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हींग के 12 चमत्कारिक फायदे और उपयोग से कई बीमारियों कर सकते है दूर

हींग के फायदे:- हींग का एक विशेष पेड़ होता है। इसके प्राप्त होने वाली गोंद ही ‘हींग’ है। यह तरह-तरह की सब्जियों, दालों, मीट आदि में डाली जाती है। छौंक के काम आती है। इसमें अनेक गुण हैं, जिसकी वजह से यह मसाला भी है और औषधि भी। कई विकारों को, रोगों को ठीक करने में इसका योगदान है। इसका भारत में आगमन फारस और अफगानिस्तान से हुआ बताया जाता है। हींग (Hing Health Benefits) अब भारत में भी काफी मात्रा में पैदा की जाती है। हींग की किस्मों में तलाब और हीरा हींग श्रेष्ठ मानी जाती है। यह मसालों से भी ज्यादा दवा में काम आती है।

हींग के फायदे

हींग के फायदे
Hing Health Benefits

भोजन को जायकेदार बनाने के लिए हींग का प्रयोग होता है। अचारों में भी यह प्रयोग की जाती है। इसे अकेले में प्रयोग कर, कई बीमारियों से छुटकारा पाया जाता है। हींग (हींग के फायदे) का स्वाद भी तेज है तो महक भी तेज। यह पाचक, हल्की व गर्म होती है। मंदाग्नि को तेज कर, भूख लगाती है। हींग का प्रयोग इसके गुणों के कारण किया जाता है। इसे निम्न तरीकों से प्रयोग करते हैं-

