भूपेन्द्रनाथ दत्त का जीवन परिचय: भूपेन्द्रनाथ दत्त का जन्म 4 सितंबर, 1880 में कलकत्ता में हुआ था। वे स्वामी विवेकानन्द के छोटे भाई थे। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त और माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था, उनके पिता बहुत बड़े वकील थे और उनकी मां शिव की उपासिका थीं। वे अपने माता-पिता की दसवीं सन्तान थे।
भूपेन्द्रनाथ दत्त का जीवन परिचय

Bhupendranath Datta Biography in Hindi
पूरा नाम | डॉ० भूपेन्द्रनाथ दत्त |
जन्म | 24 मई, 1896 |
जन्म स्थान | कलकत्ता |
पिता का नाम | विश्वनाथ दत्त |
माता का नाम | भुवनेश्वरी देवी |
मृत्यु | 26 दिसंबर, 1961 |
डॉ० दत्त स्वामी विवेकानन्द के विचारों से अत्यधिक प्रभावित थे। वे भारतीय युवकों को सलाह दिया करते थे कि अपने शरीर को स्वस्थ और सबल बनाना चाहिए, क्योंकि स्वस्थ और सबल शरीर से ही धर्म और राष्ट्र की गरिमा की रक्षा की जा सकती है। युवकों को अपने राष्ट्र और अपने देश की संस्कृति को पहचानना चाहिए। उसी के मार्ग पर चलना चाहिए।
मनुष्य का मन जब देश की दासता की पीड़ा से आकुल हो जाता है, तो उसे घर, द्वार, कुटुम्ब और धर्म तथा स्वर्ग कुछ भी अच्छा नहीं लगता। यहां तक कि वह अपने माता पिता और ईश्वर को भी भूल जाता है। वह देश को ही अपना सब कुछ समझ कर, उसकी गुलामी के बंधनों को काटने में तरह-तरह के कष्ट तो उठाता ही है, आवश्यकता पड़ने पर अपने प्राणों को भी उत्सर्ग कर देता है। किसी ने ठीक ही कहा हैं
डॉ० दत्त एक ऐसे ही देशप्रेमी थे। उनका मन देश की गुलामी की पीड़ा से दिन रात विकल रहता था। जिस प्रकार एक योगी ईश्वर के वियोग की पीड़ा से दुःखी होकर अपना सब कुछ छोड़ देता है, उसी प्रकार दत्त ने देश की गुलामी की पीड़ा से दुखी होकर अपना सब कुछ छोड़ दिया था।
वे देश की स्वतंत्रता के लिए देश छोड़ कर चले गये थे। वे विदेशों में दर-दर भटके और दुःख उठाये। उनके त्याग ने, उनके देशप्रेम ने और उनके साहस तथा शौर्य ने उन्हें अमर बना दिया है।
बंग-भंग आन्दोलन के दिनों में डॉ० दत्त ‘युगान्तर’ के सम्पादक थे। यह आन्दोलन 1905 ई० में बंगाल के विभाजन के विरुद्ध सारे बंगाल में तो चला ही था। भारत के कोने-कोने में भी फैला था। डॉ० दत्त ने अपने ‘युगान्तर’ के द्वारा तीव्र शब्दों में बंगाल विभाजन का विरोध किया था।
उन्होंने ‘युगान्तर’ के एक अंक में युवकों को सलाह देते हुए लिखा था, “अंग्रेज इस तरह नहीं मानने वाले जब तक ईंट का जवाब ईंट से और लाठी का जवाब लाठी से नहीं दिया जायेगा, तब तक अंग्रेज अत्याचार करते ही रहेंगे।”
‘युगान्तर’ में लिखे गये अपने लेखों के कारण डॉ० दत्त 1907 ई० में गिरफ्तार कर लिये गये उन पर राजद्रोह का मुकद्दमा चलाया गया। उन्होंने 24 जुलाई को न्यायालय में बयान देते हुए कहा था, “मेरा नाम डॉ० भूपेन्द्रनाथ दत्त है। ‘युगान्तर’ के जिन लेखों के कारण मुझ पर मुकद्दमा चलाया गया है, वे मेरे ही लिखे हुए हैं। मैंने उन्हें जान-बूझ कर लिखा है। ये लेख लिखकर मैंने देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन किया है।”
दत्त का बयान सुनने के पश्चात् मजिस्ट्रेट ने 24 जुलाई को ही उन्हें एक वर्ष के कठोर कारावास का दण्ड दिया।
डॉ० दत्त को मजिस्ट्रेट ने जब सुनाई, तो वे बड़े प्रसन्न हुए। कुछ स्त्रियां बधाई देने उनकी मां भुवनेश्वरी देवी के पास आईं। भुवनेश्वरी देवी ने अपने पुत्र की सजा को सुनकर कहा, “कारागार का दण्ड तो मामूली बात है। मैंने तो अपने पुत्र को देश को सौंप दिया है, उसे अभी बहुत कुछ करना बाकी है।”
