हिमालय पर निबंध:- भारत प्रकृति नटी का क्रीडास्थल है और पर्वतराज देवतात्मा हिमालय प्रकृति की उसी उज्ज्वलता और सुन्दरता का साकार रूप है। यह केवल शिलाखंडों और मिट्टी की राशि का बना पर्वत नहीं, अपितु भारत की पुण्य भावनाओं का, उसकी समस्त श्रद्धा का प्रतीक भी है। वह भारत का गौरव है। भारत के पौरुष का पुंजीभूत रूप है। कवि ‘दिनकर’ ने तभी तो हिमालय की प्रशंसा में कहा है-
हिमालय पर निबंध

मेरे नगपति मेरे विशाल
साकार दिव्य गौरव विराट
पौरुष के पुंजीभूत ज्वाल
मेरी जननी के हिमकिरीट
मेरे भारत के दिव्यभाल ।
कवि कुलगुरु कालिदास ने तो पर्वतराज हिमालय को देवतात्मा बताते हुए कहा है-
अस्त्युन्तस्यां दिशिदेवतात्मा
हिमालयो नाम नगाधिराजः ।
पूर्वापरौ तोयनिधीऽवगाय
स्थितः पृथिव्या इव मानदण्डः ।
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अर्थात् पूर्व और पश्चिम समुद्रों का अवगाहन करते हुए पृथ्वी के मानदण्ड (नापने के डंडे) के समान नगाधिराज देवतात्मा हिमालय उत्तर दिशा में स्थित है। वस्तुतः हिमालय अपने विराट् शरीर से लगभग भारत की आधी परिक्रमा किये हुए है। सम्पूर्ण हिमालय की लम्बाई लगभग पाँच हजार मील और चौड़ाई पाँच सौ मील है। हिमालय पर्वतमाला उत्तर में कश्मीर से लेकर पश्चिम में असम तक अर्धचन्द्र रेखा के समान है। इसकी शाखाएं-प्रशाखाएं तो पूर्व में ब्रह्मदेश से प्रारम्भ होकर तिब्बत सीमान्त, पुनः असम, बंगाल, नेपाल होती हुई कुमाऊँ, गढ़वाल, पंजाब, हिमाचल, कश्मीर, हिन्दूकुश पर्वत और अफगानिस्तान से होकर मध्य एशिया तक फैली हुई हैं।
पर्वत राज हिमालय के शिखर विश्व में सबसे ऊँचे हैं। सरगमाथा या एवरेस्ट की उँचाई उनतीस हजार फुट से भी अधिक है। पर्वतारोहियों के लिए तो यह महान् आकर्षण है। यह भारत का सीमान्त प्रहरी भी है। वर्ष भर हि से आच्छादित इसके उच्च शिखर युग-युग से उत्तर दिशा में भारत की रक्षा में सदैव सन्नद्ध हैं। इसके कारण ही उत्तर दिशा से भारत में शत्रुओं के आक्रमण नहीं हुए।
हिमालय अनेक नदियों का उद्गम स्थल है। परम पावनी गंगा और कृष्णप्रिया यमुना हिमालय से ही निकलती हैं। इसी प्रकार इरावती (रावी) चन्द्रभागा (चनाव) विपाशा (व्यास) शतद्रु (सतलुज) और वितस्ता (झेलम) सरयू, गोमती, गण्डकी और ब्रह्मपुत्र नद का उत्पति स्थल भी हिमालय ही है। इन नदियों के कारण ही भारत का भूमिभाग सदा हरा-भरा रहता है। इनकी कृपा भारत भूमि ‘सस्य श्यामला’ कही जाती है। से ही
हिमालय में ही हिन्दुओं के अनेक पवित्र तीर्थ है। उत्तर में बद्रीनाथ, केदारनाथ, मान सरोवर, गंगोत्री, यमुनोत्री, उत्तरकाशी, ऋषीकेश, हरिद्वार आदि पवित्र तीर्थ हैं। कैलास मे भगवान् शंकर का निवास स्थान है और हिमवान् की पुत्री तथा भगवान् शंकर की अर्द्धांगिनी पार्वती का जन्म स्थल भी हिमालय ही है। दूसरी और कश्मीर में भगवान् अमरनाथ का पवित्र मंदिर और शंकराचार्य का एक उपपीठ भी है। प्रतिवर्ष इन तीर्थों की यात्रा कर यात्री परम शान्ति का अनुभव करते हैं।
भारत की आर्य सभ्यता का उदय और विकास भी हिमालय के प्रांगण में ही हुआ है। सब प्रकार की पारलौकिक और लौकिक विद्याओं, योग तथा ब्रह्म विद्या का प्रारम्भ भी हिमालय के पवित्र वनों से हुआ है। यहाँ की पावन गुफाओं में बैठकर ही हमारे सहस्रों मुनियों, ऋषियों और योगियों ने तपस्या से भगवान् को प्रसन्न किया और उनकी कृपा से वेदों के ज्ञान का साक्षात्कार किया। उस ज्ञान के प्रकाश को ही हमारे आर्य ऋषियों ने संसार में फैलाया। महाकवि प्रसाद के शब्दों में – “जगे हम लगे जगाने विश्व, लोक मैं फैला तब आलोक ।” इसी प्रकार अनेक यक्ष, गन्धर्वो, किन्नरों और सिद्धों का निवास भी हिमालय ही है।
हिमालय प्रकृति की लीलाभूमि है। काश्मीर को तो भारत का नन्दनवन कहा ही जाता है। हिमांचल में शिमला, कुल्लू, मनाली, लाहौल, स्पीती, किन्नर प्रदेश सौंदर्य के आगार है। गढ़वाल हिमालय में प्रसिद्ध फूलों की घाटी दूसरा नन्दन है तो कुमायूँ में कौसानी, बंगाल में दार्जलिंग, तथा असम में वहाँ के वन अपने सौन्दर्य से दर्शकों के मनों को मुग्ध कर लेते हैं।
पर्वतराज हिमालय रत्न निधि भी है। इसके पर्वतों में अनके दिव्य-मणियों के भंडार सुरक्षित हैं। इसके घने वनों में देवदार, चीड़, बांस, बुरांस, भोज पत्र आदि के अनेक प्रकार के वृक्ष तथा अनेक प्रकार की दिव्य औषधियाँ (लता-वनस्पतियाँ) है; जो जीवनदायिनी हैं। हिमालय के ही वनों में अनेक प्रकार के पशु सिंह, व्याघ्र, हाथी, गैंडे, साँभर, चैवरगाय, नील गाय, कस्तूरी मृग आदि विचरण करते हैं तथा अनेक जातियों के चित्र विचित्र पक्षी अपने रूप-रंग से तथा अपने कलरव से जन मन को हर लेते हैं।
हिमालय की पवित्रता और महत्ता का वर्णन हमारे पुराणों में विस्तार से हुआ है। महाकवि जयशंकर प्रसाद ने हिमालय को इसीलिए विश्व-कल्पना से ऊँचा, सुख, शीतलता, सन्तोष का देने वाला तथा मणियों और रत्नों का भंडार कहा है। वस्तुतः हिमालय देवभूमि है, भारत का गौरव है, भारतीय संस्कृति का मेरुदंड हैं, और तपस्वियों के तपोभूमि है। हम इसे प्रणाम करते हैं।
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