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थायराइड के रोग, लक्षण, यौगिक उपचार और प्राणायाम

थायराइड के रोग, लक्षण, यौगिक उपचार और प्राणायाम से होने बाले लाभ के बारे में जानेंगे। हमारे शरीर के अन्दर स्थित ग्रन्थियाँ बाहरी इन्द्रियों के मुकाबले कहीं ज्यादा काम करती हैं। वे अंतःस्राव करती है इनमें से एक बहुत ही महत्वपूर्ण थॉयराइड (Diseases of Thyriod Gland) है इसे चुल्लिका ग्रन्थि अथवा अवटु ग्रन्थि भी कहते हैं।

यह ग्रन्थि तितली की शक्ल की होती है जो गर्दन के सामने मुख्य श्वास नलिका के चारों ओर लिपटी रहती है। इस ग्रन्थि के दो पिण्ड (Lobes) होते हैं। एक श्वास नली के बाँयी ओर, दूसरा दाँयी ओर इसका वजन 16 से 24 ग्राम होता है। यद्यपि सरसरी तौर पर यह एक छोटी-सी चीज है, लेकिन इसके प्रभाव विस्तृत हैं। अतः इसे नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है।

थायराइड के रोग, लक्षण, यौगिक उपचार और प्राणायाम

थायराइड के रोग

थायराइड (चुल्लिका या अवटु ग्रन्थि) के कार्य

थायराइड ग्रन्थि से दो रसायन स्रावित होते हैं- (1) थायरॉक्सिीन, (2) ट्राइआइडोथायरानिन। इन दोनों रसायनों की रक्त में उपस्थित मात्रा ही हमारे चयापचय की गति निर्धारित है। इन हार्मोनों के संश्लेषण के लिए ‘आयोडीन’ नामक पदार्थ आवश्यक है। इस आयोडीन की कमी होने से इस ग्रन्थि का आकार बढ़ने लगता है। इस स्थिति का गलगण्ड अथवा गायटर कहा जाता है।

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हमारे भोजन में अनेक लवण होते हैं। इनमें से आयोडीन नामक तत्व रक्त के माध्यम से थायराइड ग्रन्थि में पहुँचते हैं जो उस एकत्रित आयोडीन से टी-3. अर्थात् ट्राई आयोडी तथा आयोडी तथा टी-4′ अर्थात् थायराक्सिन नामक (ऊपर बताये) हार्मोन बनाकर स्रावित करती है।

जब शरीर में थायराइड हार्मोन की मात्रा आवश्यकता से कम हो जाती है तब टी.एस. एच. का स्राव बढ़ जाता है तथा थायराइड ग्रन्थि टी-3 एवं टी-4 हार्मोनों का आवश्यक अनुपात पुनः स्थापित कर लेती है। इसी प्रकार जब उन हार्मोनों की मात्रा आवश्यकता से अधिक हो जाती है तो टी.एस. एच. का स्राव घट जाता है।

थायराइड ग्रन्थि के रोग

जब इस ग्रन्थि में कोई गड़बड़ी आ जाती है तब निम्नलिखित प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं-

1. थायराइड ग्रन्थि की अतिक्रियाशीलता या विषाक्तता

इस ग्रन्थि के अति क्रियाशील हो जाने पर शरीर आवश्यकता से अधिक क्रियाशील हो जाता है क्योंकि यह ग्रन्थि रसायनों (हार्मोन) का स्राव अधिक मात्रा में करने लगती है। इसका मुख्य कारण ‘ग्रेव्स डिसीज’ है। यह रोग पुरुषों की अपेक्षा 30 से 50 वर्ष की आयु वाली महिलाओं में अधिक पाया जाता है।

