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दमा के कारण, लक्षण और यौगिक चिकित्सा

दमा अथवा अस्थमा एक आम तथा काफी कष्टप्रद रोग है। दमा के कारण कई हो सकते है। यह एक प्रचलित धारणा रही है कि दमा (Dama Ke Karan) दम के साथ जाने वाली व्याधि है। इसमें दम उखड़ता है, अतः इसे दमा कहते हैं। इस रोग की विशेषता यह है कि बार-बार फेफड़ों की श्वसन नलियों का आकुंचन (Spasn) होता है जिससे साँस लेने में तकलीफ, दम घुटने की अनुभूति होती है तथा खाँसी आने लगती है। श्वास वायु की संकरी श्वास नलियों में अधिक वेग से प्रवेश करने में सीटी-सी बजती है जिसे व्हीजिंग (Wheezing) कहते हैं। श्वास नलिकाऐं संकुचित और अवरुद्ध हो जाती हैं जिसका कारण अत्यधिक मात्रा में श्लेष्मा (म्युकस) का स्राव होता है।

दमा के कारण, लक्षण और यौगिक चिकित्सा

दमा के कारण

कुछ मिनटों से लेकर कुछ घंटों या दिनों तक भी दमा का दौरा चलता है। अत्यन्त उग्र रोग लक्षणों की अवस्था, जिसे सतत् दमा अथवा स्टेटस अस्थमेटिकस कहते हैं, वह रोगी के लिए जानलेवा सिद्ध हो सकता है। वास्तविक दौरा आने के कुछ घण्टों पूर्व से ही लाक्षणिक आभास होने लगता है ।

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दमा के लक्षण

बच्चों में लक्षण

बच्चों में दौरा आने के पूर्व हल्की सीटीनुमा व्हीजिंग सुनाई। पड़ती है। उसके व्यवहार परिवर्तन के रूप में आभासी लक्षण प्रकट होते हैं। वह चिड़चिड़ा हो जाता हैं, छोटी-छोटी बातों पर भी रोना शुरू कर देता है अथवा चुप, सुस्त तथा अन्तर्मुखी भी हो सकता है। कभी-कभी त्वचा पर दानें उभर आते है तथा चेहरा एवं होंठ सूज जाते हैं।

बड़ों में लक्षण

अचानक सर्दी-जुकाम, खाँसी आने लगना, नाक का बन्द हो जाना, छींके आना, म्युकस (श्लेष्मा) अधिक कफ के साथ खाँसी आना शुरु हो जाता है। श्वास नलियों में आकुंचन होने से वायु भीतर खींचने में दिक्कत भी होती है। उस वायु को बाहर निकालने में और भी ज्यादा परेशानी होती है। जैसे जैसे दौरा बढ़ता जाता है, ऑक्सीजन की कमी से रोगी की श्लेष्मा झिल्लियों का रंग नीला पड़ने लगता है।

लम्बी अवधि की जटिलताऐं

बीमारी की अवधि बढ़ने के साथ-साथ जटिलता भी बढ़ती जाती है। शरीर दुर्बल तथा कृशकाय होता जाता है। दमा रोग एक मनोवैज्ञानिक समस्या उत्पन्न कर देता है। रोगी परिवारीजनों पर उतना अधिक निर्भर हो जाता है कि उसे बीमार बने रहना अच्छा लगता है क्योंकि इस अवधि में उस पर ध्यान देने वालों की संख्या बढ़ जाती है तथा रोग के प्रति उसकी प्रतिरोधी क्षमता का क्षय हो जाता है। दमा पीड़ित बच्चों में शारीरिक विकृतियाँ, जैसे: पसली पिंजर का स्थाई फैलाव, झुके कन्धे तथा पीठ में कूबड़ की तरह उभार पैदा हो जाता है।

