण यूरोपियों का भारत में आगमन भी था। पहले उन्होंने भारत से व्यापार करने के लिए मुगलों से इजाजत मांगी परन्तु धीरे-धीरे उन्होंने भारतीय राजनीति में दखल देना शुरू कर दिया और भारतीय राज्यों में अपना प्रभुत्व स्थापित करने लग गए।
धीरे-धीरे उन्होंने भारत में अंग्रेजी राज्य की स्थापना की और 200 वर्षों तक भारत में राज्य किया। इसके अलावा नादिर शाह और अहमद शाह अब्दाली का आक्रमण भी मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना।
नादिरशाह फारस (ईरान) का शासक था। उसे ईरान का नेपोलियन भी कहा जाता था। भारत की अपार धन सम्पदा से आकर्षित होकर 1739 ई० में मुगल बादशाह मोहम्मद शाह के शासन काल में उसने भारत पर आक्रमण किया।
नादिरशाह भारत का कोहिनूर हीरा एवं तख्त-ए-ताउस सहित अनेक कीमती सामानों को लूटकर अपने साथ ले गया। वर्तमान समय में कोहिनूर हीरा ब्रिटेन की महारानी के मुकुट में जड़ा है।
मुगल साम्राज्य के पतन के मुख्य बिन्दु
मुगल साम्राज्य के पतन के मुख्य बिन्दु
- उत्तराधिकार के लिए होने वाले युद्ध में अपार धन एवं शक्ति नष्ट होती थी।
- सम्राट के कमजोर होने से प्रांतीय गवर्नर शक्तिशाली बन जाते थे और वे सम्राट के विरुद्ध विद्रोह कर देते थे।
- मुगल शासन के अंत तक राजकोष में न तो अधिक धन बचा था न ही जागीरें। अधिकारियों को वेतन देना कठिन हो गया, जमीदार असंतुष्ट होने लगे। अतः इनका सरदारों से संघर्ष आरम्भ हो गया।
- मुगलों का जीवन उच्चकोटि के शान-शौकत में व्यतीत होता था। इसके लिए ये काफी धन व्यय करते थे। इससे उनका सामाजिक और चारित्रिक पतन हो गया।
- इन सब कारणों से अठारहवीं शताब्दी में मुगल साम्राज्य का पतन हो गया।
और भी जानिए
- औरंगजेब ने अपने शासन के पचास वर्षों में से लगभग आधा समय दक्षिण के युद्धों में व्यतीत किया।
- औरंगजेब ने शासन सँभालते ही जनता पर से लगभग 80 करों को हटा लिया था।
- औरंगजेब ने मुगल सिक्कों पर से कलमा लिखा जाना बन्द करवा दिया था।
यह भी पढ़े –