ब्रह्मगुप्त का जीवन परिचय (Brahmagupta Ka Jeevan Parichay), ब्रह्मगुप्त का जन्म 598 ई० में राजस्थान के “भीनमाल” गाँव में हुआ। स्थान आबू पर्वत व लूणी नदी के बीच बसा है। भास्कराचार्य जी का मानना है कि उनका जन्म स्थान पंजाब में ‘भिलनालका’ में था। हम इस विवाद में नहीं पड़ना चाहते कि उनका जन्म कहाँ हुआ। वास्तव में विद्वजन का जन्म कहीं भी क्यों न हुआ हो उनकी विद्वत्ता का प्रकाश चारों दिशाओं में अवश्य जाता है।
ब्रह्मगुप्त का जीवन परिचय

ब्रह्मगुप्त को भी भारत के प्राचीन खगोल शास्त्रियों व गणितज्ञों में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने खगोलविद्या व गणित के क्षेत्र में एक नया अध्याय जोड़ा। उस युग में बिना किसी उपकरण की सहायता के खगोल विधा का विकास होना असंभव सा लगता है परंतु हमारे अर्वाचीन वैज्ञानिकों ने इसे सत्य सिद्ध कर दिखाया।
ब्रह्मगुप्त के द्वारा किये गये आविष्कार
S.No | आविष्कार |
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1. | अनिवार्य वर्ग समीकरण का सिद्धांत |
2. | तुरीय यंत्र |
3. | पेल समीकरण का हल |
एक अंग्रेज विद्वान ने ब्रह्मगुप्त के ग्रंथ कुट्टकाध्याय (बीजगणित) का अंग्रेजी में अनुवाद प्रकाशित किया। तब यूरोप के विद्वानों को स्वीकारना पड़ा कि आधुनिक बीजगणित की नींव भारत में ही थी। उन दिनों गणित व ज्योतिष का ज्ञान एक ही ग्रंथ में समाहित किया जाता था तथा इन्हें पद्य भाषा में लिखा जाता था। पद्यात्मक शैली में लिखे इन सूत्रों में ज्ञान कूट-कूट कर भरा है। यदि इनके संपूर्ण विश्लेषण का प्रयास किया जाए तो कदाचित् अनेक नए सिद्धांतों व सूत्रों का पता चल सकता है।
ब्रह्मगुप्त के काल में वैज्ञानिक चिंतन को प्रश्रय दिया जाता था। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी विषय में अपने सिद्धांत प्रस्तुत करने की पूरी स्वतंत्रता दी जाती थी। उन्होंने अपने जीवनकाल में तीन ग्रंथों की रचना की। ब्रह्मस्फुट सिद्धांत, खंड खाद्य, ध्यान ग्रहोपदेश। ब्रह्मस्फुट सिद्धांत को सर्वाधिक मान्यता मिली। इति पूर्व ब्रह्मसिद्धांत नामक ग्रंथ प्रचलन में था। ‘ब्रह्मस्फुट सिद्धांत’ ने उस ग्रंथ की पुराने व अप्रचलित सिद्धांतों के विरोध में यह नया ग्रंथ तैयार किया।
ब्रह्मगुप्त ने गणित के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय योगदान दिया। ब्रह्मस्फुट के पहले दो अध्यायों में बीजगणित व रेखागणित से संबंधित जानकारियाँ हैं। इनमें विशद रूप से अंकगणितीय शृंखलाओं, द्विघाती समीकरण, समकोण त्रिभुज संबंधी साध्यों के प्रमाण, त्रिभुज व चतुर्भुज के क्षेत्रफलों की चर्चा की गई है। इन्हीं अध्यायों में हमें ठोस पदार्थों की बाहरी सतह के क्षेत्रफल व घनफल के विषय में भी पता चलता है।
‘बीजगणित’ इस ग्रंथ का सबसे महत्त्वपूर्ण विषय है। कुट्टाकाध्याय में इसके विषय में पता चलता है। वर्गीकरण व विलोम विधि भी ब्रह्मगुप्त की ही देन है।
पश्चिमी जगत में जिस ‘पेल समीकरण’ की चर्चा की जाती है, उसे हजार वर्ष पूर्व ब्रह्मगुप्त द्वारा ही हल कर दिया गया था। इसे उन्होंने अनिवार्य वर्ग समीकरण का नाम दिया। उन्होंने एक ऐसा सूत्र भी निकाला जिसकी सहायता से चक्रीय चतुर्भुज की चारों भुजाओं की लंबाई द्वारा उसके विकर्णों की लंबाई भी जान सकते हैं।
ग्रंथ के शेष अध्यायों में खगोलविधा की जानकारी दी गई है। इन अध्यायों में ग्रहों की स्थिति पर भी विस्तृत रूप से टिप्पणी की गई है। यंत्राध्याय में अनेक ज्योतिष यंत्रों के विषय में बताया गया है। एक अनुमान के अनुसार तुरीय यंत्र की खोज भी संभवतः उन्होंने ही की थी।
उनके ग्रंथों का अरबी भाषा में भी अनुवाद किया गया। एक किंवदन्ती ने अनुसार ब्रह्मगुप्त के दोनों ग्रंथ ब्रह्मस्फुट सिद्धांत व खंड खाद्य को एक ब्राह्मण द्वारा बगदाद ले जाया गया। बगदाद के खलीफा अल मंसूर के आदेश पर दोनों ग्रंथों का अरबी भाषा में अनुवाद हुआ व अरब में भारतीय ज्योतिष व गणित के ज्ञान का प्रकाश फैला। ब्रह्मस्फुट-सिद्धांत का ‘सिंधिद’ व खंड खाद्य का ‘अल अकरंद’ के नाम से अनुवाद हुआ।
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