भारत-रूस सम्बन्ध पर निबंध:- बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जब विश्व दो घुरियों में बँट चुका था, तब भारत ने किसी भी गुट में शामिल न होते हुए गुटनिरपेक्ष रहने में ही भलाई समझी। ये दो गुट संयुक्त राज्य अमेरिका एवं सोवियत संघ के थे। संयुक्त राज्य अमेरिका ने बेशक भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति के खिलाफ कटुता का प्रदर्शन किया, किन्तु भारत के गुटनिरपेक्ष होने के बावजूद सोवियत संघ से इसके सम्बन्ध काफी मधुर एवं घनिष्ठ रहे।
यद्यपि भारत- सोवियत सम्बन्ध के कुछ राजनीतिक कारण भी थे, लेकिन सोवियत संघ का भारत के प्रति रवैया न केवल सकारात्मक रहा, बल्कि उसने हमेशा समय-समय पर आर्थिक एवं सामरिक मदद भी की। इसके परिणामस्वरूप भारत के सम्बन्ध अमेरिका से तो बिगड़ते चले गए, किन्तु सोवियत संघ से इसके सम्बन्ध और मजबूत होते गए।
भारत-रूस सम्बन्ध पर निबंध

सोवियत संघ ने गुटनिरपेक्ष देशों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध की नीति बनाई थी, इसलिए भी भारत के साथ उसने अच्छे सम्बन्ध कायम रखे। इन सम्बन्धों को 1955 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री जवाहरलाल नेहरू की रूस यात्रा एवं तत्कालीन सोवियत रूसी नेता खुश्चेव की भारत यात्रा से मजबूती मिली। इसके बाद सोवियत रूस ने कश्मीर मुद्दे पर भारत का न केवल समर्थन करना शुरू किया, बल्कि आर्थिक एवं सैन्य सहायता भी दी।
Essay on Bharat Russia Sambandh in Hindi
1965 के भारत-पाक युद्ध के बाद रूस ने मध्यस्थता कर दोनों देशों के साथ ताशकंद समझौता करवाया। अगस्त 1971 में दोनों देशों ने शान्ति, मित्रता एवं सहयोग सम्बन्धी एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। इसके फलस्वरूप भारत को 1971 के भारत-पाक युद्ध में काफी सहायता मिली। बदले में भारत ने भी हमेशा सोवियत रूस की नीतियों का समर्थन किया। 1979 में जब रूस ने अफगानिस्तान पर हमला किया, तब भी भारत एक मित्र देश होने के नाते सोवियत रूस के समर्थन में खड़ा नजर आया।
दिसम्बर 1991 में सोवियत रूस के विघटन के बाद रूस की स्थिति अपेक्षाकृत कमजोर हो गई। इसलिए रूस के लिए यूरोप के देशों से बेहतर सम्बन्ध रखना उसके आर्थिक विकास के दृष्टिकोण से आवश्यक हो गया और उसने ऐसा ही किया। इस दौरान भारत से उसके सम्बन्ध सामान्य बने रहे, किन्तु रुसी व्यापार एवं सम्बन्ध के केन्द्र में यूरोप के विकसित राष्ट्र एवं एशिया के जापान एवं चीन जैसे विकसित देश थे।
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1993 में जब रूस के तत्कालीन राष्ट्रपति भारत की यात्रा पर आए तो उन्होंने 1971 में हुए ‘भारत- सोवियत रूस समझौते का नवीनीकरण किया। यद्यपि इस नवीनीकरण में सुरक्षा सम्बन्धी पक्षों को हटा दिया गया था, फिर भी इस समझौते से दोनों देशों को आपसी सम्बन्धों के सुधार में सहायता मिली। इसके बाद 1994 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री पी. वी. नरसिम्हा राव रूस की यात्रा पर गए एवं दोनों देशों के आपसी सहयोग को सुदृढ़ बनाने सम्बन्धी मास्को घोषणापत्र पर रूसी राष्ट्रपति येल्तसिन के साथ हस्ताक्षर किए। उस समय दोनों नेताओं ने बहुसांस्कृतिक राष्ट्रों के हितों की सुरक्षा सम्बन्धी एक और मास्को घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किए।
इसके परिणामस्वरूप दोनों देशों के अन्तर्राष्ट्रीय एवं द्विपक्षीय सद्भावना में वृद्धि हुई तथा रूस की ओर से भारत को सैन्य उपकरणों का निर्यात पुनः शुरू हुआ। इसके अतिरिक्त दिसम्बर 1994 में दोनों देशों के बीच 8 अन्य समझौतों पर हस्ताक्षर हुए, जिनसे भारत-रूस के सम्बन्धों में और अधिक निकटता आई। इन समझौतों में सैन्य एवं तकनीकी सहयोग, जहाजरानी, द्विपक्षीय निवेशों की सुरक्षा, व्यापार व अन्तरिक्ष सहयोग सम्बन्धी समझौते शामिल थे। मार्च 1995 में दोनों देशों ने हथियारों के गैर-कानूनी व्यापार और नशीले पदार्थों को रोकने सम्बन्धी समझौते पर भी हस्ताक्षर किए।
