गठिया क्या है, गठिया के प्रकार कारण, लक्षण, आहार उपचार और आसन

जोड़ों के इस रोग को सामान्य भाषा में गठिया भी कहा जाता (Gathiya Kya Hai) है। आज के समय में गठिया क्या है जानना बहुत ही जरूरी है क्योंकि जोड़ों में मुख्यतः श्लेषक जोड़ों (सायनीवियल ज्वाइंट) में सूजन दर्द आदि का उभरना ही आथ्राईटिस (Arthritis) है। यह रोग शरीर को अपंग और अपाहिज बना देता है। इससे शरीर चलने-फिरने एवं हिलने-डुलने योग्य भी नहीं रह जाता है क्योंकि यह रोग जोड़ों को पूरी तरह से क्षतिग्रस्त कर देता है। इस रोग में जोड़-जोड़ में दर्द, लाली, गरमाहट एवं सूजन आ जाती है। इसमें प्रायः शरीर का भार ढोने वाले अंगों के जोड़ जैसे नितम्ब, घुटने या टखने आदि अधिक प्रभावित होते हैं। इसी प्रकार उँगलियों के पोर इत्यादि जैसे छोटे-छोटे जोड़ भी प्रभावित होते हैं।

गठिया क्या है, गठिया के प्रकार कारण, लक्षण, आहार उपचार और आसन

गठिया क्या है

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गठिया / आर्थराइटिस का शरीर विज्ञान

जोड़ों को लचीला बनाने, सहज ढंग से कार्य करने के लिए दो चीजें जरूरी हैं। पहली तो जो हड्डियाँ जोड़ बनाती हैं, उनके किनारे पूर्ण रूप से चिकने हों। यह कार्य उनके सिरों पर चिपकी कालेज द्वारा होता है। दूसरा, इनके बीच में चिकनाईयुक्त पदार्थ आवश्यक है। यह कार्य श्लेषक तेल करता है। इस प्रकार इन दोनों आवश्यक चीजों में कमी या किसी प्रकार की गड़बड़ी (गठिया क्या है) जोड़ों की कार्यशीलता को प्रभावित करती है।

जोड़ ठीक तरह से कार्य करें, इसके लिए आवश्यक है कि वे ठीक प्रकार से अस्थिबन्धों से बंधे रहें। इन जोड़ों को चिकनाई प्रदान करने के लिए इनकी आंतरिक सतह पर श्लेषक झिल्ली लगातार श्लेषक तैल बनाती एवं सोखती है। यह तेल रक्त से बनता है जो शिराओं एवं लसिकाओं (लिंफेटिक्स द्वारा सोख लिया जाता है। इस प्रकार जोड़ों में रक्त से पोषक तत्व पहुँचता है तथा उत्सर्जित पदार्थों को बाहर निकाल दिया जाता है।

इस प्रक्रिया में कहीं भी गड़बड़ी आने से वहाँ आवश्यक पोषक पदार्थ की कमी हो जाती है तथा विषाक्त पदार्थ जमते चले जाते हैं जिनके कारण वहाँ संवेदनशील स्नायु तंत्र उत्तेजित हो जाते हैं जिससे दर्द और कड़ापन बढ़ने लगता है। यदि जोड़ों में लम्बे समय तक प्राण शक्ति प्रवाह अवरुद्ध रहता है तो इनमें विकृतियाँ बढ़ने लगती हैं। इससे श्लेषक तैल की चिकनाई कम हो जाती है और जोड़ों के मुड़ने में कठिनाई उत्पन्न हो जाती है। जोड़ों में कैल्शियम आदि पदार्थ एकत्रित हो कड़ापन, सूजन और दर्द बढ़ जाते हैं एवं रोगी अपंग एवं निष्क्रिय हो जाता है।

