चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय: चंद्रशेखर आजाद का जन्म मध्य भारत झाबुआ तहसील के भाँवरा में हुआ था। इनके पिता नाम सीताराम तिवारी और माता जगरानी देवी था। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। चंद्रशेखर आजाद का इतिहास बताये। प्रथम विश्वयुद्ध पश्चात् मुस्लिम लीग और कांग्रेस में मैत्रीभाव जागा था। 1919 सरकार द्वारा किये गये उत्पीड़क उपायों जनता भ्रमित थी कि अंग्रेज सरकार भारतीयों विरुद्ध नाना प्रकार तंग करने की चेष्टाओं में लगी रहती है। भारत की आजादी में चंद्रशेखर का योगदान।
चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय

Chandra Shekhar Azad Biography in Hindi
चंद्रशेखर आजाद का जन्म | 23 जुलाई 1906 |
पिता का नाम | सीताराम तिवारी |
माता का नाम | जगरानी देवी |
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु | 27 फरवरी 1931 |
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु का स्थान | अल्फ्रेड पार्क |
सोच नयी जमीन दी लोगों को संगठित होकर एक मंच से विरोध करना चाहिए, आपसी भाईचारे आवाज उठानी चाहिए, संगठन में बड़ी शक्ति इसका उपयोग करना श्रेयष्कर है। पंजाब जलियाँवाला बाग की नृशंसतापूर्ण अंग्रेजों के अत्याचारों के घाव जनता हृदय अभी ताजे थे, भरे नहीं थे।
अहिंसात्मक असहयोग आन्दोलन को गांधी जी ने अपने नेतृत्व में प्रारम्भ किया निश्चित ही वह ऐसा साझा मंच था जिसके माध्यम से हिन्दुओं और मुसलमानों निकट का अभूतपूर्व अवसर मिल गया।
उस खिलाफत आन्दोलन से हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच अभूतपूर्ण भ्रातृभाव विकसित हुए जिसका विरोध होने भी सितम्बर, 1920 में कलकत्ते में हुए कांग्रेस अधिवेशन अपनाया गया तथा दिसम्बर, 1920 ई. में नागपुर के वार्षिक अधिवेशन में सर्वसम्मति पुनः जनता का समर्थन प्राप्त हुआ।
चन्द्रशेखर आजाद पालन-पोषण एवं शिक्षा-दीक्षा
चन्द्रशेखर बचपन से ही चंचल, नटखट, कर्मवीर और तेजस्वी मनोवृत्ति के भावुक हृदय व्यक्ति थे। जब 14 वर्ष के हुए, वे घर से भागकर संस्कृत पढ़ने विद्वानों की नगरी काशी पहुँचे मगर ये बाल ब्रह्मचारी महान पंडित बनने की बजाय क्रान्तिकारी बन गये।
शरीर गठा हुआ, सुन्दर, आकर्षक और बलिष्ठ था ही उन्होंने इसकी उपयोगिता के लिए शस्त्र कला में प्रवीणता का प्रयास करना प्रारम्भ कर दिया। चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय
अनसुनी प्रार्थना चिनगारी में गयी। बगावत पर उतर आयी, खून उठा। पुलिसवाले थाने की ओर किवाड़ें बन्द कर कमरों गये। कुछ दूकान से मिट्टी तेल कनस्तर उठा थाने की ओर दौड़े और छिड़ककर थाने के भीतर आग लगा दी।
सिपाही थानेदार उस थाने भीतर आग से जल बाहर नहीं आ पाये। थाने के बाहर 26 शहीदों की और अनेकों घायल स्वयंसेवक सड़कों पर कराह रहे ऐसे भयंकर हत्याकांड ने देश नवयुवकों का विद्रोह भावना भर दिया चौरी-चौरा कांड कारण असहयोग आन्दोलन स्थगित कर गया। युवक चन्द्रशेखर का नया रह-रहकर खौलने लगा।
उसके आहत अध्ययन छोड़ क्रान्तिकारी संगठन जुड़ने का मन लिया। निश्चित हो गया ब्रिटिश सत्ता चुनौती केवल सशस्त्र क्रान्ति से ही दी सकती अहिंसात्मक आन्दोलन कभी देश को आजादी दिला सकता है और अंग्रेज भारत छोड़कर लन्दन वापिस सकते पुस्तकीय ज्ञानार्जन के लिए अपना अमूल्य समय बर्बाद करना चाहते थे।
हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोशिएशन की स्थापना
अपनी शिक्षा अधूरी छोड़ हजरत मोहम्मद, अकबर और रणजीतसिंह की पाठशाला में भर्ती हो गये जिन्दगी खाली पुस्तक पढ़ने मिलती 1922 में हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोशिएशन की स्थापना होने के पश्चात् चन्द्रशेखर ने इसकी सदस्यता ग्रहण कर ली। उत्तर प्रदेश के अन्य नगरों में भी इसकी शाखाएँ गुप्त रूप से कार्य करने लगीं। क्रान्तिकारी गतिविधियों के लिए घन चाहिए था।
धनाभाव से दल का कार्य कैसे चलता इस समस्या का समाधान सदस्यों की चिन्ता का विषय बन गया था। एक गुप्त बैठक हुई जिसमें सर्वश्री पं. रामप्रसाद बिस्मिल, राजेन्द्र लाहिड़ी, अशफाकउल्ला खाँ, शचीन्द्रनाथ बख्शी, मन्मथनाथ गुप्त, चन्द्रशेखर आजाद, केशव चक्रवर्ती, मुरारी लाल, मुकन्दी लाल तथा बनवारी लाल उपस्थित थे। दल के अर्थाभाव के लिए अनेक सदस्यों के मत आये।
अन्त में, योजना पर निर्णय हुआ 9 अगस्त, 1925 को लखनऊ से कुछ किलोमीटर दूर काकोरी स्टेशन पर डकैती डाली जाये। निश्चित कार्यक्रमानुसार 8 डाउन रेल जब काकोरी स्टेशन के निकट आखिरी सिग्नल से गुजरी, जंजीर खींच गाड़ी रोक ली गयी। क्रान्तिकारी फरार हो गये।
आजाद की क्रान्तिकारी गतिविधियों
क्रान्तिकारी गतिविधियों का गुप्त केन्द्र प्रतापगढ़ स्थित मतुई गाँव रखा गया जहाँ बम बनाने का कार्य चन्द्रशेखर आजाद भी देखने पहुँचते। यह मतुई गाँव वह केन्द्र था जहाँ कुन्दन लाल को गिरफ्तार कर लाहौर षड्यन्त्र केस में आजन्म कारावास का दंड दिया गया था।
काकोरी कांड
‘काकोरी कांड’ में सम्मिलित सभी क्रान्तिकारी धीमे-धीमे पुलिस के हाथों में आ गये मगर चन्द्रशेखर आजाद आजीवन पकड़े नहीं गये। पहले लखनऊ न्यायालय ने बहराम की कोठी में स्पेशल मजिस्ट्रेट सैयद ऐनुद्दीन की अदालत में 20 क्रान्तिकारियों पर 6 महीने मुकदमा चलाया।
फिर स्पेशल सेशन जज मिस्टर हेमिल्टन की अदालत में 1 वर्ष तक सुनवाई नाटक चलाया और अपने निर्णय में 6 अप्रैल, 1927 को आदेश घोषित किया-पं. रामप्रसाद बिस्मिल, ठाकुर रोशन सिंह, राजेन्द्र लाहिड़ी और अशफाकउल्ला खाँ को मृत्युदंड एवं शचीन्द्रनाथ बख्शी को आजन्म कालेपानी का दंड दिया जा रहा है।
अमर शहीद राजेन्द्र लाहिड़ी 17 दिसम्बर, 1927 को जिला जेल गोंडा में, पं. रामप्रसाद बिस्मिल 19 दिसम्बर, 1927 को गोरखपुर जिला जेल में एवं ठाकुर रोशन सिंह को इलाहाबाद की मलाका जेल में और श्री अशफाक उल्ला खाँ को फैजाबाद जिला जेल में इसी दिन फाँसी के तख्ते पर लटका दिया गया।
अमर शहीदों की शहादत पर काकोरी केस के सन्दर्भ में शहीद गणेश शंकर विद्यार्थी ने अपने साप्ताहिक प्रताप में लिखा-‘संसार को जिन्होंने ठोकर मारकर उड़ाया है ऐसे ही सिरफिरे ये युवक हैं। भारत की राजनीति और शासन व्यवस्था सम्बन्धी प्रगति का श्रेय यदि किसी को दिया जा सकता है तो इन्हें ही दिया जा सकता है।
‘ऐसे आदर्श पुजारियों के प्रति जो देश-काल के बन्धन को काटकर फेंक देते हैं उनके लिये हमारे दिल में आदर है, भक्ति है। ये विद्रोह के पुतले हैं, इन्हें जरा भी चिन्ता नहीं है कि इनका काम क्या रंग लायेगा। सही अर्थों में ये भारत
की अन्तअग्नि की चिनगारियाँ हैं।’ चन्द्रशेखर आजाद ने अपने अमर शहीदों की स्मृति में मौन श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रण किया कि आजीवन वे ऐसी क्रूर सरकार के विरुद्ध अपना शेष जीवन संघर्ष में ही अर्पित कर देंगे।
