धनवान सो सामर्थ्यवान:- यह कहानी एक ऐसे युवक की है जो बिना किसी अपराध के जेल की सजा भुगत रहा था। दिन भर खाली बैठा-बैठा क्या करता सो वक्त काटने के लिए वह जेल की दीवारों और फर्श पर कोयले से लिखता रहता- ‘धनवान सो सामर्थ्यवान।’ सिपाही उसे देख कर आपस में हंसते- बतियाते पर उसके लिखने में कोई रुकावट न डालते।
धनवान सो सामर्थ्यवान

एक दिन उस प्रदेश के राजा की इच्छा हुई कि वह उस जेल का दौरा कर स्वयं कैदियों का हाल-चाल पूछे। राजा अपने अंगरक्षकों के साथ जेल के हर कमरे में गया और सबका हाल-चाल, कुशल-मंगल पूछते हुए घूमते-घूमते उस युवक के कमरे में भी गया। वहां जाकर वह देखता क्या है कि चारों तरफ एक ही बात बार-बार लिखी हुई है- ‘धनवान सो सामर्थ्यवान।’
“यह सब तूने लिखा है?” राजा ने उस कैदी युवक से पूछा।
“जी राजा साहब, ” उसने जवाब दिया।
“तेरी यह बात एकदम झूठ है,” राजा ने उससे कहा।
“जी, मैं ऐसा नहीं मानता। मैं तो इसे एकदम सच मानता हूं,” उसका जवाब था।
“चल तेरी ही बात मान लेता हूं। मैं तुझे जितना तू कहेगा उतना धन देता हूं, लेकिन तुझे इसके बदले वह काम करना पड़ेगा जो मैं कहूंगा। अगर तू उसे पूरा न कर सका तो मैं तुझे फांसी पर चढ़वा दूंगा,” राजा ने शर्त रखी।
“राजा साहब, लेकिन यह तो बताइए कि अपनी जान जोखिम में डालने वाला ऐसा क्या काम है, जो मुझे करना होगा,” कैदी ने पूछा।
” अभी बताता हूँ। मैं तुझे इस बात की पूरी छूट देता हूं कि तू जितना धन चाहे ले ले पर इसके बदले में तुझे मेरी बेटी को केवल एक बार चूमने का साहस करना होगा। अगर तू इसमें सफल हुआ तो मैं उसके साथ तेरी शादी कर दूंगा और अगर नहीं कर पाया तो फिर”
“बस, केवल इतनी सी बात है। किसी लड़की का चुंबन लेने में ऐसी क्या मुश्किल है?”
” लेकिन यह काम तुझे एक सप्ताह के अंदर करना होगा। “
“जो आज्ञा, राजा साहब!”
कैदी राजा के खजांची के पास गया और उससे मनमानी रकम ले ली, पर जब बाहर आया तो सोचने लगा- ‘राजा की बेटी को मैं कैसे चूम सकता हूँ। वह तो अपने पिता की आज्ञा से हर समय कड़े पहरे में रहती होगी। उसके पिता ने उसे जरूर ऐसी जगह बंद कर रखा होगा जहां उसके सिवाय कोई परिंदा भी पर न मार सके।
‘अब मैं क्या करूं? मैं भी कैसा बुद्ध हूं। नाहक इस झंझट में फंस गया, पर अब क्या हो सकता है। किसी न किसी तरह इस मुसीबत से छुटकारा तो पाना ही होगा।” तेज कदम बढ़ाता हुआ वह अपने एक दोस्त के पास पहुंचा। उसका दोस्त लुहार था। उसने उसे सारी आपबीती सुनाई और घोड़े के बराबर एक ऐसा हंस बनाने को कहा जिसके अंदर घुस कर वह बैठ सके।
लुहार दोस्त ने इस काम का जितना पैसा मांगा, उसने उसे उतना ही देकर पूछा, “यार! बना तो सकेगा न? मेरी जिंदगी अब तेरे हाथ में है।”
“क्यों नहीं इधर आ। फिक्र न कर और यह घोंकनी फूंका। मैं बस अभी से काम शुरू कर देता हूं, ” लुहार ने कहा।
पांच दिन में हंस बन कर तैयार हो गया।
‘अच्छा तो दोस्त, अब मैं इसके अंदर एक झुनझुना लेकर बैठता हूँ। तू इस हंस को एक गाड़ी पर रख कर राजधानी ले चलना। जब तू राजा के महल के सामने पहुंचे तो कहना हंस रे हंस! झुनझुना तो बजा। अगर कोई आदमी, विशेष रूप से राजा, इस हंस को खरीदना चाहे तो तू इसे मनचाही कीमत लेकर बेच भी सकता है। “
“ठीक है, ऐसा ही करूंगा, ” लुहार ने वायदा किया।
“लेकिन एक बात का ध्यान रखना किसी को भी यह पता नहीं चलना चाहिए कि मैं इसके अंदर बैठा हूं, नहीं तो वह राजा हम दोनों को फांसी पर चढ़ा देगा। “
“घबरा मत दोस्त, ” लुहार ने तसल्ली दी।
लुहार उस विशालकाय हंस को राजधानी की तरफ ले चला। रास्ते में जो भी उसे देखता, आश्चर्य से मुंह फाड़े गाड़ी के पीछे-पीछे चल देता।
चलते-चलते लुहार राजधानी में राजा के महल के सामने पहुंचा और जोर से बोला, “हंस रे हंस! जरा झुनझुना तो बजा।
अंदर से जोर-जोर से आती सुनने की आवाज हवा में गूंज उठी। चौक में इतने लोग जमा हो गए थे कि तिल धरने की भी जगह न थी। शोरगुल सुन कर राजकुमारी ने खिड़की से बाहर झांका तो चौक में एक अजीबोगरीब जानवर को घेरे हुए तमाम लोग उसे दिखाई पड़े।
‘यह सब क्या है? मैं इस जानवर को पास से देखना चाहती हूं.’ उसने मन ही मन कहा और राजा को बुला कर झुनझुना बजाने वाले उस विचित्र जानवर को दिखा कर बोली, “मैं इस जानवर को पास से देखना चाहती हूं।”
‘अरी यह हंस तो लोहे का बना हुआ है। तू इसका क्या करेगी?” “मेरे अच्छे पिता! मुझे यह जादुई हंस जरूर चाहिए। अगर आप सचमुच मुझे प्यार करते हैं तो मेरे लिए यह हंस ला दीजिए न !”
