हृदय रोग क्या है, हृदय रोग के प्रकार, लक्षण, रोक-थाम, सुझाव और योग

हृदय रोग क्या है, हृदय रोग के प्रकार, लक्षण, रोक-थाम, सुझाव और योग के बारे में जानना जरूरी है। जब हम श्वास लेते हैं तो ऑक्सीजन रक्त में मिश्रित होती है तथा कार्बन डाई ऑक्साइड के रूप में रक्त की गन्दगी को श्वास द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है। यह क्रिया फेफड़ों में अनन्त सैलों के फूलने सिकुड़ने से होती है। फेफड़ों से शुद्ध रक्त नसों द्वारा बाँयें ओरिकल में आता है और वाल्व के माध्यम से बायें बेन्ट्रीकल में पहुँचता है।

यहाँ से यह शुद्ध रक्त बायें बेन्ट्रीकल के संकुचन से सम्पूर्ण शरीर में भेजा जाता है। इस प्रकार चौबीसों घंटे यही प्रक्रिया बारम्बार हृदय (heart attack) के संकोचन-आकुंचन अर्थात् धड़कन के साथ एक लयबद्ध तरीके से सम्पन्न होती रहती है। हृदय प्रति मिनट 70 से 100 बार तक धड़कन कर एक मिनट में 4-5 बार रक्त को सम्पूर्ण शरीर में परिसंचारित करता है।

हृदय रोग क्या है, हृदय रोग के प्रकार, लक्षण, रोक-थाम, सुझाव और योग

हृदय रोग क्या है

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हमारे शरीर में दो ही ऐसे प्रमुख अंग हैं जो अगणित विशेषताओं से युक्त है, ये हैं मस्तिष्क और हृदय (हृदय रोग क्या है)। मस्तिष्क को मन का केन्द्र कहा जाता है और हृदय भावनाओं का जब कोई ऐसी समस्यायें उत्पन्न हो जाती हैं जिनको निपटाने में केवल ज्ञान ही सक्षम नहीं होता वरन् हृदय भी उनका निदान करता है। अत: यह प्रतिपादित होता है कि हृदय का स्थान मस्तिष्क से ऊँचा है। जब हमारा हृदय सम्पूर्ण रूप से पुष्ट होगा। यह हमारे शरीर का सबसे ज्यादा जरूरी एवं सशक्त अंग है जो सबसे अधिक कार्य करता है। सामान्य रूप से इसके दो मुख्य कार्य हैं-

  1. गन्दे खून को फेफड़ों में शुद्ध होने के लिए भेजना।
  2. फेफड़ों से आये हुए शुद्ध रक्त को शरीर के सभी अंगों को भेजना।

हृदय-संरचना

बन्द मुट्ठी के समान बायें फेफड़े के नीचे निचले भाग में हृदय की स्थिति बताई गयी है। इसका आकार छ: इंच लम्बा, चार इंच चौड़ा और वजन लगभग 300 ग्राम होता है। यह चारों ओर से एक झिल्ली में लिपटा रहता है जिसे पेरीकार्डियम कहते हैं यह दो तह वाला आवरण होता है तथा हृदय के संकुचन और आकुंचन के समय आसपास के अवयवों के साथ घर्षण क्रिया को बचाता है।

हृदय के चार भाग होते हैं-

  1. ऊपर का दाहिना भाग (राइट आरिकल)
  2. ऊपर का बाँया भाग (लैफ्ट आरिकल) उक्त दोनों भागें को ‘आलिंद’ भी कहते हैं
  3. नीचे का दाहिना भाग (राइट वेन्ट्रीकल)
  4. नीचे का बाँया भाग (लैफ्ट वेन्ट्रीकल)

इन दोनों के निचले भाग को ‘निलय’ भी कहते हैं।

दाहिने आरिकल में दो बड़ी नसों द्वारा गन्दा रक्त आता है। यह रक्त वाल्व से गुजरकर दाहिने वेन्ट्रीकल में प्रवेश करता है। इस वाल्व का मुख एक ही ओर खुलता है ताकि रक्त वापिस न लौट सके। दाहिने बेन्ट्रीकल के संकुचन से धमनियों द्वारा यह गन्दा रक्त शुद्ध होने के लिए फेफड़ों में पहुँचता है। यहाँ भी एक वाल्व होता है जो रक्त को पुनः वापिस जाने से रोकता है।

