उच्च रक्तचाप क्या है, परिभाषा, लक्षण, कारण, प्राणायाम, आसन, आहार, सुझाव और उच्च रक्तचाप के प्रकार (हाइपरटेंशन) के बारे में पूरी जानकारी दी जा रही है, किन्हीं कारणों से धमनियों की भित्तियों में जब संकुचन पैदा हो जाता है तो उससे रक्त भी कम आने लगता है और इसे प्रवाहित करने के लिए अत्यधिक संक्षेप में कह सकते हैं कि जब किन्हीं कारणों से कॉलेस्ट्रॉल बढ़ जाता है तो रक्त वाहिनियाँ अवरुद्ध होकर कठोर हो जाती हैं। रक्त को इस रुके हुए मार्ग में प्रवाहित होने के लिए हृदय पर दबाव अधिक पड़ जाता है। इसे उच्च रक्तचाप (High Blood Pressure) कहते हैं। उच्च रक्तचाप आज के सभ्य समाज का चिर परिचित रोग है। अत्यधिक भावुक एवं चिंता करने वालों में यह रोग अधिक पाया जाता है।
उच्च रक्तचाप क्या है (High Blood Pressure)

यह भी पढ़े – हृदय रोग क्या है, हृदय रोग के प्रकार, लक्षण, रोक-थाम, सुझाव और योग
रक्तचाप क्या है
रक्तचाप हृदय की वह स्वाभाविक क्रिया है, जिसमें हृदय के प्रसारण एवं संकोचन से धमनियों द्वारा शुद्ध लाल रक्त शरीर के अंग-प्रत्यंग में प्रवाहित होता है जो ऑक्सीजन आदि की आवश्यकता को पूरा करता है। दूषित रक्त शिराओं के द्वारा वापस हृदय में पहुँचता है और शुद्धिकरण के बाद धमनियों द्वारा संचारित होता है। जब हमारा हृदय संकुचित होता है तब रक्तचाप बढ़ जाता है। इसे सिस्टालिक (प्रकुंचक) रक्तचाप कहते हैं। संकुचन के बाद हृदय शिथिल होता है और रक्तचाप गिर जाता है। इसे डायस्टालिक अनुशिथिलित रक्तचाप कहते हैं। करने पर जो अतः संक्षेप में कह सकते हैं कि हृदय से रक्त को प्रवाहित दबाव पड़ता है, उसे रक्तचाप या ब्लडप्रेशर कहते हैं।
उच्च रक्तचाप (हाइपरटेंशन) की श्रेणियाँ :
यह स्थिति बीस वर्ष की उम्र के बाद ही दृष्टिगोचर होती है लेकिन 65 वर्ष की उम्र में यह संभावना काफी बढ़ जाती है। इसके चार स्तर अथवा श्रेणियाँ हैं-
स्टेज 1 : इस स्तर पर सिस्टालिक B.P. (SBP) 140 से 159 तक तथा डायस्टालिक B. P. (D.B.P.) 90 से 99 तक।
स्टेज 2 : सामान्य से अधिक मॉडरेट SBP 160 से 179 तथा DBP 100 से 109 तक।
स्टेज 3 : गम्भीर स्थिति में SBP 180 से 209 और DBP 110 से 119 तक।
स्टेज 4 : अत्यधिक गम्भीर स्थिति में SBP 210 से अधिक एवं DBP 120 से अधिक।
रक्तचाप का दबाव आमतौर पर इस प्रकार होना चाहिये-
आयु | SBP | DBP |
---|---|---|
10-20 वर्ष | 8-10 | 50-70 |
20-30 वर्ष | 120-125 | 70-85 |
30-40 वर्ष | 120-130 | 75-90 |
40-50 वर्ष | 125-135 | 80-90 |
50-60 वर्ष | 130-140 | 80-90 |
60-70 वर्ष | 150-160 | 85-100 |
उच्च रक्तचाप के प्रकार
यह दो प्रकार का होता है-
- प्राथमिक (प्रधान) – जब रक्त प्रवाह में बाधा होने लगती है, तब यह प्राथमिक उच्च रक्तचाप कहलाता है।
- गौण (सैकेंडरी) – जब शरीर का कोई अंग जैसे किडनी, थायराइड या एड्रीनल ग्रन्थि आदि विकृत हो जाती है तो इस प्रकार का गौण उच्च रक्तचाप उत्पन्न हो जाता है।
उच्च रक्तचाप के कारण
रोग पनपने की सम्भावनाऐं निम्न कारणों से उत्पन्न होती हैं-
- वातावरण के प्रभाव से
- भावनात्मक व्यतिक्रम और तनाव से
- आनुवांशिक
- मोटापा
- क्षमता से अधिक काम करना
- अस्त-व्यस्त दिनचर्या
- आहार का असंयम
- व्यायाम का अभाव
- किन्हीं अंगों की खराबी जैसे-किडनी, थायराइड ग्रन्थि की अधिक या कम कार्यशीलता, मूत्राशय सम्बन्धी रोग, एओरटा का संकुचित होना या धमनियों का फैलना आदि
- अत्यधिक शराब, धूम्रपान से
- मानसिक भ्रम
- जल्दी थकान आना
उच्च रक्तचाप के लक्षण
जब व्यक्ति में निम्नलिखित विकार उत्पन्न होने लगें तो समझ लेना चाहिये कि उच्च रक्तचाप रोग ने घेर लिया है-
- श्वास फूलना
- आवश्यकता से अधिक थकावट महसूस होना
- चेहरा या कानों का तमतमाना
- सिर में भारीपन अथवा दर्द होना
