शरीर में किसी भी अन्दरूनी अंग का किसी एक छिद्र विशेष या द्वार से बाहर की ओर निकल आने को हर्निया (Hernia) कहते हैं। हर्निया क्यों होता है, कारण, प्रकार, यौगिक उपचार, सुझाव एवं परहेज जानना बहुत ही जरूरी है। इस बीमारी में उदर की निचली माँसपेशियों में स्वाभाविक रूप से कमजोरी आ जाने पर आँतों का कुछ हिस्सा बाहर निकल आता है। वस्तुतः यह बीमारी माँसपेशियों में खिंचाव आदि के कारण से उत्पन्न होती है। यह बीमारी यूरिनरी एवं रिप्रोडक्टिव सिस्टम अर्थात् मूत्र एवं प्रजनन प्रणाली के अन्तर्गत आने वाली बीमारी है। यह स्त्रियों एवं पुरुषों, दोनों को हो सकती है।
हर्निया क्यों होता है


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हर्निया के प्रकार
पुरुष के शरीर में जिस अंग में हर्निया होता है, उस स्थान के आधार पर इसे विभिन्न प्रकारों में बाँटा गया है।
1. इग्वांइनल हर्निया
इस प्रकार का हर्निया पुरुषों में ज्यादा होता है। जब उदर का कोई अन्दर का भाग दबकर इंग्वाइनल कैनाल में आ जाता है, इससे हर्निया की अन्दरूनी वस्तु अण्डकोष में आ जाती है और इसका आकार क्रमश: बड़ा होने लगता है। इस प्रकार के हर्निया को अण्डकोष की सूजन जैसे हाइड्रोसील से पहचान पाना अधिकतर कठिन होता है । अतः इस सूजन का कारण मेडिकल जाँच से सम्भव होता है।
2. फीमोरल हर्निया
इस प्रकार का हर्निया साधारणतः स्त्रियों में पाया जाता है। इसमें उदर के अंग जाँघ के सामने एक छिद्र में, जहाँ से फीमोरल धमनी पैर में सरक आती है। इस धमनी के नाम पर इसे फीमोरल हर्निया कहते हैं।
3. अविलिकल हर्निया
इस प्रकार के हर्निया में हर्निया ग्रन्थि या थैली नाभि से बाहर आ जाती है। इसका कारण उदरीय माँसपेशियों का कमजोर हो जाना है। प्रायः यह रोग जन्म के समय या बचपन में या फिर मध्यम आयु वर्ग के अधिक मोटे तथा विकृत उदर वाले व्यक्तियों में अधिक होता है। शरीर के उभार के आधार पर यह दो प्रकार का होता है।
- इस प्रकार के हर्निया में बाहर निकल आई थैली को पुनः उदर में अन्दर दबाया जा सकता है। मरीज जब लेटता है तो यह थैली स्वतः अन्दर चली जाती है लेकिन खड़े होने पर यह बाहर की ओर उभर आती है। इस प्रकार के हर्निया को योगाभ्यास से सरलतापूर्वक ठीक किया जा सकता है।
- जब निकला हुआ हर्निया दबाने से अन्दर नहीं दबता तो स्थिति खतरनाक मानी जाती है क्योंकि उदर के अन्दर वाले अंग इसमें फंस जाते हैं और उस फंसे हुए स्थान में गैंगरिन हो सकती है जो मृत्यु का कारण बन जाती है इस प्रकार का हर्निया होने पर चिकित्सक की फौरन सलाह लेनी चाहिये। कभी-कभी मरीज को पीड़ा नहीं होती है।
हर्निया के कारण
- उदर की माँसपेशियाँ कमजोर एवं दुर्बल होने के कारण यह रोग हो जाता है।
- इन कमजोर माँसपेशियों का पूर्ण रूप से विकास न हो पाने से अथवा जन्म से उनमें क्षीणता होने के कारण जन्म के तुरन्त बाद हर्निया हो जाता है।
- असावधानीपूर्वक कार्य करने तथा झटके से अत्यधिक भार उठाने से ये माँसपेशियाँ टूट-फूट जाती हैं और यह रोग उत्पन्न हो जाता है।
- उक्त स्थिति में आमतौर पर युवा वर्ग के स्त्री-पुरुषों में अधिक होती है।
