भारत पाकिस्तान सम्बन्ध पर निबंध:- ब्रिटिश नीति के तहत भारत विभाजन की योजना के अनुपालन में 14 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान एवं 15 अगस्त, 1947 को भारत को आजादी मिली। 1947 के पहले पाकिस्तान नामक कोई राष्ट्र था ही नहीं। मुस्लिमों के हित के नाम पर अलग राष्ट्र की माँग बीसवीं सदी के पहले दशक से ही शुरू हो गई थी। हालांकि इसके पीछे राजनीतिक स्वार्थ एवं सत्तालोलुपता प्रधान कारण थे, इसलिए इस माँग का विरोध होता रहा।
भारत पाकिस्तान सम्बन्ध पर निबंध

अंग्रेजों की चालबाजी एवं कुछ नेताओं के राजनीतिक स्वार्थ के परिणामस्वरूप अन्ततः भारत का विभाजन हुआ। पैतृक सम्पत्ति के बँटवारे के बाद भी जैसे दो भाइयों में विवाद जारी रहता है, ठीक उसी प्रकार विभाजन के बाद भी दोनों देशों के सम्बन्ध में खटास बनी हुई है। दोनों देशों के सम्बन्धों की इस खटास ने एक ऐसा शून्य उत्पन्न कर दिया है, जो शायद ही कभी मरे।
भारत-पाक सम्बन्धों की जहाँ तक बात है तो भारत का रवैया पाकिस्तान के प्रति हमेशा से सकारात्मक ही रहा है, किन्तु पाकिस्तान ने शुरू से ही भारत के प्रति अपना रवैया शत्रुतापूर्ण रखा है। स्वतन्त्र होने के वर्ष ही पाकिस्तान ने 22 अक्टूबर, 1947 को कश्मीर पर आक्रमण कर दिया, जिसके फलस्वरूप हुए युद्ध में उसकी पराजय हुई। इस युद्ध का कारण था कश्मीर विवाद माउण्टबेटन योजना में यह घोषणा की गई थी. कि देशभर के रियासत चाहे तो भारत एवं पाकिस्तान के साथ मिलें या फिर स्वतन्त्र रहें।
इस योजना का लाभ उठाते हुए कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने अपनी रियासत का विलय भारत व पाकिस्तान किसी भी देश में न करने का फैसला किया, किन्तु जब पाकिस्तान ने कश्मीर पर कब्जा करने के उद्देश्य से आक्रमण किया तब उन्होंने भारत के साथ कश्मीर विलय की सन्धि पर हस्ताक्षर कर दिए।
पाकिस्तान के आक्रमण के बाद भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब देते हुए उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया। सेना उस समय चाहती तो और भी आगे तक कब्जा कर सकती थी, किन्तु तत्कालीन प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू ने इस मसले को संयुक्त राष्ट्र संघ में ले जाना उचित समझा।
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हालांकि संयुक्त राष्ट्र में इस मसले के जाने के बाद ‘युद्ध विराम तो लग गया, किन्तु इस विवाद का समाधान अब तक नहीं हो सका है। इसी विवाद को लेकर अब तक दोनों देशों के बीच चार बार युद्ध हो चुका है एवं सभी में पाकिस्तान को हार का मुँह देखना पड़ा है, बावजूद इसके उसके रवैये में सुधार देखने को नहीं मिला है। पाकिस्तान कश्मीर घाटी पर कब्जा करने के उद्देश्य से न केवल कूटनीतिक चाल चलता रहता है, बल्कि कश्मीर घाटी में हो रही आतंकवादी घटनाओं एवं सीमापार की घुसपैठों के पीछे भी प्रायः पाकिस्तान का ही हाथ रहता है।
पाकिस्तानी सेना की कश्मीर घुसपैठ
अप्रैल, 1965 में जब पाकिस्तानी सेना की दो टुकड़ियों ने कच्छ के रन तथा कश्मीर में घुसपैठ प्रारम्भ की, तो यह भारतीय सेना को नागवार गुजरा। नतीजतन, देशों के मध्य युद्ध प्रारम्भ हो गया। हालाँकि संयुक्त राष्ट्र संघ में सुरक्षा परिषद् के प्रस्ताव के कारण 22 सितम्बर, 1965 को युद्ध विराम लग गया था, लेकिन इसमें पहले इस युद्ध में पाकिस्तान को हार का मुँह देखना पड़ा था।
युद्ध की समाप्ति के बाद सोवियत रूस के प्रयत्नों के फलस्वरूप दोनों देशों के बीच 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद समझौता हुआ। हालांकि इस समझौते के दौरान तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री श्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय तरीके से मौत हो गई, जिसके पीछे राजनीतिक षड्यन्त्र होने की बात भी कही गई, फिर भी इस समझौते के फलस्वरूप दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार की आशा की जाने लगी।
भारतीय सीमा में बांग्लाभाषी शरणार्थी
कुछ वर्ष ठीक गुजरे, किन्तु भारत-पाक के सम्बन्धों की कटुता में 1971 में पुनः वृद्धि हुई। इस वर्ष पूर्वी पाकिस्तान में याह्या खाँ के अत्याचारों के फलस्वरूप गृह-युद्ध छिड़ गया और लाखों की संख्या में पूर्वी पाकिस्तान के बांग्लाभाषी लोग अपनी जान बचाने के लिए भारतीय सीमा में प्रवेश कर गए। धीरे-धीरे इन शरणार्थियों की संख्या लगभग 1 करोड़ तक पहुँच गई। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान के शरणार्थियों के साथ मानवीय व्यवहार किया तथा उनके लिए भोजन एवं आश्रय की व्यवस्था की।
