मिरगी क्या है, लक्षण, कारण, प्रकार, यौगिक अभ्यास और सुझाव के बारे में पूरी जानकारी दी गई है। मानसिक, मनोवैज्ञानिक असन्तुलन अथवा स्नायु तंत्र की गड़बड़ियों से पड़ने वाले दौरों को मिरगी कहते हैं। यह दौरे बिल्कुल अलग तरह के होते हैं। दिमाग की कार्यपद्धति की चेतन स्तर पर गड़बड़ी और अचेतन स्तर की कुछ स्थितियों में इसका उचित इलाज कराना आवश्यक है। मिरगी (Epilepsy) के रोग को निम्नवत् श्रेणीबद्ध किया जा सकता है-
मिरगी क्या है, लक्षण, कारण, प्रकार, यौगिक अभ्यास और सुझाव

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मिरगी रोग के प्रकार
1. ग्रैंडमल (मुख्य मिरगी)
लक्षण – यह रोग किसी भी आयु में हो सकता है। इस प्रकार की मिरगी के दौरे में पूरा शरीर ऐंठ जाता है। कभी-कभी रोगी को बेचैनी होती है तथा सिर, हाथ पैर भी पटकता है।
दौरा पड़ने पर दम घुटने लगता है और रोगी बेहोश हो जाता है। इससे मूत्र प्रणाली भी प्रभावित हो जाती है, अतः वह कपड़ों में पेशाब कर सकता है। आमतौर पर यह हालत ज्यादा देर तक नहीं बनी रहती। रोगी होश में आने के बाद तुरन्त गहरी नींद में सोने लगता है। जागने के बाद उसे सिर दर्द, उल्टी, चक्कर, हाथ-पैरों में दर्द, जी मिचलाने की शिकायत हो सकती है। मन बेचैन हो जाता है।
2. पेतिमल (गौर मिरगी)
लक्षण – साधारणतयाः इस प्रकार का रोग बच्चों को होता है। इस स्थिति में बच्चे की आँखें चढ़ जाती हैं, पुतलियाँ ऊपर चली जाती हैं। वे टेढ़ा देखते हैं। वे बोलना बन्द कर देते हैं। अनुचित व्यवहार करते है। वस्तुतः पेतिमल बचपन में उचित चिकित्सा एवं सावधानी से खत्म हो सकता है। पर, कभी-कभी इसके ग्रैंडमल में बदलने की भी संभावना हो सकती है।
मिरगी के कारण
सामाजिक या पारिवारिक परिस्थितियाँ इस रोग को उत्पन्न कर सकती हैं। यह आनुवंशिक भी हो सकता है। मानसिक तनाव जब किन्हीं कारणों से उत्पन्न हो जाता है, वह इस रोग को उत्पन्न करने में सहायक हो सकता है। यह स्थिति व्यक्ति विशेष की शारीरिक अक्षमता से उत्पन्न होती है।
प्रायः ऐसा होता है कि किन्हीं खास परिस्थिति या घटना की वजह से भी दौरे पड़ सकते हैं। कोई अप्रिय सामाजिक घटना घटने से, किसी नजदीकी सम्बन्धी की मृत्यु के सदमे से भी दौरे पड़ सकते हैं। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि परीक्षाओं के अत्यधिक डर के कारण भी विद्यार्थी को दौरे पड़ने लगते हैं।
आधुनिक चिकित्सा
दौरे पड़ने की इस (मिरगी क्या है) बीमारी के इलाज के लिए बहुत प्रकार की दवाईयों का प्रयोग किया जाता है। आमतौर पर ऐसी दवाओं का सेवन पाँच से सात वर्ष तक करना पड़ता है। एक बात इस रोग में काफी जरूरी है कि लक्षणों के समाप्त हो जाने के बाद भी इलाज चलते रहना आवश्यक है। वैसे तो इस रोग में शल्य क्रिया की कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। परन्तु यदि खोपड़ी के अन्दर घाव या चोट लगने के कारण स्थिति उत्पन्न हुई है तो शल्य क्रिया का सहारा लेना पड़ सकता है।
