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चतुर मां और तीन बेटियां : तीन बेटियां और चतुर मां की कहानी

चतुर मां और तीन बेटियां: एक नगर में एक ब्राह्मणी रहती थी। उसकी तीन बेटियां थीं। ब्राह्मणी का पति काफी पहले मर चुका था। वह अपनी तीनों बेटियों के साथ दिन बिता रही थी। तीनों बेटियों की आयु में केवल एक-एक वर्ष का ही अंतर था। जब वे तीनों सयानी हो गई, तो मां को उनके विवाह की चिंता हुई।

चतुर मां और तीन बेटियां

चतुर मां और तीन बेटियां

ब्राह्मणी चतुर थी। वह सोचा करती थी कि कैसे बेटियों का जीवन सुखी हो सकता है ? उसका पति होता, तो इन बेटियों के लिए योग्य वर तलाश करता। यदि बड़ा भाई होता, तो वह इस काम को करता। अब सारी जिम्मेदारी बेचारी ब्राह्मणी के ऊपर आ गई।

एक सुयोग ऐसा बना कि ब्राह्मणी को तीनों बेटियों के लिए तीन युवक मिल गए। वह सोचने लगी कि इन युवकों के साथ विवाह करके मेरी बेटियों को सुख मिलेगा या नहीं, इस बात का पता कैसे किया जाए ?

उसने एक उपाय सोच लिया। तीनों बेटियों को बुलाकर उसने कहा-“देखो बेटियों!

विवाह के बाद जब तुम ससुराल पहुंचो, तब एक बात अवश्य याद रखना। जब तुम्हारा पति आए तो लात मारकर उसका स्वागत करना।” मां की बात सुनकर तीनों बेटियां चौककर एक साथ बोलीं-” क्या ? पति का स्वागत पैर के प्रहार से करें ? यह क्या कह रही हो तुम ? भला कहीं ऐसा भी होता है ?”

चतुर ब्राह्मणी ने बेटियों को समझाते हुए कहा- “जैसे मैं कहती हूं, वैसे ही तुम्हें करना है। साथ ही यह भी याद रखना कि अगले ही दिन आकर तुम तीनों मुझे बताओगी कि पैर के प्रहार की प्रतिक्रिया पति पर क्या हुई ? यह सब कुछ मैं तुम्हारे हित के लिए ही कर रही हूं। मेरी बात को भूलना नहीं।” तीनों बेटियां मां की बात सुनकर चुप रह गई।

तीनों बेटियों को मां ने विदा कर दिया। ससुराल में उनका स्वागत हुआ। तीनों को मां की बात याद थी ही। सबसे पहले बड़ी बेटी ने मां के आदेश का पालन किया। पति जब आया तो उसने उसे जोरों से लात मारी। उसने आश्चर्य से देखा कि उसका पति लात खाकर भी हंस रहा है। पति ने उसका पांव सहलाते हुए कहा- “प्रिये! कहीं तुम्हारे पांव में चोट तो नहीं लगी? लाओ, मैं तुम्हारे पांव दबा दूं।”

मझली बेटी ने भी प्रथम भेंट के समय मां के आदेश का पालन किया। जैसे ही उसका पति आया, उसने पूरी ताकत से उस पर पांव का प्रहार किया। पति को इस हरकत पर गुस्सा आया, लेकिन वह शांत रहा। उसने कहा- “यह क्या करती हो? अगर किसी को पता चल जाए कि तुमने मुझे पांव से मारा है, तो मेरा अपमान होगा। खबरदार, फिर कभी ऐसा गलत काम मत करना।”

इन दोनों बहनों की तरह सबसे छोटी को भी मां की बात याद थी। जब उसका पति आया, तो उसने भी जोर से लात मारी। उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। पति ने आव देखा न ताव, उसे पीटना शुरू कर दिया। घर में आए मेहमानों या सगे-संबंधियों की भी परवाह उसने नहीं की। पीटकर उसने कहा- “तुम कैसी स्त्री हो ? क्या तुम्हारी मां ने तुम्हें यही सीख दी है ? खबरदार, अगर फिर कभी ऐसा किया तो तुम्हारी खैर नहीं।”

तीनों बेटियां अगले दिन मां के पास आई मां ने देखा कि बड़ी बेटी बहुत खुश है। आई। मझली बेटी शांत-सी है, लेकिन छोटी बेटी बहुत उदास नजर आई। उसके चेहरे पर पिटाई के निशान थे बड़ी और मझली बहन ने उसे देखा, तो समझ गई कि ससुराल में पिटाई हुई है। मां ने तीनों का स्वागत किया। फिर तीनों को एक साथ बिठाकर मां ने ससुराल में हुई बात तीनों से पूछनी शुरू की।

मां ने बड़ी बेटी से पूछा – “बता बेटी! तेरा पति कैसा है ?”

बड़ी बेटी खुश होकर बोली “मां मेरे पति बहुत अच्छे हैं। मैंने जब लात मारी, तो दुखी होकर मेरा पांव सहलाते रहे। कहने लगे, प्रिये! तुम्हें चोट तो नहीं लगी। मां मैं बहुत खुश हूं।” मां ने सुना और चिंता में डूब गई।

मझली बेटी से पूछा – “बेटी ! तू बता, कैसा है तेरा पति ? क्या उसने भी तेरे पांव को सहलाया है ?” बड़ी बेटी ने गर्व के साथ मझली को देखा। मझली बेटी बोली-“नहीं मां, ऐसा तो नहीं हुआ जब मैंने पांव से प्रहार किया, तो मेरे पति को बहुत गुस्सा आया। घर में आए मेहमानों के सामने अपमान होने के डर से ही वह शांत हो गए। मुझे चेतावनी भी दी है।” मां ने मझली बेटी की बात ध्यान से सुनी लगा, जैसे उसे कुछ संतोष हुआ है। वह चुप ही रही।

अब मां छोटी बेटी की ओर मुड़ी। देखा कि वह बहुत उदास है और उसकी आंखों में आंसू भरे हुए हैं। मां ने पूछा- “क्या बात है बेटी ? तू इतनी दुखी क्यों है? ये निशान कैसे हैं ?”