गठिया / आर्थराइटिस के प्रकार

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में तो उसके कई प्रकार बताये हैं परन्तु योग इन्हें एक ही रोग की विभिन्न अवस्थायें मानता है जो मूलतः प्राणशक्ति की रुकावट के कारण दिखाई देती हैं। विभिन्न लक्षणों के रूप में दिखाई पड़ने वाले इस रोग का मूल कारण तो एक ही है परन्तु लक्षण उत्पन्न होने की गति एवं स्थान में भिन्नता होने के कारण इसे अलग-अलग नाम दिये जाते हैं।

1. अतियाती गठिया (एक्यूट आर्थराइटिस)

यह परिस्थितिजन्य कारणों से उत्पन्न होता है। सर्दी, खाँसी, फ्लू, बुखार, पेचिश आदि रोगों में जोड़ों में दर्द होने लगता है पर इन रोगों के ठीक होते ही यह गठिया समाप्त हो जाती है। इसके लिए इलाज की आवश्यकता नहीं होती है।

2. अस्थिक्षय गठिया (आस्टियो आर्थराइटिस)

यह अधिकतर उन लोगों में होता है जो मोटे होते हैं, गरिष्ठ भोजन करते हैं तथा कम मेहनत करते हैं। यह रोग प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में होता है। यह विशेषकर उन्हीं जोड़ों में उभरता है जहाँ पर चोट लगी होती है या फिर जन्मजात विकृति होती है। शरीर का अनावश्यक भार जोड़ों पर पड़ने पर भी उसके लक्षण दिखाई देते हैं। शरीर में कैल्शियम की अधिकता से भी यह रोग पनपता है। गले में स्थित पैराथायराइड ग्रन्थि के असन्तुलित ढंग से कार्य करने से भी यह रोग पनप सकता है।

3. वातजनित गठिया (रूमेटाइड आर्थराइटिस)

यह गम्भीर तीव्र प्रभावी बीमारी है जो जोड़ों का क्षय कर पंगु बना देती है। अधिकतर यह बीमारी युवकों एवं मध्य आयु के लोगों को होती है। इस बीमारी का कोई सुनिश्चित कारण ज्ञात नहीं है फिर भी यह माना जाता है कि किसी भावानात्मक आघात के कारण या रक्त में अचानक किसी अवांछित बाह्य पदार्थों के प्रवेश जैसे कोई तेज औषधि, तीक्ष्ण संक्रमण या एण्टिबॉडीज के जोड़ों में इकट्ठे होने के कारण हो सकता है। उनके कारण तीव्र सूजन होकर दर्द एवं क्षय की प्रक्रिया शुरु हो जाती है।

4. गाउट

भोजन की गड़बड़ी (गठिया क्या है) से यह बीमारी उत्पन्न होती है। यह अधिकतर उन लोगों को होती है जो भोजन प्रोटीन विशेषकर माँस की मात्रा अधिक लेते हैं प्रोटीन के पचने के बाद एक विषाक्त पदार्थ यूरिक एसिड पैदा हो जाता है सामान्यत: यह मूत्र के साथ बाहर निकल जाता है परन्तु गाउट के मरीजों में यह उनके शरीर से न निकल पाने के कारण उनके शरीर में ही इकट्ठा होता रहता है जो जोड़ों में संचित होकर कणों का रूप ले लेता है जो जोड़ों की क्रिया में बाधा पहुँचाकर दर्द उत्पन्न करता है।

गठिया (आर्थराइटिस) होने के कारण

व्यक्ति के मानसिक एवं भावनात्मक तनाव, रहन-सहन एवं भोजन के गलत तरीके आदि अनेक कारण हैं जो केन्द्रीय नियंत्रण प्रणाली एवं अन्तःस्रावी प्रणाली को असन्तुलित करके रोग उत्पन्न करने में सहायक होते हैं।

