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बेरोजगारी की समस्या पर निबंध? बेरोजगारी की समस्या के कारण?

बेरोजगारी की समस्या पर निबंध: जब कोई युवक-युवती विद्याध्ययन समाप्त कर बाहर आता है, तो उसको किसी ऐसे काम की तलाश होती है, जिससे वह धन कमा सके। धनोपार्जन को, प्राचीन ग्रन्थों में, गृहस्थ जीवन का पुरुषार्थ बतलाया गया है। जब युवकों को कोई काम नहीं मिलता, तो उस अवस्था को बेरोजगारी कहते हैं।

बेरोजगारी की समस्या पर निबंध

बेरोजगारी की समस्या पर निबंध
Berojgari Ki Samasya Par Nibandh

जीवन में प्रवेश करने पर प्रत्येक वयस्क व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा होना चाहता है। वह आर्थिक आत्मनिर्भरता चाहता है परन्तु शिक्षा और दक्षता सम्पन्न होने पर भी जब उसको कोई काम नहीं मिलता तो वह निराश हो जाता है। इससे व्यक्ति तथा राष्ट्र दोनों की ही हानि होती है। राष्ट्र भी उसकी योग्यता तथा क्षमता का लाभ उठाने से वंचित रह जाता है।

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व्यापक समस्या

बेकारी हमारे समाज की एक व्यापक समस्या है। यह समस्या हर देश में तथा हर काल में रही है। समाज में निर्धनता की वृद्धि के लिए बेकारी ही उत्तरादायी है। अमेरिका जैसे सम्पन्न देश में भी बेकारी की समस्या जटिल है। भारत में प्राचीन काल में भी बेकारी की समस्या थी। गोस्वामी तुलसीदास की निम्नलिखित पंक्तियाँ इसको प्रमाणित करती हैं

बेकारी की समस्या पूरे संसार में व्याप्त है। विकासशील देश होने के नाते भारत इस समस्या का सामना अधिक कर रहा है। रोजगार कार्यालयों के आँकड़े बताते हैं कि बेरोजगारी सुरसा के मुँह की तरह बढ़ती चली जा रही है।

पंचवर्षीय योजनाओं में इस समस्या से मुक्ति के जितने उपाय किये गये हैं, यह उतनी ही अधिक बढ़ी है। इसी से इसकी व्यापकता का सहज अनुमान लगाया जा सकता है।

बेकारी के कारण

भारत में शिक्षित बेरोजगारी की समस्या अत्यन्त प्रबल है। यहाँ प्रत्येक नवयुवक पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी चाहता है। वह अपने प्रयास से कुछ करना तथा स्वावलम्बी होना नहीं चाहता। इसका कारण यह है कि वह श्रम की महत्ता भुला चुका है।

आत्मविश्वास का उसमें अभाव है। बहुत मामलों में पूँजी का अभाव भी उसको अपना उद्योग लगाने से वंचित करता है। अनुभवहीनता भी इसका कारण बनती है। सरकारी तथा गैरसरकारी नौकरियाँ सीमित हैं, अतः प्रत्येक को नौकरी नहीं मिल पाती।

भारत विकासशील देश है। अभी उसके पास इतने साधन नहीं हैं कि प्रत्येक को रोजगार दे सके। आर्थिक विकास तथा रोजगार के अवसरों में कोई तालमेल भी नहीं है। बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण रोजगार चाहने वाले हाथों की संख्या भी द्रुत गति से बढ़ रही है। उतनी द्रुत गति से संसाधनों विकास नहीं हो पा रहा है।

भारत की शिक्षा प्रणाली दूषित है। वह युवकों को केवल किताबी ज्ञान देती है। प्रत्येक युवक-युवती विश्वविद्यालय तक जाने को बाध्य होता है। उसे किसी प्रकार की व्यावसायिक तथा तकनीकी शिक्षा नहीं मिल पाती। वह इस योग्य ही नहीं होता कि अपना उद्योग लगा सके।

