दीपावली पर निबंध, ऋषि-मुनियों और ज्ञानियों ने सदैव ही मानव समाज को अज्ञान के अन्धकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर जाने का अमर सन्देश दिया है। दीपावली का त्योहार दीपों की ज्योति बिखराकर उसी सन्देश को साकार रूप देता है। यह पर्व हमारे अन्धकार से प्रकाश की ओर जाने की अभिलाषा का प्रतीक है।
दीपावली पर निबंध (Diwali Par Nibandh)

वास्तव में दीपावली का यह उत्सव अन्धकार पर प्रकाश की और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का द्योतक है। इसीलिए सारे भारतवर्ष में दीपावली का त्योहार बड़ी धूमधाम और उल्लास से मनाया जाता है।
दीपावली मनाने का कारण
प्रकाश के इस महान् पर्व को मनाने के सम्बन्ध में अनेक बातें प्रचलित हैं। कहते हैं कि रावण का वध करके श्रीराम इसी दिन अयोध्या लौटे थे। अयोध्यावासियों ने दीपमालिका द्वारा राम के आगमन पर उनका स्वागत किया था। तभी से यह त्योहार मनाया जाता है।
जैन धर्म के अनुसार भगवान् महावीर स्वामी ने इसी दिन निर्वाण प्राप्त किया था और देवताओं ने दीपक जलाकर स्वर्ग में उनका स्वागत किया था। यह भी माना जाता है कि भगवान् विष्णु ने इसी दिन वामनावतार लेकर राजा बलि से लक्ष्मी को मुक्त कराया था। कारण कोई भी रहा हो, परन्तु यह सत्य है कि दीपावली बुराई पर भलाई की विजय का त्योहार है।
तैयारी
दीपावली का त्योहार कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस त्योहार की तैयारी कुछ दिन पहले से होने लगती है। हर घर, हर दुकान, की सफाई करके उस पर रंग-रोगन कराया जाता है। उन्हें सजाकर नवीन मोहक रूप दे दिया जाता है। उस समय लगता है कि गाँव-गाँव, नगर-नगर का हर घर, हर गली दीपावली की देवी महालक्ष्मी के स्वागत हेतु तैयार है।
त्योहार के कार्यक्रम
दीपावली का त्योहार पाँच दिन का होता है। धनतेरस से आरम्भ होकर यह भैया दौज तक मनाया जाता है। धनतेरस को लोग नया बर्तन खरीदकर लाते हैं जो समृद्धि का सूचक माना जाता है। दूसरा दिन नरक चौदस का होता है, जिसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। इस दिन एक दीपक जलाकर नरक से मुक्ति की कामना की जाती है।
फिर अमावस्या आती है। यही दीपावली का दिन है। बाजार में सजी हुई दुकानें मनमोहक दृश्य उपस्थित करती हैं। दीपक, मोमबत्ती, खील, खिलौने, आतिशबाजी, सुन्दर-सुन्दर चित्र, गणेश-लक्ष्मी की मूर्तियों आदि की बिक्री इस दिन खूब होती है।
संध्या होते ही गणेश
लक्ष्मी का पूजन होता है और दीपकों का प्रकाश जगमगा उठता है। मोमबत्तियों की झिलमिलाती रोशनी और रंग-बिरंगे बल्बों की जगमगाहट मन को मुग्ध कर देती है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो तारों से जगमगाता हुआ गगन ही धरती पर उतर आया हो।
बच्चे तो इस वातावरण में फूले नहीं समाते। वे मिठाई, खील, खिलौने बड़े आनन्द से खाते हैं और आतिशबाजी छुटाकर झूम-झूम उठते हैं। अगले दिन गोवर्धन की पूजा होती है। इसी दिन भगवान् श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाकर इन्द्र के प्रकोप से ब्रजवासियों की रक्षा की थी।
अन्तिम दिन भैया दौज होती है। इस दिन वहिनें भाइयों के मस्तक पर तिलक लगाकर उनके मंगल की कामना करती हैं। इस प्रकार पाँच दिन की धूम-धाम के साथ यह त्योहार सम्पन्न होता है। वस्तुतः ज्योति का यह पर्व अत्यधिक आनन्द देने वाला तथा अन्धकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक है
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
दोष
दीपावली के साथ एक बड़ा दोष भी जुड़ गया है। इस त्योहार पर लोग जुआ खेलते हैं और अपने भाग्य को आजमाते हैं। इस जुए में बहुत से लोग बर्बाद हो जाते हैं। सभी को इस दोष को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।
उपसंहार
दीपावली हमें यही संदेश देती है कि धरती के अँधेरे को दूर करो। जब हम अज्ञान के अन्धकार को, बुराई के अन्धकार को, दरिद्रता के अन्धकार को मिटा देंगे, तभी हमारा वास्तव में दीपावली मनाना सार्थक होगा।
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