क्रान्तिकारी दल का पुनर्गठन
क्रान्तिकारी दल का पुनर्गठन कर इसका विस्तार धीमे-धीमे बिहार, संयुक्त प्रान्त, पंजाब और दिल्ली में कार्यरत अन्य सहयोगियों के साथ मिलकर हिन्दुस्तान समाजवादी प्रजातन्त्र सेना की सुदृढ़ नींव डाली। चन्द्रशेखर आजाद उसके सेनापति बने जो बलराज के नाम से विज्ञप्तियाँ प्रकाशित करने लगे।
भूमिगत होकर उन्होंने झाँसी में भी काफी समय तक दल को संगठित किया। छिन्न-भिन्न संगठन में उनके सम्पर्क में भगवान दास माहौर, सदाशिव राव मलकापुरकर, विश्वनाथ वैशम्पायन, मास्टर रुद्र नारायण, मोटर ड्राइवर रामानन्द
और कांग्रेसी नेता धुलेकर और सीताराम भागवत आ गये। उनके दुःसाहसी नेतृत्व का सभी सहयोगी लोहा मानते थे। योजना पर कार्यरत रहते समय, बड़ी सतर्कता, सावधानी और दृढनिश्चय से निर्णय लेते। वे संकट के समय सर्वदा अग्रणी रहते अपनी व्यावहारिक सूझ-बूझ और अदम्य साहस के बल पर दल का सफल नेतृत्व करने में वे सक्षम थे।
उन्हें पंजाब के प्रमुख कार्यकर्ताओं के दल का पूर्णरूपेण समर्थन प्राप्त हो गया जिसमें भगवती चरण वोहरा, उनकी पत्नी दुर्गा देवी उर्फ भाभी, सुशीला देवी उर्फ दीदी, यशपाल, इन्द्रपाल, काशीराम, जहाँगीर लाल, सुखदेव राज, धन्वतरि आदि के नाम उल्लेखनीय हैं।
अब क्रान्तिकारियों का केन्द्र लाहौर से बदलकर दिल्ली आ गया था। यहीं एक बम फैक्टरी भी चालू हो गयी। अचानक जब पुलिस को भनक लगी तो यशपाल रोहतक पहुँचा दिये गये जहाँ वैध लेखराम के सहयोग से बम निर्माण का कार्य जारी रखा गया। चन्द्रशेखर आजाद एक आदर्श क्रान्तिकारी थे।
एक बार जब वे बुन्देलखंड पहुँचे तो वहाँ के कुछ सरदारों ने वहाँ के राजा की हत्या के लिए आजाद को पार्टी के लिए बहुत-सा धन देने का प्रस्ताव किया। चन्द्रशेखर आजाद ने उसे टाल दिया मगर जब दल के सदस्यों ने उनकी स्पष्ट राय माँगी तो उन्होंने अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा- ‘हमारा दल एक आदर्शवादी क्रान्तिकारियों का दल है, हत्यारों का नहीं।
पैसे हों चाहे न हों। हम लोग भूखे पकड़े जाकर फाँसी भले चढ़ा दिये जायें, मगर ऐसा घृणित कार्य नहीं कर सकते हैं।’ निर्भीकता चन्द्रशेखर आजाद में कूट-कूटकर भरी थी और मनोबल उनका बहुत ऊँचा था। उनकी गिरफ्तारी के लिए हजारों रुपये का इनाम सरकार ने घोषित कर रखा था। किन्तु वे बड़ी निडरता से खुल्लमखुल्ला अपने निश्चित कार्यक्रमों को सावधानी से सम्पन्न कर डालते।
एक अभावग्रस्त परिवार में पैदा हुआ, धार्मिक अन्धविश्वासों और कट्टरता में पला हुआ एक अल्प शिक्षित युवक अपने उत्साह, लगन, साहस और वीरता के कारण क्रान्तिकारी संगठन के सर्वोच्च शिखर पर पहुँचा था।
ऐसे अवसर अनेक बार उनके जीवन में आये जब सहयोगियों ने खतरों से बचाने के लिए स्वयं को सुरक्षित रखने पर बल दिया। परन्तु वे सदैव ऐसे आचरण का विरोध करते रहे। वे सुरक्षा, खान-पान, रहन-सहन, आराम और सुविधाओं के लिए अपने से अधिक अपने स्नेही सहयोगियों की विशेष चिन्ता रखते थे।
सांडर्स हत्याकांड
सांडर्स हत्याकांड की योजना को उन्होंने स्वयं बनाया और संचालन किया। भगत सिंह और राजगुरु ने सांडर्स को गोली मारकर जब डी.ए.वी. कॉलेज के अहाते में प्रवेश किया तो उनका पीछा करनेवालों को रोकने के लिए आजाद चन्दन सिंह सिपाही को चेतावनी देकर गोली मारी थी।