(1) भोजन- अधिक भोजन करने तथा तेल, घी, माँस, पशुओं की चर्बी, तले भोजन, डिब्बा बंद एवं कृत्रिक रूप से बने पदार्थ, दूध, चीनी, नमक आदि पदार्थों की अधिकता रोग की शुरुआत एवं उसे बढ़ावा देने में मुख्य भूमिका निभाते हैं। कब्ज भी इस रोग को बढ़ाने में सहायक होता है।

(2) मानसिक तनाव- कुण्ठित भावनाऐं, भय, अति सम्वेदनशीलता, व्यक्तित्व का सहजपन समाप्त कर उनमें कठोरता ले आते हैं। मानसिक कठोरता जैसे जिद्दीपन सब खो जाने का भय, असुरक्षा की भावना अन्ततः शारीरिक स्तर पर एलर्जी, अन्तःस्रावी असन्तुलन, प्रतिरोधक क्षमता में कमी, माँसपेशीय तनाव, गठिया तथा फाइब्रोसाइटिस (तंतु शोथ), कब्ज आदि को जन्म देती है।

(3) व्यायाम- नियमित रूप से व्यायाम नहीं करने से अंगों के जोड़ एवं स्नायु कड़े हो जाते हैं तथा फिर पूर्णत: हिलने-डुलने के योग्य नहीं रह पाते। कुर्सी पर बैठे रहकर कार्य करने वाले, श्रम न करने वाले व्यक्तियों के पैर, नितम्ब, मेरुदण्ड एवं कंधों की माँसपेशियाँ एवं जोड़ों का लचीलापन समाप्त हो जाता है।

आधुनिक चिकित्सा

आधुनिक चिकित्सा विज्ञान गठिया (गठिया क्या है) के दर्द को तो राहत दे सका है परन्तु अभी तक इसके वास्तविक कारणों का पता नहीं लगा पाया है। इसके पूर्ण निराकरण में भी सफल नहीं हो पाया है। इस रोग की प्रचलित चिकित्सा में एस्प्रीन, इडोमैथासीन तथा कार्टि कोस्टीरायड आदि दर्द निवारक दवाओं का सहारा लिया जाता है पर इनका कुप्रभाव ही अधिक पड़ता है। आजकल शरीर के प्रभावित जोड़ों को शल्य क्रिया द्वारा हटाकर कृत्रिम धातु का जोड़ लगाने का चलन है जो खर्चीला तो है ही पर इसको भी बदलने की जरूरत पड़ती ही है परन्तु तब रोगी की अवस्था इस आघात को सहन नहीं कर पाती।

यौगिक चिकित्सा

आर्थराइटिस (गठिया क्या है) के यौगिक उपचार की प्रक्रिया आजकल सर्वमान्य, सर्वसम्मत एवं अत्यन्त प्रभावकारी सिद्ध हो रही है। क्योंकि योग कभी रोग के मूल में स्थित भोजन, व्यायाम एवं जीवनचर्या की गड़बड़ी को ठीक किये बिना सिर्फ लक्षण मिटाने के लिए दवा खाने की सलाह नहीं देता। गठिया के रोगियों के इलाज के लिये कर्मयोग भी उतना ही आवश्यक है जितना आसन एवं प्राणायाम करना।

आसन

(1) पवनमुक्तासन जैसे: पैरों की अँगुलियाँ मोड़ना, टखने मोड़ना, उनको वृत्ताकार घुमाना, टखनों को उसकी धुरी पर घुमाना, घुटनों को मोड़ना एवं उनको उसकी धुरी पर वृत्ताकार घुमाना, मेरुदण्ड को दायें बोयें मोड़ना, अर्ध तितला, घुटने को घुमाना, पूर्ण तितली, कौआ चाल, कोहनियाँ मोड़ना एवं वृत्ताकार, कन्धों को घुमाना आदि क्रियाऐं जोड़ों को लचीला बनाती हैं। इनको योगाचार्य से पूछकर करना चाहिये।

जैसे-जैसे जोड़ों में लचीलापन बढ़ता जाये, अन्य निम्नलिखित आसनों का अपनी क्षमतानुसार अभ्यास करें-