इससे क्षुब्ध होकर 2 दिसम्बर, 1971 को पाकिस्तानी वायुयानों ने भारत के हवाई अड्डों पर भीषण बमबारी शुरू कर दी। विवश होकर भारत को जवाबी हमला करना पड़ा। कई दिनों तक दोनों देशों के बीच भयंकर युद्ध चलता रहा। अन्ततः पाकिस्तान की पराजय हुई एवं भारतीय प्रयासों से पूर्वी पाकिस्तान, बांग्लादेश के रूप में अस्तित्व में आया। इसके बाद दोनों देशों के बीच संघर्ष को समाप्त करने के उद्देश्य से 3 जुलाई, 1972 को शिमला समझौता हुआ।
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इस समझौते के तहत भारत ने आत्मसमर्पण कर चुके पाकिस्तान के 90000 सैनिकों और युद्ध में कब्जा किए गए क्षेत्र को पाकिस्तान को वापस लौटा दिया। युद्ध में कब्जा किए गए क्षेत्र को वापस करने के कारण शिमला समझौते को भारत-पाक सम्बन्धों में आज तक की सबसे बड़ी कूटनीतिक विफलता माना जाता है।
1971 का भारत-पाक युद्ध / और कारगिल युद्ध
1971 के भारत-पाक युद्ध एवं 1972 में शिमला समझौते के बाद 1976 में दोनों देशों के बीच फिर से राजनीतिक एवं व्यापारिक सम्बन्ध कायम होने शुरू हुए, किन्तु 1979 में अफगानिस्तान पर सोवियत रूस के आक्रमण के बाद स्थिति पहले जैसी हो गई, क्योंकि भारत सोवियत रूस का पक्षधर था एवं पाकिस्तान अफगानिस्तान का। इसके बाद 1985 में दोनों देशों के बीच मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करने के कुछ प्रयास हुए, किन्तु सफलता नहीं मिली।
1998 में दोनों देशों ने परमाणु परीक्षण किए, जिससे इनके आपसी तनाव में वृद्धि हुई। फरवरी, 1999 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐतिहासिक लाहौर बस यात्रा के माध्यम से भारत की ओर से मित्रता की पहल करने की कोशिश की, किन्तु उसी वर्ष अप्रैल में पाकिस्तान ने कारगिल में घुसपैठ कर अपनी मंशा जता दी।
कारगिल में पाकिस्तान को तो उसके आक्रमण का जवाब मिल गया, किन्तु दोनों देशों के सम्बन्ध और अधिक खराब हो गए। इसके बाद दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार के लिए 2001 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी और पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के बीच आगरा सम्मेलन हुआ, किन्तु पाकिस्तान के कश्मीर मुद्दे पर अड़ जाने के कारण इसमें भी सफलता नहीं मिली।
भारतीय की संसद पर आतंकी हमला
“भारत-पाक सम्बन्ध में और कटुता तब आई जब पाकिस्तान ने एक साजिश के तहत 13 दिसम्बर, 2001 को भारतीय संसद पर आतंकी हमला किया। इस हमले के बाद 2003 तक दोनों देशों के बीच सम्बन्ध अत्यन्त तनावपूर्ण रहे। 20 जनवरी, 2006 को लाहौर एवं अमृतसर के बीच बस सेवा प्रारम्भ होने से दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार होने की उम्मीद की गई, किन्तु 26 नवम्बर, 2008 में पाकिस्तान के आतंकवादियों द्वारा मुम्बई में हुए आतंकी हमले के बाद यह स्पष्ट हो गया कि पाकिस्तान अपनी गतिविधियों से बाज नहीं आएगा।
स्थिति और भी बुरी तब हो गई जब भारत द्वारा इस हमले में पाकिस्तानी हाथ होने के सबूत प्रस्तुत करने के बावजूद पाकिस्तान ने आतंकवादियों के विरुद्ध कार्यवाही में कोई रुचि नहीं दिखाई। भारत-पाकिस्तान (भारत पाकिस्तान सम्बन्ध पर निबंध) के आपसी सम्बन्धों में सुधार के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी कई प्रयास किए गए हैं, किन्तु पाकिस्तानी रवैये के कारण अब तक सफलता नहीं मिली है। कई बार क्रिकेट की बिसात पर दोनों देशों के मध्य सम्बन्धों को सुधारने की पहल की गई।
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ऐसी एक पहल क्रिकेट विश्वकप 2011 में भी देखने को मिली, जब भारतीय प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह एवं पाकिस्तानी प्रधानमन्त्री यूसुफ रजा गिलानी मोहाली (चण्डीगढ़) में साथ-साथ भारत पाकिस्तान का क्रिकेट सेमीफाइनल मैच का आनन्द उठाते दिखे। क्रिकेट कूटनीति से दोनों देशों के सम्बन्धों के नतीजे भी वही ढाक के तीन पात ही रहे यानी सम्बन्धों में तनातनी अभी भी बनी हुई है।
बहरहाल, दोनों देशों के सम्बन्धों में सुधार नहीं होने के कुछ राजनीतिक कारण भी हैं। दुर्भाग्य से इस बीच पाकिस्तान में जितने भी शासक आए वे भारत विरोधी मानसिकता के थे। आशा की जा सकती है कि आने वाले समय में पाकिस्तान की राजनीति में बदलाव के बाद दोनों देशों के बीच मधुर सम्बन्धों की शुरुआत होगी