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सोवियत संघ के विघटन के बाद पश्चिमी देशों से सम्बन्ध रूस की आवश्यकता थी, किन्तु जब पश्चिमी 1 देशों से रूस को आवश्यक सहयोग उसकी उम्मीद के अनुरूप नहीं मिला, तो उसने अपने पुराने मित्रों की ओर रुख किया एवं इसी क्रम में भारत से अपने सम्बन्धों को फिर से सुदृढ़ करने के प्रयासों पर अमल करना शुरू कर दिया। सैन्य आवश्यकताओं एवं राजनीतिक अवसरवाद तथा संयुक्त राष्ट्र की सुरक्षा परिषद् में स्थायी सदस्यता का पक्ष लेने के लिए भारत भी रूस के साथ सम्बन्धों में पहले जैसी गर्माहट चाहता था। इस दिशा में सार्थक प्रयास अक्टूबर 2000 में प्रारम्भ हुए जब तत्कालीन रूसी प्रधानमन्त्री भारत यात्रा पर आए।
स यात्रा के दौरान दोनों देशों ने सामरिक भागीदारी सम्बन्धी एक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए। इसके अतिरिक्त द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत बनाने की दिशा में दस अन्य समझौतों पर भी हस्ताक्षर किए गए। इस घोषणा-पत्र में भारत-रूस सम्बन्धों के सभी पक्षों जैसे राजनीतिक, प्रतिरक्षा, अर्थ एवं वाणिज्य, विज्ञान एवं तकनीकी तथा सांस्कृतिक आदि की दीर्घकालिकता पर विस्तारपूर्वक बात कही गई। द्विपक्षीय वार्ता की समाप्ति पर जारी संयुक्त वक्तव्य ने भी विभिन्न द्विपक्षीय, क्षेत्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय मसलों पर भारत एवं रूस के रुख को स्पष्ट करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।
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नवम्बर 2001 में जब तत्कालीन भारतीय प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी रूस की यात्रा पर गए, तब भारत एवं सोवियत रूस के सम्बन्धों का एक नया अध्याय शुरू हुआ। इसके बाद, दिसम्बर 2002 में रूसी राष्ट्रपति पुतिन दूसरी बार भारत यात्रा पर आए। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों की सामरिक सहभागिता को और प्रगाढ़ बनाने सम्बन्धी एक घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए गए। दोनों देशों के नेताओं की इन आधिकारिक यात्राओं के परिणामस्वरूप राजनीतिक, प्रतिरक्षा, आर्थिक, वैधानिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोणों से अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अनेक समझौतों पर सहमति बनी। दोनों देशों ने 2007 में व्यापार, निवेश एवं आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए ‘इण्डिया-रशिया फोरम ऑन ट्रेड एण्ड इन्वेस्टमेन्ट’ का गठन किया, जिसकी पहली बैठक 12-13 फरवरी, 2007 को नई दिल्ली में हुई।
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रुसी प्रधानमन्त्री मेदवदेव की दिसम्बर 2008 की भारत यात्रा और भारतीय प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की इसी वर्ष रूस-यात्रा से भी दोनों देशों के सम्बन्धों में और मधुरता आई। दोनों देशों के सांस्कृतिक सम्बन्धों को दृढ़ता प्रदान करने के दृष्टिकोण से 2008 में भारत में रूस का वर्ष मनाया गया। इसके बाद 2009 में रूस में भी भारत का वर्ष मनाया गया। दोनों देशों ने आतंकवाद से मुकाबला करने के लिए हमेशा साथ रहने का वादा किया है। 7 नवम्बर, 2009 को भारत ने रूस के साथ एक नाभिकीय समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे दोनों देशों के सम्बन्ध और भी बेहतर हुए हैं।