गांव का देवता: एक एक था कुम्हार यह मिट्टी के बर्तन, पढ़े और खिलौने बनाकर बेचता था। इन सब चीजों को बनाने के लिए जब उसे मिट्टी की जरूरत पड़ती तो वह गांव के बाहर तालाब के किनारे से मिट्टी ले आता। उसकी बनाई हुई चीजें गांव वाले अच्छे दामों में खरीद कर ले जाते थे। इसी से उसका गुजारा अच्छी तरह हो जाता था। परंतु अपने इस जीवन से कुम्हार संतुष्ट नहीं था। वह बहुत अमीर बनना चाहता था।
गांव का देवता

गांव का देवता
एक दिन की बात है, कुम्हार तालाब के किनारे मिट्टी लाने गया। वहां जाकर वह अभी मिट्टी खोद ही रहा था कि अचानक उसे किसी के हंसने की आवाज सुनाई दी। आवाज सुनकर कुम्हार चौक गया और इधर-उधर देखने लगा परंतु उसे वहां कोई भी दिखाई नहीं दिया।
वह फिर से मिट्टी खोदने लग गया। थोड़ी देर बाद उसे फिर उसी तरह हंसने की आवाज सुनाई दी। अब की बार घबराकर वह इधर-उधर देखने लगा। जब उसे फिर वहां कोई नहीं दिखाई दिया तो वह बहुत हैरान हुआ। उसने जोर से पुकारा- “कौन है भाई इस तरह हंस क्यों रहे हो? मेरे सामने क्यों नहीं आते?”
कुम्हार की बात सुनकर एक आवाज आई ” मैं तो तुम्हारे पीछे वाले नीम के पेड़ पर बैठा हूँ। मैं तुम्हारी नासमझी पर हंस रहा हूँ।”
यह सुनकर कुम्हार ने पीछे मुड़कर देखा। पीछे नीम के पेड़ पर एक आदमी बैठा हुआ था, जिसने रंग-बिरंगे वस्त्र पहने हुए थे।
उसे देखकर कुम्हार बोला–“अच्छा तो तुम हो? बताओ, मैंने क्या नासमझी की है?” यह सुनकर वह आदमी बोला–“तुम इतने दिनों से मिट्टी के बर्तन बनाकर बेच रहे हो। बताओ, क्या मिलता है इससे?”
कुम्हार बोला ” बस मुझे दो वक्त की रोटी मिल जाती है।
यह सुनकर वह आदमी हंसा और बोला “उह दो वक्त की रोटी, बस यही न। क्या तुम्हारे पास अच्छा मकान है, बढ़िया कपड़े हैं, और सवारी करने के लिए घोड़े हैं?”
कुम्हार ने यह बात सुनकर सिर झुका लिया और बोला–“नहीं, यह सब तो नहीं है मेरे पास। “
वह आदमी फिर बोला–“बोलो, क्या तुम यह सब चाहते हो?”
कुम्हार बोला–” क्यों नहीं!”
इस पर वह आदमी बोला–“फिर तुम्हें वह सब करना होगा, जो मैं कहता हूं। बोलो, मंजूर है।
कुम्हार बोला-“हां, हां, मैं वह सब करूंगा, जो तुम कहोगे । “
यह सुनकर वह आदमी बोला-” सुना है कि तुम्हारे गांव में एक वैद्य रहता है जो हर तरह की बीमारियों का इलाज कर सकता है। उसके इलाज के कारण तुम्हारे गांव में कोई व्यक्ति अधिक समय तक बीमार नहीं रहता है। वह वैद्य अपनी सभी जड़ी-बूटियां एक अलग झोंपड़ी में रखता है। तुम मुझे थोड़ी-थोड़ी करके वह जड़ी-बूटियां चुराकर ला दोगे, तो मैं तुम्हें मालामाल कर दूंगा। कुम्हार के मन में तो लालच घर कर चुका था। उसने बिना कुछ सोचे-समझे कहा “ठीक है, मैं आज रात से ही यह काम शुरू कर दूंगा, तुम मुझे यहीं मिलना। यहीं तुम्हें मैं वह जड़ी-बूटियां ला दिया करूंगा। परंतु मुझे अपना इनाम समय पर मिलना चाहिए।
उस रात कुम्हार ने वैद्य के घर चोरी की और तालाब के किनारे आ गया। वह आदमी वहां पर पहले से ही खड़ा था। जब उसने कुम्हार को देखा तो अपने पास से एक मुहरों से भरी थैली निकाली और कुम्हार को दे दी। कुम्हार थैली पाकर बड़ा प्रसन्न हुआ और खुशी-खुशी अपने घर वापस चला गया।
