हमारी सामाजिक समस्या पर निबंध:- मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहते हुए उसे समाज द्वारा बनाए गए नियमों का पालन अनिवार्य रूप से करना होता है। यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो इससे सामाजिक मूल्यों का ह्रास तो होता ही है, साथ ही बहुत-सी सामाजिक समस्याओं (Essay on Our Social Problems in Hindi) को पनपने का मौका भी मिलता है। धार्मिक कट्टरता, जाति-प्रथा, अन्धविश्वास, नारी शोषण, दहेज-प्रथा, सामाजिक शोषण, बेरोजगारी, अशिक्षा, जनसंख्या वृद्धि, भ्रष्टाचार गरीबी इत्यादि हमारी प्रमुख सामाजिक समस्याएँ हैं।
हमारी सामाजिक समस्या पर निबंध

ऐसा नहीं है कि ये सभी सामाजिक समस्याएँ हमेशा से हमारे समाज में विद्यमान रही हैं। कुछ समस्याओं की जड़ में धार्मिक कुरीतियाँ हैं, तो कुछ ऐसी समस्याएँ (हमारी सामाजिक समस्या पर निबंध) भी हैं जिन्होंने सदियों की गुलामी के बाद समाज में अपनी जड़ें स्थापित कर लीं, जबकि कुछ समस्याओं के मूल में दूसरी पुरानी समस्याएँ रही हैं। आइए कुछ उल्लेखनीय सामाजिक समस्याओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
1. धार्मिक कट्टरता
इतिहास साक्षी है कि अनेक धर्मों, जातियों एवं भाषाओं वाला यह देश अनेक विसंगतियों के बावजूद सदा एकता के एक सूत्र में बँधा रहा है। यहाँ अनेक जातियों का आगमन हुआ और उनकी परम्पराएँ, विचारधाराएँ और संस्कृति इस देश के साथ एकरूप हो गईं। इस देश के हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे रहते हैं। कहा जा सकता है कि धार्मिक कट्टरता के मूल में कुछ स्वार्थी लोगों का हाथ है।
2. जाति प्रथा
प्राचीन काल में हमारे देश में गुण एवं कर्म के अनुसार वर्ण-व्यवस्था का निर्धारण किया गया था। एक व्यक्ति जो मन्दिर में पूजा कराता एवं बच्चों को शिक्षा प्रदान करता था, वह ब्राह्मण कहलाता था, जबकि उसी का बेटा यदि समाज की रक्षा के कार्य में संलग्न रहता था, तो उसे क्षत्रिय माना जाता था अर्थात् जाति-निर्धारण का आधार व्यक्ति का कर्म था। किन्तु, समय के अनुसार वर्ण-व्यवस्था विकृत हो गई और जाति-निर्धारण का आधार कर्म न होकर जन्म हो गया।
फिर धीरे-धीरे ऊँच-नीच, छुआ-छूत इत्यादि सामाजिक बुराइयों ने अपनी जड़ें जमा ली। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद जाति प्रथा हमारे समाज के लिए तब अभिशाप बन गई, जब क्षुद्र एवं स्वार्थी राजनेताओं ने जातिवाद की राजनीति कर हमारी एकता एवं अखण्डता को चोट पहुँचाना शुरू कर दिया। जातिवाद समाज के विघटन के लिए सर्वाधिक जिम्मेदार रहा है।
3. अन्धविश्वास
धर्म एवं ईश्वर की आड़ में कुछ स्वार्थी लोग गरीब एवं भोली-भाली जनता को मूर्ख बनाते हैं। समाज में अन्धविश्वास के मूल में धार्मिक आडम्बर एवं ईश्वर का भय ही है। भूत-प्रेत, ईश्वर के नाम पर चढ़ावा एवं बलि ये सब अन्धविश्वास के ही रूप है। इनके कारण सामाजिक प्रगति बाधित होती है।
4. नारी शोषण