लक्षण

  1. शरीर की आवश्यकता से अधिक कार्यशीलता हो जाने के कारण ऊर्जा का क्षय अधिक होता है। परिणामस्वरूप रोगी को भूख अधिक लगती है। और वह उसकी तुष्टि भी करता है फिर भी वह दुबला होता जाता है।
  2. हृदय की धड़कन एवं नाड़ी की गति बढ़ जाती है।
  3. कभी-कभी ऐसे रोगी की आँखें असामान्य रूप से बड़ी दिखने लगती हैं, पुतलियाँ बाहर निकली-सी लगती हैं। कभी-कभी तो पुतलियाँ एक ओर को झुक भी सकती हैं। इसे एक्सोप्यौलिक ग्रेव कहते हैं।
  4. आँतों की अति क्रियाशीलता के कारण हाजमा खराब हो जाता है और दस्त होने लगते हैं।
  5. शरीर में कम्पन होता है जिसके कारण किसी चीज को पकड़ने में दिक्कत होती हैं।
  6. नींद ठीक तरह से नहीं आती, बुद्धि भ्रमित रहती है, स्वभाव चिड़चिड़ा हो जाता है। मानसिक सन्तुलन बिगड़ जाता है।
  7. महिलाओं में मासिक धर्म की अनियमितता और अत्यधिक रक्तस्राव के लक्षण दिख सकते हैं।
  8. गले में स्थित थायराइड ग्रन्थि में सूजन आ जाती है।
  9. गर्मी महसूस होना, पसीना अधिक आना, बालों का झड़ना जैसे लक्षण प्रकट हो जाते हैं
  10. थायराइड ग्रन्थि के अधिक कार्य करने के कारण उसका आकार बढ़ जाता है जिसे गलगण्ड या गायटर कहते हैं।

उक्त रोग को (Hyperthyroid (अति क्रियाशीलता), Thyrototoxicoses (विषाक्तता) कहते हैं।

2. थायरायड ग्रन्थि की कार्य शक्ति की मन्दता

इसको हाइपो थॉयराडिज्म भी कहते हैं। इसमें थायराइड ग्रन्थि की कार्य शक्ति में मंदता आ जाती है। इसके कारण इस ग्रन्थि से रसायनों (हार्मोन्स) का स्रावण कम मात्रा में होने लगता है। ग्रन्थि की सामान्य क्रियाशीलता को यूथायरायडिज्म कहते हैं इस ग्रन्थि की मन्दता वयस्कों में ‘मिक्सिडीमा’ कहते हैं तथा जन्म समय से ही होने पर ‘क्रोटिनिज्म’ कहते हैं।

‘मिक्सिडीमा’ का सबसे प्रमुख कारण शल्य क्रिया या रेडियोधर्मी आयोडीन द्वारा थायराइड ग्रन्थि का विनाश है। यह रोग बिना प्रत्यक्ष कारण के भी हो सकता है पर यह इतना अधिक आम नहीं है मगर यह भी अधेड़ स्त्रियों को ज्यादातर प्रभावित करता है।

लक्षण

  1. रोगी हमेशा सुस्त, अनमना सा रहता है
  2. रोगी का शरीर सूजता जाता है, वजन बढ़ता जाता है
  3. भोजन की मात्रा घटा देने पर भी वजन में कोई कमी नहीं होती, वरन् बढ़ता ही है।
  4. रोगी की भूख कम हो जाती है, कब्ज बना रहता है।
  5. महिला रोगियों के बाल झड़ने लगते हैं, त्वचा खुश्क हो जाती है और खुजली महसूस होती है।
  6. इस रोग में महिलाओं का मासिक धर्म अनियमित हो जाता है ।
  7. कभी-कभी थायराइड ग्रन्थि की मन्दता के कारण महिलाओं में बाँझपन भी हो सकता है।
  8. रोगी की साँस गले में अटकती सी महसूस हो सकती है।
  9. आवाज भारी हो जाती है। कभी-कभी बिल्कुल बैठ भी सकती है। यह अनुभव रोगी को नित्य प्रति हो सकता है। सामान्य इलाज से कोई लाभ नहीं होता है।
  10. रोगी का चेहरा पीला पड़ जाता है और वह अवसाद ग्रस्त हो जाता है।
  11. स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है, मन की एकाग्रता कम हो जाती है। उसके शरीर की कार्यक्षमता में कमी आ जाती है ।
  12. शरीर की सहनशक्ति कम हो जाती है। मौसम में थोड़ी-सी भी ठंडक आने पर रोगी काफी सर्दी महसूस करता है और उसे गर्म कपड़े पहनने की इच्छा होती है।
  13. दिल की धड़कन की गति में कमी आ जाती है जिसके कारण रक्त को पम्प करने की उसकी क्षमता में कमी हो जाती है।