(2) शशांकासन, (3) मार्जारी आसन, (4) भुजंगासन, आकर्षण, धनुरासन, (5) सूर्य नमस्कार – इसको 6 से 12 चक्र रोज सबेरे करने से जीवनभर आर्थ्रोइटिस के प्रभाव से मुक्त रहना संभव है। यह विकसित अवस्था में होने वाले क्षय को रोकना एवं पीड़ामुक्त करेगा ।

प्राणायाम

(1) नाड़ी- शोध प्राणायाम, (2) भस्त्रिका प्राणायाम। यह प्राणायाम नाड़ियों में प्राणशक्ति के प्रवाह को बढ़ाकर उनमें उत्पन्न हुए अवरोधों को दूर करने में सहायक सिद्ध होते हैं।

अन्य सुझाव एवं निर्देश

उक्त आसन एवं प्राणायाम करने के साथ रोगी को अपने आहार पर भी विशेष ध्यान देना आवश्यक है जिससे कि पूर्णरूपेण लाभ मिल सके।

गठिया में आहार

रोगी को उबले हुए हल्के दाने जैसे अथवा अनाज जैसे चावल, बाजरा, जौ, गेहूँ की चपाती आदि का सेवन करना चाहिये। हल्की एवं सुपाच्य दालें जैसे मूँग आदि ये प्रोटीन की आवश्यकता की पूर्ति करती है उबली या पकाई हुई हरी सब्जियों का प्रयोग भी यथेष्ट करना चाहिये। सभी प्रकार के फलों का केले को छोड़कर सेवन करना चाहिये । कम मात्रा में सूखे मेवे खाये जा सकते हैं। शक्कर के स्थान पर यदि शहद का किया जाये तो अच्छा है।

निर्देश

  1. दिन का भोजन प्रातः 10 से 12 बजे के बीच तथा शाम का भोजन 5 से 7 बजे के बीच कर लेना चाहिये। तात्पर्य यह है कि सोने से कम से कम तीन घंटे पहले भोजन अवश्य कर लेना चाहिये ।
  2. सवेरे एवं शाम के भोजन के बीच कुछ न लें तो अधिक लाभ होगा।
  3. हफ्ते में एक दिन उपवास रखना चाहिये, विशेषकर उन दिनों जब जोड़ों में दर्द अधिक हो।
  4. दूध या दूध से बने पदार्थ जैसे घी, मक्खन, पनीर, चीज का सेवन बिल्कुल न करें।
  5. डिब्बे बन्द अप्राकृतिक अथवा परिष्कृत भोज्य पदार्थ जैसे- मैदा आदि न खायें।
  6. माँस, मछली, अण्डा, प्याज इत्यादि सभी सामिष पदार्थ पूर्णत: वर्जित हैं।
  7. आहार में चीकू, केला, पका पपीता, परवल, कद्दू, टिण्डा, टमाटर, लहसुन, प्याज, मूली, अदरक, गाजर, खट्टे फल बिल्कुल न खायें।
  8. उड़द की दाल, चने की दाल, मसूर की दाल, राजमा, कदिमा, बैंगन, गोभी आदि सभी वायुकारक खाद्य पदार्थ पूर्णत: वर्जित हैं।
  9. तेज दर्द की अवस्था में आराम करना अति आवश्यक है। कार्य के बीच में भी आराम करना लाभप्रद है।
  10. विशेष जाड़े के मौसम में गर्म पानी में अंगों को डुबोकर रखने अथवा पीड़ा वाले स्थान पर सेंकने से दर्द में आराम मिलेगा क्योंकि इससे माँसपेशियाँ हल्की हो जाती हैं।
  11. रोगी को धैर्य एवं सकारात्मक तरीका अपनाना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
  12. ध्यान के अभ्यास से तनाव दूर होते हैं तथा इस रोग के निराकरण में लाभ मिलता है।

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।