दमा के कारण

1. मनोवैज्ञानिक

इस स्तर पर नकारात्मक भावनाओं जैसे ईर्ष्या, क्रोध, विद्वेष, घृणा आदि को दबाने के कारण यह रोग उत्पन्न हो सकता है क्योंकि ऐसा करने से व्यक्ति की साँस की गति में तेजी आ जाती है और स्थिति निरन्तर बनी रहने से परेशानी शुरु हो जाती है। ऐसे ही अकेलापन, प्रेम पाने की चाह भावनात्मक, अति संवेदनशीलता, ठुकराये जाने का भय एवं झिझक आदि जीवन के अनेक पहलू भी उसी से जुड़े हैं ।

2. एलर्जिक

एलर्जी उत्पन्न करने वाले पदार्थ जैसे दवाइयाँ विभिन्न प्रकार की धूल, जानवरों के बाल, पक्षियों के पंख, वातावरण या वायु मण्डलीय प्रदूषण का प्रभाव पड़ने से यह रोग उत्पन्न हो जाता है। बदलते हुए मौसम के प्रति सम्वेदनशीलता भी कारण बन जाती है। बीमारी का एक अन्य कारण तम्बाकू सेवन है। चाहे सिगरेट, बीड़ी हो या नसवार या खाने का तम्बाकू । शराब के सेवन से भी यह रोग हो सकता है। अस्वस्थ भोजन एवं जीवनचर्या भी दमा उत्पन्न करने में भूमिका निभाते हैं।

जैसे श्लेष्मा उत्पादक भोज्य पदार्थ कार्बोहाइड्रेट युक्त पदार्थ जैसे ब्रेड, केक, घो तैलोय भोजन, दूध तथा दूध से बने पदार्थ इत्यादि । इनके अलावा फलों, सब्जियों • तथा प्राकृतिक अनाज का प्रयोग करने से भी यह समस्या उत्पन्न हो जाती हैं। इस प्रकार का भोजन म्यूकस तथा कफ तो बढ़ाता ही है वरन् दमे के रोगी के पहले से ही कमजोर पाचन संस्थान पर अत्यधिक बोझ डालता है।

‘इस्नोफीलिया’ भी दमे की तरह का ही रोग है। सामान्यतः हमारे रक्त में स्नोफीलिया की मात्रा 0.4% तक रहती है परन्तु हवा में धूल, धुआँ, कोहरा, कोलतार का धुआँ, अगरबत्ती के इत्र के कण, नमी आदि होने पर अथवा रंगाई पुताई के दौरान, नीम, बबूल आदि के झड़े, फूलों, नीलगिरि, पँडुला की गिरी पत्तियों के कारण अथवा गेहूं, धान की भूसी निकालने के दौरान, रक्त में स्नोफीलिया की मात्रा बढ़ जाती है, फलस्वरूप खाँसी, छींके आने लगती हैं और एलर्जिक लोगों का कष्ट बढ़ जाता है। इन सबके अलावा मानसिक तनाव से भी इस रोग की उत्पत्ति होती है । यह एलर्जी, स्नोफीलिया तथा दमा इत्यादि फेफड़ों के विकार और श्वास रोग है ।

3. अनुवांशिक

यह भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते देखे गये हैं। क्योंकि अक्सर यह रोग परिवार में एक से दूसरी पीढ़ी में पैतृक ढंग से चलता है। दमा एक ऐसी बीमारी है जो शरीर की ऊर्जा किसी भी कारण से कम होने पर उत्पन्न हो सकती है। उदाहरण के रूप में कमजोर पाचन शक्ति, चिरकालिक कब्ज के प्रभाव से उत्पन्न होते देखा गया है।