कहा जाता है- ‘यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता”, अर्थात् जहाँ नारी की पूजा होती है, वहीं देवता निवास करते हैं। किन्तु यह दुर्भाग्य की बात है कि आज नारियों का शोषण हो रहा है। यद्यपि हमारे संविधान में नारियों को भी पुरुषों के समान अधिकार प्राप्त हैं, किन्तु दुर्भाग्यवश ये न केवल अपने घर में बल्कि बाहर भी वह शोषण एवं हिंसा का शिकार होती हैं। कन्या भ्रूण हत्या, बेमेल विवाह, सती प्रथा, दहेज प्रथा, बलात्कार आदि नारी शोषण के कुछ उदाहरण हैं।
5. दहेज प्रथा
प्राचीन काल में विवाह संस्कार के पश्चात् कन्या को उसके माता-पिता एवं सम्बन्धी अपने सामर्थ्य अनुसार उपहार दिया करते थे। कालान्तर में कन्या को मिलने वाले इसी स्त्री धन’ ने दहेज का रूप धारण कर लिया। पहले जहाँ कन्या पक्ष की ओर से इसे स्वेच्छा (हमारी सामाजिक समस्या पर निबंध) से दिया जाता था, वहीं अब यह वर पक्ष की एक अनिवार्य शर्त होती है। इस कुप्रथा के कारण दहेज दे पाने में असमर्थ माता-पिता अपनी सुयोग्य एवं सुशील कन्या का विवाह बेमेल वर से करने को बाध्य हो जाते हैं।
6. अमीरों द्वारा गरीबों का शोषण
धनिक वर्ग के लोगों द्वारा गरीबों का शोषण देश की एक बड़ी सामाजिक समस्या है। कुछ स्वार्थी लोग बेरोजगार युवकों को नौकरी देने के नाम पर या अन्य प्रलोभन देकर शोषण करते हैं। मजदूरों को ठेकेदार कम मजदूरी देते हैं, जिससे कम पैसे में उनके लिए घर खर्च चलाना मुश्किल हो जाता है, कुपरिणामस्वरूप गरीब एवं बेरोजगार लोग आपराधिक गतिविधियों में लिप्त हो जाते हैं।
7. बेरोजगारी
बेरोजगारी अथवा बेकारी का अर्थ होता है कार्यसक्षम होने के बावजूद व्यक्ति को आजीविका के लिए कोई काम नहीं मिलना। एक बेरोजगार व्यक्ति के सामने रोजी-रोटी का संकट होता है। बेरोजगारी की वजह से वह मानसिक रूप से परेशान रहता है। ऐसे में एक बेरोजगार मनुष्य का बुरे कार्यों में संलग्न हो जाना सामान्य सी बात होती है।
8. अशिक्षा
अशिक्षा हमारे देश की एक बड़ी सामाजिक समस्या है। शिक्षा के अभाव में समाज के विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। आँकड़े बताते हैं कि भारत की लगभग तीस प्रतिशत आबादी अभी भी अशिक्षित है तथा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की स्थिति और भी दयनीय है। लगभग चालीस प्रतिशत महिलाएँ अशिक्षित हैं। अशिक्षा के कारण न केवल देश का सामाजिक बल्कि आर्थिक विकास भी बाधित होता है।
9. जनसंख्या वृद्धि
जनसंख्या वृद्धि हमारे समाज की कई बुराइयों की जड़ है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत की जनसंख्या 1 अरब 21 करोड़ के आँकड़े को पार कर गई। ऐसे में तेजी से बढ़ रही जनसंख्या के लिए वृद्धि के अनुपात में आवश्यक वस्तुओं का उत्पादन न होने की स्थिति में महँगाई का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है। इसके अतिरिक्त बढ़ती जनसंख्या के अनुपात में रोजगार के अवसर सृजित नहीं होने के कारण बेरोजगारी एवं गरीबी में भी वृद्धि होती है, जो आगे अनेक सामाजिक समस्याओं एवं बुराइयों की जड़ बनती है।
10. भ्रष्टाचार