यौगिक अभ्यास
प्राणायाम
नाड़ी शोधन प्राणायाम- इस प्राणायाम को अनुलोम और विलोम भी कहा जाता है जब श्वास प्रश्वास बिना कुम्भक, पूरक, रेचक के ली जाती है तब यह मानसिक शान्ति प्राप्त करने का एक अचूक अभ्यास है। वस्तुतः साँस लेना एवं बाहर निकालना एक स्वचालित प्रक्रिया है। अगर इसके प्रति थोड़ा सचेत रहें तो मानसिक गड़बड़ियों से बचे रहने की बड़ी उपलब्धि प्राप्त कर सकते हैं।
नाड़ी शोधन प्राणायाम में गहरी और नियंत्रित श्वसन क्रिया की जाती है। अतः प्रचुर मात्रा में ऑक्सीजन उपलब्ध होती है और मनोरोग सम्बन्धी समस्याओं को हल करने में सहायता मिलती है। श्वसन-प्रणाली मानसिक चेतना का मुख्य आधार है। श्वसन क्रिया को नियमित करने से मन में बैठे डर, आशंकाओं, मानसिक समस्याओं के कारण पड़ने वाले दौरों को निश्चित रूप से कम किया जा सकता है।
आसन
- उत्तान पादासन
- विपरीतकर्णी मुद्रा
- सर्वांगासन
- शीर्षासन का विकल्प- वैसे तो शीर्षासन से सिर को अधिकतम रक्त प्राप्त होता है। लेकिन, मिरगी के रोगी को शीर्षासन किसी भी हालत में नहीं करना चाहिये । हाँ, इसका एक विकल्प है जिसका अभ्यास निम्नवत् करना चाहिये-
पीठ के बल चारपाई या तख्त पर लेट जायें। सिर इससे नीचे लटका सकते हैं। इस स्थिति में पीठ नीचे की ओर, पेट ऊपर की ओर, दोनों टाँगें साथ-साथ, हथेलियाँ नीचे की ओर और सिर पीछे की ओर लटका होगा। इसमें सिर, हृदय से निचले तल पर होगा। अतः सिर को अधिक मात्रा में रक्त की आपूर्ति होगी । प्रारम्भ में, यह अभ्यास आधे मिनट से लेकर एक मिनट तक करना चाहिये । इसके बाद धीरे-धीरे यह अभ्यास पाँच से दस मिनट तक अपनी क्षमतानुसार बढ़ाना चाहिये। यह अभ्यास करने के बाद शवासन अवश्य करना चाहिये।
सुझाव
- ऐसे लोगों को ऊँचाई की जगह या जलाशय के पास नहीं जाना चाहिये।
- गाड़ी न चलायें।
- दौरा पड़ने पर पीड़ित व्यक्ति को किसी शान्त हवादार जगह पर रखना चाहिये।
- रोगी के कपड़े ढीले कर देना चाहिये। इससे उसे घुटन कम महसूस होगी।
- सामान्य तरीके से लिटाकर उसके दाँतों के बीच में एक चम्मच आदि फँसा देना चाहिये जिससे उसकी जीभ न कटने पाये।
- जिस व्यक्ति को दौरे पड़ते हों तो उसे खुशनुमा माहौल में रखना चाहिये । ऐसी जगहों से दूर रखना चाहिये जहाँ वह उदास या गम महसूस न करे।
- बालक को दौरा पड़ने पर उसे तुरन्त अस्पताल में भर्ती करना चाहिये क्योंकि बालक को मेनिनजाइटिस की संभावना हो सकती है।
- रोगी को सदा प्रसन्न, प्रफुल्लित एवं उत्साहित रहना चाहिये जिससे वह भयहीन रह सके।
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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।