डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय: डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर, सन् 1888 को तिरुपति के निकट तिरुतानी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम सर्वपल्ली विरास्वामी था एवं उनकी माता का नाम सिताम्मा था। कुछ लोग सीमित क्षेत्र में प्रसिद्ध होते हैं। कुछ प्रान्त में और कुछ देश में किन्तु कुछ ऐसे योग्य होते हैं कि वे अपनी योग्यता से विश्व में प्रसिद्ध हो ‘जाते हैं। डॉ. राधाकृष्णन अपनी दर्शन की योग्यता से विश्व में प्रसिद्ध हुए।
डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन का जीवन परिचय

Sarvepalli Radhakrishnan Ka Jeevan Parichay
जन्म | 5 सितम्बर, सन् 1888 |
जन्म स्थान | तिरुपति के निकट तिरुतानी गाँव |
पिता का नाम | सर्वपल्ली विरास्वामी |
माता का नाम | सिताम्मा |
राष्ट्रपति | सन् 1962 |
मृत्यु | 2 जून, सन् 1975 |
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जन्म एवं परिचय-राधाकृष्णन का जन्म 5 सितम्बर, सन् 1888 को तिरुपति के निकट तिरुतानी गाँव में हुआ था। आपकी शिक्षा ईसाई मिशन संस्थाओं में हुई थी। ईसाई पादरी हिन्दू धर्म का मजाक उड़ाया करते थे। अतः आपने हिन्दू शास्त्रों का गहराई से अध्ययन किया।
कार्य क्षेत्र
सबसे पहले आप लेक्चरार नियुक्त हुए। फिर आप प्रोफेसर बना दिये गये। सन् 1918 में आप मैसूर विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्त हुए। फिर आपने आन्ध्र विश्वविद्यालय के उपकुलपति पद को सुशोभित किया।
इसके पश्चात् आप मैनचेस्टर कॉलेज तथा शिकागो में प्रोफेसर रहे। इसके बाद आप ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर रहे। तत्पश्चात् आपने भारतीय विश्वविद्यालय कमीशन के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया।
सन् 1947 में देश के स्वतन्त्र होने पर आप रूस में भारत के राजदूत नियुक्त किये गये। सन् 1950 में आप सर्वसम्मति से उपराष्ट्रपति चुने गये। आप बारह वर्ष तक इस पद पर रहे। सन् 1962 में आप राष्ट्रपति चुने गये। देश आपको पुनः दुबारा राष्ट्रपति बनाना चाहता था, किन्तु आपने पुनः दुबारा राष्ट्रपति बनना अस्वीकार कर दिया क्योंकि आप निश्चित होकर अध्ययन करना चाहते थे।
डॉ. राधाकृष्णन ने जो भी पढ़ा उसे गहराई से पढ़ा। अतएव आप बहुत अच्छे व्याख्यानदाता थे। आपमें सहनशीलता बहुत अधिक थी। आप दूसरों को सुख देने से बढ़कर कोई आनन्द नहीं मानते थे। अहंकार ने आपको छुआ तक नहीं था। आपका विश्वास था कि अहंकार आने पर मनुष्य में अच्छे गुण नहीं आ पाते हैं।
योग्य लेखक
आपने अनेक ग्रन्थ लिखे। इनमें प्रसिद्ध ये हैं- ‘एन आइडियलिस्ट व्यू ऑफ लाइफ’, ‘हिन्दू व्यू ऑफ लाइफ’, ‘दि फ्यूचर ऑफ सिविलाइजेशन’, ‘इण्डियन फिलासफी’, ‘फ्रीडम ऑफ कल्चर’। आपने अनेक ग्रन्थों का सम्पादन किया इनमें से ‘गांधी छवि’ बहुत प्रसिद्ध है।
उपसंहार
राष्ट्रपति पद से मुक्त होकर आप मद्रास चले गये। जीवनपर्यन्त अध्ययन करते रहे। 2 जून, सन् 1975 को इस महान् शिक्षाशास्त्री, योग्य अध्यापक और कुशल वक्ता तथा प्रभावशाली लेखक का स्वर्गवास हो गया।