“ठीक है अभी मंगवाता हूं।”
राजा ने चौक में जाकर लुहार को बुलाया और उसे थैली भर सोने के सिक्के देकर हंस को राजकुमारी के कमरे में लाने का हुक्म दिया।
हंस जब राजकुमारी के कमरे में आ गया तो राजा ने बेटी से कहा, “अब तो खुश हो न?”
“एकदम खुश, मेरे प्यारे पिता! देखिए तो कितना सुंदर बना है। “
फिर हंस से कहा, “अरे हंस! अरे ओ हंस! अब कुछ बजा कर मुझे भी तो सुना।
तुरन्त ही हंस में से आवाज आनी शुरू हो गई। राजकुमारी ने जिद पकड़ ली कि वह उस विशालकाय हंस को अपने ही कमरे में रखेगी ताकि हंस के अंदर से निकलने वाले संगीत से वह रात को चैन की नींद सो सके और सुबह को तरोताजा जाग सके।
राजा ने अनुमति दे दी और वहां से चला गया।
हंस सारा दिन झुनझुना बजाता रहा और जब रात हुई तो राजकुमारी ने उसे बिस्तर पर लिटा दिया। संगीत सुनते-सुनते थोड़ी देर में वह भी सी गई।
युवक ने सोचा- ‘अब मेरे काम करने का वक्त आ गया है। उसने दरवाजा खोला और हंस से बाहर आकर सोती हुई राजकुमारी के पास गया और उसे चूम लिया। राजकुमारी जाग गई और धुंधली रोशनी में अपने पास एक अजनबी को देख कर हैरान रह गई। लेकिन वह उसे सिपाहियों से न पकड़वा सकी, क्योंकि वह स्वयं ही उस पर मोहित हो गई थी। उसने भी उसे चूम लिया। उसी समय चांद भी खिड़की को झिरी से इस प्रेम मिलन का साक्षी बनने अंदर घुस आया। राजकुमारी ने अपने पलंग से उतरकर युवक से पूरा किस्सा सुनाने को कहा।
कैदी, चिड़िया की तरह चहकने लगा और बड़ी खुशी से उसने राजकुमारी को पूरी दास्तान सुना दी। वे दोनों बातचीत करने में मग्न थे। अचानक हंस का दरवाजा खुला और दोनों खुले हुए दरवाजे से हंस के अंदर गिर पड़े। हंस उलट गया। आवाज सुन कर राजा डर गया और उसने सोचा कि शायद अंदर चोर है, इसलिए वह अपने अंगरक्षकों के साथ अंदर आ गया। बेटी के कमरे में जाकर जब उसने देखा कि वही कैदी उसकी बेटी के पास बैठा है तो उसके आश्चर्य की सीमा न रही।
“तू यहां अरे ओ शैतान के बच्चे ! तू यहां कैसे घुस आया?” राजा ने आश्चर्य से पूछा । “राजा साहब! मैं हंस के अंदर बैठा था। मैंने आपको दिए अपने वचन का पालन कर दिया है,” उसने जवाब दिया।
“ठीक है, अब मेरी बारी है। मैं भी अपना वचन पूरा करूंगा। मेरी बेटी निश्चित ही तुझ जैसे सुंदर और साहसी युवक को पति रूप में पाकर बहुत खुश होगी। ” ” सच पिताजी, आप कितने अच्छे हैं।” राजकुमारी ने कहा । “ठीक है, कल तुम दोनों के विवाह का एक शानदार उत्सव होगा,” राजा ने बताया । और सच ही अगले दिन का उत्सव स्मरणीय था। ये थी धनवान सो सामर्थ्यवान की कहानी
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