डॉ० दत्त जब एक वर्ष की सजा काट कर कारागार से बाहर निकले, तो अंग्रेजों का दमन-चक्र जोरों से चल रहा था। ‘बन्दे मातरम्’ और ‘सन्ध्या’ आदि पत्र दमन के शिकार हो चुके थे। विपिनचन्द्र पाल भी गिरफ्तार होकर जेल जा चुके थे।
अरविन्द घोष पांडिचेरी चले गये थे। दत्त क्रान्तिकारी कार्यों में संलग्न हो गये। वे सशस्त्र क्रान्ति के द्वारा अंग्रेजी शासन को उलटना चाहते थे, किन्तु सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि उन्हें हथियार नहीं मिल पा रहे थे। बिना हथियार के सशस्त्र क्रान्ति का होना अत्यधिक कठिन था।
अत: डॉ० दत्त अमेरिका चले गये। उन दिनों अमेरिका में कई भारतीय क्रान्तिकारी रहते थे, जो भारत में विद्रोह करने के उद्देश्य से ही अमेरिका गये थे।
उन क्रान्तिकारियों में लाला हरदयाल मुख्य थे। 1913 ई० में जब गदर पार्टी की स्थापना हुई, तो उस समय डॉ० दत्त अमेरिका में ही थे। वे स्वयं गदर पार्टी के सदस्य और उसके कार्यों में योग दिया
करते थे। 1914 ई० में विश्व का प्रथम महायुद्ध आरम्भ हुआ। उस युद्ध में जर्मनी अंग्रेजों में का शत्रु था। अत: डॉ० दत्त जर्मनी चले गये। वे बर्लिन में रहकर जर्मनी के सहयोग से भारत की स्वतंत्रता के लिए प्रयत्न करने लगे।
उन दिनों बर्लिन में कई भारतीय क्रान्तिकारी रहते थे। उन क्रान्तिकारियों में लाला हरदयाल, बरकतुल्ला और चम्पकरमण पिल्ले आदि मुख्य थे। उन क्रान्तिकारियों ने बर्लिन में इंडियन नेशनल पार्टी नामक एक संस्था बनाई थी। डॉ० दत्त भी उस संस्था के एक सदस्य थे।
डॉ० दत्त ने इंडियन नेशनल पार्टी में यह प्रस्ताव रखा था कि भारत की स्वतंत्रता के लिए जर्मनी में एक सेना का संगठन करना चाहिए और उस सेना को जर्मनों की हायता से भारत पर आक्रमण करना चाहिए।
1914 ई० में ही एक दूसरी संस्था का भी गठन हुआ, जिसका नाम जर्मन यूनियन फ्रेडरिक इंडिया था। डॉ० दत्त इस संस्था के भी सदस्य थे। कुछ दिनों पश्चात् वे इस संस्था के महत्त्वपूर्ण कार्यकर्ता बन गये थे।
डॉ० दत्त काफी दिनों तक बर्लिन में रहे। उन्हें इस बात का भरोसा था कि जर्मनी का विदेश विभाग उनकी सहायता करेगा और वे भारत की स्वतंत्रता के लिए कुछ कर सकेंगे, किन्तु उनकी आशा पूर्ण नहीं हुई। जब जर्मनी युद्ध में हार गया, और संधि होने के पश्चात् युद्ध बन्द हो गया, तो वह भारत की ओर से उदासीन हो गया।
1919 ई० में रूस में जनक्रान्ति हुई। जनक्रान्ति के फलस्वरूप रूस में मजदूरों की सरकार स्थापित हुई। जर्मनी की ओर से निराश होने पर डॉ० दत्त रूस गये। उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए रूस की नई सरकार से भी सहायता की प्रार्थना की, किन्तु रूस की नई सरकार ने भी सहायता करने में असमर्थता प्रकट कर दी।
दत्त कई वर्षों तक भारत की स्वतंत्रता के लिए भटकते रहे। उन्होंने बड़े-बड़े कष्ट झेले, बड़ी-बड़ी विघ्न-बाधाओं का सामना किया। जब भारत स्वतंत्र हुआ, तो वह भारत चले आये। 1961 ई० के दिसम्बर मास में उनका स्वर्गवास हो गया। उनकी अटूट देशभक्ति और उत्कृष्ट देशप्रेम ने उन्हें अमर बना दिया है। इनकी मृत्यु 26 दिसंबर, 1961 को हुई थी।
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Why mostly donot know such personality when he has nothing against?
Where bhoopenranath was married or not? If yes.how many kids.when wife died?
Swami viveka nand has never joined apolitical party or andolon .he simly advised youth to forget god ,mother,father ,and think of bharat maa .,ACTUALLY VIVEKANAND WAS GREAT REVOLUTIONIST he trasferred all plan knowledge ete to bhuprndra dutt who was brother and became great revotionalist,he could find subhas chand bose and was to him