भारत चीन सम्बन्ध पर निबंध:- भारत और चीन के सम्बन्ध ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक रूप से हजारों साल पुराने हैं। चीन सहित कई एशियाई देश प्राचीनकाल से ही बौद्ध धर्म के अनुयायी रहे हैं। जब सम्राट अशोक ने तृतीय शताब्दी ई.पू. में चीन सहित अन्य एशियाई देशों में बौद्ध-धर्म के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास करना शुरू किया, तभी चीन से भी भारत के धार्मिक तथा सांस्कृतिक सम्बन्धों की शुरूआत हुई।
चीनी बौद्ध भिक्षु फाह्यान ने चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के शासनकाल में 405-411 ई. तक भारत की यात्रा की। ट्रेनसांग 635-643 ई. तक राजा हर्षवर्द्धन के दरबार में रहा। सातवीं शताब्दी में हम्बली व इत्सिंग नामक चीनी यात्री भारत आए। इसके अतिरिक्त अनेक तिब्बती एवं चीनी यात्रियों ने भारत की यात्रा की, जिससे दोनों देशों के धार्मिक एवं सांस्कृतिक सम्बन्धों में वृद्धि हुई।
भारत चीन सम्बन्ध पर निबंध

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1947 में भारत के स्वतन्त्र होने एवं 1949 में चीन में कोमिन्तांग सरकार के पतन के बाद माओ-त्से-तुंग के नेतृत्व में साम्यवादी सरकार की स्थापना के साथ ही दोनों देशों के बीच सम्बन्धों की एक नई शुरूआत हुई। भारत ही ऐसा पहला गैर-साम्यवादी देश था, जिसने चीन को राजनयिक मान्यता प्रदान की तथा संयुक्त राष्ट्र संघ में उसे मान्यता दिलाने की भी कोशिश की। इससे दोनों देशों के सम्बन्ध प्रगाढ़ हुए।
1954 में भारत एवं चीन के मध्य पंचशील समझौता हुआ एवं उसी वर्ष चीन के तत्कालीन प्रधानमन्त्री चाऊ-एन-लाई भारत आए। इसके बाद 1955 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू चीन की यात्रा पर गए, जिससे दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय सम्बन्धों को एक नई ऊर्जा मिली। 1955 में बाण्डुग सम्मेलन में दोनों देशों ने एक-दूसरे को पूर्ण सहयोग किया एवं ‘हिन्दी चीनी भाई-भाई’ के नारे लगाए गए।
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यहाँ तक तो सब कुछ ठीक रहा, लेकिन जैसे ही वर्ष 1957 की शुरूआत हुई, दोनों देशों के मध्य सम्बन्ध में दरार शुरू हो गई। इस दरार की वजह सीमा-विवाद एवं तिब्बत समस्या थे। यद्यपि भारत ने 1954 में हुए पंचशील समझौते में चीन के तिब्बत पर अधिकार को स्वीकार कर लिया था, किन्तु तिब्बत में चीनी प्रशासन के दमन का समर्थन भारत सरकार नहीं कर सकी एवं इसी के साथ दोनों देशों के बीच सम्बन्धों में खटास का दौर शुरू हो गया।
1956 में तिब्बत के खम्पा क्षेत्र में हुए विद्रोह को दलाई लामा का समर्थन मिल रहा था। यह विद्रोह सफल न हो सका और चीनी प्रशासन ने इसे बुरी तरह कुचल दिया। इसके बाद जब 31 मार्च, 1959 को दलाई लामा ने भारत में शरण ली, तो चीनी सरकार ने इस पर अपना रोष प्रकट किया। इसके बाद भारत की चीन से शत्रुतापूर्ण सम्बन्धों की शुरूआत हो गई।
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दलाई लामा को शरण देने के कारण अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को अपमानित करने के दृष्टिकोण से 20 अक्टूबर, 1962 को भारत के उत्तर-पूर्वी सीमान्त क्षेत्र में लद्दाख की सीमा पर आक्रमण कर चीन ने जम्मू-कश्मीर के कुछ क्षेत्र पर कब्जा कर लिया। दलाई लामा को शरण देने का कारण तो मात्र एक बहाना था, चीन इस आक्रमण के द्वारा अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता था तथा भारत को कमजोर साबित करना चाहता था।
चीन के इस आक्रमण से जवाहरलाल नेहरू को बड़ा आघात पहुँचा और अन्ततः 1964 में उनकी मृत्यु हो गई। चीन का शत्रुतापूर्ण रवैया यहीं समाप्त नहीं हुआ। 1965 एवं 1971 के भारत-पाक युद्धों में उसने परोक्ष रूप से पाकिस्तान का साथ देकर अपने इरादे जाहिर कर दिए।