वस्तुतः उक्त लक्षणों का सारांश यह है कि हाइपोथायरायडिज्म की स्थिति में शरीर की सभी क्रियायें शिथिल हो जाती हैं।

यौगिक उपचार

वस्तुतः हमारे ऋषि-मुनियों ने आजकल के वैज्ञानिकों से सैकड़ों वर्ष पूर्व ही ऐसे अभ्यासों एवं तकनीकों को खोज लिया था जो अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को एवं चयापचय को स्वस्थ रखने में पूर्ण रूप से सहायक हों योगाभ्यास की भूमिका अन्य उपचारों की अपेक्षा अधिक स्वास्थ्यवर्धक है।

आसन

सर्वांगासन – यह आसन थायराइड ग्रन्थि का आसन है क्योंकि इसके दबाव से ग्रन्थि की क्रियाशीलता पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इस आसन के अभ्यास से रुके हुए स्राव प्रभावित होते हैं तथा रक्त संचरण बढ़ता है।

वस्तुतः सर्वांगासन थायराइड के सभी रोगों में चाहे वह अतिक्रियाशीलता हो अवस्था में सुधार करता है। इस आसन को करते समय गले में श्वास की गति पर सजगता रखनी चाहिये, इससे आसन का प्रभाव और बढ़ जाता है। इस आसन के बाद निम्नलिखित आसनों का अभ्यास करना चाहिये-

  1. मत्स्यासन
  2. हलासन
  3. पद्म सर्वागासन
  4. पाशिनी मुद्रा
  5. सूर्य नमस्कार
  6. कंधरासन
  7. ग्रीवासन
  8. सिंहासन
  9. पवन मुक्तासन

विशेष- रोग की गम्भीर अवस्था में आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिये। इस स्थिति में औषधि या शल्य चिकित्सा को प्राथमिकता देना चाहिये।

प्राणायाम

  1. उज्जायी प्राणायाम- इसके अभ्यास से गले की अन्दरूनी त्वचा में रहने वाली सम्वेदनशील नस-नाड़ियों का उत्तेजन होता है। प्राणायाम से प्राणिक एवं आध्यात्मिक स्तरों तक के सभी मूल संचालन केन्द्रों को प्रभावित किया जा सकता है। उज्जायी प्राणायाम का अभ्यास विशुद्धि चक्र की शुद्धि एवं अजपा जप जैसी शक्तिशाली क्रियाओं के लिए प्राथमिक आवश्यकता है।
  2. नाड़ी शोधन प्राणायाम- सम्पूर्ण शारीरिक चयापचय प्रभावित होता है।
  3. शीतली प्राणायाम
  4. शीतकारी प्राणायाम – इन दोनों प्राणायामों थायरायड ग्रन्थि की अति क्रियाशीलता से होने वाले चयापचय क्रिया के दुष्प्रभावों को कम करते हैं तथा शरीर की बढ़ी हुई गर्मी को ठंडा करते हैं।
  5. भस्त्रिका प्राणायाम – इस प्राणायाम का अभ्यास थायराइड ग्रन्थि की मन्दता को दूर करने में सहायक होता है। शरीर में गर्मी बढ़ाकर चयापचय गति में तीव्रता लाता है।

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

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