राई के ये 14 औषधीय गुण और उनसे होने फायदे के बारे में जाने। राई मसाला है साग है, और औषधि भी है। साग-सब्जी, कढ़ी, दाल, खिचड़ी, रायता, न जाने कहां-कहां इसका प्रयोग होता है। इसे बहुत-से इलाजों के लिए भी प्रयुक्त किया जाता है। कांजी बनाने के काम आती है। राई के लड्डू भी बनाए जाते हैं। राई से तेल भी निकलता है। यह तेल बड़े काम की चीज है। सरसों भी इसी की एक जाति है। राई बारीक तथा मोटे दो प्रकार के दानों वाली होती है।
राई के ये 14 औषधीय गुण और उनसे होने फायदे के बारे में जाने

एक अद्भुत औषधि भी है। कांजी के बड़े में राई ही उपयुक्त रहती है। राई के दानों से तेल निकाला जाता है, जब कि हरे पत्तों से साग तैयार होता है। राई और सरसों, दोनों साग हैं, दोनों का तेल निकाला जाता है, दोनों में लगभग एक-से दाने होते हैं। दोनों को बहनें समझें। दोनों की जातियां भी एक-सी होती हैं- बारीक और मोटी। इसके पौधे भी छोटे और बड़े होते हैं। कटवां टाइप के ।
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सर्दी के आरम्भ में इसकी खेती होती है। भरी सर्दी में इसका साग बनाया जाता है। बसंत के दिनों में दाना तैयार हो जाता है। फलियों को कूटकर राई का दाना निकाल कर, इकट्ठा कर लिया जाता है। आकार में छोटी बड़ी। मगर रंग में भी लाल और काली रंग की राई होती हैं दानों की किस्में। राई के उपयोग निम्न प्रकार से किए जाते हैं-
राई के औषधीय गुण
- पित्त और कफ का नाश करने के लिए, खुजली और कोढ़ की बीमारियों पर काबू पाने के लिए, पेट के कीड़ों को समाप्त करने, पाचन को सुधारने और पाचन शक्ति को तीव्र करने के लिए इसका प्रयोग होता है। यह बहुत ही लाभदायक है।
- यह तासीर में गरम तथा इसका स्वाद तेज होता है।
- पेट में अफारा, तनाव या मामूली किस्म का दर्द हो उससे छुटकारा पाने के लिए तथा मीठी गहरी नींद सोने के लिए पेट पर थोड़ा तेल मलकर राई की रोटी बांधे शीघ्र सुख प्राप्त होगा। राई को रोटी के लिए पीसते वक्त हींग और धा नमक डालें।
- यदि बदन के किसी भाग पर या कई भागों पर खुजली से पीड़ित हो तो राई विशेषकर लाभकारी है। इस सूखी खुजली से छुटकारा पाने के लिए राई को गौमूत्र के साथ पीस लें। थोड़ी हल्दी मिलाकर चूर्ण तैयार कर लें कड़वे तेल की कुछ बूंदें मिलाकर खुजली पर धीरे-धीरे मालिश करें। नहाती बार साबुन का प्रयोग न करें। लगभग एक घंटे बाद चिकनी मिट्टी से नहा लें। केवल 10 दिनों में खुजली से छुटकारा मिल जाएगा।
- यदि भूख कम लगे। खाया-पिया न पचे। खट्टे डकार आते हों, पाचन शक्ति कम हो गई हो। तो राई की कांजी 20-25 दिनों तक लें। लाभ होगा।
- बलगम से परेशान हैं। पुरानी उखड़ती नहीं। नई बन रही है। इसके लिए भी राई का चूर्ण बहुत लाभदायक रहता है। इसे खाने से पुरानी तंग कर रही बलगम उखड़कर बाहर निकलेगी और बननी बन्द हो जाएगी। कुपाचन के दोष 1 खत्म कर देगी ( चूर्ण बनाने का तरीका आगे दिया जा रहा है।)