शारीरिक अंगों और हृदय के मध्य रक्त का आदान-प्रदान अनेक छोटी-बड़ी नलिकाओं से होता है। हृदय से शरीर को रक्त पहुँचाने वाली नलिकाओं को ‘धमनी’ कहते हैं। यह धमनियाँ सबसे लचीली, मोटी एवं मजबूत होती हैं। एक बड़ी धमनी अंगों तक पहुँचते-पहुँचते अनेक छोटी शाखाओं में विभाजित होकर महीन नलिकाओं के जाल में परिवर्तित हो जाती है जिन्हें ‘कैपिलरी’ कहते हैं।

ये महीन धागे के समान कैपिलरी ऊतकों एवं कोशिकाओं के सीधे सम्पर्क में आती है। उनकी महीन भित्तियों से होकर रक्त से कोशिकाओं तक ऑक्सीजन तथा पोषक पदार्थ चले जाते हैं। साथ ही कोशिकाओं (कैपिलरी) से उत्सर्जित कार्बन डाई ऑक्साइड तथा विशुद्ध पदार्थ रक्त में आकर मिल जाते हैं।

कोरोनरी धमनियाँ

शरीर की सभी मुख्य धमनियाँ महाधमनी की शाखायें हैं। महाधमनी की प्रथम दो शाखायें कोरोनरी धमनियाँ कहलाती हैं। उनकी लम्बाई लगभग पाँच इंच तथा मोटाई 1/8 इंच के लगभग होती है। इनका कार्य हृदय की माँसपेशियों को रक्त की आपूर्ति करना है जिससे उनको भोजन एवं ऑक्सीजन मिलती रहे। उनमें से कोई भी नलिका सिकुड़ जाये या उनमें कोई अवरोध उत्पन्न हो जाये तो वह कार्य करना बन्द कर देता है और उसमें पीड़ा की सम्वेदना उठने लगती है उनके दबाव से हृदय पर अधिक भार पड़ता है जिससे वह रोग ग्रस्त व कमजोर हो जाता है।

मानवीय भावनाओं का केन्द्र

वस्तुतः हमारी भावनात्मक प्रतिक्रियाओं का निजी सम्बन्ध हृदय से है। हृदय रोग (हृदय रोग क्या है) के जितने भौतिक कारण हैं, उतने ही भावनात्मक कारण भी हैं। चिन्ताओं एवं परेशानियों से ग्रस्त, उत्तेजित एवं तनावग्रस्त मन एक असन्तुलित मानसिकता को जन्म देता है ये उद्वेग हमारे शरीर की अनुकंपी तंत्रिका को अनियंत्रित रूप से उत्प्रेरित करते हैं। इसके फलस्वरूप रक्त में उत्तेजन हार्मोन्स एड्रीनलीन एवं नॉरएड्रीनलीन की मात्रा काफी बढ़ जाती है।

जिसके कारण हृदय को अपनी सामान्य गति से अधिक बार धड़कना पड़ता है जिससे उस पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इस दबाव तथा अनुकंपी तंत्र की अतिक्रिया शीलता के कारण सम्पूर्ण शरीर की छोटी-छोटी रक्त वाहिनियाँ अनवरत आकुंचन की अवस्था में पहुँच जाती हैं जिसके कारण हृदय को उनमें से रक्त प्रवाहित करने में अधिक जोर लगाना पड़ता है और बहने वाले रक्त का दबाव बढ़ जाता है। इसी को उच्च रक्तचाप कहते हैं।

उक्त सम्पूर्ण प्रक्रिया से दो निष्कर्ष निकाल सकते हैं-

  1. हृदय पर रक्त संचार में प्रतिरोध के कारण अधिक जोर पड़ता है, जिससे उसकी क्षमता क्षीण हो जाती है और हार्टफेल होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
  2. रक्त नलिकाओं की भित्ति पर रक्त का दबाव बढ़ने से उनमें टूट-फूट की गति बढ़ जाती है और अन्ततः वे अवरुद्ध हो जाती हैं। कभी-कभी दबाव सहन न कर पाने के कारण रक्त नलियाँ फट भी जाती हैं। अधिकांशत: ऐसा मस्तिष्क के भीतर कोमल नलियों में होता है। रक्त की नली फटने के कारण उनसे निकला रक्त भीतर जमा होकर मस्तिष्क को निष्क्रिय कर देता है। इस स्थिति को पक्षाघात या लकवा कहते हैं।

