छुआछूत की समस्या पर निबंध:- हिन्दू समाज विश्व के उन्नत समाजों में से एक है। इस समज का संगठन प्रारम्भ में वैज्ञानिक और सुव्यवस्थित ढंग से हुआ था। समाज के निर्माताओं को उसे गति देने और समाज के सभी सदस्यों को जीविका का साधन सुलभ करने के लिए उसे गुण, कर्म के आधार पर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्गों में विभक्त किया था। ‘चातुर्वण्यं मया सृष्टं गुण-कर्म विभागशः।
इनमें से ब्राह्मण को अध्ययन व यज्ञ कार्य सौंपा गया, क्षत्रियों को राज्य और रक्षा का कार्य दिया गया, वैश्य को व्यापार और कृषि कार्य सौंपे गए और शूद्र को शिल्प और अन्य वर्णों की सेवा का कार्य सौंपा गया। वे सब एक ही शरीर के विभिन्न अंगों मुख, बाहू, उरु तथा चरण आदि के समान एक दूसरे से पूरक और उपकारक माने गए थे।
छुआछूत की समस्या पर निबंध

समाज की यह वर्ण-व्यवस्था आरम्भ में ठीक चली। कालान्तर में प्रथम तीन वर्ग सवर्ण और चतुर्थ वर्ग असवर्ण कहलाने लगा। इनमें भी जो लोग (विशेषकर) सफाई और चमड़े का काम करने लगे, उन्हें अस्पृश्य (अछूत) माना जाने लगा और इनका स्पर्श भी वर्जित कर दिया गया। यहाँ तक कि इनकी छाया तक अपने पर पड़ना पाप माना जाने लगा।
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अस्पृश्यों की स्थिति
भारत में अस्पृश्यता की यह समस्या अति विकट है। कुछ कट्टर लोग शूद्रों को अपने से नीच समझते हैं तो कुछ तथाकथित अछूत हितैषी उनकी माँगे गिनवा कर उनको सवर्णों से बिल्कुल अलग खड़ा कर देते हैं। आज इन अछूत या हरिजन कहलाने वाले लोगों की संख्या सात करोड़ से अधिक है। राष्ट्र और समाज के विकास के क्षणों में इतने बड़े वर्ग की उपेक्षा नहीं की जा सकती। भारत में इस्लाम और ईसाइयत के अत्यधिक प्रचार का कारण भी इस वर्ग की घोर उपेक्षा ही रही है।
इस्लाम के विश्व बन्धुत्व रूप के कारण ही शताब्दियों पहले हमारी उपेक्षा के कारण इसी वर्ग के अधिकांश लोग मुसलमान बने। जिनका दुष्परिणाम हमें देश-विभाजन के रूप में देखना पड़ा। इस वर्ग की निर्धनता, अशिक्षा और विवशता का लाभ उठाकर समाज के उच्च वर्ग के लोग इनसे मनमानी किया करते हैं। दिन भर परिश्रम करके भी इनको इतना धन नहीं मिलता कि वे अपने बाल-बच्चों तक का पोषण कर सकें। इन्हें समानता का अधिकार भी नहीं है।
उच्च वर्ग वाले एक कुत्ते के छू जाने पर इतने नहीं घबराते, जितना इनकी परछाई मात्र से दूर भागते हैं। इनको कुओं पर ऊँची जाति वालों के साथ पानी भरने का अधिकार नहीं और इनका मन्दिर प्रवेश भी निषिद्ध है। आज भी विवाह के अवसर पर उन्हें घोड़ी या डोली-पालकी में नहीं बैठने दिया जाता। निर्वाचन में मतदान नहीं करने दिया जाता। उनकी बहू-बेटियों से भोग्या का-सा व्यवहार किया जाता है। गाँवों में उनके घरों को ही नहीं बल्कि उन्हें भी जीवित जलाया जा रहा है, कहीं उन्हें गोली का निशाना बनाया जाता है, जो मानवीय दृष्टि से अत्यन्त नीच और पाप कर्म है।
अछूतोद्धार के प्रयत्न
