ईद पर निबंध? ईद मनाने का कारण क्या है?

ईद पर निबंध (Eid Par Nibandh), ईद इस्लाम धर्म का प्रमुख पर्व है। यह विश्व के मुसलमानों के लिए परोपकार और भाईचारे का सन्देशवाहक है। ईद का त्योहार वर्ष में दो बार मनाया जाता है। एक को ईद-उल-फितर और दूसरे को ईद-उल-जुहा कहते हैं। इस्लाम धर्म के प्रवर्तक मौहम्मद साहब का जन्म 570 ई. में अरब में हुआ था। बचपन में ही इनके माता-पिता का स्वर्गवास हो गया। चाचा अबू तालिब ने इनका पालन-पोषण किया। इनका विवाह बेगम खदीजा से हुआ।

ईद पर निबंध (Eid Par Nibandh)

ईद-पर-निबंध

ईद मनाने का कारण

चालीस वर्ष की उम्र में ही सांसारिक भोगों को त्यागकर संन्यास ग्रहण किया। मौहम्मद साहब ने अपने महान कार्यों से मुस्लिम जाति का मार्ग दर्शन किया। कुरान इस्लाम धर्म का पवित्र धार्मिक ग्रन्थ है। इस्लाम धर्म के अनुयायी ईद के इस पर्व पर कुरान शरीफ की वर्षगाँठ मनाते हैं।

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ईद की तैयारियाँ

ईद का उत्सव मनाने से पूर्व एक महीने का समय साधना-आराधना का समय होता है। इस महीने को रमजान कहा जाता है। मुस्लिम लोग 24 घण्टे में पाँच बार नमाज पढ़ते हैं। दिन निकलने से पूर्व एक बार भोजन करते हैं, जिसे ‘शैरी’ कहते हैं।

यह समय अधिकांशतः व्रत और खुदा की आराधना में बीतता है। नियमपूर्वक मस्जिद में जाकर खुदा की दबादत करते हैं। पूरे एक महीने की इबादत के बाद ईद का पावन पर्व आता है।

ईद का पर्व

ईद के दिन सार्वजनिक अवकाश रहता है। इस दिन विद्यालय, कार्यालय, मिल एवं कारखाने बन्द रहते हैं। इस दिन की शोभा दर्शनीय है। ईद पर मेले का आयोजन होता है। प्रातःकाल होते ही स्त्री, पुरुष एवं बालक सभी नये वस्त्र पहनकर ईदगाह या किसी मस्जिद में नमाज पढ़ने जाते हैं।

नमाज पढ़कर मेला देखने जाते हैं। घर में विभिन्न प्रकार के पकवान बनते हैं। मेहमानों का आदर-सत्कार होता है। सेवइयाँ इस पर्व की विशेष भोज्य सामग्री मानी जाती हैं। इस दिन लोग एक-दूसरे के घर सेवइयाँ भेजकर परस्पर प्रेम और सौहार्द्र का प्रदर्शन करते हैं।

लोग एक-दूसरे से गले मिलकर ‘ईद मुबारक’ कहते हैं। इस अवसर पर मुसलमान दान करते हैं, जिससे उनके गरीब भाई भी इस त्योहार को मना सकें। अन्य धर्मों के लोग भी मुसलमानों से गले मिलते हैं और ईद की मुबारकबाद देते हैं।

इस ईद के दो महीने और दो दिन बाद चाँद की दस तारीख को एक और ईद मनाई जाती है। यह ईद-उल-जुहा या बकरीद कहलाती है। यह दिन कुर्बानी का होता है।

इस दिन पैगम्बर साहब को अपने इकलौते बेटे की इस्लाम के नाम पर कुर्बानी देनी थी। लेकिन कुर्बानी के समय बेटे की जगह बकरा आ गया। इसलिए मुसलमान भाई उनकी याद में बकरा काटते हैं और उसका माँस इष्ट मित्रों में बाँटा जाता है।

उपसंहार

ईद का पर्व सामाजिक महत्व का है। इस दिन शाम के समय जगह-जगह ‘ईद मिलन’ के समारोह का आयोजन होता है। यह आयोजन हिन्दू और मुसलमानों द्वारा आयोजित किया जाता है, जिसमें हिन्दू और मुसलमान आपस में गले मिलते हैं। यह पर्व वास्तव में मुस्लिम सम्प्रदाय में सद्भाव का संचार करता है। यह पर्व संघर्षमय जीवन में समता और सरसता की सरिता बहा देता है।

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