चिकित्साशास्त्रियों की कुछ वर्ष पहले तक यह मान्यता थी कि हार्ट अटैक (हृदय रोग क्या है) या छाती में तीव्र पीड़ा का कारण किसी कोरोनरी संवहनी में खून के थक्के जमना तथा रक्त प्रवाह का अवरुद्ध होना है। पर अब वे यह भी मानने लगे हैं कि हार्ट अटैक का कारण खून का थक्का जमना नहीं है, क्योंकि कई मरीजों में खून का थक्का नहीं पाया जाता है। वरन् प्रवाह-अवरोध उन संवहनियों में अति आकुंचन या ऐंठन से भी हो सकता है।

हृदय रोग के प्रकार

(1) कोरोनरी हृदय रोग

धमनियों की भीतरी दीवारों के बीच एथरोमेटस (चर्बीदार पदार्थ) नामक विजातीय तत्व के जम जाने के कारण वे कड़ी हो जाती हैं। रक्त का प्रवाह में रुकावट पड़ जाने से रक्त का संचार रुक-सा जाता है। कभी-कभी रक्त जम भी जाता है जिसके कारण छाती में दर्द एवं हार्ट अटैक हो जाता है।

(2) कार्डियो मायोपैथी

किसी कारण से जब हृदय की माँसपेशी में मायोकार्डियम अपनी क्रियाशीलता खो देता है तो हृदयपेशियों के रोग का जन्म होता है जो कभी-कभी रोगी को मौत के मुँह में धकेल देता है।

(3) कार्डियोवास्कुलर रोग

शिराओं एवं धमनियों में विकार उत्पन्न हो जाने के कारण हृदय रुग्ण हो जाता है और यह रोग उत्पन्न हो जाता है। अधिकतर महिलाओं में यह रोग रक्त वाहिकाओं के कारण होता है। जबकि पुरुषों में यह रोग माँसपेशियों से सम्बन्धित होता है । इसका कारण है मधुमेह एवं उच्च रक्तचाप।

(4) इश्चेमिक हृदय रोग

जब शरीर के अंग-प्रत्यंगों में रक्त प्रवाह अवरुद्ध हो जाता है तो यह रोग सिर उठा लेता है।

(5) हार्टफेल्योर

इसे कांजेस्टिव हार्ट फेल्योर कहा जाता है। यह किसी संरचनात्मक या क्रियात्मक कारणों से उत्पन्न विकार हृदय को शरीर में पर्याप्त मात्रा में रक्त प्रवाह नहीं करने देता है।

(6) हाइपरटेंसिव हृदय रोग

जिस व्यक्ति को उच्च रक्तचाप रहता है, उसके हृदय की माँसपेशियों पर बहुत अधिक भार पड़ता है जिससे उनके तन्तु टूट जाते हैं, उसमें रक्त की पूर्ति कम हो जाती है। कभी मस्तिष्क में रक्त की कमी के कारण से लकवा तक मार जाता है।

(7) इन्फ्लेमेटरी हृदय रोग

हृदय की माँसपेशियों में सूजन आ जाने के कारण वे शक्तिहीन हो जाती हैं। जिससे यह रोग उत्पन्न हो जाता है।

(8) वाल्युलर हृदय रोग :

हृदय में चार वाल्व होते हैं दायें भाग में ट्राइकस्पीड वाल्व एवं पल्मोनरी वाल्व होता। बायें भाग में मिट्रल वाल्व एवं एओर्टिक वाल्व होता है। इनमें किसी प्रकार का विकार आ जाने से यह रोग उत्पन्न होता है।

