बारह साल बाद : भूत भविष्य की बातें बताने वाले युवा महात्मा की कहानी

बारह साल बाद: सहना नदी के किनारे एक छोटा-सा गांव था सोहनपुर। इस गांव से थोड़ी ही दूर किसी बहुत पुराने मंदिर के खंडहर थे। वहां कोई जाकर पूजा-पाठ नहीं करता था। उस मंदिर के पास वृक्षों का झुरमुट था। गांव के बच्चे वहां खेलने जाया करते थे।

बारह साल बाद

बारह साल बाद

गांव में गंगू नाम का एक अधेड़ किसान रहता था। गंगू की पत्नी अपने इकलौते बेटे को जन्म देते समय स्वर्ग सिधार गई थी। बेटे का नाम था सोनू। गंगू ने सोनू को मां की तरह पाला-पोसा था। वह सोनू को बहुत प्यार करता था।

सोनू बहुत ही प्यारा तथा नटखट बच्चा था। अपनी शरारतों से उसने गंगू की नाक में दम कर रखा था। कई बार वह खेलते-खेलते इधर-उधर छिप जाता था। बेचारा गंगू बड़ी मुश्किल से उसे खोज पाता। एक दिन की बात है, तब सोनू आठ वर्ष का हो चुका था। शाम का वक्त था। उस दिन सोनू अपने साथियों के साथ खेलने मंदिर के खंडहरों में पहुंचा। देर तक सब बच्चे आंख-मिचौनी खेलते रहे। अंधेरा घिरने पर वे लौटने लगे, तो सोनू न मिला।

बच्चों ने गांव में आकर गंगू को खबर दी। वह तुरंत लालटेन लेकर मंदिर के खंडहरों में आया। गांव वाले भी गए। सबने बहुत खोज की, किंतु सोनू न मिला। सब सोचने लगे-‘सोनू गया तो कहां?” गंगू ने सोचा ‘शायद वह गांव में आकर कहीं छिप गया होगा।’ परंतु उस रात सोनू घर न लौटा। गंगू घबरा गया। उसने सारा गांव छान मारा। मगर सोनू का कहीं पता न चला। निराश होकर उसने सोनू की तलाश बंद कर दी।

इस घटना को बीते करीब बारह साल गुजर गए। इस बीच सोहनपुर का नक्शा बदल गया। कुछ वर्ष पहले सोहना नदी में बाढ़ आने से करीब आधा गांव बाढ़ की चपेट में आ गया था। घर उजड़ गए तथा परिवार इधर-उधर बिखर गए। गांव को उस जगह से हटाकर दूसरी जगह बसाया गया।

एक दिन सोहनपुर में एक तेजस्वी युवा महात्मा आए। उम्र होगी बीस वर्ष। उनको ज्योतिष तथा अन्य शास्त्रों का अद्भुत ज्ञान था। हाथों की रेखाएं पढ़कर भूत-भविष्य की बातें बताते थे। बातें भी बिल्कुल सही। शीघ्र ही उनकी ख्याति फैल गई। लोग दर्शनों को आने लगे। सारा सोहनपुर उनके दर्शन के लिए उमड़ पड़ा। सैकड़ों की संख्या में दूर-दूर से भी लोग उनके पास आने लगे। महात्मा प्रत्येक व्यक्ति का चेहरा ऐसे ध्यान से देखते जैसे उन्हें किसी विशेष व्यक्ति की तलाश हो।

एक दिन गंगू जो अपने बेटे के गम में उम्र से पहले ही बहुत बूढ़ा हो गया था, महात्मा के पास हाथ दिखाने आया। उसका हाथ देखकर महात्मा बोले- “बहुत भाग्यशाली हो। तुम्हें शीघ्र ही मनचाही वस्तु मिलने वाली है।”

महात्मा की बात सुनकर गंगू की आंखों में आंसू आ गए। वह बोला- “महाराज, मेरे ऐसे भाग्य कहां! जब बारह वर्ष तक वह चीज न मिली, तो अब क्या उम्मीद है!” महात्मा ने गंगू की आंखों में आंसू देखे तो पूछा “क्या बात है? तुम रो क्यों रहे हो, तुम्हें क्या दुख है?”

गंगू बोला ‘आज से बारह वर्ष पहले मेरा बेटा बिछुड़ गया था। मैं उसे तलाश करते-करते थक गया हूं, लेकिन उसका कोई पता नहीं चला। “

गंगू की बात सुनकर महात्मा चौंक उठे। उन्होंने बड़े ध्यान से गंगू को देखा। वह महात्मा और कोई नहीं असल में गंगू का खोया हुआ बेटा सोनू ही था। अपने पिता के गले में बांहे डालकर बोला–“पिताजी, मैं ही आपका खोया बेटा सोनू हूँ। मैंने आपको बहुत दुख दिए। ‘

अपने बिछुड़े हुए बेटे को पाकर गंगू की आंखों में खुशी के आंसू आ गए। वह बोला- “बेटा, मैं तुमसे मिलने के लिए बारह वर्ष से तड़प रहा हूं। क्या इतने दिन में तुम्हें एक बार भी मेरी याद नहीं आई? तुम कहां चले गए थे?”

