बाग में चोर – सभी पेड़-पौधों से फूल गायब रूपा हैरान

बाग में चोर: एक थी रूपा। उसे पेड़-पौधे लगाने का बहुत शौक था। उसने अपने घर के पास एक छोटा-सा बगीचा लगा रखा था, जिसमें रंग-बिरंगे फूलों के पौधे लगे हुए थे। फलों के पेड़ भी थे। बगीचे के फूल फल बेचकर वह अपना गुजारा करती थी। रूपा को अपने बगीचे से बड़ा लगाव था। वह सारा दिन उसी की देखभाल में जुटी रहती थी।

बाग में चोर

बाग में चोर

एक दिन रूपा बगीचे में पेड़-पौधों को पानी देने गई, तो हैरान रह गई। सभी पेड़-पौधों फूल गायब थे।

अचानक उसकी नजर एक पेड़ के नीचे पड़े एक जोड़ी जूतों पर गई। वैसे जूते उसने कभी नहीं देखे थे। “शायद यह उसी के जूते हैं, जिसने मेरे बाग में चोरी की है। ” -यही सोचकर उसने जूते उठाकर घर में रख लिए।

उसी दिन आधी रात के समय रूपा को कमरे में कुछ आहट सुनाई दी। उसकी नींद उचट गई। उसे कोई छाया कमरे में दिखाई दी। रूपा झट बिस्तर से उठी, उसने रोशनी जला दी।

रूपा ने देखा कि एक छोटी-सी परी उसके कमरे में खड़ी थी। वह परेशान दिख रही थी। रूपा ने उससे पूछा- क्या बात है? तुम इतनी परेशान क्यों हो?”

इस पर नन्हीं परी बोली- “कल रात मेरे जूते यहीं रह गए थे। मैं वही ढूंढ रही हूं। उसके बिना मैं नाच नहीं सकती। “

रूपा को जैसे ही यह बात मालूम हुई कि जूते परी के हैं, वह आग-बबूला हो उठी। गुस्से से बोली- “तुम्हारे जूते मेरे पास हैं। शायद तुम्हीं कल मेरे बाग से फल-फूल चुराने आई थीं। “

इस पर नन्ही परी बोली- “नहीं, नहीं मैं चोर नहीं हूँ। मैं तो कल रात यहां अपनी सखियों के साथ नृत्य करने आई थी। अचानक जोर से आंधी चलने लगी और वृक्षों से फल और पौधों से फूल टूट-टूटकर नीचे गिरने लगे। इससे हम घबराकर जल्दी से परीलोक की और लौट गईं। उसी हड़बड़ी में मेरे जूते यहां रह गए थे। “

रूपा की परी की बात पर विश्वास नहीं हुआ। वह बोली- “तुम झूठ बोलती हो। तुमने हो मेरे बाग में चोरों की है। अब में तुम्हें यहां से नहीं जाने दूंगी।” यह कहकर रूया ने परी को कोठरी में बंद कर दिया। परंतु यह क्या। जैसे ही रूपा ने दरवाजा बंद किया, वह खुल गया क्योंकि परी जादू जानती थी। उसने अपनी जादू की छड़ी घुमाकर दरवाजा खोल लिया था। वह नाराज होकर रूपा से बोली- “तुमने बिना सोचे-समझे मुझे कैद करने का प्रयास करके अच्छा नहीं किया। मैं तो तुम्हारी मदद करना चाहती थी, पर अब नहीं करूंगी।” यह कहकर नन्ही परी वहाँ से चली गई।

कुछ दिन बाद रूपा के बाग में फिर से नए फूल-फल लगे। रूपा उनकी देखभाल में जुट गई। साथ ही उसे यह चिंता खाए जा रही थी कि कहीं फिर उसके बाग में कोई चोर न आ जाए। वह दिन-रात बाग की रखवाली करती।

एक रात की बात है, रूपा बाग में पेड़ के नीचे बैठी थी। अचानक पेड़ों के पत्ते जोर-जोर से हिलने लगे, जोरों से आंधी चलने लगी। फूल-फल टूट-टूटकर गिरने लगे। जब सारे फूल फल गिर गए, तो एक राक्षस आ पहुंचा। उसके पास एक बड़ा थैला था। वह थैले में फूल फल भरने लगा।

यह देख, रूपा को आश्चर्य हुआ। साथ ही उसे स्वयं पर गुस्सा भी आया कि उसने परी पर शक करके उसे यूं ही नाराज कर दिया। अब उसकी सहायता करने वाला कोई नहीं था। राक्षस फिर से सारे फल-फूल ले जाएगा, यह सोचकर वह जोर-जोर से रोने लगी।

रोते-रोते उसने ज्यों ही सिर उठाया तो चकित रह गई। सामने वही नन्ही परी खड़ी मुस्करा रही थी। परी को देखकर रूपा बड़ी खुश हुई।

परी बोली “तुम इतनी उदास क्यों हो? मैं तुम्हारी सहायता करने के लिए आई हूँ।” यह कहकर परी ने अपनी जादू की छड़ी घुमाई छड़ी घुमाते ही जोरों से हवा चलने लगी। यह हवा उस दिशा से विपरीत वह रही थी, जिधर राक्षस जाना चाहता था। राक्षस अपना थैला पूर्व दिशा की ओर खींचता तो वह पश्चिम की ओर खिंचने लगता।

राक्षस ने लाख कोशिश की, पर न वह थैले को खींच पाया, न स्वयं एक कदम आगे बढ़ पाया। आखिरकार राक्षस बहुत परेशान हो गया। राक्षस को परेशान देख परी उसके पास जा पहुंची।

परी को देखकर राक्षस गिड़गिड़ाकर बोला- “कृपया अपना जादू हटाकर मुझे जाने दीजिए। “

तब परी बोली- “मैं एक ही शर्त पर तुम्हें छोड़ सकती हूँ। वायदा करो कि फिर कभी तुम इस बाग में चोरी करने नहीं आओगे।।

राक्षस हाथ जोड़कर बोला- “मैं वायदा करता हूं कि फिर कभी इस बाग में नहीं आऊंगा। खुद मेहनत करके अपना बाग लगाऊंगा।’

परी ने अपना जादू हटा लिया और राक्षस थैला छोड़कर चला गया। रूपा बहुत खुश हुई। उसने परी को धन्यवाद देना चाहा, पर परी न जाने कब चली गई थी।

” सचमुच परी कितनी अच्छी थी।” रूपा के होंठों से निकला। वह सोच रही थी- “काश, परी फिर आ जाए तो कितना अच्छा हो!”

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