भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी पर निबंध, हॉकी भारत का राष्ट्रीय खेल है। यह खेल-जगत में विशेष स्थान प्राप्त किये हुए है। यह मनुष्य के शारीरिक विकास के लिए अति उत्तम खेल है। इस खेल को खेलने वाले खिलाड़ियों में फुर्ती, सूझबूझ, संयम तथा सहयोग की भावना का होना अति आवश्यक है, अन्यथा उस टीम को पराजय का मुँह देखना पड़ता है।
भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी पर निबंध

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भारत में हॉकी खेल का आरम्भ
इस खेल का आरम्भ भारत में सन् 1885 में हुआ। सन् 1895 में वेटन कप टूर्नामेंट आरम्भ हुआ। इसमें देश की प्रायः सभी टीमों ने भाग लिया। ग्वालियर में ‘इण्डियन फेडरेशन’ की स्थापना हुई। सन् 1925 में भारत की हॉकी टीम ने ओलम्पिक में भाग लिया। इस टीम ने स्वर्णपदक प्राप्त किया। इस टीम के कप्तान यशपाल सिंह थे।
फिर यह टीम इंग्लैण्ड गयी। इंग्लैण्ड में इस टीम ने ग्यारह में से नौ मैच जीते। योरोपीय लोग भारतीय खिलाड़ियों की चुस्ती, तेजी और टीम भावना को देखकर आश्चर्य में पड़ गये।
लांस एंजल्स में भारतीय खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। भारत ने जापान को 1-1 से हराया। अमरीका को 24-1 से हराया। अब तक किसी देश ने इन देशों को ऐसी पराजय नहीं दी थी। इस मैच में ध्यानचन्द ने आठ तथा रूपसिंह ने दस गोल किये थे। इन खेलों में भारतीय टीम का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा था।
सन् 1936 में बर्लिन ओलम्पिक के फाइनल में भारत का मुकाबला जर्मनी टीम से हुआ। भारत ने जर्मनी को 8-1 से हरा दिया। इस खेल में ध्यानचन्द कैप्टिन थे। जब ध्यानचन्द की टीम लगातार गोल करती जा रही थी तब दर्शकों ने जोर-जोर से तालियाँ बजाकर कहा, “ध्यानचन्द के हाथ में जादू की छड़ी है।” ध्यानचन्द के खेल की चतुराई को देखकर स्वयं हिटलर ने उन्हें अपने कक्ष में बुलाकर बधाई दी।
सन् 1948 में भारत ने लन्दन ओलम्पिक में ग्रेट ब्रिटेन को 8-4 से हराकर चैम्पियनशिप जीती। सन् 1952 में हैलसिकी में भारतीय हॉकी खिलाड़ियों का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। इस खेल के कप्तान बाबू के. डी. सिंह थे। इसके बाद भारत के खिलाड़ियों ने हालैण्ड को हराया। सन् 1956 में मेलबॉर्न ओलम्पिक में भारत का मुकाबला पाकिस्तान से हुआ। इस खेल में भी भारत ने पाकिस्तान को हरा दिया।
पतन की ओर अग्रसर-सन् 1960 में पाकिस्तान ने भारत को हरा दिया। सन् 1968 में मैक्सिको में जो खेल हुआ उसमें भारत को तीसरा स्थान मिला। सन् 1976 में मांट्रियल ओलम्पिक में भारतीय हॉकी टीम को सातवाँ स्थान प्राप्त हुआ।
अब भारत की हॉकी टीम पतन की ओर बढ़ने लगी। सन् 1980 में हालाँकि मास्को ओलम्पिक में भारत ने सफलता प्राप्त कर ली थी किन्तु अब इसका प्रभाव घटने लगा। भारतीय हॉकी टीम ने ध्यानचन्द, रूपसिंह, बलवीर सिंह, के. डी. सिंह इत्यादि के कैप्टिनशिप में विश्व में अपना जो प्रभाव जमाया था, वह अब धीरे-धीरे कम होने लगा।
उपसंहार
भारत हॉकी के खेल का शिक्षा-गुरु रहा था। इस खेल को खतरे से भरा देखकर भारत के स्कूल तथा कॉलेजों में छात्रों की रुचि इस खेल से हटने लगी है। जब तक भारत के खिलाड़ी क्रिकेट से अपनी रुचि कम कर, इस खेल में रुचि नहीं लेंगे तब तक वे अपने पहले के स्थान के यश को प्राप्त नहीं कर सकेंगे। भारतीय खिलाड़ियों को चाहिए कि वे इस खेल में रुचि लेकर भारत का नाम संसार में चमकायें।