तपस्वी के वेश में सोनू बोला “पिताजी, उस दिन मैं गांव के बाहर वाले मंदिर के पीछे एक खाई में जाकर छिप गया था। काफी देर तक जब मेरे साथी मुझे ढूंढने नहीं आए, तो मैंने सोचा, अब मुझे घर चलना चाहिए।

मैं अंधेरे में उस खाई से बाहर निकलने की कोशिश कर रहा था, तभी मेरा पैर किसी गड्ढे में जा पड़ा। वहां से लुढ़कता लुढ़कता मैं बेहोश हो गया। जब मुझे होश आया, तो मैंने अपने आपको एक विशाल गुफा में पाया।

उस गुफा के एक कोने में एक बहुत ही वृद्ध साधु ध्यान लगाए बैठे थे। मैं उनके समीप जाकर बैठ गया। जब साधु का ध्यान टूटा, तो मुझे देखकर प्रसन्नता से उनकी आंखें चमकने लगी।

मैंने पूछा- “महाराज, मैं रास्ता भटक गया हूँ। मुझे सोहनपुर गांव जाने का रास्ता बताइए।

साधु बोले- ‘बेटा, यहां से बाहर जाने का रास्ता तो मुझे भी पता नहीं। तुम यहां ईश्वर की इच्छा से आए हो। अब यहीं रहकर मुझसे बारह वर्ष तक विद्या पढ़ो। इसी से मेरा उद्धार होगा।’

मैंने पूछा- “महाराज, मुझे विद्या पढ़ाने से आपका उद्धार कैसे होगा?”

साधु बोले- ‘बेटा, यह एक लंबी कहानी है। जब मैं तुम्हारी उम्र का था, मैंने अपने गुरु के आश्रम में बारह साल तक ज्योतिष तथा अन्य विद्याएं पढ़ीं। विद्याएं पढ़कर मैं प्रकांड विद्वान हो गया। मुझे अपने ज्ञान का घमंड था। मेरे पास कई बच्चे विद्या पढ़ने आए परंतु मैंने उन्हें विद्या नहीं पढ़ाई। मुझे लगा, मेरे समान कोई और विद्वान नहीं होना चाहिए। इस पर मेरे गुरुजी नाराज हो गए।

उन्होंने मुझे श्राप देते हुए कहा- ‘तुम जैसे स्वार्थी तथा घमंडी व्यक्ति के लिए इस पवित्र आश्रम में कोई स्थान नहीं। तुम किसी काल कोठरी में जाकर रहोगे। तुम्हारी मुक्ति तभी होगी जब तुम किसी व्यक्ति को विद्याएं पढ़ाकर अपने समान विद्वान बनाओगे।’ उन्होंने अपने योगबल से मुझे यहां पटक दिया। मैं तबसे आज तक यहीं हूं। सैकड़ों वर्ष बीत गए, परंतु यहां कोई नहीं आया जिसे में विद्या पढ़ाता। आज तुम आए हो।’

साधु की कहानी सुनकर मैं आश्चर्य में पड़ गया। बाहर निकलने का रास्ता था नहीं, इसीलिए विद्या पढ़ने के सिवा चारा भी क्या था। बारह वर्ष तक मैंने विद्याएं पढ़ीं। जिस दिन मेरी शिक्षा संपूर्ण हुई, साधु को मुक्ति मिल गई। साथ ही गुफा से बाहर निकलने का रास्ता भी खुल गया। इसके बाद वह साधु पता नहीं कहां चले गए!

मैं गुफा से निकलकर सीधा सोहनपुर आया लेकिन यह गांव मुझे नया सा लगा। मैंने सोचा, मैं किसी और जगह आ गया हूँ आपको ढूंढने के लिए ही मैंने लोगों के हाथ देखने शुरू किए। मुझे उम्मीद थी आप भी मुझसे भाग्य पढ़वाने जरूर आएंगे। और यही हुआ भी। अब मुझे ज्योतिष विद्या से कुछ लेना-देना नहीं। मैं आपके पास रहकर आपकी सेवा करना चाहता हूं। इसके अलावा यदि आपका आर्शीवाद प्राप्त हो, तो मैं गांव में एक पाठशाला खोलना चाहता हूं ताकि मैं अपना सीखा ज्ञान दूसरों को बांट सकूं।

बेटे की बात सुनकर गंगू बड़ा प्रसन्न हुआ। उसने सोनू को गले लगाते हुए कहा–“बेटा, तुम पाठशाला अवश्य खोलो। इससे गांववालों का भला होगा।’

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