ऐसे ही भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने आजाद के ही नेतृत्व में एसेम्बली भवन पर बम फेंका था। इन्हीं के कुशल संचालन में यशपाल ने वायसराय की गाड़ी के नीचे बम विस्फोट कराया था।चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय
लाहौर षड्यन्त्र केस
यतीन बाबू लाहौर षड्यन्त्र केस में गिरफ्तार हुए थे और जेल में सुधारों के लिए 63 दिन का अनशन कर शहीद हो गये थे। एसेम्बली-बम कांड में जब सरदार भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव गिरफ्तार कर लिये गये तो भगवती चरण वोहरा ने इनकी अनुमति में उन्हें आजाद कराने की योजना बिछायी।
नये बमों का परीक्षण करने वे रावी के किनारे गये तो उनके हाथों में ही बम फट जाने के कारण वे बुरी तरह घायल होकर गिर पड़े और दुर्घटना स्थल पर शहीद हो गये। उनका मानो दायाँ हाथ कट गया। उनके हृदय को बड़ा आघात पहुँचा।
चन्द्रशेखर का क्रान्तिकारी दल ब्रिटिश सरकार के लिए चुनौती बन चुका था। हर सदस्य अपनी हथेली पर जान लिये फिरता था। उनमें एक-दूसरे से पहले जान देने की बाजी-सी लगी रहती। सभी को दल के नेता चन्द्रशेखर आजाद की कार्यकुशलता और उनकी वीरता पर गर्व था।
इसीलिए वे केवल एक संकेत पर जान न्यौछावर करने के लिए हर क्षण तैयार खड़े रहते। यह प्रमाणित हो गया था कि यह दल बंगालियों के क्रान्तिकारियों के मुकाबले किसी प्रकार कम घातक नहीं है इसलिए विदेशी सरकार का खुफिया तन्त्र चन्द्रशेखर आजाद के पीछे पड़ा था।
द्वितीय लाहौर षड्यन्त्र केस
पुलिस ने बहुत से क्रान्तिकारियों को पकड़कर द्वितीय लाहौर षड्यन्त्र केस और दिल्ली षड्यन्त्र केस चलाया। काफी सदस्यों को लम्बी सजाएँ हुई। मगर फाँसी किसी को नहीं हुई। चन्द्रशेखर आजाद और यशपाल फरारी का जीवन जीकर संगठन कार्य पर जुटे रहे।
यशपाल इलाहाबाद में एक आयरिश महिला सावित्री देवी के निवास से कुछ दिनों बाद बन्दी बना लिये गये इस गिरफ्तारी से पूर्व पुलिस और यशपाल की मुठभेड़ में दोनों ओर से गोलियाँ चली थीं। यशपाल तभी गिरफ्तार हुए जब उनकी तमाम गोलियाँ खत्म हो चुकी थीं।
संगठन की योजना के सन्दर्भ में चन्द्रशेखर आजाद इलाहाबाद पहुँचे थे। जवाहर लाल नेहरू से यशपाल पन्द्रह सौ रुपए लाये थे जिनमें से पाँच सौ रुपए आजाद की जेब में डाल शेष संगठन संचालन के लिए रख लिये।
चन्द्रशेखर ब्रह्मचारी जीवन
चन्द्रशेखर नैतिक चरित्र पर बड़ा बल देते थे। वे नारी से दूर रहने के पक्षधर थे और चाहते थे कि दल के सदस्य भी दल के आचरण का पूर्णतया पालन करें। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से नारी-प्रसंग पर कम चर्चा करते और साथियों को भी सदा हतोत्साहित करते। उनकी राय थी कि नारी चुम्बक के समान है जिसे यह चुम्बक लगा वह सदैव डूबता ही है।
वे कहते, सिपाही को जिसने आजादी की लड़ाई लड़नी है औरत से उसे क्या प्रयोजन? एक बार आगरा प्रवास में राजगुरु अपने कमरे में सुन्दर स्त्री का चित्र ला टॉग लिया। चन्द्रशेखर आजाद ने उस चित्र को देखकर कई टुकड़ों में फाड़ बाहर फिंकवा दिया और सभी सदस्यों के सम्मुख उन्हें प्रताड़ित भी किया। सभी सदस्य दर्शक मौन साधे सहमे खड़े रहे।
