बाढ़ पर निबंध:- जल प्रकृति द्वारा समस्त प्राणियों को दिया गया एक महत्त्वपूर्ण उपहार है। स्वच्छ-शीतल नदी का जल कितना मनोरम लगता है, किन्तु वही जल जब बढ़कर तथा अपनी सीमाएं तोड़कर आस-पास के क्षेत्रों में विनाश मचा देता है, तो जल के इसी रूप को हम बाढ़ या जल प्लावन की संज्ञा देते हैं। सृष्टि के प्राण भूत और प्राणियों के जीवन स्वरूप इस जल का सन् 1978 ईद के अवसर पर ऐसा दर्शन और ऐसा मिलन हुआ कि बाढ़ के पुराने सभी कीर्तिमान टूट गए। बाढ़ आपदा प्रबंधन पर निबंध।
बाढ़ पर निबंध

बाढ़ का प्रकोप
भादपद्र भी लगभग आधा बीत गया था और यह आशा हो गई कि अब अगस्त्यनक्षत्र का उदय होगा और वर्षा ऋतु को सकुशल समाप्त ही समझो। तभी अचानक मेघ गरज उठे तथा लगातार अविराम गति से भयंकर वर्षा आरम्भ हो गई। गंगा-यमुना तथा टाँस आदि अन्य छोटी-बड़ी नदियाँ अचानक उफन पड़ीं और उत्तरी तथा पूर्वी भारत भयंकर बाढ़ से हाहाकार कर उठा, दिल्ली से बंगाल तक पानी ही पानी हो गया।
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दिल्ली में बाढ़
प्रतिवर्ष बरसात के मौसम में देश के विभिन्न भागों में बाढ़ की खबरें हम समाचार पत्रों में पढ़ते थे, परन्तु सन् 1978 में दिल्ली में बाढ़ ने जैसी प्रलय मचाई वैसी कभी नहीं आई। भारी वर्षा के कारण यमुना नदी का पानी निरन्तर बढ़ता गया और उसने अपनी सभी सीमाएं लाँघकर बहुत-सी बस्तियों तथा नगरों को अपनी बाँहों में समेट लिया। दिल्ली की पुनर्वास बस्तियाँ जहाँगीरपुरी, मंगोलपुरी एवं पल्ला, मुहम्मदपुरी, टीकरी तथा अन्य गाँव जल-मग्न हो गये।
वहाँ का दृश्य बहुत ही करुणाजनक था। हजारों एकड़ भूमि जल में डूब गई थी। गिरते हुए मकान, ढहती हुई दीवारें, बहते पशु, डूबते हुए प्राणियों को देखकर देखने वालों की आँखों में आँसू आ गए। दिल्ली प्रशासन के बाढ़ नियन्त्रण विभाग तथा अन्य स्वयं सेवी संस्थाओं ने बचाव कार्य प्रारम्भ कर दिया था।
जहाँगीर पुरी, आर्दश नगर तथा अन्य सभी बस्तियों से जितने व्यक्तियों को निकाला जा सकता था, उनके सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा दिया गया, किन्तु बाढ़ का पानी उधर से शाहआलम बांध में दरार पड़ने के कारण आलीशान बस्ती ‘माडल टाऊन’ में घुस गया। वहाँ गलियों, बाजारों में पानी की नदियाँ बहने लगीं। उधर मुखर्जी नगर, टैगोर पार्क भी बुरी तरह जलमग्न हो गये। माडल टाऊन में दस-दस फुट पानी था तो मुखर्जी नगर और जहाँगीर पुरी में पन्द्रह-पन्द्रह फुट पानी था।
गाँव भी बाढ़ की लपेट में
