कोलाइटिस क्या है, कारण, लक्षण, आहार, औषधीय चिकित्सा और योग चिकित्सा के बारे में बिस्तर से जानेंगे। कोलाइटिस (Colitis Kya Hai) एक ऐसा शब्द है जो बड़ी आँत में होने वाले अनेक रोगों को दर्शाता है। इस शब्द का प्रयोग आमतौर पर आँवयुक्त दस्त के लिए किया जाता है। यह रोग एन्टामीवा नामक एक कीटाणु के संक्रमण से उत्पन्न होता है। इसे एमीवियासिस भी कहा जाता है। इस रोग में आँतों में लाखों घाव हो जाते हैं जिसके कारण सूजन उत्पन्न हो जाती है और म्यूकस का स्राव होने लगता है।
कोलाइटिस क्या है (Colitis Kya Hai)

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इस रोग के आमतौर पर ज्ञात एवं अज्ञात कारण हो सकते हैं।
- ज्ञात कारण : अमीवियासिस तथा आँतों का क्षय रोग के उत्पन्न होने के कारणों का तो पता लगाया जा चुका है।
- अज्ञात कारण : कुछ रोग ऐसे हैं जिनके कारणों का अभी तक पता नहीं लग सकता है, जैसे- अल्सरेटिव कोलाइटिस तथा इरिटेवल कोलोन । इनके लिए मनोदैहिक कारण ही मानकर संतोष करना पड़ता है।
कोलाइटिस के लक्षण
- आँव के साथ जलयुक्त दस्त होना। यह दिन में कई बार आ सकते हैं।
- दस्त काफी दुर्गन्धयुक्त होता है । पेट का छूने या दबाने से दर्द बढ़ जाता है।
- गम्भीर रोगियों को रक्त मिश्रित पीव भी आती है। यह कष्ट घटता-बढ़ता रहता है यह क्रम कई-कई साल तक चलता रहता है।
- इस रोग में रोगी काफी कमजोर हो जाता है तथा इसमें रक्त की कमी (एनीमिया) हो जाता है।
कोलाइटिस का कारण
इस रोग के प्रमुख कारण है- तनाव एवं दबाव। प्राकृतिकजन्य विपदाओं एवं वातावरण के बदलाव के कारण तनाव की परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाती हैं जो रोग उत्पन्न करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। इसीलिये इस रोग का इलाज करते समय मनोदैहिक कारणों को चिकित्सक अपने ध्यान में रखते हैं। उदाहरण के तौर पर एक मन्द प्रकृति एवं अल्पकालीन रोग ‘स्टूडेन्ट डायरिया’ (विद्यार्थियों का दस्त रोग) मुख्य परीक्षा के कुछ हफ्तों पूर्व से शुरु हो जाता है जिसका कारण परीक्षा की चिन्ता, उद्विग्न मानसिकता होता है। यह रोग पढ़ाई में व्यवधान तो डालता ही है, साथ ही, ट्रेंकुलाइजर का प्रयोग करने के लिये मजबूर करता है।
औषधीय चिकित्सा
चिकित्सक इस रोग को नियंत्रण में तो ले आते हैं, पर इसका स्थाई निदान अभी तक ढूंढ नहीं पाये हैं। एण्टीबायटिक औषधियों का प्रयोग क्रानिक कोलाइटिस के दस्तों को बन्द करने के लिए किया जाता है। रोगी के आँतों की तंत्रिकाजन्य क्रियाशीलता को कम करने वाली औषधियाँ रोगी को दी जाती हैं। यह औषधियाँ लक्षणों को तो दबा देती हैं पर वस्तुतः उनका मूल कारण तो वैसा का वैसा ही बना रहता है।
अल्सरेटिव कोलाइटिस में कार्टिकोस्टीरायड नामक औषधि दी जाती है जो कुछ लाभ तो अवश्य देती है पर साइड इफेक्ट कहीं अधिक उत्पन्न कर देती है। बहुत गम्भीर अल्सरेटिव कोलाइटिस में शल्य चिकित्सक बड़ी आँत को ही बाहर निकाल देते हैं। जिससे रोगी की जीवनचर्या अस्त-व्यस्त हो जाती है। जसका जीवन सीमित दायरे में बन्ध कर रह जाता है। रोग की दशा यदि यह अनुमति दे तो कम से कम छः महीने तक यौगिक पद्धति द्वारा रोग को नियंत्रित करने का प्रयास अवश्य करना चाहिये।
