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भ्रष्टाचार पर निबंध? राष्ट्र के पतन का कारण (भ्रष्टाचार रोकने के उपाय)?

भ्रष्टाचार पर निबंध (Bhrashtachar Par Nibandh):- आज समाज और राष्ट्र के जीवन में जो समस्याएँ मुँह बाये खड़ी हैं, उनमें भ्रष्टाचार की समस्या भी एक है। यह समस्या आज भयंकर रूप धारण कर चुकी है। यह समस्त सामाजिक जीवन को विष-कीट के समान विषैला और घुन के समान धीरे-धीरे खोखला करती जा रही है।

भ्रष्टाचार का अर्थ है-अशुद्ध, अपवित्र और दूषित आचरण। यह शुद्धाचार का विलोम शब्द है। अशुद्ध या दूषित आचरण से शीघ्रतिशीघ्र धनवान् बनने की और ऐश्वर्य तथा वैभवपूर्ण जीवन की अभिलाषा से ही भ्रष्टाचार पनपता है। शुद्धाचरण से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र जहाँ श्रेष्ठ बनते हैं, उन्नत होते हैं, वहीं भ्रष्टाचार से व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का पतन होता है। Corruption Essay in Hindi.

भ्रष्टाचार पर निबंध (Bhrashtachar Par Nibandh)

भ्रष्टाचार पर निबंध

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भ्रष्टाचार का कारण

मनुष्य का भाव, लोभ, स्वार्थपरता, भौतिक सुख-समृद्धि और विलासिता की अभिलाषा है। व्यक्ति के पास जो कुछ है-वह उसी से तृप्त नहीं होता। वह चाहता है कि मेरे पास अधिक से अधिक धन हो, अधिक से अधिक सुखोपभोग की सामग्री हो, मैं समाज में ऐश्वर्यशाली माना जाऊँ।

विज्ञान ने सुख के जो साधन दिए हैं, वे सभी मेरे पास हों, कोठी, कार, नौकर-चाकर सब मुझे प्राप्त हों और रातों-रात कुबेर का कोष मेरे पास आ जाए। फिर मुझे परिश्रम भी अधिक न करना पड़े। इससे व्यक्ति के अहंभाव की भी पुष्टि होती है। इसी के कारण मनुष्य जीविकोपार्जन का नीति-संगत शुद्ध छोड़कर अशुद्ध या भ्रष्ट मार्ग का अनुसरण करने लगता है।

भ्रष्टाचार के रूप

बेईमानी, रिश्वतखोरी, मिलावट और तस्करी भ्रष्टाचार (भ्रष्टाचार पर निबंध) के मुख्य रूप हैं। आज समाज में कोई पक्ष ऐसा नहीं है, जहाँ इन बुराइयों ने घर न कर लिया हो। बेईमानी तो सर्वत्र दिखाई देती है, मिलावट का काम भ्रष्ट व्यापारी करते हैं और रिश्वत का काम सरकारी या अर्द्ध सरकारी अधिकारियों का, मन्त्रियों का, शासन दल के प्रभावी विधायकों का, संसद् सदस्यों का या शीर्षस्थ नेताओं का होता है।

इसी प्रकार रातों-रात धनवान् बनने की इच्छा रखने वाले लोग तथा बड़े-बड़े अपराधी तस्करी में संलग्न हैं। तस्करी वस्तुओं में सोना, हीरे, विदेशी घड़ियाँ, लाइलॉन के वस्त्र, बिजली के नवीनतम उपकरण और हीरोइन तथा ब्राउन शूगर प्रमुख हैं। हाजी मस्तान, दाऊद, आदि इसी श्रेणी के लोग हैं।