यमुना के आस-पास के गाँवों तथा नगर की बस्तियों की दशा अत्यन्त के शोचनीय थी। बाढ़ का पानी किनारा तोड़कर मनमानी करता हुआ कितने ही गाँवों में घुस गया था। अलीपुर विकास खण्ड के तो प्रायः सभी गाँव इस बाढ़ के कारण पूरी तरह डूब गये थे। अपने प्राणों का मोह लिए हुए गाँवों के लोग अपनी आँखों से पानी से हुए विनाश पर आँसू बहा रहे थे। उनकी आँखों के सामने ही उनके मकानों की छतें, उनका सामान और पशु बह रहे थे, फिर भी प्रकृति के प्रकोप को वे अपना दुर्भाग्य समझ कर सह रहे थे।
जिनके घर उजड़ गये थे, जो घर से बेघर हो गये थे, वे अपना आश्रय पाने की खोज में भटकते दिखाई दे रहे थे। किसी स्त्री की गोद में भूख से बिलबिलाता हुआ बच्चा रो रहा था। तो कोई वृद्ध अपने पोते-पोती का सहारा लिए आगे बढ़ रहा था। किसी युवक के सिर पर बोझ की वह गठरी थी, जो संयोगवश लुटेरन बाढ़ की दृष्टि से बचा ली गई थी।
सहायता कार्य
इस प्रकार के दिल दहला देने वाले दृश्य को देखकर कोई पाषाण हृदय ही मन मारकर बैठ सकता था। इधर दिल्ली प्रशासन की ओर से बाढ़-ग्रस्त क्षेत्रों से लोगों को निकालने और भोजन सामग्री पहुँचाने का काम चल रहा था तो दूसरी ओर अनेक सामाजिक, धार्मिक एवं राजनैतिक संस्थाएं सेवा कार्य के लिए मैदान में उतर आई। बाढ़ पीड़ितों को दिल्ली प्रशासन के विद्यालयों के भवनों में तथा अन्य जगहों में शिविर लगाकर आश्रय दिया गया।
कई बच्चे अपने माँ-बाप से बिछुड़ गये, उन्हें भी कैम्पों में रखा गया। सेना के जवान अपनी नौकाओं के द्वारा बाढ़-ग्रस्त लोगों को निकाल रहे थे तथा उन्हें भोजन-सामग्री तथा अन्य आवश्यक वस्तुएँ भी पहुँचा रहे थे। इस अवसर पर दानी लोग धन से तथा स्वयं सेवक तन-मन से सेवा कार्य में जुटे हुए थे। हैलीकॉप्टर से भी बाढ-ग्रस्त इलाकों में घिरे लोगों के लिए भोजन के पैकेट गिराये गये थे।
अन्य प्रान्तों में भी बाढ़
कुछ दिनों पश्चात् दिल्ली में तो बाढ़ का प्रकोप कम हुआ, किन्तु इस असीमित जलप्लावन ने आगे बढ़ते हुए उत्तर प्रदेश, बिहार, तथा बंगाल में भयंकर विनाश उपस्थित कर दिया। वहाँ की दशा तो अत्यन्त भयंकर तथा दयनीय हो गई। असंख्य जन, अपरिमित धन तथा अनेक पशुओं की हानि हो गई। हजारों एकड़ खड़ी फसल नष्ट हो गई।
उपसंहार
इस भयंकर बाढ़ सिद्ध कर दिया है कि प्रशासन को बाढ़ की इस विभीषिका से जनता को बचाने के लिए कुछ ठोस उपाय करने होंगे। क्योंकि बाढ़ तो प्रतिवर्ष देश के विभिन्न भागों में आती ही रहती है। वर्ष 1988 में भी बाढ़ ने अपना प्रलयंकारी रूप भारत के कई प्रान्तों में दिखाया है।
बाढ़ से बचाव के लिए वृक्षों के कटान पर तत्काल प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए, क्योंकि वृक्षों के अभाव से ही बाढ़ की विभीषिका बढ़ती है। बाढ़ से सुरक्षा के लिए यथाशीघ्र नए वृक्षों को लगाने तथा नदियों पर तट-बन्ध बनाने की व्यवस्था भी करनी चाहिए, जिससे प्रति वर्ष होने वाली जीवों की प्राण-हानि से तथा खेती की करोड़ों रुपयों की क्षति से बचा जा सके।
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