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सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस क्या है, लक्षण, कारण, दवा, यौगिक चिकित्सा, आसन और प्राणायाम

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस क्या है:- उम्र के साथ एवं अन्य कारणों, जैसे चोट आदि की वजह से गर्दन के पास की हड्डियों में परिवर्तन आ जाता है। उससे अंतराकशेरुकीय गद्दी (इंटरवटेंबल डिस्क) के बीच का स्थान कम हो जाने से रोगी गर्दन में दर्द महसूस करता है। यह ग्रीवा क्षेत्र की रीढ़ की हड्डियों में लम्बे समय तक कड़ापन रहने तथा उसमें उत्तरोत्तर ह्यस हो जाने के कारण होता है। इसे ग्रीवा कशेरुकीय शोथ भी कहते हैं।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के लक्षण के बारे में हिंदी में जानकारी दी गई है, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस का कारण क्या होता है और सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस (Cervical Spondylosis kya Hai) की दवा कौन सी है। क्या सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस की आयुर्वेदिक और होम्योपैथिक दवा आती है। सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस का इलाज और सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस एक्सरसाइज के बारे में बिस्तर से जानेंगे।

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस क्या है (Cervical Spondylosis kya Hai)

सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस क्या है

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सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस क्या है

प्राय: 40 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों में यह रोग देखने को मिलता है। चिकित्सकों के द्वारा एक्स-रे कराये जाने पर प्राय: गर्दन की चौथी, पाँचर्वी, छठी सर्वाइकल कशेरुकाओं के मध्य विकृति स्पष्ट नजर आती है। क्योंकि दो रीढ़ की हड्डियों के बीच जो डिस्क या गद्दी होती है वह सिकुड़कर नष्ट प्रायः हो जाती है और उस स्थान पर की हड्डी की मोटी तथा विकलांग हुई नोंक दिखाई ‘देती है जिसे अँग्रेजी में ‘ऑस्टियोफाईटस’ कहते हैं।

उस स्थान की हड्डी नलिका (फोरामिना) जिससे होकर रक्त का प्रवाह होता है, वह भी सिकुड़कर छोटी हो जाती है। इन रक्त नलियों से रीढ़ की हड्डी को और मस्तिष्क के पिछले हिस्से को रक्त मिलता है। इन हड्डियों के छोटा हो जाने के कारण इससे प्रवाहित होने वाली रक्त की नलियाँ भी दब जाती हैं। इस कारण मस्तिष्क में रक्त का प्रवाह कम हो जाता है फलस्वरूप बेहोशी और चक्कर कभी-कभी आ सकते हैं। इसी प्रकार हड्डी में जो नॉक निकल आती है, उससे स्नायुओं पर दबाव पड़ता है जिसके कारण बाहों और आँखों में दर्द उत्पन्न हो जाता है।

रोग के लक्षण

गर्दन में दर्द पहले तो रुक-रुक कर होता है, पर बाद में वह बढ़ जाता है गर्दन में तनाव, माँसपेशियों में जकड़न, गर्दन घुमाने में दिक्कत, कन्धों में भारीपन एवं दर्द जो बाद में कन्धों से फैलकर हाथों तक आ पहुँचता है। हाथों का सुन्न होना या कम्पन होना, चक्कर आना, सिरदर्द बने रहना आदि लक्षण प्रकट होते हैं। उक्त लक्षणों के अतिरिक्त अन्य लक्षण भी उत्पन्न हो सकते हैं। यह इस बात पर निर्भर करता है कि और कौन-सी नस बढ़ी हुई कशेरुका के बीच दबी है या प्रभावित हो रही है।

सर्वाइकल स्पॉंडिलाइटिस के कारण

गर्दन की रीढ़ की यह सूजन जिसे अंग्रेजी में आस्टियो आर्थइटिस गर्दन में पड़ने वाले खिंचाव या चोट के कारण उभर सकती है। मेरुदण्ड में सबसे कोमल एवं सुकुमार अंग गर्दन ही होती है। यह सब ओर से असुरक्षित है। अधिकांशतः गर्दन में धीरे-धीरे विकृति तथा ह्रास होने के कारण यह रोग उत्पन्न होता है। विकृति के कारण हड्डियाँ एवं उनके जोड़ घिसने लगते हैं, माँसपेशियों तथा उनके अस्थि बन्धों का भी नाश होने लगते हैं। यह रोग मध्य आयु के लोगों में विशेषकर जो बैठे-बैठे गर्दन झुकाये काम किया करते हैं, अधिकतर होता है। मोटे एवं ऊँचे तकिये लगाकर सोने वालों में भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है। चिकित्सकों के अनुसार सर्वाइकल स्प्रेन, रूमेटाइड आर्थराइटिस, सर्वाइकल, डिस्क प्रोलेप्स, अस्थि टी.बी. के अलावा सामान्य हड्डियों में आया बदलाव भी यह रोग उत्पन्न करता है।

औषधीय चिकित्सा / दवा

चिकित्सकों का कहना है कि वैसे तो इस रोग का पता लक्षणों से ही लग जाता है, फिर भी एक्स-रे, सी.टी. स्केन एवं एम.आर.आई. आदि परीक्षण से इस रोग की आसानी से पुष्टि हो जाती है।

आधुनिक चिकित्सा में इस रोग का एकमात्र इलाज फिजियोथेरैपी है। इसके साथ-साथ कुछ दर्दनाशक औषधियाँ भी डॉक्टर देते हैं। कभी-कभी जब रीढ़ की हड्डियों के बीच जहाँ पर विशेष रूप से दर्द होता है तो डॉक्टर कटिकास्टी रायडस की सुई लगा देते हैं। वैसे इससे सूजन तो कम हो जाती है पर किन्हीं-किन्हीं रोगियों को रोग पहले की अपेक्षा और बढ़ जाता है। फिजियोथेरापी अस्थाई और प्रभावकारी लाभ तो मिल जाता है पर यह रोग का स्थाई इलाज नहीं है।

यौगिक चिकित्सा

यौगिक चिकित्सा से इस रोग में कारगर लाभ देखने को मिला है। प्रारम्भिक अवस्था में जब एक्स-रे परीक्षण द्वारा इस रोग का निश्चय हो जाता है और ग्रीवा प्रदेश की हड्डियों से विकृति सुनिश्चित हो जाती है तो पीछे की ओर झुकने वाले कुछ विशेष आसनों से स्नायु एवं माँसपेशियों की विकृति में सुधार होता है तथा इससे गर्दन की स्थिति ठीक होती है और हड्डियों में हो रहा ह्रास रुक जाता है। इसके लिये रोगी को कुशल योगाचार्य के मार्गदर्शन में निम्नलिखित आसन एवं प्राणायाम करना चाहिये।

आसन

1सुप्त वज्रासन
2उष्ट्रासन
3भुजंगासन
4धनुरासन
5उत्तानपादासन
6ताड़ासन
7मकरासन
8मत्स्यासन
9भुजंगासन 8-10 बार करने से शीघ्र लाभ मिलता है

प्राणायाम

1नाड़ी शोधन
2कपालभाति
3भ्रामरी
4उज्जायी प्राणायाम

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

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