कब्ज क्या होता है, कारण, यौगिक उपचार, आहार, सुझाव और कब्ज कितने प्रकार की होती है। जिस प्रकार ‘प्रेम के ढाई अक्षरों में संसार का ज्ञान छिपा है, ‘सत्य के ढाई अक्षरों में मानवता का मूल रहस्य छिपा है। उसी प्रकार ‘कब्ज’ के ढाई अक्षरों में सभी रोगों के बीज छिपे हुए हैं। कब्ज (Constipation) आधुनिक एवं सभ्य समाज का व्यापक रोग है जो अपने को आधुनिक सभ्यता का अनुयायी मानते हैं अधिकांशतः उन्हीं में यह रोग सबसे ज्यादा पाया जाता है। कब्ज (Constipation) पाचन संस्थान के निचले हिस्से में होने वाला एक क्रानिक रोग है। इसमें शरीर से ठोस मल का निष्कासन नहीं होता है जिसके कारण भोजन के पचने के बाद उसके बचे-खुचे भाग बड़ी आँत में एकत्रित होते जाते हैं।
कब्ज क्या होता है, कारण, यौगिक उपचार, आहार, सुझाव और कब्ज के प्रकार

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कब्ज क्या होता है
जब यह स्थिति लगातार बनी रहती है तो आँतों में एकत्रित वह भाग सड़ने लगता है एवं विषैले पदार्थों को उत्पन्न करते हैं जो कोशिकाओं एवं ऊतकों में पहुँचकर सारे शरीर को विषाक्त कर देते हैं। आँतों की माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं। यह सब अनेकानेक रोगों को जन्म देते हैं।
कब्ज का अर्थ
इसका अर्थ है मल का रुकना, मलावरोध, कोष्ठबद्धता। मल त्यागने में अत्यधिक कठिनाई एवं पीड़ा होती है।
कब्ज के कारण
वस्तुतः विभिन्न देशों की जलवायु, संस्कृतियों, आहार एवं व्यक्ति के अनुसार आँतों की क्रियाशीलता में अन्तर होता है अत: कब्ज की कोई निश्चित परिभाषा देना संभव नहीं है। आधुनिक समय में इस रोग से। अभिशापित व्यक्तियों की दुर्दशा के कई कारण हैं जैसे-
1. क्रियाशील जीवन-शैली का अभाव
यह रोग अधिकांशत: सारा दिन कुर्सी पर बैठे रहकर काम करने वालों को होता है इसके कारण उनकी माँसपेशियों एवं आँतों में कड़ापन आ जाता है रक्तप्रवाह में कमी प्राण-शक्ति के प्रवाह में अवरोध उत्पन्न हो जाता है।
2. आलस्य आदि के कारण व्यायाम की कमी
आजकल अधिकतर लोग अपनी दैनिक जीवनचर्या में ही इतने व्यस्त रहते हैं जिसके कारण व्यायाम या टहलने आदि के लिए समय ही नहीं निकाल पाते हैं। फलस्वरूप, माँसपेशियाँ कमजोर हो जाती हैं, रक्त का प्रवाह भी अनियमित हो जाता है और इसका प्रभाव पाचन एवं निष्कासन क्रिया पर पड़ता है।
3. उचित आहार लेने में लापरवाही
वस्तुत: आहार में आजकल पर्याप्त मात्रा में साबुत अनाज, फल, ताजी सब्जियाँ एवं रेशेदार पदार्थों का सेवन नहीं किया जाता। इसकी जगह माँस, अण्डे, तेल, घी, ब्रेड, केक बिस्कुट एवं फास्ट फूड आदि का सेवन अधिक होता है जिससे इनको पचाने में अधिक ऊर्जा व्यर्थ में ही अधिक व्यय हो जाती है फिर भी पूरी सफलता नहीं मिल पाती है। फलस्वरूप, कब्ज अपना प्रभुत्व जमा लेता है।
4. शौच के समय शारीरिक स्थिति
वस्तुतः शौच के समय उकहूँ बैठना सर्वोत्तम शारीरिक स्थिति है । इससे अपान वायु क्रियाशील होकर आँतों की गतिविधि को ठीक करके मल-निष्कासन को सुगम बनाती है पर आजकल सभी पर आधुनिकता का भूत सवार है, दूसरे उचित व्यायाम आदि न करने के कारण पैरों की माँसपेशियाँ भी कड़ी हो जाती हैं जिससे उकडूं बैठकर मल त्याग करने में परेशानी होती है अत: कमोड का सहारा लेते हैं जिसके कारण आँत का निचला भाग और श्रोणि प्रदेश की माँसपेशियाँ शिथिल ही नहीं हो पाती और मल निष्कासन कष्ट साध्य हो जाता है।