- मासिक धर्म में अनियमितता आ जाए। खुलकर, पूरी तरह न हो रहा हो रुक-रुककर आता हो। पीरियड (मासिक धर्म) भी महीने में आगे-पीछे हो जाता हो। तो स्त्री का जीवन दूभर हो जाता है। इससे कई अन्य बीमारियां भी जन्म ले लेती हैं। पेड़ में दर्द, आंखों में जलन, माथे में चक्कर, भूख न लगना आदि कष्टदायक अवस्थाएं हो जाती हैं। ऐसे में राई की चटनी अचूक दवा है। (राई की चटनी बनाने की विधि आगे दी जा रही है।)
- यदि शरीर में बलगम इतना बढ़ गया हो कि सांस की प्रक्रिया में भी रुकावट आने लगे तो ‘राजिकारि चूर्ण’ का सेवन करने से इससे छुटकारा पाया जा सकता है। यह चूर्ण बलगम, आंव तथा वायु, तीनों विकारों का खात्मा कर देता है। रुका हुआ पेट साफ हो जाता है। भूख तेज लगने लगती है। पेट की आग तेज होती है (राजिकादि चूर्ण बनाने की विधि आगे दी गई है।)
- यदि तिल्ली बढ़ जाए, खून की कमी महसूस होने लगे, हर एक दो दिन बाद, जूड़ी देने वाला बुखार भी आने लगे, तो राई से बनी चटनी खानी चाहिए। इस चटनी को ही ‘राजिकावलेह’ भी कहते हैं 45 दिनों तक इस चटनी का सेवन करना चाहिए। इससे जूड़ी वाला बुखार नहीं आएगा। तिल्ली घट जाएगी। भूख लगने लगेगी। पोटी भी ठीक से आया करेगी। (राजिकावलेह बनाने का तरीका आगे दिया जा रहा है।)
- तिल्ली का ऊपर लिखा इलाज करते हुए यदि तिल्ली के ऊपर ‘राई का प्लास्टर’ भी लगाया जाए, तो तीव्र व अवश्य फायदा होगा। (राई का प्लास्टर बनाने का तरीका अलग से दिया जा रहा है।)
- भोजन में रुचि पैदा करने तथा पेट भर भोजन करने के लिए राई का पानक’ तैयार कर, इसका सेवन करना चाहिए (पानक बनाने का तरीका आगे दिया है।)
- मासिक धर्म को नियमित करने, पूरे समय पर लाने के लिए ‘राई की चटनी’ एक अचूक दवा है। (इसे बनाने की विधि अलग से दी जा रही है।) राई की पट्टी बांधना भी इलाज है (इसका तरीका भी आगे दे रहे हैं।)
- पेट की अग्नि तेज करने के लिए, भूख लगाने के लिए, मुंह का स्वाद बनाने के लिए, खाना खाकर कलेजे में वायु न चढ़े, तो ‘राजिका संधान का उपयोग करना चाहिए। इसे ही राई की कांजी भी कहते हैं। इसे लेने से बिगड़ा हुआ कफ भी ठीक हो जाता है। शरीर में गर्मी बढ़ती है। और तो और, आंतों के कीड़े भी मर जाते हैं। (राजिका संधान बनाने का तरीका आगे दिया जा रहा है।)
- तेज बुखार होने, वायु में गड़बड़ी हो जाने से जब मल बड़ी आंतों में इकट्ठा हो जाता है तो पेट में तनाव रहने लगता है। यह किसी अन्य कारण से भी हो सकता है। इसका उपचार राई से हो सकता है।
50 ग्राम राई को पानी में पीस लें। इसमें सेंधा नमक व हींग भी अन्दाज से डाल लें सबको मिलाकर इसकी टिक्की-सी बना लें। तवे पर सेंककर जरा सख्त कर लें। ताकि पकड़ी उठाई जा सके। अब पेट पर सरसों का तेल लगाकर कपड़े से यह रोटी बांध दें। कोई डेढ़ घण्टे बाद रोटी हटा दें। इससे पेट का अफारा ठीक हो जाएगा। वायु निकल जाएगी।
कुछ विधियां
