दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय? दयानन्द सरस्वती पर निबंध?
दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय (Dayanand Saraswati Ka Jeevan Parichay), जब देश में अन्धविश्वास फैल जाते हैं। उनके द्वारा हानियाँ होने लगती हैं। स्त्रियों और शूद्रों का अपमान होने लगता है तथा विधवाएँ कराहने लगती हैं तब ऐसे महर्षियों का जन्म होता है जो इस प्रकार की सब कुरीतियों को नष्ट कर समाज का सुधार करते हैं। महर्षि दयानन्द ऐसे ही महापुरुष थे।
दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय (Dayanand Saraswati Ka Jeevan Parichay)

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दयानन्द सरस्वती का जीवन परिचय (Dayanand Saraswati Ka Jeevan Parichay)
महर्षि दयानन्द सरस्वती का जन्म गुजरात प्रान्त के मौर्वी जनपद के टंकारा नामक गाँव में हुआ था। इनके बचपन का नाम मूलशंकर था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में ही हुई।
जब ये चौदह वर्ष के थे तब सब लोगों के साथ आपने शिवरात्रि का व्रत रखा। सब लोग सो गये किन्तु मूलशंकर रात भर जागते रहे। आपने देखा कि एक चूहा आकर शिव पर चढ़ी सामग्री खा रहा था।
इनके मन में प्रश्न उठा कि ये कैसे शिव हैं, जो चूहे से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकते। इन्होंने इस शंका का समाधान पिता से करना चाहा, परन्तु उन्होंने डाँटकर चुप कर दिया। आपने निश्चय किया कि मैं असली शिव को ढूँढूँगा।
कार्य
आप घर छोड़कर असली शिव की खोज में निकल पड़े। आपने अनेक स्थानों पर अध्ययन किया। स्वामी विवेकानन्द से आपने संन्यास की शिक्षा ली और अपना नाम दयानन्द रखा। स्वामी विरजानन्द की प्रशंसा सुनकर आप मथुरा आये।
यहाँ आपने वेदों, व्याकरण और दूसरे शास्त्रों का अध्ययन किया। अध्ययन कर जब गुरुजी से आशीर्वाद माँगा तब गुरुजी ने कहा, “हमारा देश अज्ञान के अंधकार में पड़ा हुआ है, स्त्री, शूद्रों का अपमान हो रहा है, अन्धविश्वास फैले हुए हैं, विधवाओं की बुरी दशा है। तुम देश का उद्धार करो।” गुरुजी की आज्ञा को शिरोधार्य कर आप देश के भ्रमण को निकल पड़े। दयानन्द सरस्वती ने ‘आर्यसमाज’ की स्थापना की और ‘सत्यार्थ प्रकाश की रचना की।
महर्षि दयानन्द सरस्वती ज्ञान का प्रकाश फैलाने के लिए देश में भ्रमण करने लगे। ये पाखण्ड, मूर्तिपूजा, दहेज, बाल-विवाह, जाति-पाँति और छुआछूत के विरुद्ध स्थान-स्थान पर व्याख्यान देने लग गये। ये कहा करते थे कि ईश्वर एक है। ईश्वर के लिए सब बराबर हैं। जाति-पाँति कुछ नहीं है। ईश्वर निराकार है।
एक बार आप घूमते-घूमते जोधपुर पहुँचे। वहाँ का राजा विलासी था। उसके महल में अनेक वेश्याएँ थीं। स्वामीजी ने राजा को समझाया। राजा ने वेश्याओं को निकाल दिया। वेश्याओं ने रसोइये को रुपये देकर इन्हें विष दिलवा दिया।
आप पर जब विष का प्रभाव होने लगा तब आपने रसोइये को बुलाया। उसे किराया दिया और कहा तुम यहाँ से शीघ्र भाग जाओ। पकड़े जाओगे तो मार दिये जाओगे। रसोइये को भेज देने के बाद आपने प्राण त्याग दिये। इस प्रकार आपके जीवन का अन्त हुआ।
उपसंहार
महर्षि दयानन्द ने जीवन भर समाज का सुधार किया। अज्ञान में पड़े हुए को ज्ञान दिया। स्त्री-शूद्रों का उद्धार किया। अन्धविश्वासों को दूर किया। लोगों में देशभक्ति की भावना भरी। शिवरात्रि के पवित्र पर्व पर स्थान-स्थान के आर्यसमाज मंदिरों में ‘ऋषिवाधोत्सव’ मनाया जाता है। इन उत्सवों में महर्षि दयानन्द के जीवन पर प्रकाश डाला जाता है। आर्यसमाज के सिद्धान्तों का विस्तार के साथ वर्णन किया जाता है। अन्धविश्वासों की हानियाँ बताकर उन्हें छोड़ने के लिए कहा जाता है। अनेक प्रकार के व्याख्यानों तथा भजनों के द्वारा इन लोगों को बुराइयाँ छोड़ने और अच्छाइयों को अपनाने की शिक्षा दी जाती है।