गुरु नानक देव का जीवन परिचय? गुरु नानक देव पर निबंध?

गुरु नानक देव का जीवन परिचय: गुरु नानक देव का जन्म संवत् 1526 लाहौर जिले के तलवंडी गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम कालूचंद वेदी था। एवं उनकी माता का नाम तृप्ता देवी था। भारतभूमि पर समय-समय पर परिस्थितियों के अनुसार संत-महापुरुषों ने जन्म लिया है और अपने देश की दुःखद परिस्थितियों का मोचन करते हुए विश्व को सुखद संदेश दिया है। इससे हमारे देश की धरती गौरवान्वित और महिमावान हो उठी है। इनमें गुरु नानक देव का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

गुरु नानक देव का जीवन परिचय

गुरु नानक देव का जीवन परिचय
Guru Nanak Dev Ka Jeevan Parichay

Guru Nanak Dev Biography in Hindi

जन्मसंवत् 1526
जन्म स्थानलाहौर जिले के तलवंडी गाँव
पिता का नामकालूचंद वेदी
माता का नामतृप्ता देवी

जीवन परिचय

गुरु नानक देव का जन्म कार्तिक पूर्णिमा संवत् 1526 को लाहौर जिले के तलवंडी गाँव में हुआ था, जो आजकल ‘ननकाना साहब’ के नाम से प्रसिद्ध है। यह स्थान अब पाकिस्तान में है। आपके पिताश्री कालूचंद वेदी तलवंडी के पटवारी थे और आपकी माताश्री तृप्ता देवी बड़ी साध्वी और शांत स्वभाव की धर्म-परायण महिला थीं।

गुरु नानक जी बचपन से ही होनहार प्रवृत्ति के बालक थे। अतः आप किसी विषय को शीघ्र समझ जाते थे। आप एकान्तप्रेमी और चिन्तनशील स्वभाव के बालक थे। इसलिए आपका मन विद्याध्ययन और खेलकूद में न लगकर साधु-संतों की संगति में अधिक लगता था। यद्यपि घर पर ही आपको संस्कृत, अरबी और फारसी भाषा-साहित्य का ज्ञान दिया गया।

संसार के प्रति गुरु नानकजी का मन उपेक्षित रहता था। इस प्रकार की वैरागमयी प्रवृत्ति को देखकर इनके पिताश्री ने इन्हें पशु चराने का काम सौंप दिया। नानक के लिए यह काम बहुत ही सुगम और आनन्ददायक सिद्ध हुआ। वे पशुओं की चिन्ता छोड़कर ईश्वर-ध्यान में डूब जाते थे और मन-ही-मन ईश्वर का भजन करते रहते थे।

एक बार फिर इनके पिता ने इन्हें गृहस्थ जीवन में लगाने का प्रयास किया। इन्हें बीस रुपये देकर कहा कि बेटा इन रुपयों से ऐसा करो जिससे कुछ आय और लाभ प्राप्त हो और मुझे कुछ सहारा मिले। पिता ने इसके लिए गुरु नानक के साथ में दो विश्वस्त नौकरों को भी लगा दिया।

गुरु नानक लाहौर की ओर बढ़े। रास्ते में गुरु नानक ने देखा कि कुछ साधु तपस्या में लीन हैं। अब गुरु नानक कुछ समय तक उनके पास ही रुक गये। नानकजी ने मन-ही-मन विचार किया कि इन महात्माओं को कुछ खिलाना-पिलाना चाहिए।

इसी से इस पूँजी से लाभ और आय प्राप्त हो सकती है। इसलिए गुरु नानक ने अपने पास के उन बीस रुपयों को उन साधु-महात्माओं के खान-पान में खर्च कर दिया। उनके पिता इस प्रकार के आचरण से अत्यधिक प्रभावित हुए थे

गुरु नानक देव का विवाह लगभग उन्नीस वर्ष की आयु में मूलाराम पटवारी की कन्या से हुआ। इनसे आपके दो पुत्र श्रीचन्द और लक्ष्मीदास उत्पन्न हुए। इन दोनों ने गुरुनानक देव की मृत्यु के बाद उदासी मत को चलाया था।

अद्भुत घटना

गुरु नानक के जीवन की एक अद्भुत घटना यह है कि आप रात के समय एक नदी में स्नान कर रहे थे; तभी आपको आकाशवाणी हुई कि “प्यारे नानक अपना कार्य कब करोगे। जिस कार्य के लिए तुम संसार में आये हुए हो, उसके लिए मोह-ममता छोड़ो।

भूले-भटकों को मार्ग पर लाओ।” इस आकाशवाणी से आप फिर घर नहीं लौटे और साधु-वेश में अपने मुसलमान शिष्य मरदाना के साथ इधर-उधर भ्रमण करते रहे। भ्रमण करते हुए आप एक बार मक्का भी गये। वहीं पर काबा के निकट सो गये।

दैवयोग से उनके पैर काबा की ओर थे। सबेरे जब मुसलमानों ने देखा, तो वे बिगड़कर गुरु नानक से कहने लगे, “ऐ नादान मुसाफिर! तुझे शर्म नहीं आती जो तू खुदा की ओर पैर पसारे है।” गुरु नानक ने कहा, “भाई बिगड़ते क्यों हो? मेरा पैर उधर कर दो, जिधर खुदा न हो।

” कहा जाता है कि गुरु नानक का पैर जिधर घुमाया गया, उधर ही काबा दिखाई देता था। इससे मुसलमानों ने क्षमा माँगकर उनके प्रति श्रद्धा अर्पित की।

उपसंहार

गुरु नानक देव की मृत्यु संवत् 1596 में मार्गशीर्ष माह की दशमी को 70 वर्ष की आयु में हुई। सांसारिक असारता के प्रति गुरु नानक देव ने कहा था

“रैन गवाई सोइ कै दिवसु गवाया खाय।
हीरे जैसा जनमु है, कौड़ी बदले जाय ॥ “

गुरु नानक देव ने ईश्वर को सर्वव्यापी मानने पर बल दिया है। जाति-पाँति के बन्धन को तोड़ने को कहा। मूर्तिपूजा का विरोध करते हुए केवल ‘एक ओंकारा मत’ और सतगुरु प्रसाद के जप को स्वीकार किया है।

आपके द्वारा रचित धर्मग्रन्थ ‘गुरुग्रन्थ साहब’ पंजाबी भाषा में है, जिसमें मीरा, तुलसी, कबीर, रैदास, मलूकदास आदि भक्त कवियों की वाणियों का समावेश है। इन तत्वों से अमरत्व स्वरूप की सिद्धि हो जाती है।

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