हिमालय का निर्माण कैसे हुआ: हिमालय पर्वतमाला का निर्माण कैसे हुआ था, जहाँ आज हिमालय पर्वत है वहाँ करोड़ों साल पहले टेथिस सागर था। इस सागर के दोनों ओर बड़े चट्टानी भू-भाग थे उत्तर में अंगारा व दक्षिण में गोंडवाना लैण्ड अंगारा व गोंडवाना लैण्ड से निकलने वाली नदियाँ इस सागर में गिरती थीं। नदियाँ अपने साथ रोज ढेर सारी मिट्टी लाती और सागर की तलहटी में जमा करती थीं। हजारों साल तक ये ऐसा करती रहीं। सागर में मिट्टी भरती रही।
हिमालय का निर्माण कैसे हुआ

Himalaya Ka Nirman Kaise Hua
पृथ्वी की आंतरिक हलचलों के कारण अंगारा व गोंडवाना एक दूसरे की ओर खिसकने लगे। दोनों ओर से दबाव के कारण सागर की तलहटी में जमा मलवे में मोड़ पड़ने लगे। यह मलवा मोड़दार पर्वत के रूप में ऊपर उठता गया। इस प्रकार संसार के सबसे ऊँचे पर्वत हिमालय का निर्माण हुआ। भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालय आज भी ऊँचा उठता जा रहा है।
हिमालय को हमारे देश का पहरेदार भी कहा जाता है। इसकी ऊँचाई इतनी ज्यादा है कि इसे पार कर भारत में आना कठिन है। कहीं-कहीं इसके पहाड़ों के बीच इसे पार करने के लिए तंग रास्ते हैं। इन्हें ‘दर्रा कहते हैं।
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हिमालय पर्वत से हमें बहुत लाभ है। यह उत्तर से आने वाली ठंडी हवाओं को रोक लेता है और हमें कड़ाके की सर्दी से बचाता है। साथ ही यह दक्षिण से आने वाली मानसूनी हवाओं को उत्तर की ओर जाने से रोकता है।
इन हवाओं से भारत में वर्षा होती है। हिमालय के दक्षिणी भाग में निचले पहाड़ों पर गर्मियों में मौसम सुहावना हो जाता है। यहाँ कई पर्यटन स्थल हैं। इनमें शिमला, मसूरी, नैनीताल, दार्जलिंग, कैलिम्पोंग मुख्य है।
हिमालय के वनों में शंकुधारी पेड़ पाए जाते हैं। ये वर्ष भर हरे-भरे रहते हैं। हिमालय के वनों से हमें तरह-तरह की जड़ी-बूटियाँ एवं खनिज पदार्थ भी मिलते हैं। इसकी नदियाँ हमें सिंचाई के लिए भरपूर पानी देती है।
क्या आप जानते है
- लद्दाख और अरुणाचल के पहाड़ी इलाकों में याक नामक पशु सवारी और सामान ढोने के काम आता है।
- हिमालय के पश्चिमी भाग में एवरेस्ट, कंचनजंघा और नन्दादेवी के ऊँचे बर्फीले शिखर हैं। ये संसार की सबसे ऊँची चोटियाँ हैं।
- गंगा और यमुना जिन हिमानियों (ग्लेशियरों) से निकलती हैं उन्हें क्रमशः गंगोत्री और यमुनोत्री कहते हैं।
- हिमालय क्षेत्र में वन्य जीवों की सुरक्षा एवं विकास के लिए कार्बेट नेशनल पार्क (उत्तराखण्ड) और काजीरंगा (असम) राष्ट्रीय उद्यान हैं।
हिमालय पर चढ़ाई
साहसी लोग बहुत समय से हिमालय की चोटियों पर चढ़ने की कोशिश करते रहे हैं। तेनजिंग हिमालय की ऊँची चोटियों के पास एक गाँव में रहते थे। जब देश-विदेश के पर्वतारोही हिमालय की चोटियों पर चढ़ने के लिए आते थे तो तेनजिंग उनका सामान ढोया करते थे। तेनजिंग का मन होता था कि वे भी पर्वतारोही बनकर हिमालय की ऊँची चोटियों में से किसी एक पर चढ़कर दिखाएँ।
एक दिन आस्ट्रेलिया से आए एक. पर्वतारोही ने उन्हें अपने साथ चलने को कहा। इस पर्वतारोही का नाम एडमन्ड हिलेरी था। हिलेरी और तेनजिंग ने कई आरोहियों के दल के साथ संसार की सबसे ऊँची चोटी माउण्ट एवरेस्ट (8850 मी.) पर चढ़ना शुरू किया।
बर्फ से ढके फिसलन भरे रास्ते में वे बढ़ते गए। चढ़ाई इतनी सीधी थी और रास्ता इतना कठिन था कि कुछ सौ गज चलने में ही साँस फूल जाती थी। ठंड इतनी अधिक थी कि हाथ-पैर सुन्न हो जाते थे।
वहाँ प्रायः बर्फ की आँधियाँ चलती थीं। उनके साथी छूटते गए पर तेनजिंग और हिलेरी ने हिम्मत नहीं छोड़ी। वे ऊँचे चढ़ते गए। एक दिन चमकते सूरज की रोशनी में वे एवरेस्ट की चोटी पर जा चढ़े।तेनजिंग और हिलेरी के बाद और भी कुछ पर्वतारोही एवरेस्ट पर चढ़े हैं। इनमें अपने देश की महिला बछेन्द्री पाल भी हैं।
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