आधुनिक चिकित्सा-आधुनिक चिकित्सा-विज्ञान में अनेक प्रभावकारी एवं शक्तिशाली दवाओं का आविष्कार किया गया है जिनसे दमे को नियंत्रित किया जा सकता है तथा दौरे में कमी लाई जा सकती है। इसके लिए स्टीरायडस का प्रयोग किया जाता है परन्तु इन दवाओं से बीमारी का सम्पूर्ण उपचार संभव नहीं है, बल्कि उनके सेवन से रोगी और कमजोर एवं रुग्ण हो जाते हैं। दूसरे, रोगी उन पर निर्भर हो जाता है और बगैर दवा सेवन के किसी विषम परिस्थितियों का सामना करने से डरता है । इसके बड़े दुष्प्रभाव भी होते हैं । अतः दमे के स्थाई उपचार के लिए यौगिक चिकित्सा काफी उपयोगी सिद्ध होती है ।

यौगिक चिकित्सा

किसी भी रोग का प्रमुख कारण शरीर के विशिष्ट संस्थान में प्राण-प्रवाह का अवरुद्ध होना होता है। यौगिक चिकित्सा शक्ति विहीन तथा अवरुद्ध प्राण ऊर्जा को मुक्त करके नाड़ियों को नया जीवन प्रदान करती है। यह स्थिति शनै: शनैः योगासन, प्राणायाम तथा घट क्रियाओं के अभ्यास से प्राप्त की जा सकती है।

आसन

1सूर्य नमस्कार
2मत्स्यासन,
3भुजंगासन
4धनुरासन
5उष्ट्रासन
6शवासन

प्राणायाम

1नाड़ी शोधन प्राणायाम
2कपालभाति प्राणायाम
3भस्त्रिका प्राणायाम
4उज्जयी प्राणायाम

अन्य सुझाव

  1. कब्ज की स्थिति में एनिमा लेना चाहिये। इससे आँतों में चिपका मल बाहर हो जायेगा।
  2. जब भी खाली बैठे हों तो वज्रासन पर बैठकर धीरे-धीरे लम्बी गहरी साँस लें एवं छोड़ें।
  3. दमे के रोग में सादा सुपाच्य भोजन लेना चाहिये। मीठे रसदार फल, हरी सब्जी का सेवन प्रचुर मात्रा में करना चाहिये।
  4. मिठाई, नमकीन, मैदे व बेसन के बने पदार्थ, खटाई, तेल, मूली, दही, केला, दूध, घी आदि का सेवन यथासंभव कम करें।
  5. बहुत गर्म या बहुत अधिक ठंडा पदार्थ का सेवन न करें तो अच्छा है। भोजन भी अधिक मात्रा में न करें।
  6. नमी एवं ठंड से बचाव रखना चाहिये।
  7. रात में पूर्ण आरामदेह नींद लेने का प्रयत्न करें। सबेरे उठकर खुली हवा में टहलें।
  8. तम्बाकू व कोई भी नशीले पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करें। माँसाहारी भोजन से परहेज करें।
  9. सर्दियों में बहुत सबेरे उठकर स्नान न करें।
  10. धूल, धुआँ, पशुओं के बंधने के स्थान, रुई के कणों से बचने का प्रयास करें क्योंकि इससे श्वास-क्रिया प्रभावित होती है।
  11. चिन्ता से यथासंभव बचें। सही ढंग से सोचने की कला अपनायें तथा क्रोध करने से बचें।
  12. जिस दिन रोग का प्रकोप अधिक मालूम पड़े तो उस दिन भोजन न ही करें तो अच्छा है। सब्जियों के गरम सूप का सेवन कर लें।
  13. यथासंभव दायाँ स्वर अधिक समय तक चलाये रखें। जब दमे का दौरा पड़ा हो तो उस समय दाँया स्वर चला लेने से तुरन्त लाभ मिलेगा। स्वर बदलने के लिए बाँयी करवट लेट जायें थोड़ी देर में दाँया स्वर स्वतः चलने लगेगा।
  14. एक अद्भुत उपयोगी उपचार यह है कि सूर्योदय से पहले पीपल के पेड़ के नीचे कम्बल आदि ओढ़कर बैठें। सात दिन बैठने से, भगवान की कृपा से दमा ठीक हो जायेगा।

अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

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