हृदय रोग के लक्षण

  1. पीठ में दर्द उठता हुआ-सा अनुभव होना।
  2. शरीर में भारीपन महसूस होना।
  3. अत्यधिक बेचैनी अनुभव होना।
  4. शरीर में ठण्डा पसीना आना।
  5. साँस लेने में मुश्किल होना।
  6. नाड़ी का कभी हल्की कभी तेज चलना।
  7. रक्तचाप कम हो जाना।
  8. एक प्रकार का हृदय पर धक्का-सा लगना।

रोग से बचने के लिए रोक-थाम

अँग्रेजी में एक कहावत है कि ‘Prevention is better than cure’ अतः उस रोग से बचना चाहते हैं तो हमें-

  1. योगाभ्यास करना चाहिये।
  2. उचित खान-पान, सादा-सुपाच्य आहार सेवन करना चाहिये।
  3. अपने काम-काज की गति सन्तुलित रखना चाहिये तथा अति से बचना चाहिये।
  4. तनाव की स्थितियों से बचना चाहिये।
  5. उच्च रक्तचाप, मधुमेह, शरीर की स्थूलता से बचने का पूरा प्रयास करते रहना चाहिये।
  6. दही, लौकी का रायता एवं आँवलों का प्रयोग करके कोलेस्ट्राल को कम रखना चाहिये। अधिक चिकनी-तली चीजों के सेवन से बचना चाहिये।
  7. आवश्यक नींद एवं आराम लेना चाहिये।
  8. शराब, धूम्रपान आदि व्यसनों से बचना चाहिये।

महत्वपूर्ण सुझाव

  1. साप्ताहिक छुट्टी का सदुपयोग अपने परिवार के साथ मनोरंजन में करें। गम्भीर ही न बने रहें।
  2. एक ही प्रकार के माहौल में रहने से उत्पन्न खिन्नता को दूर करने।
  3. हर सीने का दर्द हृदय रोग नहीं होता । वह कभी-कभी गैस के कारण भी हो सकता है। अत: भ्रम पालने से अच्छा है कि चिकित्सक की सलाह लें।
  4. काले चने की दाल और सूर्यमुखी के तेल के सेवन से हृदय का आघात नहीं होता है। भोजन करने के बाद 15-20 ग्राम गुड़ खाने से हृदय की दुर्बलता दूर होती है।
  5. एक चम्मच शहद गुनगुने पानी में सेवन करने से दिल की कमजोरी, दिल बैठने आदि जैसे विकार दूर होते हैं। सेब का मुरब्बा भी लाभप्रद होता है।
  6. आवश्यकता के अनुसार एनिमा आदि से पेट साफ रखें।

आधुनिक चिकित्सा का प्रभाव

आजकल हृदय रोग (हृदय रोग क्या है) के निवारण के लिए अत्याधुनिक चिकित्सा-पद्धति विकसित हो गई है जिससे उच्च रक्तचाप को नीचे लाना, अवरुद्ध होते हुए हृदय की गतिशीलता को बनाये रखना, हृदय-शूल की तीव्र पीड़ा को कम करना आदि तो संभव हो जाता है पर हृदय रोग के मूल कारणों को दूर करने में सक्षम नहीं है।

हार्ट अटैक के लिए योग

वस्तुतः योग एक ऐसी जीवन-शैली की व्याख्या करता है जिसको अपनाने से समस्त तनावों एवं रोगों से अपने हृदय को सुरक्षित रख सकते हैं। योग के सतत् अभ्यास से उद्वेग, चिन्ता, तनाव- द्वन्द्व से मुक्त रखा जा सकता है और हृदय को सुरक्षित रखा जा सकता है।

प्राणायाम

  1. शीतली प्राणायाम – यह रक्तचाप को नियंत्रित रखकर हृदय रोग की संभावना को कम करता है।
  2. नाड़ी शोधन प्राणायाम- इसको अलोम-विलोम प्राणायाम भी कहते हैं इसके दस चक्र करना हितकर है। इससे नाड़ी एवं रक्तशोधन में सहायता मिलती है।
  3. उज्जायी प्राणायाम-इसको दस मिनट तक करना चाहिये।