डिमरपुरा में चन्द्रशेखर (चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय) एक ब्रह्मचारी वेश में निवास करते थे। एक सुन्दरी इन पर मर मिटी मगर वे इस अग्नि परीक्षा में सफल ही नहीं हुए प्रतिद्वन्द्वी एक नम्बरदार ठाकुर, जो उस स्त्री पर कामान्ध था, इनके परम मित्र बन बैठे।
इसके बावजूद दल में उनकी अनुमति से दुर्गा भाभी और प्रकाशवती के नाम उल्लेखनीय हैं जिन्होंने पिस्तौल चलाने का प्रशिक्षण अपने प्रिय नेता से ही लिया। हो सकता है अनुभव के आधार पर उनके दृष्टिकोण में जब परिवर्तन आया हो। चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय
उनका मत था- ‘क्रान्ति को जीवन का सहचरी बनानेवाले क्रान्तिकारी को क्रान्तिकारी पत्नी से ही विवाह कर लेना चाहिए। मूड में आ अपनी सम्भावित पत्नी को चित्रित कर कहते- ‘पहाड़ पहाड़ घूम रहे हों, एक रायफल उनके कन्धे पर हो और एक हमारे कन्धे पर कारतूसों की बोरी साथ हो। दुश्मन से यदि घिर जायें तो वह रायफलें भरती जायें और हम दनादन गोलियाँ दागे जायें।
अल्फ्रेड पार्क की घटना
एक दिन चन्द्रशेखर आजाद इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपने सहयोगी सुखदेव राज के साथ थे आजाद की अनुमति पर सुखदेव राज पार्क से बाहर गये और वापिस लौट आये। कुछ देर के पश्चात् उन्हें आभास हुआ कि पुलिस ने पार्क पर घेराबन्दी कर ली है जिसकी कल्पना उन्हें स्वप्न में भी नहीं थी।
उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से भाँप लिया कि लगभग 60 पुलिस कर्मियों का दल अपने जाल को बुनता निकट चला आ रहा है। कोई भी ऐसा मार्ग शेष नहीं बचा जिसके माध्यम से पार्क से सुरक्षित निकल सकें। एक पेड़ की आड़ ले अपना मोर्चा सम्भाला और अपनी पहली गोली पुलिस एस. पी. नटबाबर को मारी जो उसकी बाँह को घायल करती निकल गयी।
पुलिस कप्तान के सिपाहियों का दल पार्क की झाड़ियों की बाड़ के पीछे से छुपकर गोलियाँ आजाद पर बरसाने लगे जिससे उनका दायरा सिमटकर कम होता जाये। आजाद के शरीर में काफी गोलियाँ लगने से वह लहूलुहान हो चुका था मगर
चन्द्रशेखर (चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय) ने बड़े धैर्य और वीरता से इंस्पेक्टर विशेश्वर सिंह के झाँकते हुए चेहरे को निशाना लगाकर गोली चलायी, उसका जबड़ा ही टूट गया। मुठभेड़ से पूर्व आजाद के पास केवल सोलह गोलियाँ थीं जिनमें से वह पन्द्रह गोलियाँ शत्रुओं से आत्मरक्षा में चला चुके थे। शेष बची एक अन्तिम गोली आजाद ने अपनी कनपटी पर मारकर प्राणान्त कर डाला।
चन्द्रशेखर आजाद शहीद होकर गिर पड़े मगर उनके शव के निकट पुलिस ने आने का साहस नहीं किया। काफी समय तक गोलियों का स्वर न गूँजने पर साहस बटोरकर दल ने आजाद के निर्जीव शरीर पर भी गोलियाँ दाग पर परीक्षण किया कि क्या वास्तव में आजाद मृत्यु की गोद में सो भी गये हैं, अथवा नाटक है? चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 में हुई थी।
इस प्रकार चन्द्रशेखर आजाद शहीद होकर अमर हो गये। कुछ लोगों ने पुलिस की गोलियों से आहत पेड़ की पूजा करनी शुरू की तो विदेशियों ने उस वृक्ष को ही कटवाकर फिंकवा दिया।आज वृक्ष के स्थान पर एक स्मारक बना है, चन्द्रशेखर आजाद का जो नवयुवकों में जन्मजन्मान्तर तक उनकी स्मृति को ताजा रखेगा।
FAQ
Ans : चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 में हुआ था।
Ans : चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 ने हुई।
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