- जब किन्हीं कारणों से आंतरिक दबाव अधिक होता है, तब भी हर्निया की शिकायत हो जाती है।
- धूम्रपान करने वाले लोग खाँसी से पीड़ित हो जाते हैं जो महीनों तक चलता है तथा अधिक जोर लगाकर खाँसने में यह रोग उत्पन्न हो सकता है।
- जिन व्यक्तियों की प्रोस्टेट ग्रन्थि बढ़ जाती है और जिन्हें कब्ज की शिकायत होती है, उन्हें मल-मूत्र त्यागने में अधिक जोर लगाना पड़ता है अत: उदर की माँसपेशियों में भी दबाव बढ़ जाता है जिससे हर्निया उत्पन्न हो जाता है।
- मोटापे एवं अत्यधिक आहार खाने के कारण भी उदर की माँसपेशियों में खिंचाव अधिक हो जाता है इससे आँतें भरी हुई रहती हैं इससे भी वहाँ दबाव बढ़ जाता है जो रोग उत्पन्न करने का हेतु बन जाता है।
- व्यायाम की कमी के कारण उदर की माँसपेशियाँ ढीली एवं शिथिल हो जाती हैं और उदर के अंग नीचे की ओर लटकने लगते हैं। इससे उदर फूलना शुरू हो जाता है। इसे ‘विसरोप्टोसिस’ कहते हैं।
- गर्भावस्था एवं प्रसव के कारण भी उदर पर दबाव बढ़ जाता है और अधिकतर यही स्त्रियों में हर्निया का कारण बनता है।
यौगिक उपचार
वस्तुतः हर्निया का उपचार उसकी गम्भीरता और प्रकार पर निर्भर करता है। इससे बचाव के लिए योग के अभ्यास सर्वोत्तम है। उनके द्वारा कमजोर माँसपेशियों एवं अधिक भारी आँतों के कारण होने वाले हर्निया जो विशेष रूप से पुराने नहीं हैं, उन्हें ठीक किया जा सकता है लेकिन यदि हर्निया लम्बे समय का एवं अनियंत्रित हो तो उसे फिर ऑपरेशन के द्वारा ही ठीक किया जा सकता है।
आसन
ऑपरेशन के बाद तीन महीने तक उदर अथवा माँसपेशियों पर कोई तनाव अथवा दबाव नहीं पड़ना चाहिये इसके बाद पवन मुक्तासन के दोनों भागों का अभ्यास करना चाहिये। इसके साथ शक्ति बन्ध के आसन जैसे-नौका संचालन, चक्की चलाना, वायु निष्कासन, उदराकर्षणासन किये जा सकते हैं।
ध्यान रहे कि इस रोग से पीड़ित व्यक्ति को भुजंगासन, धनुरासन, शलभासन आदि तथा कोई भी ऐसे आसन जिनमें कमर से झुकना पड़ता हो या जिनसे उदर पर जोर पड़ता हो, वे आसन भी नहीं करना चाहिये। किसी भी प्रकार के हर्निया को पहले किसी उचित तरीके से सावधानीपूर्वक उदर के अन्दर वापस करना चाहिये। पवनमुक्तासन का अभ्यास करने के बाद धीरे-धीरे निम्नलिखित आसन सावधानीपूर्वक करना चाहिये-
- वज्रासन
- मत्स्यासन
- शशांकासन
- मार्जरि आसन
- उष्ट्रासन
प्राणायाम
1. | भ्रामरी प्राणायाम |
2. | अन्तर्कुम्भक |
3. | जालंधर और मूलबंध तथा बहिर्कुम्भक और उड्डियान बन्ध के साथ हल्की भस्त्रिका |
4. | शिथिलीकरण एवं योग निद्रा |
सुझाव एवं परहेज
- कोई भी आसन प्राणायाम आदि यदि किसी कुशल योग चिकित्सक के मार्गदर्शन में किये जायें तो हितकर है।
- हर्निया के उपचार के लिए रोगी को पाचन शक्ति को बढ़ाने का प्रयास करना चाहिये तथा कब्ज को तो सर्वथा दूर रखना चाहिये।
- भारी वजन को कभी उठाने का प्रयास नहीं करना चाहिये।
- रोग की पुनरावृत्ति से बचने के लिए यह आवश्यक है कि छक, खाँसी, मल-मूत्र त्याग करने में होने वाली कठिनाइयों के कारणों को दूर करना चाहिये।
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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।