राई की कांजी अथवा राजिका संधान बनाने का तरीका
एक घड़ा लें। इसे अच्छी तरह धोकर सुखा लें। इसके अन्दर की ओर राई या सरसों के तेल से चुपड़ लेवें। इसे गरम पानी से भर लें, थोड़ा हिस्सा छोड़कर। राई का बारीक पाउडर 500 ग्राम हींग 15 ग्राम भूनी लें। सेंधा नमक 300 ग्राम। पीपल, सोंठ, काली मिर्च, जीरे का चूर्ण, इन चारों को 100-100 ग्राम लें। हल्दी का चूर्ण 50 ग्राम अब 500 ग्राम कूटकर जी को 4 किलो पानी में पकायें जब एक किलो पानी शेष रहे, तब उसे छान लें इसे भी कांजी वाले घड़े में डालें। कोई 5-6 दिन घड़े का मुंह बंद रखें। इसके बाद इसे छानकर अलग से बोतल में संभाल लें।
इस कांजी का सेवन करने से पेट का तनाव ठीक होता है। पोटी ठीक आती है। दर्द व अपचन में सुधार होता है।
राई की चटनी बनाने की विधि
10 ग्राम राई को पानी में पीस लें। जम्बीरी नींबू के रस में इसे पतला करें 1 इसमें थोड़ा-सा सोहागे का पिसा लावा तथा इससे दुगुना सेंधा नमक मिला लें। नाश्ता तथा भोजन के समय इसे नियमित लें। यह मासिक धर्म को नियमित करने में मदद करती है। दो सप्ताह का सेवन ही काफी रहेगा। साथ ही राई की पट्टी को पेड़ पर बांधने से जल्दी लाभ होता है।
राई की पट्टी क्या है
घृतकुमारी का रस लेकर इसमें 10 ग्राम राई को पीस लें। इसे 3 इंच चौड़ी और 3 फुट लम्बी कपड़े की पट्टी के कुछ हिस्से पर फैला दें। शेष कपड़े से ट्रक दे थोड़ा सरसों का तेल लगाकर इसे बांध दें। इसे दो घन्टे तक सटी रहने दें। इसे रोजाना एक बार करें। शीघ्र लाभ होगा।
राई का पानक बनाने का तरीका
2 किलो पके खीरे लें। इन्हें छीलकर टुकड़े कर लें। इस पर 50 ग्राम जवाखार का चूर्ण डालें। इसे तीन घंटे धूप में रखें ध्यान रहे कि मिट्टी का बर्तन ही अच्छा होगा। इसे हाथ से ही मसलकर छान लें। इस रस को चीनी के मर्तबान में रखना ज्यादा उपयोगी होगा। अब इसमें 300 ग्राम पिसी राई, 30 ग्राम पीपरमूल, 10 ग्राम अजवायन और दस ग्राम ही सोंठ, 50 ग्राम सेंधा नमक, थोड़ी मात्रा में हींग, अनारदाना 50 ग्राम, काला मुनक्का 50 ग्राम तथा जम्बीरी नींबू का रस 100 ग्राम इन सबको उसी मर्तबान में डालें, जिसमें खीरे वाला रस पहले ही रखा गया है।
सोंठ और पीपरमूल आदि को इकट्ठा पीस लें। मुनक्का वगैरा अलग से पीसकर, बीज निकालकर इसमें मिला दें। दो सप्ताह तक इस बर्तन को ढंककर रखें। अब अच्छे साफ मोटे कपड़े से सारी दवा को छानकर शीशियों में भर लें। 15 ग्राम की एक खुराक मान, इसे लें। भोजन करने के बाद, सुबह-शाम इसे लेना फायदेमन्द होगा। इसे ही राई का पानक कहते हैं। पीते समय 15 ग्राम पानक और 15 ग्राम पानी मिलाकर लें।
राजिकावलेह बनाने की विधि
अढ़ाई किलो जामुन का सिरका लेवें बारीक काली राई 500 ग्राम नीचे लिखी दस चीजें 50-50 ग्राम-
1. | काली मिर्च |
2. | सोंठ |
3. | अजवायन |
4. | पीपल |
5. | चित्रक की जड़ की छाल |
6. | शरपुंखा की जड़ |
7. | नौसादर |