विशेष – प्राणायाम करने में कुम्भक का अभ्यास न करें। प्राणायाम धीरे-

धीरे ऐसे करें जिससे फेफड़ों एवं हृदय पर दबाव न पड़े। प्राणायाम की चक्र संख्या अपनी क्षमता एवं रोग की गम्भीरता के आधार पर निर्धारित करें। अगर किसी अनुभवी योगाचार्य के संरक्षण में करें तो हितकर होगा । प्राणायाम के अभ्यास से उत्तेजित स्नायुओं का शिथिलीकरण तथा अनियमित हृदय गति का नियमन होता है।

आसन

(1) पवन मुक्तासन – इसका अभ्यास भाग-1 से आरम्भ करें। अभ्यास शान्त एवं सहजता के साथ करें। थकावट महसूस होने पर शवासन करें। इससे तनाव एवं थकान दूर होती है । इसके पश्चात् निम्नलिखित आसन करें

  1. वज्रासन
  2. शशांकासन
  3. सर्पासन
  4. गोमुखासन
  5. भूनमनासन
  6. योगमुद्रा

कोई भी आसन श्वास रोककर न करें। हर आसन के बाद विश्राम अवश्य लें। आसन करने में यदि कोई कठिनाई हो तो योग चिकित्सक से परामर्श करें। अपनी क्षमता से अधिक प्राणायाम अथवा आसन न करें।

ध्यान – यह हृदय रोग के लिए अचूक उपाय है। ध्यान के समय अजपा जप, अन्तर्मोन का अभ्यास करें। इससे मानसिक उद्वेलन, तनाव, चिन्ता आदि मिटती है। मृत्युंजय मंत्र का तप तो इस रोग के लिए रामबाण का काम करता है।

घरेलू उपचार

यदि हृदय का दौरा पड़ जाये तो

  1. तुरन्त ही रोगी को सख्त स्थान पर लिटाकर उसके पैर कुछ ऊँचें रखें।
  2. सीने के बीच की हड्डी पर मुक्के से हल्के प्रहार करें।
  3. दिल को दबाकर दोनों हाथों की हथेली से ऊपर-नीचे रखकर मालिश करें।
  4. मुँह लगाकर श्वास भरें।
  5. यदि रोगी को हृदय के दौरे के लक्षण महसूस हो तो लहसुन की चार कलियाँ चबा लें।
  6. अँगूठे को हाथ की बीच वाली दोनों उंगलियों के अग्रभाग से दबायें और तर्जनी को अँगूठे के मूल स्थान पर लगायें तो हृदय गतिशील बना रहेगा।

आहार

हृदय रोग उत्पन्न होने से रोकने अथवा निवारण में उचित आहार एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है अतः इसको अनदेखा नहीं कर देना चाहिये प्रत्युत विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। अतः इस सन्दर्भ में निम्नलिखित जानकारी उपयोगी सिद्ध होगी।

  • अधिक प्रोटीनयुक्त आहार, जैसे-मलाईदार दूध, उससे बनी चीजें, तेल एवं मसालेदार भोज्य पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करें।
  • इसके स्थान पर अन्न, दालें, फल तथा सब्जियों का प्रयोग करें । भोजन हल्का एवं कम मात्रा में लें। भारी भोजन का सेवन हृदय रोग को आह्वान करता है।
  • तनावपूर्ण विचारों एवं परिस्थितियों से दूर रहें। असंयम को त्यागकर सहज, नियमित जीवन-क्रम अपनायें।

रोगियों एवं पाठकों की सुविधा के लिए यहाँ एक तालिका प्रस्तुत की जा रही है, इसमें आवश्यकतानुसार परिवर्तन किया जा सकता है।

नाश्ता

प्रातः मौसम्मी, संतरा या अन्य किसी फल के रस का सेवन करें। बिना नमक-मिर्च के अंकुरित अन्न का सेवन करें।

दोपहर का भोजन :

  1. नमक रहित सलाद जिसमें ककड़ी, खीरा, टमाटर, मूली, गाजर, पत्ता गोभी आदि लें।
  2. गेहूँ के आटे की चपाती इच्छानुसार लें।
  3. घीया का रायता लें। यह दिल को मजबूत करता है।

तीसरे प्रहर- आम और लीची को छोड़कर कोई फल लें।
रात में- थोड़ी मात्रा में भोजन करें। यदा-कदा शरीर में तेल की हल्की मालिश करें।

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