बुढ़िया की पोटली: एक बार की बात है किसी गांव में दो बहनें लोटी और खोटी रहती थीं। लोटी बड़ी ही समझदार और भली लड़की थी। इसके विपरीत खोटी बड़ी ही नासमझ और लड़ाको थी। लोटी घर का सारा कामकाज करती और पड़ोसियों की भी सहायता करती। इसके विपरीत खोटी घर का कुछ कामकाज नहीं करती और सारे दिन पड़ोसियों से भी लड़ती-झगड़ती रहती।
बुढ़िया की पोटली

लोटी अपनी बहन के स्वभाव से बड़ी परेशान थी। वह रोज उसको समझाती पर वह उसकी एक न सुनती थी। एक दिन की बात है लोटी और खोटी मेले में गई। वहां पर उन्होंने खूब खेल-तमाशे देखे। कुछ ही देर में रात ढल गई। लोटी और खोटी दोनों घर लौटने लगीं।
रास्ते में एक जंगल पड़ता था। जब वे दोनों जंगल के मध्य में पहुंची तो उनको एक जगह कुछ प्रकाश दिखाई दिया। उस प्रकाश में कुछ परियां नाच रही थीं। उन परियों के पंख उनके पास ही पड़े हुए थे। जब खोटी ने वह पंख देखे तो वह लोटी से पंख लेने की जिद करने लगी।
लोटी ने एक परी के पास जाकर बोला- “परी रानी, मेरी बहन को एक जोड़ी पंख चाहिए, क्या आप मुझे पंख दे सकती हैं? लोटी की बात सुनकर परी बोली–“क्यों नहीं। परंतु आज नहीं, आज तो हमारे पास सिर्फ हमारे ही पंख हैं। अगली बार मैं तुम्हारे लिए भी एक जोड़ी पंख ले आऊंगी।
परी की बात सुनकर लोटी तो खुश हो गई परंतु खोटी को बहुत गुस्सा आया। उसने परी से कहा जाऊंगी। ‘अगर तुम मुझे आज ही पंख नहीं दोगी तो मैं तुम्हारे पंख छीन कर भाग आऊंगी।
खोटी की बात सुनकर परी को भी गुस्सा आ गया। उसने खोटी को अपनी जादू की छड़ी से पत्थर की मूर्ति बना दिया। अपनी बहन की यह हालत देखकर लोटी की आंखों में आंसू आ गए। वह परी के चरणों में गिर पड़ी और बोली-“परी दीदी मेरी बहन छोटी व नासमझ है, उसे माफ कर दो।
यह सुनकर परी को लोटी पर तरस आ गया। वह बोली- “मैं एक शर्त पर ही तुम्हारी बहन को फिर से ठीक कर सकती हूं। तुम्हारी बहन को एक साल तक हमारे लिए गेंदे के फूलों की माला बनानी होगी। अगर किसी दिन भी फूल बासी हुए या समय से माला नहीं मिली तो वह हमेशा पत्थर की ही बनी रहेगी। यह कहकर उसने खोटी को एक बार फिर से जीवित कर दिया।
खोटी चुपचाप अपनी बहन के साथ घर लौट गई। उसको परी द्वारा रखी गई शर्त मालूम पड़ गई थी। अगले दिन वह तड़के उठी और बगीचे में गई। वहां से उसने ताजा गेंदे के फूल तोड़े व झटपट सुंदर-सुंदर माला तैयार की। फिर वह उस माला को जंगल में उसी पेड़ के पास रख आई, जहां पिछली रात परियां नाची थीं। इस तरह वह 364 दिन तक करती रही।
आखिर माला देने का अंतिम दिन भी आ गया। खोटी सुबह जल्दी-जल्दी उठी व खुशी-खुशी बगीचे में गई। वहां जाकर क्या देखती है कि वहां से सब गेंदे के फूल गायब हैं। यह देखकर खोटी उदास हो गई। उसने सोचा यदि परी को आज माला न मिली तो वह फिर से मुझे पत्थर की मूर्ति बना देगी। वह बैठकर रोने लगी। उसके रोने की आवाज सुनकर वहीं पर एक बुढ़िया आई। उसके सिर पर एक बड़ी पोटली थी। उसने खोटी से कहा- “बेटी, जरा मेरे सिर से यह पोटली तो उतार दो, बहुत भारी है।” अगर यह पहले वाली खोटी होती तो बुढ़िया को दुत्कार देती, परंतु अब तो वह काफी बदल चुकी थी। उसने कहा- “अच्छा अम्मां, अभी उतार देती हूं।” यह कहकर उसने बुढ़िया के सिर से पोटली उतार दी।
तब बुढ़िया ने पूछा- “बेटा, क्या बात है तुम इतनी उदास क्यों हो? खोटी ने बुढ़िया को सारी बात सच सच बता दी खोटी की बात सुनकर बुढ़िया बोली “बस, इतनी-सी बात के लिए उदास हो। देखो तो मेरी पोटली में क्या है? खोटी ने पोटली खोली तो वह बहुत खुश हुई क्योंकि पोटली में बहुत सारे ताजे गेंदे के फूल थे। बुढ़िया ने खोटी से कहा- “इसमें से तुम जितने फूल चाहो, ले सकती हो। “
खोटी ने उसमें से कुछ फूल ले लिए और माला बनाई। माला लेकर वह जल्दी से जंगल में उसी पेड़ के पास गई, जहां परी उसका इंतजार कर रही थी। खोटी को देखकर परी ने कहा- “आज से तुम्हारी सजा खत्म हुई। मैंने तुम्हें परखने के लिए ही यह खेल रचा था। वह बुढ़िया कोई और नहीं मैं ही थी। बाग के फूल भी मैंने ही गायब किए थे। तुम अपनी परीक्षा में सफल रही हो। अब तुम अपने घर लौट जाओ।”
खोटी खुशी-खुशी अपने घर लौट आई। उस दिन के बाद से उसका स्वभाव बिल्कुल बदल गया। अब वह भी अपनी बहन की तरह एक भली लड़की बन गई।
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