पाचन शक्ति का पुनरुत्थान
योग-विज्ञान के अनुसार कोलाइटिस रोग पाचन शक्ति मंद पड़ जाने के कारण पनपता है । इसका सम्बन्ध अग्नि तत्व एवं मणिपुर चक्र से है। पाचन शक्ति मंद पड़ जाने के कारण रोगोत्पादक जीवाणुओं की संख्या बढ़ जाती है तथा आँतों की रासायनिक एवं माँसपेशीय क्षमता (इम्यून सिस्टम) भी कमजोर हो जाती है जो रोग को बढ़ाने में सहायक होती है।
आँतों का काम भोजन को पचाना है तो जब वही कमजोर हो जाती है तो भोजन ठीक प्रकार से पच नहीं पाता । फलस्वरूप बिना पचे अवशिष्ट पदार्थ मल के साथ निकलते हैं। इससे दुर्गन्ध उठती है । यौगिक चिकित्सा द्वारा प्राण ऊर्जा और जठराग्नि दोनों को बढ़ाया जा सकता है एवं अव्यवस्थित अवस्था को पुनर्सन्तुलित किया जा सकता है।
योग चिकित्सा
रोग की तीव्रता (एक्यूटनेस समाप्त होने पर दीर्घकालीन दस्त, आँव, अल्सरेटिव कोलाइटिस, इरिटेबल कोलोन, तनावजन्य पेचिश आदि में निम्नलिखित आसन एवं प्राणायाम का अपनी क्षमतानुसार नियमित अभ्यास अवश्य फलदायी सिद्ध होगा।
आसन
- सर्वप्रथम पवन मुक्तासन भाग 1 एवं 2
- इसके बाद शक्ति बन्ध समूह के आसन जैसे : नौका संचालन, चक्की चलाना, वायु निष्कासन, उदराकर्षणासन का अभ्यास करें।
- वज्रासन का अभ्यास कर लेने के बाद
- भुजंगासन
- धनुरासन
- शलभासन
- पश्चिमोत्तानासन
- सर्वांगासन
- हलासन
- मत्स्यासन एक
- चक्रासन
- मयूरासन
- शवासन
- पद्मासन
उक्त आसनों का अभ्यास अपनी क्षमतानुसार धीरे-धीरे आनन्दपूर्वक करें। अच्छा तो यह होगा कि यदि अभ्यास किसी योग चिकित्सक के निर्देशन में करें।
प्राणायाम
1. | शीतली प्राणायाम |
2. | शीतकारी प्राणायाम |
3. | नाड़ी शोधन प्राणायाम |
4. | उज्जयी प्राणायाम |
ध्यान- रोगी को अपने अवचेन मन में छिपे कारणों को जानने, समझने के लिये अंतर्मोन का अभ्यास बड़ा उपयोगी है। इससे कोलाइटिस के दौरे को रोकने में सफलता मिलती है।
योगनिद्रा – योग-निद्रा एवं शवासन का अभ्यास भी रोगी के लिए हितकर होता है।
आहार
रोगी को हल्का सुपाच्य भोजन ही खाना चाहिये जिससे रोगग्रस्त आँतों पर अधिक जोर न पड़े। सादी खिचड़ी, दलिया का सेवन हितकर है। इसमें रोगी अपनी इच्छानुसार उबली सब्जी भी मिलाकर खा सकता है। सामान्यतः नमक एवं पानी की मात्रा कम ग्रहण की जाये। इसके स्थान पर दूध का सेवन अधिक करना चाहिये। दूध एक प्रकार से पूर्ण आहार है तथा आँतों में किसी प्रकार के Irritation होने को भी रोकता है।
आँव की पेचिस (अमीविक ड्रीसेन्ट्री) होने पर दो सौ ग्राम दही में तीन गिलास ठंण्डा पानी एवं दो चम्मच शक्कर मिलाकर खूब घोल लें फिर साफ बर्तन में छानकर सेवन करना चाहिये। पर, इसे कई बार में थोड़ा-थोड़ा कर पीना चाहिये।
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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।