आर्थिक तथा औद्योगिक नीति भी बेकारी की समस्या को बढ़ाने वाली है। हमारी सरकार देश के आर्थिक उत्थान के लिए अपने साधनों, शक्तियों तथा तकनीक का प्रयोग करने के स्थान पर विदेशी तकनीक तथा पूँजी को आकर्षित करना चाहती है।

वह बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को छोटी-छोटी चीजें जैसे आलू के चिप्स, पिज्जा, चिकन, शीतल पेय बनाने के लिए आमन्त्रित कर रही है। हम विदेशी पूँजी और तकनीक उधार लेकर देश को समृद्ध बनाने का सपना देख रहे हैं।

पूँजीवाद मुनाफा कमाने में विश्वास करता है। इस आर्थिक प्रणाली में बेरोजगारी हमेशा रहती है। जब स्वदेशी पूँजीपतियों को ही देश तथा जनता के हितों की तुलना में अपना मुनाफा प्रिय होता है तो विदेशी पूँजीपति कम्पनियाँ क्या यहाँ भारत का उद्धार करने आ रही हैं? बड़े उद्योग तथा मशीनीकरण भी बेरोजगारी को जन्म देते हैं। एक मशीन दस मनुष्यों का काम करके नौ मनुष्यों को बेकार कर देती है। इससे बेकारी फैलती है।

बेरोजगारी के दुष्परिणाम

प्रत्येक व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति अपने उपार्जित धन से करना चाहता है। उसको काम नहीं मिलता किन्तु उसकी आवश्यकतायें तो बनी ही रहती हैं। उनकी पूर्ति के लिए वह बाध्य होकर अनुचित साधनों से धन कमाता है।

इस प्रकार चोरी, डकैती, ठगी, तस्करी इत्यादि बुराइयों का जन्म बेकारी से ही होता है। बेकारी के कारण निर्धनता बढ़ती है और समाज में गरीब-अमीर का वर्गभेद उत्पन्न हो जाता है। इससे उनमें परस्पर झगड़े होते हैं और समाज में अशान्ति फैल जाती है। युवकों की क्षमता का लाभ राष्ट्र को नहीं मिल पाता अतः राष्ट्र का विकास भी बाधित होता है।

निदान

बेरोजगारी की समस्या का निदान सोच-विचारकर करना आवश्यक है। हमारे शासकों को देश की औद्योगिक, शैक्षिक तथा आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार करना जरूरी है। विदेशी पूँजी का विचार त्यागकर देशी पूँजी पर निर्भरता आवश्यक है।

पूँजी की समस्या लोगों को राष्ट्रीय बचत के प्रति उत्साहित करने से हल हो सकती है। इस प्रकार प्राप्त पूँजी राष्ट्रीय पूँजी होगी तथा उससे सुदृढ़ आत्मनिर्भर स्वदेशी आर्थिक ढाँचा तैयार हो सकेगा। आर्थिक सुधारों की नीति में जनहित के कार्यों की उपेक्षा भारत जैसे देश में उचित नहीं है।

विदेशी तकनीक तथा बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को आमन्त्रित करने के स्थान पर लघु उद्योगों की नीति क्रियान्वित करनी चाहिए। लघु उद्योग अधिक लोगों को रोजगार दे सकते हैं। लाभ न कमाने वाले सार्वजनिक उद्योगों को बन्द न किया जाये।

इससे बेकारी बढ़ती है। सरकार जनहितकारी संस्था होती है, लाभ कमाने वाला पूँजीपति नहीं। शिक्षा प्रणाली को भी व्यावसायिक तथा रोजगारपरक बनाना आवश्यक है। भारत को स्नातक नहीं, इंजीनियर तथा तकनीकी दक्षता वाले लोगों की आवश्यकता है।

उपसंहार

बढ़ती हुई जनसंख्या भारत की अनेक समस्याओं की जड़ है। बेरोजगारी की समस्या भी उनमें से एक है। यदि भारत में जनसंख्या की वृद्धि पर नियन्त्रण सम्भव हो जाय तो बेरोजगारी ही नहीं, अन्य समस्यायें भी हल हो सकती हैं।

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