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सन् 1988 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री राजीव गाँधी ने चीन की यात्रा करके दोनों देशों के बीच दरार को कम करने की कोशिश की। सन् 1991 में चीनी प्रधानमन्त्री ली पेंग भारत आए तथा आर्थिक सम्बन्धों को बढ़ाने का आश्वासन दिया। 1993-94 में तत्कालीन प्रधानमन्त्री नरसिम्हा राव ने भी सीमा विवाद सुलझाने तथा आर्थिक सहयोग को परस्पर बढ़ाने की दिशा में ठोस पहल की। 2003 में भारत ने तिब्बत पर चीनी दावे को भी स्वीकार कर लिया।
2005 में चीनी प्रधानमन्त्री बेन जियाबाओं ने भारत यात्रा की तथा सिक्किम पर अपनी दावेदारी को नकारा। नवम्बर 2006 में चीनी राष्ट्रपति हू जिन्ताओ की भारत यात्रा के दौरान भी दोनों देशों के बीच आर्थिक-राजनीतिक सम्बन्ध मजबूत बनाने तथा सीमा विवाद सुलझाने जैसे अहम मुद्दे पर सार्थक बातचीत हुई।
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चीन का रवैया भारत के प्रति कभी भी सकारात्मक नहीं रहा है। जब से भारत ने अमेरिका के साथ असैन्य परमाणु समझौता किया है, तब से चीन की बेचैनी और बढ़ गई है। चीन दक्षिण एशिया में भारतीय प्रभाव को कम करने के दृष्टिकोण से पाकिस्तान के साथ सैन्य साझेदारी को नए आयामों तक पहुँचाने के साथ-साथ भारत के बाकी पड़ोसियों, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार और नेपाल के साथ भी सैन्य सहयोग बढ़ा रहा है। चीन ने जम्मू कश्मीर के भारतीय पासपोर्ट धारकों को अलग से वीजा जारी कर सीमा विवाद को और बढ़ाने का कार्य किया है। इसके साथ ही चीन ने कश्मीर को एक अलग देश के रूप में दिखलाना शुरू किया।
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कई बार चीन ने सिक्किम तथा अरुणाचल प्रदेश को अपना हिस्सा कहने की गलती की है। भारतीय चिन्ताओं को नजरअन्दाज करते हुए चीन ब्रह्मपुत्र नदी के प्रवाह को मोड़ने की परियोजना पर काम कर रहा है। इस तरह चीन की गतिविधियों भारत के सामरिक तथा प्रतिरक्षा हितों के अनुकूल नहीं कही जा सकतीं। भारत को सामरिक मोर्चे पर चारों तरफ से घेरने की तैयारी चीन काफी पहले से कर रहा है। वह भारत से जुड़ी तिब्बत की सीमा पर चौड़ी लेन वाली सड़कों का जाल बिछा रहा है, जिसका दुरुपयोग वह सैन्य गतिविधियों के लिए कर सकता है।
यद्यपि दोनों देशों के सम्बन्धों के सुधार एवं सीमा विवाद के हल के प्रयास 1968 से शुरू हो गए थे, किन्तु इन प्रयासों का सकारात्मक परिणाम अभी तक सामने नहीं आया है, जबकि अन्य मुद्दों जैसे व्यापार, विज्ञान एवं तकनीकी आदि क्षेत्रों में अब तक अनेक समझौते दोनों देशों के बीच हो चुके हैं, किन्तु दोनों देशों के सम्बन्ध अभी भी सन्देह के वातावरण में ही आगे बढ़ रहे है। जनवरी, 2008 में प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की चीन यात्रा के समय 21वीं शताब्दी का साझा लक्ष्य नामक दस्तावेज जारी किया गया, जिसमें दोनों देशों द्वारा तय • किया गया था कि सीमा विवाद के रहते हुए भी दोनों अन्य क्षेत्रों में सहयोग को आगे बढ़ाएँगे।
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सम्बन्धों में सुधार के लिए दोनों देशों के प्रधानमन्त्री कार्यालयों के बीच सीधी हॉटलाइन सेवा की शुरूआत 2010 में हुई। इससे दोनों देशों के प्रधानमन्त्री किसी भी समय एक-दूसरे के साथ सीधे सम्पर्क कर सकते हैं। अप्रैल, 2010 में बीजिंग में हुए दोनों देशों के प्रतिनिधिमण्डल स्तर की वार्ता में विदेश मन्त्री एस. एम. कृष्णा के नेतृत्व में भारतीय प्रतिनिधिमण्डल ने पाक अधिकृत कश्मीर में चीन द्वारा कराए जा रहे विकास कार्यों एवं जम्मू-कश्मीर के निवासियों के पासपोर्ट पर नत्थी वीजा जारी करने के चीन के रवैये पर कड़ी आपत्ति व्यक्त की। आशा की जा सकती है कि सीमा विवाद का स्थायी हल होने के बाद दोनों देशों के बीच पूर्णतः सहयोगपूर्ण सम्बन्ध स्थापित हो पाएंगे।