- कानों में सांय-सांय की आवाज सुनाई पड़ना
- नींद न आना
- धड़कन बढ़ जाना
- छाती में खिंचावट व शरीर में अकड़न
- काम में मन न लगना
- पक्षाघात का होना
- उल्टी या जी मिचलाना
- आँखों में गड़बड़ी उत्पन्न हो जाना
- चिड़चिड़ापन या अधिक क्रोध आना
- नाक से खून आ जाना
एलोपैथिक उपचार एवं उसका प्रभाव
इस रोग के उत्पन्न हो जाने पर आधुनिक चिकित्सक हाइड्राडायूरिल, एल्डेक्हाइड, अल्फा, वीटा, वैसोडायलेट्स का प्रयोग करते हैं। इससे उपचार तो पूरी तरह नहीं हो पाता वरन् साइड इफेक्ट्स जैसे- कोलिस्ट्राल, ग्लूकोस, डार्यावटिस, गाऊट, हाईपर, केलेमिया आदि रोगों का खतरा बढ़ जाता है।
योग चिकित्सा
हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों ने जिन्हें ऋषि-मुनि कहते हैं, ऐसी योगिक क्रियाओं का आविष्कार किया था जिसके नियमित अभ्यास से इस जान लेवा रोग को केवल दूर ही नहीं, वरन् जड़ से ठीक किया जा सकता है ।
प्राणायाम
1 | उज्जायी प्राणायाम |
2 | भ्रामरी प्राणायाम |
3 | चन्द्रवेधी प्राणायाम |
4 | शीतली प्राणायाम |
5 | नाड़ी शोधन अर्थात् अलोम-विलोम प्राणायाम |
इसके लिए निम्नलिखित प्राणायामों का अभ्यास किया जा सकता है
आसन
कुछ अल्पज्ञ भ्रमित व्यक्तियों का कहना है कि आसन आदि करने से नुकसान होता है। ऐसा सोचना सर्वथा निरर्थक है क्योंकि, रोगों को जड़ से मिटाने के लिए योगासन आदि तो अति आवश्यक हैं। हाँ, शीर्षासन नहीं करना चाहिये । सर्वप्रथम सूक्ष्म व्यायाम सिरीज प्रथम एवं द्वितीय करें। इससे शरीर के सभी जोड़ खुलने लगते हैं और शरीर की जकड़न खुलकर प्राणों का प्रवाह नियमित हो जाता है।
इसके उपरान्त :-
- सूर्य नमस्कार
- त्रिकोणासन
- सर्वांगासन
- मत्स्यासन
- हलासन
- पश्चिमोत्तानासन
- भुजंगासन
- शलभासन
- धनुरासन
- चक्रासन
- मयूरासन
- योगमुद्रा
आदि आसनों का अभ्यास अपनी शारीरिक क्षमतानुसार किसी अनुभवी योग चिकित्सक की देख-रेख में करें तो उचित होगा।
आहार
नमक, खट्टा एवं गरम भोजन से सख्त परहेज करें। निम्न तालिकानुसार भोजन का क्रम बना लें।
प्रातः – छाछ, नीबू पानी, रसाहार।
दोपहर – सलाद, उबली हरी सब्जी जैसे लौकी, तौरई, परवल, टिण्डा, पालक आदि।
तीसरे प्रहर – अंगूर, संतरा, सेब, नाशपाती तथा अन्य मौसमी फल । रात में- हल्का भोजन, सलाद, चपाती, हरी सब्जी।
उपवास – पूर्ण रूप से लाभ हो जाने तक सप्ताह में एक-दो बार उपवास अवश्य करें। इन दिनों फलाहार-रसाहार पर रहें। पानी का सेवन अधिक मात्रा में करें।
सुझाव:
- जल्दी उठने एवं जल्दी सोने का क्रम बनायें।
- लम्बे गहरे श्वास लेना हितकर है।
- कब्ज न होने दें।
- शरीर के भार को बढ़ने से रोकें।
- बिना भूख के भोजन न करें, चबा-चबाकर खायें।
- कफ से सम्बन्धित रोगी काली मिर्च, अदरख आदि का सेवन करें।
- सबेरे नीबू पानी – शहद का सेवन करें।
- मानसिक तनाव उत्पन्न न होने दें अतः सदा मस्त रहें, बीती बातों की फिक्र न करें।
- आशावादी दृष्टिकोण बनायें।
- थकावट उत्पन्न न होने दें।
- अपनी आवश्यकताओं को सीमित रखें।
- अधिकतर दायीं करवट लेटें व सोयें।
- काफी के सेवन से बचें क्योंकि इसमें कैफीन एड्रेनेलिन एवं नारएड्रेनेलिन दोनों को बढ़ाती है।
- सोडियम सम्बन्धित आहार का सेवन कम करें।
- शराब, धूम्रपान का सेवन बिल्कुल न करें।
- अनियमित दिनचर्या को छोड़कर नियमित करें।
- कोई ऐसा सोच एवं कार्य न करें जो आपकी मानसिकता को विकृत कर दे।
इस प्रकार आहार एवं नियमित दिनचर्या, आसन, प्राणायाम के सतत् अभ्यास से उच्च रक्तचाप से मुक्त हुआ जा सकता है अतः स्वयं पर कठोर संयम को अपनायें।
यह भी पढ़े – जुकाम क्यों होता है, जुकाम के प्रकार, कारण, लक्षण, दुष्प्रभाव, सुझाव, उपचार और योग
अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।