सरकारी बाबू और अधिकारी अपने जीवन को अधिक सुख-सुविधापूर्ण और विलासितापूर्ण बनाने के लिए अधिक से अधिक धन-संचय करना चाहते हैं। अतः वे जनता का काम करके नहीं देते। फाइलें जहाँ की तहाँ पड़ी रहती हैं, उन्हें कोई देखता तक नहीं। जब सम्बन्धित व्यक्ति उनके पास काम के लिए जाता है तो कभी परोक्ष रूप में और कभी प्रत्यक्ष रूप में वे उनसे पैसों की (रिश्वत की) माँग करते हैं। वह व्यक्ति भी विवश होकर पैसे (रिश्वत) देकर काम करवाता है।

रेल में टिकट का आरक्षण हो, नगरपालिका में नक्शा पास करवाना हो, कहीं से अपना बिल बनवाना हो, थाने में रपट लिखानी हो, पुलिस से कोई मदद माँगनी हो, जब तक बाबू या सम्बन्धित अधिकारी की जेब गर्म न कर दी जाए वे टस से मस नहीं होते। भारत के न्यायालय भी रिश्वत के अड्डे हैं।

अहलमद, पेशकार, रिकार्ड कीपर सब रिश्वत के बिना काम नहीं करते। बेईमान बाबू, अधिकारी और पुलिस कर्मचारी क्या-क्या काम नहीं करते? पुलिस के अधिकारी तो मोटी रिश्वत लेकर बड़े से बड़े चोरी, डकैती और हत्या के मामले को भी दबा देते हैं। आयकर अधिकारी तो व्यापारियों को स्पष्ट कह देते हैं कि इतनी राशि दे दो और हम लेखे पर हस्ताक्षर कर देंगे। उनके पास लाखों का काला धन जमा रहता है।

इसी प्रकार व्यापारी रातों-रात धन-कुबेर बनने के लिए मिलावट का सहारा लेते हैं। इसी कारण बाजार में कोई भी खाद्य वस्तु शुद्ध नहीं मिलती। दूधिया दूध में पानी मिलाता है, सरसों के तेल में घटिया दर्जे के तेल मिलाये जाते हैं। वनस्पति में चर्बी मिलायी जाती है। वनस्पति में गाय की चर्बी मिलाने के कारण कुछ वर्ष पूर्व कई कम्पनियों के लाइसेंस रद्द कर दिए गए थे। शुद्ध घी में वनस्पति मिला दी जाती है। पिसे मसालों में रंग मिला दिए जाते हैं।

काली मिर्च में पपीते के बीज और बादामों में आडू या खुमानी की गुठलियों मिला दी जाती हैं। सीमेंट में मिट्टी पीसकर मिला देना, सोडे में और पिसे नमक में सफेद पत्थर पीसकर मिला देना तो साधारण बात हो गई है। कभी-कभी वे वस्तुओं का कृत्रिम अभाव पैदा कर उसे काले बाजार में बेच देते हैं। कहाँ तक कहें? कुछ चिकित्सक भी शुद्ध दवाइयों की जगह नकली दवाइयां ही रोगियों को देते हैं। जिससे रोगी स्वस्थ होने की अपेक्षा और अधिक रुग्ण हो जाता है। मिलावटी दवाइयों की बात भी नित्य सुनने को मिलती हैं।

तस्करों का तो कहना ही क्या? उनकी तो अपनी दुनिया है। नित्य करोड़ों रुपयों की हेरा-फेरी करते हैं। राजनीतिक नेता भी भ्रष्टाचार पनपाने के दोषी हैं। वे, विशेषकर शासक दल के लोग व्यापारियों से मोटा चन्दा लेते हैं और बेईमानी करने की खुली छूट देते हैं। मन्त्री लोग कितनी रिश्वतखोरी करते है; इसका पता भी सबको है। महाराष्ट्र के एक मुख्यमन्त्री अब्दुल रहमान अन्तुले ने भ्रष्टाचार से करोड़ों रुपये विभिन्न ट्रस्टों के नाम से लिए।