अस्पृश्यों के प्रति उच्च वर्ग वालों के इन अत्याचारों को रोकने के प्रयत्न सदा से होते चले आ रहे हैं। भगवान् कृष्ण ने गीता में “शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः” कहकर बताया कि चाहे चांडाल हो या ब्राह्मण सबमें एक ही भगवान् का अंश व्याप्त है। इसी विचार का प्रचार महात्मा कबीर, रामनुज, गुरुनानक आदि सन्तों ने भी किया है। कबीर तो छूआछूत के इतने विरोधी थे कि स्वयं अछूत होने पर गर्व का अनुभव करते थे और कहते थे कि हरि के दरबार में जाति-पाँति का कोई मूल्य नहीं होता
‘जाति-पाँति पूछे नहीं कोई, हरि को भजे सो हरि का होई।’ इस शताब्दी के आरम्भ में ब्राह्म समाज तथा आर्य समाज आदि संस्थाओं ने इस समस्या को सुलझाने का और हरिजनों को समाज में सम्मानजनक स्थान दिलाने का प्रयत्न किया है। महात्मा गाँधी ने तो इस ओर बड़ा सक्रिय पग उठाया थ। उन्होंने अस्पृश्य कहे जाने वालों को ‘हरिजन’ का नाम दिया और उनके उत्थान के लिए सन् 1932 में ‘हरिजन सेवक-संघ’ की स्थापना की।
दक्षिण में हरिजनों की दशा अत्यन्त शोचनीय होने के कारण उन्होंने सर्वप्रथम दक्षिण को ही हरिजन-संघ का केन्द्र बनाया। उन्हीं के प्रयत्न से पहले पहल ट्रावनकोर रियासत ने हरिजनों को सार्वजनिक तालाबों, कुओं और सार्वजनिक स्थानों को प्रयोग में लाने की आज्ञा दी। गाँधी जी की प्रेरणा से ही अछूतों के लिए अनेक मन्दिरों के द्वार खुल गए। उनके बाद तो जन-जागृति आरम्भ हो गई और इस स्थिति को बदलने के लिए तीव्र प्रयास आरम्भ हो गए।
सरकार का प्रयास
तदनन्तर सरकार ने भी छूआछूत को दण्डनीय अपराध स्वीकार किया और विधान सभाओं, संसद् तथा नौकरियों में उनके लिए स्थान सुरक्षित किए। आज विद्यालयों और महाविद्यालयों में हरिजन छात्रों को निःशुल्क शिक्षण दिया जा रहा है। प्रतियोगिताओं परीक्षाओं में भी कुछ छूट व सुविधाएं दी जा रही हैं। पर, अभी बहुत कार्य करना शेष है। सरकार के अतिरिक्त कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस कलंक को मिटाने और अछूतों को समाज में गौरवपूर्ण स्थान दिलाने के लिए प्रयत्नशील हैं। ‘सेवाभारती’ इसी दिशा में प्रयत्नशील है।
उपसंहार
अछूतों की समस्या हमारे लिए एक अभिशाप है। अब यह समस्या हमारे राष्ट्रीय और सामाजिक जीवन के लिए भी चुनौती बन गई है। क्योंकि दक्षिण के मीनाक्षी पुरम् और रामनाथ पुरम् को केन्द्र बनाकर मुसलमान (छुआछूत की समस्या पर निबंध) उनके धर्मान्तरण करने और ईसाई बनाने पर तुले हुए थे। यदि हमने उन्हें प्रेम से गले न लगाया, उन्हें उनके अधिकार न दिए तो वे भारत के राष्ट्रीय जीवन के लिए भी संकट का कारण बन जायेंगे।
इसका कारण यह है कि इस्लाम या ईसाई मत को स्वीकार कर लेने के बाद उनकी निष्ठा अपने राष्ट्र के प्रति समाप्त हो जाती है। वे ईस्लाम के सामने या ईसाइयत के सामने अन्य भावों को तिलांजलि दे देते हैं। जो भारत की एकता के लिए खतरा है। अतः हमारा कर्त्तव्य है कि अपने हृदय में मानवीय भावना लाकर और अस्पृश्य कहे जाने वाले लाखों बन्धुओं भी ईश्वरीय ज्योति के दर्शन कर इस बुराई से छुटकारा पायें। इसके लिए अथक परिश्रम करना प्रत्येक हिन्दू का पुनीत कर्त्तव्य है।
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