8. | काला नमक |
9. | सुहागे का लावा |
10. | जवाखार |
अर्क अजवायन में छः घंटे तक भिगोकर मुलायम की हुई एक किलो अंजीर को सिल पर पीस ऊपर सब कुछ मर्तबान में रखें। मर्तबान का मुंह ढंक रखें। आठ-दस दिनों बाद यह प्रयोग करने योग्य हो जाएगा। इसे प्रातः व सायं अवलेह को कुलथी के जूस से लेना चाहिए।
राई का प्लास्टर बनाने का तरीका
बहुत पुराना गन्ने का सिरका 150 ग्राम नीचे लिखा सामान लें-
1. | मूली का बीज |
2. | राई |
3. | सोंठ |
4. | गाजर का बीज |
5. | एलुआ |
6. | काली अतीस |
7. | कसीस |
8. | कुटकी |
9. | कतीरे का गोंद सब 10-10 ग्राम |
इन सब चीजों को ऊपर बताए सिरके में मिलाकर पेस्ट बना लें। 9 इंच चौड़े साफ कपड़े पर इस पेस्ट को बिछा दें। शेष कपड़े से इसे ढंक दें। इस पड़ी को तिल्ली के ऊपर चढ़ा दें। इसे ऊपर से अन्य कपड़े की पट्टी से बांध दें। अगले दिन हटा दें। फिर रोजाना 5 दिन तक ऐसा करें।
राजिकादि चूर्ण बनाने की विधि
नाम | मात्रा |
---|---|
भाड़ में भूनकर तैयार की गई राई | 300 ग्राम |
काला नमक | 150 ग्राम |
अनारदाना | 100 ग्राम |
अजवायन | 75 ग्राम |
सोहागा का लावा | 25 ग्राम |
छोटी हरें (भूनकर) | 10 ग्राम |
सोंठ (भूनकर) | 10 ग्राम |
बड़ी पीपल | 10 ग्राम |
काली मिर्च | 10 ग्राम |
जवाखार | 10 ग्राम |
बनाने की विधि
इन सबको कूट-छानकर महीन चूर्ण तैयार कर लें। यह कहलाएगा राजिकादि चूर्ण। छोटा आधा चम्मच एक खुराक होगी। इसे सील-गरम जल के साथ लें। दिन में तीन बार, हर छः-छः घंटे के बाद।
कफ, बलगम, श्लेष्मा, जो भी नाम दें, यह छाती में नुक्स पैदा करता है। श्वास प्रणाली में तकलीफ करता है। फेफड़ों को घेर लेता है। सांस लेना कठिन कर देता है। चलना-फिरना या हल्का-सा काम भी नहीं हो पाता। शरीर के तीन दोष-वात, पित्त और कफ इनका सन्तुलन बिगड़ना नहीं चाहिए। यदि राजिकादि चूर्ण खाएं तो कफ नहीं बिगड़ेगा। भूख भी ठीक से लगेगी। मंदाग्नि की शिकायत भी नहीं होगी। जब भी आंव आने लगे तो समझ लो कि कफ बढ़ गया है। बिगड़ गया है। इसे काबू में लाना है।
यदि थोड़ी-सी ठंड लग जाए, तो खांसी शुरू हो जाएगी। इस समय बड़ी एहतियात की जरूरत होती है। निम्नलिखित चीजें खाने से या अधिक सेवन करने से कफ बढ़ता है। अतः इनसे परहेज रखें। (1) खटाई, (2) कोई भी अचार, (3) पका कटहल, (4) पका केला, (5) मिठाई, (6) मीठा, (7) उड़द की दाल, (8) बेर, (9) शीतल पेय जल, (10) अरवी (11) नए अन्न खाना, (12) दही, (13) दिन के समय सोना, (14) गुड़, (15) बड़हल, (16) बर्फ, (17) सत्तू, (18) ठंडे कमरे में रहना, (19) सीलन वाले स्थानों पर निवास । बलगम कम करने के लिए चावल, जौ, मूंग, कुलथ, पुराने अनाज की रोटी, मसूर की दाल, मूली, करेला, अदरख, अजवायन और काली मिर्च फायदा करेंगे।
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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।