वह कई रातों तक ऐसा ही करता रहा। यहां तक कि किसी को कानों-कान भी खबर नहीं हुई। जब वैद्य को पता चला कि उसकी जड़ी-बूटियां चोरी हो रही हैं, तो वह बहुत परेशान हुआ। उसने बहुत निगरानी भी रखी परंतु वह चोर को न पकड़ सका।
आखिर एक दिन ऐसा आ पहुंचा कि वैद्य की सारी जड़ी-बूटियां चोरी हो गई और जब बीमार लोग उसके पास इलाज के लिए आते तो उसे उनको मना करना पड़ता। फलस्वरूप गांव के लोग बीमार व दुखी रहने लगे। वैद्य को नए सिरे से जड़ी-बूटियां इकट्ठी करने के लिए काफी समय चाहिए था।
उधर इन सब बातों से बेखबर कुम्हार चोरी की जड़ी-बूटियों के बदले जो मुहरें मिलती थीं, उनको एक घड़े में इकट्ठा करता जा रहा था। एक रात को जब वह कुछ आखिरी बची जड़ी-बूटियां चुराकर ले जा रहा था तो अचानक उसके पेट में जोरों से दर्द उठा। दर्द इतना तेज था कि उससे एक कदम भी आगे नहीं चला जा रहा था। वह रास्ते में ही गिर पड़ा और बेहोश हो गया।
सुबह जब लोगों ने कुम्हार को बेहोश पड़े हुए देखा तो वे उसे उठाकर वैद्य के पास ले गए। वैद्य ने उसका निरीक्षण किया और कुछ जड़ी-बूटियां लेने के लिए अपने झोंपड़े में गया। परंतु कुछ समय पश्चात ही वह निराश होकर वापस आ गया क्योंकि झोंपड़े में से कल रात बाकी बची जड़ी-बूटियां भी गायब हो गई थीं।
तभी उसको कुम्हार के पास पड़ी हुई एक पोटली दिखाई दी। उसने उत्सुकतावश उस पोटली को खोला तो उसमें कुछ जड़ी-बूटियां निकली। वैद्य को बड़ा आश्चर्य हुआ। परंतु उस समय वह सब कुछ भूलकर उन जड़ी-बूटियों से कुम्हार का इलाज करने लगा।
कुछ ही देर में कुम्हार के पेट का दर्द शांत हो गया। जब उसने अपने आसपास सब लोगों को इकट्ठा देखा तो उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। परंतु जब उसने वैद्य को भी देखा तो उसे सब कुछ याद आ गया। वह सारी बात समझ गया, तब उसे बड़ी शर्म आई।
अगले दिन रात के समय उसने सारी मुहरें इकट्ठी की तथा तालाब के किनारे आ गया। वही आदमी कुम्हार का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। कुम्हार ने उसे मुहरें देते हुए कहा- “मुझे नहीं चाहिए ऐसा धन, जो सिर्फ मुझे खुशी दें। अपनी मुहरें वापस ले लो तथा वैद्य की सारी जड़ी-बूटियां लौटा दो ताकि वह बीमार व दुखी लोगों की सेवा कर सके। “
यह सुनकर वह आदमी मुस्कराया और बोला-“मैं तो तुम्हारी परीक्षा ही ले रहा था। मुझे खुशी है कि तुम्हें अपनी भूल समझ में आ गई। जाओ, वह मुहरें भी रखो तथा वैद्य को भी उसकी जड़ी-बूटियां वापस मिल जाएंगी। हां, एक बात याद रखना। आगे से कभी बिना सोचे समझे रुपये के पीछे भत भागना। हो सके तो यह बात अपने अन्य साथियों को सभी सिखाना। यही मेरी इच्छा है।’
अगले दिन वैद्य की झोंपड़ी फिर जड़ी-बूटियों से भर गई। कुम्हार बड़ा प्रसन्न हुआ। उन मुहरों से कुम्हार ने गांव में बीमारों के लिए एक अस्पताल खुलवाया जहां सभी गरीब एवं दुखी लोगों का मुफ्त इलाज होने लगा। गांव का देवता
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