मौलिक अधिकार क्या है: भारत जनतांत्रिक देश है। हर ऐसे देश में वहां के नागरिकों को स्वतंत्रतापूर्वक अपना जीवन यापन करने के लिए कुछ सुविधाएं राज्य द्वारा दी जाती हैं। भारत में भी यहां के निवासियों को संविधान द्वारा अनेक अधिकार प्रदान किए गए हैं। संविधान द्वारा प्रदत्त सुविधाओं को ही मूल नागरिक अधिकार नाम दिया गया है। 26 जनवरी सन् 1950 से लागू भारतीय संविधान में नागरिकों को मूल रूप में 7 अधिकार प्राप्त थे, लेकिन सन् 1979 में संविधान में चौवालीसवां संशोधन कर संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में समाप्त कर दिया गया।
मौलिक अधिकार क्या है

Maulik Adhikar Kya Hai
इसी प्रकार संविधान के लागू होने के एक वर्ष के भीतर ही संशोधन कर ‘कार्य, मूलवंश, जाति के आधार पर किसी प्रकार का विभेद नहीं किया जाएगा’ में जोड़ा गया, ‘राज्य को सामाजिक एवं शैक्षिक दृष्टि से अवनतवर्णों अथवा अनुसूचित जातियों और जनजातियों की उन्नति के लिए विशेष प्रबंध करने का अधिकार होगा।
पुनः सन् 1963 में संविधान में सोलहवां संशोधन कर वाक् स्वातंत्र्य पर प्रतिबंध लगाने का राज्य को अधिकार दिया गया। सन् 1967 में उच्चतम न्यायालय ने गोलकनाथ के मुकदमे में निर्णय दिया कि विधान मंडल को मौलिक अधिकारों में संशोधन करने का अधिकार नहीं है और ऐसे संशोधन अवैध होंगे।
फिर भी संसद ने सन् 1971 में चौबीसवें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 369 में ऐसा परिवर्तन कर दिया, जिससे उसे मौलिक अधिकारों में परिवर्तन करने का अधिकार सुरक्षित रहे। सन् 1975 में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने देश में आपातस्थिति लागू कर नागरिक अधिकारों को निलंबित कर दिया।
ये अधिकार सन् 1977 में जनता पार्टी सरकार बनने पर पुनः नागरिकों को प्राप्त हुए। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि संविधान लागू होने के बाद शासक दलों द्वारा बार-बार नागरिक अधिकारों में अपनी सुविधा के अनुसार संशोधन किया गया है।
संप्रति लिंग के आधार पर भेद
भाव न करने के अधिकार को संशोधित कर महिलाओं को विधायी संस्थाओं में 33% स्थान सुरक्षित करने का प्रयास राजनीतिक दलों द्वारा किया जा रहा है। इस प्रकार अब संविधान कोई ऐसा आलेख नहीं रह गया है, जिसके आधार पर नागरिक अपने अधिकारों को स्थायी और सुरक्षित मान सके। भारतीय संविधान के भाग 3 के अनुच्छेद 12 से 35 तक में नागरिक अधिकारों को गिनाया गया है।
नागरिकों को निम्नलिखित 6 मौलिक अधिकार प्राप्त हैं –
- समानता का अधिकार
- स्वतंत्रता का अधिकार
- शोषण के विरुद्ध अधिकार
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
- संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार
समानता का अधिकार
इसके अंतर्गत नागरिकों को निम्नलिखित क्षेत्रों में समानता प्रदान की गई है-
1. विधि के समक्ष समता
संविधान के अनुच्छेद के अनुसार, ‘भारत के राज्यक्षेत्र में राज्य किसी को विधि के समक्ष समता अथवा कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं रखेगा। इस प्रकार भारत के सभी नागरिक विधि के समक्ष समान हैं।
2. भेद-भाव का अंत
संविधान के अनुच्छेद 15 के अनुसार, ‘राज्य द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग, जन्मस्थान आदि के आधार पर नागरिकों के प्रति जीवन के किसी क्षेत्र में पक्षपात नहीं किया जाएगा।
3. सरकारी नौकरियों में समानता
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 के अनुसार, सभी नागरिकों को सरकारी पदों पर नियुक्ति के लिए समान अवसर प्राप्त होंगे। धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर सरकारी नौकरी या पद देने में भेदभाव नहीं किया जाएगा। परंतु अनुसूचित जाति तथा जनजातियों को विशेष सुविधाएं राज्य प्रदान कर सकता है। संप्रति इस अनुच्छेद को पुनः संशोधित कर पिछड़ी जातियों को भी सत्ताईस प्रतिशत आरक्षण दिया गया है और महिलाओं को भी तैंतीस प्रतिशत आरक्षण देने का प्रयास हो रहा है। ‘नौकरी में समानता का अधिकार’ नाम मात्र का रह गया है।
