देशाटन पर निबंध:- मनुष्य जन्म से जिज्ञासु है। वह प्रतिक्षण नई-नई बातें जानना चाहता है। नई-नई बातें जानने के लिए और अनजाने की खोज निकालने के लिए मनुष्य देश-विदेश के विभिन्न स्थानों की यात्रा करता है, इसे ही देशाटन या पर्यटन कहते हैं। देशाटन में मूल बात है-देश-विदेश को देखना, उसे जानना और उसकी संस्कृति, सभ्यता को पहचानना। भारत में अति प्राचीन काल से तीर्थ यात्रा का बहुत महत्त्व रहा है, इसके मूल में भी पर्यटन की भावना निहित है, अन्तर है कि तीर्थ यात्रा में धार्मिक भावना प्रधान होती है, परन्तु देशाटन में देश-विदेश के दर्शन ही मुख्य होते हैं।
देशाटन पर निबंध

देशाटन की आवश्यकता
जीवन में सफलता के लिए आवश्यक है कि मनुष्य अन्य स्थानों में रहने वाले लोगों के जीवन का अध्ययन करे, उनके रहन-सहन को जाने। यह सब हम एक स्थान पर पड़े-पड़े नहीं जान सकते। इसके लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना आवश्यक है। फिर, किसी एक ही स्थान पर रहते हुए मनुष्य का मन खिन्न हो जाता है। अतः मनोविनोद के लिए भी देशाटन अनिवार्य है। देशाटन में व्यक्ति नए-नए नगरों को, नए-नए देशों और नए-नए स्थानों को, नए-नए पर्वतों, नदियों पशु-पक्षियों, जीव-जन्तुओं को देखता है।
उन स्थानों के रीति-रिवाजों, खान-पान, वेश-भूषा और बोलियों से परिचित होता है। इससे उसके मन की संकीर्णता दूर हो जाती है, उसमें विशालता आती है तथा उसका दृष्टिकोण व्यापक बनता है। देशाटन से मनुष्य के मन में सहयोग और सहानुभूति के के गुण पनपते हैं, मस्तिष्क चिन्तनशील बनता है और ज्ञान का निरन्तर विकास होता है। देशाटन मनुष्य को क्रियाशील तथा स्वावलम्बी बनाता है। उसे नवीन वातावरण मिलता है, जिससे उसका मानस-सुमन सदा खिला रहता है।
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देशाटन का उद्देश्
कुछ लोग देश-विदेश की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्ययन करने के लिए पर्यटन करते हैं तो कुछ लोग विश्व की राजनीतिक परिस्थितियों का अध्ययन करने के लिए ही देशाटन करते हैं । कुछ अन्य देशों की ऐतिहासिक एवं भौगोलिक स्थिति जानने के लिए नये-नये देशों की सैर करते हैं। कुछ केवल प्रकृति के आनन्द के लिए नए-नए स्थानों को जाते हैं। धार्मिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए भी लोग देशाटन करते हैं। देशाटन या पर्यटन के कई उद्देश्य हैं।
देशाटन के लाभ
मनुष्य को देशाटन से अनगिनत लाभ होते हैं। वह सदा नवीनता के बीच रहता है। इससे जीवन को एक प्रवाह मिलता है। खिन्नता और आलस्य उससे घबराते हैं। वह जहाँ जाता है वहाँ की संस्कृति, रीति-नीति, परम्परा, प्रगति आदि का ज्ञान तथा आनन्द लाभ भी प्राप्त करता है।
पर्यटन या देशाटन ज्ञान प्राप्ति का अत्युत्तम साधन है। यदि प्राचीन भारत के कवि भास, कालिदास, भवभूति, बाणभट्ट आदि कवियों ने भ्रमण न किया होता तो उनकी रचनाओं में इतनी मौलिकता और स्वाभाविकता नहीं मिलती। इन सबकी रचनाओं पर देशाटन का प्रभाव स्पष्ट दीखता है। कबीरदास, गोस्वामी तुलसीदास, केशवदास, पंतजी, रवीन्द्रनाथ ठाकुर तथा अनेक कवियों ने देशाटन (यात्रा) से ज्ञान अर्जित किया और मौलिक तथा अनूठे साहित्य का सृजन किया।
देशाटन की भावना से ही कोलम्बस ने नई दुनिया (अमेरिका) की खोज की तथा विदेशी नाविकों ने भारत के लिए सरल समुद्री मार्ग खोजा। चीनियों ने भारत से ज्ञान प्राप्त किया और अंग्रेज, फ्राँसीसी तथा डच लोगों ने भारत में व्यापारिक केन्द्र खोजे और यहाँ की सभ्यता को भी प्रभावित किया। भारत के प्रसिद्ध पर्यटक (घुमक्कड़) श्री राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत, श्रीलंका, मध्य एशिया तथा रूस आदि का भ्रमण का वहाँ बौद्ध साहित्य के अनेक दुर्लभ ग्रन्थों की खोज की और उनका सम्पादन किया तथा इन देशों की परम्पराओं से देश वासियों को परिचित कराया।
शिक्षा के क्षेत्र में भी देशाटन का अत्यधिक महत्त्व है। इसके द्वारा प्राप्त शिक्षा को छात्र कभी भूलता नहीं। इतिहास, भूगोल, भू गर्म-विज्ञान, नृवंश विज्ञान तथा यान्त्रिक विज्ञान के शिक्षण के लिए भी देशाटन अनिवार्य है। अगर किसी स्थान विशेष पर छात्रों को ले जाकर उसका इतिहास और भूगोल समझाया जाये तो उनका ज्ञान ठोस और पूर्ण होगा।
देशाटन शिक्षार्थियों के अतिरिक्त व्यवसायी-वर्ग के लिए भी बड़ा लाभदायक है। व्यवसायी वर्ग देशाटन के इस बात का अध्ययन कर लेता है कि इस स्थान पर किस वस्तु की माँग ज्यादा है। उस वस्तु को वहाँ समय पर उपलब्ध करवाता है और इस प्रकार अपना व्यवसाय बढ़ाता है। शासक-वर्ग द्वारा देशाटन करने से मित्र देशों की संख्या बढ़ती है। विश्व राष्ट्रों की एकता सुदृढ़ होती है। देशाटन मनुष्य को उदारचित्त बनाता है। इससे भ्रातृत्व की भावना पनपती है तथा व्यक्ति को मानवता का आदर करना आता है।
उपसंहार
देशाटन या पर्यटन मनुष्य को व्यवहारकुशल और स्वावलम्बी बनाता है। उसके विचारों में दृढ़ता आती है। जीवन में संकीर्णता का स्थान नहीं रहता। दृष्टिकोण विशाल बनता है। भारतवर्ष में हिन्दुओं ने प्रत्येक जीवनोपयोगी बात को धर्म से जोड़ दिया है। इसीलिए हिन्दू धर्म में तीर्थ यात्राओं को बहुत महत्त्व दिया गया, जो वस्तुतः देशाटन का ही एक रूप है। देशाटन जीवन का प्राण है, जीवन की आत्मा है। अतः अवसर मिलने पर और सामर्थ्य होने पर देशाटन अवश्य करना चाहिए। देशाटन पर निबंध
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