बड़ी ने दया की निगाह से छोटी को देखा। मझली शांत ही रही। छोटी बेटी सिसकते हुए बोली—”मां! तुमने यह कैसी उल्टी बात मुझे सिखाई थी ? मैं तो बहुत अभागी हूं। मेरे पति ने तो पांव की चोट लगते ही विकराल रूप धारण कर लिया। न मेहमानों की परवाह की और न घरवालों की मुझे बुरी तरह पीटा और कहा कि फिर कभी ऐसा किया, तो खैर नहीं मेरा जीवन तो नष्ट हो गया है। मां! अब मैं क्या करूं?”

बड़ी बेहद खुश थी। मझली ने भी सोचा कि इससे तो मेरा ही पति अच्छा, जो लोकलाज का ध्यान तो रखता है।

चतुर मां ने तीनों बेटियों को देखा। छोटी को पास बैठाकर उसके सिर पर हाथ फेरा। संतुष्ट होकर मां ने कहा—“बेटियों। मैंने यह बात तुम्हारे पतियों की परीक्षा लेने के लिए ही कही थी। क्या मैं नहीं जानती कि पति की पूजा करना स्त्री का धर्म है? फिर भी, मैंने परीक्षा ली और उसका परिणाम भी आ गया।”

तीनों बेटियां आश्चर्य से मां की बात सुनकर ठगी-सी रह गईं। उनके मुंह से एक साथ निकला परीक्षा ली है?” बड़ी बेटी बोली-“मां यह तो बड़ी विचित्र परीक्षा थी। अब हमें इसका परिणाम भी बता दो।” बड़ी को पक्का भरोसा था कि उसका पति उसे जान से भी ज्यादा प्रेम करता है।

चतुर मां ने कहना शुरू किया” इस परीक्षा में मेरी छोटी बेटी सबसे ज्यादा भाग्यशाली सिद्ध हुई है।” और मां ने छोटी को गले से लगाया बड़ी बेटी बोली-“यह क्या कह रही हो, मां ? छोटी को तो उसके पति ने बुरी तरह पीटा है। फिर भी तुम उसे भाग्यशाली कहती हो ?” बड़ी को लग रहा था कि मां अपनी छोटी बेटी का मन रखने के लिए ऐसा कह रही है।

भला ऐसे निर्दयी पति की पत्नी भाग्यशाली कैसे हो सकती है?

अब मां ने बड़ी को समझाया- “बेटी तेरा पति तो कायर है। उसमें पौरुष तो है ही नहीं। वह तेरी संकट के समय में रक्षा नहीं कर सकेगा। तू जिसे प्रेम समझ रही है, वह तो निकम्मापन है। भला सोच तो सही, जो पुरुष अपनी पत्नी की लात सहन करके उसे सहलाए, वह पुरुष कैसा ? बेटी, अगर आग में गर्मी ही न रहे, तो आग कैसी ? तेरा पति तो कायर है। तेरा जीवन सुख से नहीं बीत सकता। मुझे बहुत अफसोस है बेटी” मां की बात सुनकर बड़ी बेटी का चेहरा उतर गया। वह मां की बात का गहरा अर्थ अब समझ सकी। उसे महसूस हुआ कि वह झूठा घमंड कर रही थी। उसे मन-ही-मन लज्जा का अनुभव हो रहा था।

अब मां ने मझली बेटी से कहा- “तेरा पति संसारी पुरुष है। तू अगर सही ढंग से उस के साथ बर्ताव करेगी, तो वह तेरा ध्यान रखता रहेगा। उसका गुस्सा उसके पौरुष की पहचान हैं और मेहमानों के कारण चुप रहना उसके संसारी होने का सूचक है। तू उसका अपमान कभी मत करना। तेरा जीवन आराम से कट जाएगा।” मझली बेटी मां की बात सुनकर शांत बैठी रही।

अब मां ने छोटी बेटी के सिर पर हाथ रखते हुए कहा- “तू सचमुच भाग्यशाली है बेटी तेरा पति सच्चा पुरुष है। अपमान और अन्याय को सहन करना अहिंसा धर्म नहीं है, बल्कि कायरता है। जैन धर्म के दस लक्षणों में प्रथम है, ‘उत्तम क्षमा’। यह क्षमा वीर का ही गुण है। तेरा पति वीर है। स्वाभिमानी है। अपमान उसने मेहमानों और सगे-संबंधियों के सामने भी सहन नहीं किया। वह तेरी हमेशा रक्षा करेगा। तू उस शेर जैसे वीर का सदा सम्मान करना।”

चतुर मां ने छोटी बेटी के पति को आदर के साथ घर बुलाया और सारी बात समझाई। दूसरे दिन खुशी-खुशी छोटी बेटी अपने पति के साथ ससुराल चली गई। बड़ी और मझली बहनों ने उसे खुश होकर विदा किया।

चतुर मां छोटी के भाग्य पर जहां खुश थी, वहीं बड़ी बेटी के लिए चिंता भी उसके मन में थी।

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