4. अस्पृश्यता का अंत
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 17 द्वारा अस्पृश्यता का अंत कर दिया गया है। इस प्रकार का कोई आचरण दंडनीय अपराध माना जाएगा।
5. उपाधियों का अंत
संविधान के अनुच्छेद 18 के अनुसार, ‘सेना अथवा विद्या संबंधी उपाधियों के अतिरिक्त राज्य कोई अन्य उपाधि नहीं प्रदान कर सकता।’ परंतु व्यक्ति द्वारा की गई राष्ट्र की सेवा के उपलक्ष्य में भारतरत्न, पद्मविभूषण, पद्मभूषण तथा पद्मश्री आदि उपाधियां दे सकेगा।
स्वतंत्रता का अधिकार
स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान द्वारा नागरिकों को अनेक बातों की स्वतंत्रता दी गई है-
- भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता।
- बिना हथियार लिये शांतिपूर्वक सभा करने एवं जुलूस निकालने की स्वतंत्रता।
- संघ तथा समुदाय निर्माण की स्वतंत्रता।
- भारत के किसी भी क्षेत्र में भ्रमण करने की स्वतंत्रता।
- भारत सीमा के अंतर्गत किसी भी स्थान पर निवास करने की स्वतंत्रता।
- अपनी इच्छा के अनुसार व्यवसाय करने की स्वतंत्रता।
- इसी तरह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 20 के अंतर्गत न्याय की स्वतंत्रता का उल्लेख है, ‘किसी व्यक्ति को उस समय तक अपराधी नहीं ठहराया जा सकता, जब तक कि उसने अपराध के समय लागू किसी कानून का उल्लंघन न किया हो। इसके अतिरिक्त एक अपराध के लिए किसी व्यक्ति को एक ही बार दंडित किया जा सकता है।
- जीवन और शरीर की रक्षा की स्वतंत्रता- अनुच्छेद 21 के अंतर्गत प्रत्येक नागरिक के जीवन की रक्षा को मान्यता दी गई है। बिना कानून के किसी भी नागरिक को उसके प्राण या शारीरिक स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा।
- बंदीकरण से संरक्षण की स्वतंत्रता-अनुच्छेद 22 के अंतर्गत बंदी बनाए गए नागरिक को संवैधानिक स्वतंत्रता प्रदान की गई है। भारत के विदेशी शत्रुओं तथा नजरबंदी कानून के अंतर्गत बंदी बनाए गए व्यक्ति को छोड़कर अन्य किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताए अधिक समय तक बंदी नहीं रखा जा सकता है। बंदी बनाए जाने के 24 घंटे के अंदर उसे निकटतम न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित करना होगा। बंदी को अपने वकील से परामर्श करने तथा अपने बचाव के लिए प्रबंध करने का अधिकार होगा।
शोषण के विरुद्ध अधिकार
शोषण के विरुद्ध अधिकार इस अधिकार द्वारा प्राचीनकाल से चली आ रही शोषण की प्रथा समाप्त कर दी गई। संविधान के अनुच्छेद 23 तथा 24 के अनुसार नागरिकों को शोषण के विरुद्ध निम्नलिखित अधिकार दिए गए हैं-
- मनुष्यों के क्रय-विक्रय और बेगार पर रोक-अनुच्छेद 23 के अनुसार मनुष्यों के क्रय-विक्रय और बेगार पर रोक लगाई गई है। इसका उल्लंघन विधि के अनुसार दंडनीय अपराध है। परंतु राज्य सार्वजनिक उद्देश्य से अनिवार्य श्रम की योजना लागू कर सकता है।
- छोटे बच्चों को नौकरी में लगाने पर रोक-संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों द्वारा 14 वर्ष से कम आयु के किसी बच्चे को कारखानों या खानों अथवा अन्य किसी जोखिम भरे कामों में नियुक्त नहीं किया जा सकता है।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25, 26, 27 तथा 28 में नागरिकों को निम्नलिखित धार्मिक स्वतंत्रताएं दी गई हैं-
- प्रत्येक नागरिक को अपने इच्छानुसार धर्मपालन और प्रचार की स्वतंत्रता।
- धार्मिक संस्थाओं की स्थापना और उनके संचालन की स्वतंत्रता।
- धार्मिक संस्थाओं के लिए चल-अचल संपत्ति अर्जित करने तथा राज्य के कानूनों के अनुसार उसका प्रबंध करने की स्वतंत्रता।
- इनके लिए व्यय की जानेवाली धनराशि कर मुक्त होगी।
- सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में किसी प्रकार की धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
- राज्य द्वारा सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में किसी को भी किसी धर्म विशेष की शिक्षा ग्रहण करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा।
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार
संस्कृति और शिक्षा संबंधी अधिकार-संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 द्वाराभारत के सभी नागरिकों को संस्कृति और शिक्षा संबंधी अग्रलिखित अधिकार प्रदान किए गए हैं।
- भारत के सभी नागरिकों को उनकी भाषा, लिपि और संस्कृति की सुरक्षा तथा विकास के अवसर प्रदान किए जाएंगे।
- सरकारी सहायता प्राप्त शिक्षण संस्थाओं में धर्म, वंश, जाति या भाषा के आधार पर प्रवेश लेने से रोका नहीं जाएगा।
- धार्मिक या भाषायी अल्पसंख्यकों को अपनी शिक्षण संस्थाएं खोलने तथा उनके संचालन का अधिकार होगा।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार
संवैधानिक उपचारों का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 32 द्वारा संवैधानिक उपचारों के अधिकार की व्यवस्था की गई है। इस अधिकार द्वारा नागरिकों को यह शक्ति प्राप्त हो जाती है कि वे अपने अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायालय से निर्णय करा सकते हैं। संवैधानिक उपचार में निम्नलिखित मुख्य बातें हैं
- बंदी प्रत्यक्षीकरण- किसी बंदी बनाए गए व्यक्ति की प्रार्थना पर न्यायालय उसे अपने समक्ष उपस्थित करने का आदेश दे सकता है और जांच कर सकता है कि कानून के अंतर्गत उसकी गिरफ्तारी वैध है या नहीं।
- परमादेश- इसका अर्थ यह है कि उच्च न्यायालय तथा सर्वोच्च न्यायालय किसी संख्या या पदाधिकारी को सार्वजनिक कर्तव्य पालन का आदेश दे सकते हैं।
- प्रतिषेध- इस आज्ञापत्र द्वारा सर्वोच्च अथवा न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों को उनके कार्यक्षेत्र से बाहर कार्रवाई करने से रोक सकता है।
- अधिकार पृच्छा- यदि कोई व्यक्ति अवैधानिक रूप से कोई पद प्राप्त कर लेता है, तो इस लेख द्वारा न्यायालय उसे पद का उपयोग करने से रोक सकता है।
- उत्प्रेक्षण- इस प्रकार के लेख मुकदमों और उनके कागजातों को नीचे के न्यायालयों से ऊपर के न्यायालयों में भेजने के लिए जारी किए जाते हैं।
नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध
संविधान द्वारा प्रदत्त मौलिक अधिकार निरपेक्ष नहीं हैं। इन पर राष्ट्र की एकता, अखंडता, शांति एवं सुरक्षा और विदेशी राष्ट्रों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों को पुष्ट करने के लिए प्रतिबंध लगाया जा सकता है। संविधान में निम्न परिस्थितियों में नागरिक अधिकारों पर प्रतिबंध लगाए जाने की व्यवस्था है-
- आपातकालीन स्थिति में नागरिकों के अधिकार निलंबित किए जा सकते हैं।
- संविधान में संशोधन कर नागरिक अधिकार संशोधित या समाप्त किए जा सकते हैं।
- सेना में अनुशासन बनाए रखने के लिए भी ये अधिकार सीमित या निलंबित किए जा सकते हैं।
- जिन क्षेत्रों में सैनिक कानून (मार्शल लॉ) लागू होता है, वहां भी नागरिक अधिकार स्थगित कर दिए जाते हैं।
- नागरिकों द्वारा अधिकारों का दुरुपयोग किए जाने पर भी राज्य उनको निलंबित कर सकता है।
इस प्रकार स्पष्ट है कि संविधान द्वारा प्रदत्त नागरिक अधिकार शाश्वत नहीं है। ये राज्य की विधायिका शक्ति की सदिच्छा पर निर्भर हैं। समय-समय पर संविधान में संशोधन कर नागरिक अधिकारों को काफी कम किया गया है। आगे भी राजनीतिक दल अपना ‘वोट बैंक’ सुनिश्चित करने के लिए नागरिकों के अधिकारों को घटाते-बढ़ाते रहेंगे। मौलिक अधिकार क्या है
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Ans : मौलिक अधिकार अमेरिका देश से लिया गया है।