कब्ज के प्रकार
चिकित्सा विज्ञान के अनुसार दो प्रकार का कब्ज निर्धारित किया गया है-
1. उदरशूल कब्ज
ऊटपटांग भोजन के सेवन से माँसपेशियों को उद्दीपन नहीं मिल पाता और वे सुस्त हो जाती हैं। अतः मल को आँतों से ठीक ढंग से नीचे धकेल नहीं पातीं। इससे मलोत्सर्जन की क्रिया असामान्य हो जाती है। इस रोगको उत्पन्न कर देती है।
2. डिस्किजिक कब्ज
इस रोग में मल कोलन (श्रोणीय वृहदांत्र) तक तो सामान्य रूप से पहुँचता है पर मलोत्सर्ग ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। इसकी उपेक्षा कर देने से कोलन की दीवार शिथिल पड़ जाती है और इसकी इच्छा ही समाप्त हो जाती है। दीवार की संकुचन क्षमता एक प्रकार से नष्ट हो जाती है और मल का निष्कासन कम हो जाता है। अधिकांश भाग वहीं बना रहता है।
कब्ज का यौगिक उपचार
सूर्य नमस्कार
प्रतिदिन सूर्योदय के समय क्रमश: इसकी आवृत्तियाँ बढ़ाते हुए 12 आवृत्तियों का अभ्यास करना चाहिये।
आसन
प्रतिदिन निम्न आसन करना लाभप्रद हैं-
- पवन मुक्तासन
- कौआ चाल
- त्रिकोणासन
- हलासन
- ताड़ासन
- कटि चक्रासन
- त्रियक भुजंगासन
- उदराकर्षण
- मत्स्यासन
- अर्ध मत्स्येन्द्रासन
- मयूरासन
- वज्रासन- भोजन के उपरान्त 10 मिनट तक ।
यदि कब्ज मामूली-सा हो तो आसन करने से पहले एक दो गिलास गुनगुना पानी पिया जा सकता है।
प्राणायाम
- प्रतिदिन कुम्भक और महामुद्रा के साथ भस्त्रिका प्राणायाम की पाँच आवृत्तियाँ।
- सूर्य भेद प्राणायाम की दस आवृत्तियों का अभ्यास प्रतिदिन करें।
मुद्रा एवं बन्ध
- योग मुद्रा
- अश्विनी मुद्रा
- उड्डियान बन्ध
- महाबन्ध
आहार
शर्करायुक्त पदार्थों को त्याग कर फल, सब्जी, सलाद, अंकुरित और साबुत अन्न, सूखे मेवे जैसे अंजीर एवं आलूबुखारा। इनके पाचन के पश्चात् जो अवशेष बचता है, वह आँतों की माँसपेशियों की क्रियाशीलता बढ़ाता है।
सुझाव
- ताजे पानी में दो चम्मच शहद, एक नीबू का रस मिलाकर पीने से पुराना कब्ज दूर होता है।
- रात्रि में 25 दाने किशमिश, 5 दाने मुनक्का एक अंजीर डालकर पानी में भिगो दें और प्रातः उठकर खायें। इससे भी है। पुराना कब्ज दूर होता है।
- ताँबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से भी कब्ज दूर होता है।
- भोजन के पश्चात् 3 माशे आँवले का चूर्ण फाँकने से आमाशय को शक्ति मिलती है और शौच बंधा हुआ होता है।
- खाने के तुरन्त बाद पानी न पीयें। भोजन के करीब एक घण्टे बाद पानी पीयें।
- भोजन करने के बाद न तो लेटें, न सोयें वरन् कुछ समय वज्रासन पर बैठें और बाद में कुछ टहलें।
- कड़ी भूख लगने पर ही भोजन करें। अचार, मिर्च मसालों का प्रयोग न करें। हाँ, ताजी चटनी का सेवन कर सकते हैं।
- प्रातः उठकर एवं सोने से पहले पानी पीने की आदत डालें।
- उपवास भी कभी-कभी अर्थात् सप्ताह में एक दिन अवश्य करें। इसमें पानी का सेवन अधिक करें।
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