आन्ध्र के एक मन्त्री के दामाद ने हजारों एकड़ भूमि हड़प ली और हिमाचल के भूतपूर्व मुख्य मन्त्री रामलाल के सम्बन्धियों ने करोड़ों रुपयों के जंगल काट दिए। हरियाणा के मुख्यमन्त्री भजनलाल ने अपने दामाद को कुछ ही दिनों में हरियाणा का बड़ा उद्योगपति बना दिया।

रक्षा सौदों में भूतपूर्व प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी के निकट सहयोगियों ने ही 40-50 करोड़ रुपये की रिश्वत ली है, जिसे दलाली नाम दिया गया है। यह स्वीडन की बोफोर्स कम्पनी की तोपों और जर्मनी की पनडुब्बियों से सम्बन्धित है। शेयर घोटाला कांड तो भ्रष्टाचार का बड़ा मामला सामने आया है। इसमें हर्षद मेहता ने बैंकों के साथ मिलकर पैंतीस अरब की धोखाधड़ी की है।

इतना ही नहीं, शिक्षा के क्षेत्र में भी यह भ्रष्टाचार अपनी जड़ें फैला चुका है, छात्र परिश्रम करके परीक्षा देने के स्थान पर नकल करके उत्तीर्ण होना चाहते हैं। यदि उनके मार्ग में कोई निरीक्षक बाधक बनता है तो चाकू, छुरी और पिस्तौल उसे दिखाया जाता है। कई लालची अध्यापक और निरीक्षक भी पैसा लेकर नकल करवाते हैं। परीक्षा परिषदों और विश्वविद्यालयों के बाबू रिश्वत लेकर क्या-क्या नहीं कर देते; यह सर्वविदित है। अनुत्तीर्ण उत्तीर्ण घोषित कर दिए जाते हैं और द्वितीय श्रेणी वाले प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण जाते हैं।

भ्रष्टाचार रोकने के उपाय

आज भ्रष्टाचार की जड़ें बहुत गहरी जा चुकी हैं। समाज इसकी जकड़ से छटपटा रहा है। जब तक यह बीमारी दूर न होगी राष्ट्र का कल्याण न होगा। इसके लिए पहले सरकारी तन्त्र और कानूनों ‘अत्यधिक कठोर बनाना होगा। पर, कानून बना देने मात्र से कुछ नहीं होगा उनका दृढ़ता से पालन भी कराना होगा।

किन्तु, सरकारी कानून से ही यह काम न हो सकेगा। इसके लिए तो समाज में नैतिकता और पवित्रता का वातावरण बनाना पड़ेगा। हम यह जानते हैं कि पाप के भय से और पुण्य के लोभ से ही व्यक्ति बुरे कामों से दूर रहता है तथा शुद्ध आचरण करता है। अतः समाज के व्यक्ति-व्यक्ति में, धर्म की और पुण्य की भावना को, मानवता की भावना को जगाना पड़ेगा। जब व्यक्ति सोचेगा कि भ्रष्टाचार पाप है, मिलावट गहन पाप है। जैसे मिलावट की खाद्य-वस्तु खाकर दूसरा मर सकता है, ऐसे ही मैं भी मर सकता हूँ; तभी वह इस पाप कर्म से विरत होगा।

मनुष्य में उदार भावना को जगाने में आज समाचार-पत्र, आकाशवाणी और दूरदर्शन भी महत्त्वपूर्ण योग दे सकते हैं। धर्म गुरुओं और सन्त-महात्माओं को भी इस दिशा में अधिक प्रयत्न करना चाहिए। ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः’, ‘आत्मवत् सर्वभूतेषु’ “तेन व्यक्तेन भुंजीथाः” की भावना जब व्यक्ति के हृदय में जग जाएगी और तृष्णा के स्थान पर सन्तोष वृत्ति अधिक बढ़ेगी तो भ्रष्टाचार के स्थान के लिए स्थान ही न रहेगा। ये था भ्रष्टाचार पर निबंध

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