रिश्वत, खाद्य पदार्थों में मिलावट, मुनाफाखोरी, कालाधन, झूठे वायदे, भाई-भतीजावाद, जातिवाद, लालफीताशाही तथा स्वार्थ में पद एवं सत्ता का दुरुपयोग आदि भ्रष्टाचार के ऐसे रूप हैं, जो हमारे सामाजिक मूल्यों का निरन्तर ह्रास कर रहे हैं। आज धर्म, शिक्षा, राजनीति, प्रशासन, कला, मनोरंजन, खेल-कूद इत्यादि सभी क्षेत्रों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
गरीबी, बेरोजगारी, सरकारी कार्यों का विस्तृत क्षेत्र, महँगाई, नौकरशाही का विस्तार, लालफीताशाही, अल्पवेतन, प्रशासनिक उदासीनता, कम समय में अधिक रुपये कमाने की तमन्ना, भ्रष्टाचारियों को सजा में देरी, अशिक्षा, अत्यधिक प्रतिस्पर्द्धा, महत्त्वाकांक्षा इत्यादि कारणों से भी भारत में भ्रष्टाचार में वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार की वजह से जहाँ लोगों का नैतिक एवं चारित्रिक पतन हुआ है, वहीं दूसरी ओर देश को भी आर्थिक क्षति उठानी पड़ी है।
11. गरीबी
गरीबी अथवा निर्धनता उस स्थिति को कहा जाता है, जिसमें व्यक्ति अपने जीवन की बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में असमर्थ रहता है। गरीबी चोरी, अपहरण, हत्या, डकैती, नशाखोरी, वेश्यावृत्ति जैसी बुराइयों की जड़ है। गरीब व्यक्ति किसी भी प्रकार का अपराध करने के लिए विवश हो सकता है। भारत जैसे लोकतान्त्रिक देश में घोर गरीबी शर्म की बात है। भारत के करोड़ों लोग आज भी गरीबी जन्य फटेहाल जीवन जीने को विवश हैं।
समस्याओं का समाधान
देश एवं समाज की वास्तविक प्रगति के लिए उक्त समस्याओं का शीघ्र समाधान आवश्यक है। इसका दायित्व मात्र राजनेताओं अथवा प्रशासनिक अधिकारियों का ही नहीं है बल्कि इसके लिए सबको मिल-जुलकर प्रयास करना होगा। जहाँ तक बेरोजगारी की समस्या के समाधान का सवाल है, तो केवल सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन से इसका समाधान नहीं हो सकता, क्योंकि सच्चाई यह है।
कि सार्वजनिक ही नहीं निजी क्षेत्र के उद्यमों की सहायता से भी हर व्यक्ति को रोजगार देना किसी भी देश की सरकार के लिए सम्भव नहीं। बेरोजगारी की समस्या का समाधान तब ही सम्भव है, जब व्यावहारिक एवं व्यावसायिक रोजगारोन्मुखी शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित कर लोगों को स्वरोजगार अर्थात् निजी उद्यम एवं व्यवसाय प्रारम्भ करने के लिए प्रेरित किया जाए।
बेरोजगारी को कम करने से गरीबी को कम करने में भी मदद मिलेगी। भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए सबसे पहले इसके कारणों, गरीबी, बेरोजगारी, पिछड़ापन आदि को दूर करना होगा। भ्रष्ट अधिकारियों को सजा दिलवाने के लिए दण्ड प्रक्रिया एवं दण्ड संहिता में संशोधन कर कानून को और कठोर बनाए जाने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार को दूर करने के लिए योजनाबद्ध तरीके से अभियान चलाए जाने की जरूरत है।
जीवन मूल्यों की पहचान कराकर लोगों को नैतिक गुणों, चरित्र एवं व्यावहारिक आदर्शों की शिक्षा द्वारा भी भ्रष्टाचार को काफी हद तक कम किया जा सकता है। यदि बेरोजगारी, गरीबी, जनसंख्या वृद्धि, नारी-शोषण, अशिक्षा एवं भ्रष्टाचार जैसी सामाजिक समस्याओं का समाधान हो गया तो शेष समस्याओं का समाधान स्वतः ही हो जाएगा।
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