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Hing Health Benefits

  1. पेट फूल जाये, वायु विकार हो जाए, अपचन होने लगे और पेट में तनाव-सा बना रहे, तो घी में हल्की भुनी हींग गर्म जल से लेने से आराम मिलता है इसकी खुराक आवश्यकता अनुसार दोहराई जा सकती है।
  2. यदि पेट में दर्द हो जाए तो भी ऊपर लिखित तरीके से ली हुई हींग पूरा लाभ देगी।
  3. मौसमी बुखार आने लगे तो भी ऊपर लिखित तरीके से ली हुई हींग का सहारा ले सकते हैं। अधिक लाभ के लिए, थोड़ी-सी हींग, थोड़े-से जल में उबाल कर लेप या गाढ़ा पानी-सा बना लें। हाथ-पांव के सभी नाखूनों पर मोटा लेप कर लें। बुखार उतर जाएगा।
  4. मिरगी के दौरे पड़ रहे हों तो भी रोगी को हींग रोगमुक्त कर सकती है। भूत-प्रेत का प्रकोप होने से गश पड़ते हों, तो भी यह लाभकारी होगी। हींग का अर्क तीन घंटे बाद दिन में चार या पांच बार दें और हींग के तेल से पूरे शरीर में मालिश करें। तेल को नाक में भी सुंधा दें। यह क्रिया दिन में दो बार करें। सदा के लिए रोगमुक्त हो जाएंगे।
  5. नासूर की वजह से विकार आ जाए तो हींग की बत्ती को नासूर में रखें। हींग की चटनी को ‘निर्गुड़ी के काढ़े के साथ लें। 10-15 दिनों में पुराना नासूर खत्म हो जाएगा।
  6. यदि संग्रहणी रोग हो जाए, खाया-पिया न पचे, अथवा देर से पचे, कई बार शौच जाना पड़ता हो, खून की कमी होने लगे, शरीर दुबला पड़ने लगे, वायु की अधिकता बनी रहे, तो ‘हिंगु घृत’ का एक पखवाड़ा प्रयोग करने से पूर्ण लाभ होगा।
  7. हींग वास्तव में हल्की, गरम, सुपाच्य, भूख बढ़ाने वाली, वायु विकारों को खत्म करने वाली, स्वाद कड़वा, तेज तथा चिकनी मानी गई है। अतः यह हृदय के लिए लाभकारी, पेट के कीड़ों को समाप्त करने वाली, पेट दर्द से राहत देने वाली, चमड़ी रोग में राहत पहुंचाने वाली, पेट का तनाव खत्म करने वाली, आंखों के लिए लाभकारी है। हींग में अपार गुण हैं।
  8. यदि मौसमी बुखार हो जाए, और रोगी इससे परेशान रहने लगे तो भी हींग से उपचार हो सकता है। बुखार से डेढ़-दो घण्टे पहले, थोड़ी-सी असली तलाव किस्म की हींग लें। इससे चार गुणा पानी लें। उसे उबाल लें। जब गाढ़ा हो जाए तो इसे हाथ-पांव के नाखूनों पर लगाएं। इस समय यह सुहाता गरम हो। लेप मोटा हो। इसे तीन दिन तक करें। इससे मौसमी बुखार, ठंड लगने वाला ताप, मलेरिया सब टूट जाएगा। साथ ही नीम की गोली भी दें। ज्वर होने से पहले, एक-एक घंटे बाद गरम जल से देते रहें। जब बुखार चढ़ जाए तब नीम की गोली मत दें। लाभ होगा।
  9. पाचन शक्ति बढ़ाने के लिए, पेट की आग तेज करने के लिए, रोमकूप खोलने के लिए, हींग के तेल की मालिश करनी चाहिए। इससे पसीना भी आ जाता है। शरीर में ताकत बढ़ती है। अच्छी नींद आ जाती है। पेट में रुकी वायु नीचे को उतर जाती है। डकार भी आने लगती है। सुख मिलता है। (हींग का तेल बनाने की विधि आगे दी गई है)
  10. शरीर में संग्रहणी नाम का यन्त्र होता है। इसी के नाम पर बीमारी का नाम भी रखा गया है। जब कभी पेट की आग ज्यादा मन्द हो जाए, और पतली पोटियां आती रही हों, इसके ठीक होने पर खाने-पीने में बदपरहेजी की गई हो तो संग्रहणी बीमारी होने की संभावना बढ़ जाती है और कारण भी हो सकते हैं। इसमें वायु आदि दोष बिगड़ने से रोग पैदा होता है। वायु, पित्त, कफ और सत्रिपात में बिगाड़ आना भी इसका कारण है। बिना पचे भोजन का ज्यों-का-त्यों निकलना। पोटी में दुर्गन्ध, शरीर का भारी होना, भोजन हजम न होना, आलस, प्यास, सुस्ती महसूस होती है। इसलिए पेट की आग को तेज करना जरूरी हो जाता है। इसमें हिंगु घृत विशेष तौर पर लाभकारी है। मसूर का जूस या दूध एक कप लेकर इसमें एक चम्मच हिंगु घृत डालकर पीना चाहिए (हिंग घृत बनाने की विधि आगे दे रहे हैं ।)
  11. यदि नासूर हो जाए और बहुत परेशान करने लगे, ऐसे में ‘हींग की ‘चटनी’ को ‘निर्गुण्डी के काढ़े’ के साथ लेना ठीक रहता है। नासूर में हींग की बत्ती रखना भी बेहतर है। इन तीनों चीजों को कोई एक सप्ताह तक अमल में लायें। नासूर में भरा गंद निकल जाएगा, अथवा सूख जाएगा (हींग की चटनी आदि का वर्णन आगे दिया जा रहा है।)
  12. यदि मिरगी (हिस्टीरिया) से पीड़ित हों। इसे भूत चिपट जाना की बीमारी भी माना जाने लगे, तो इस प्रकार के लक्षणों वाली बीमारी में हींग का अर्क एक अच्छा उपचार है। रोगी को हर चार घंटे बाद, हींग का अर्क पिलायें। साथ ही साथ तैयार किए हींग के तेल से पूरे बदन पर मालिश जरूरी है। इसी तेल की नसवार भी लें। प्रातः व सायं मालिश और नसवार लाभ देंगी।

इस इलाज से हाथ-पांव में ऐंठन, बेहोशी, आंखों का टेढ़ा होना, उलूल-जलूल बकवास करना, डकारें आना सब बन्द हो जाएगा। (हींग का अर्क और तेल बनाने की विधियां आगे दी जा रही हैं।)

नीम की गोली बनाने का तरीका

नीम की छाल का बाहर का हिस्सा हटाकर अन्दर का नरम वाला लें एक तोला, कुटकी एक तोला, करंजुए की मींगी एक तोला, काली मिर्च भी एक तोला। इसके साथ ही चार तोले पारिजाते के पत्तों का रस लें। इन चारों चीजों को खरल करते रहें तथा साथ ही साथ रस को भी डालते रहें। धीरे-धीरे सारी चीजें बारीक हो जाएंगी और पारिजाते के पत्तों का रस भी खत्म हो जाएगा। छोटी-छोटी गोलियां (मात्रा 3-4 रत्ती ही) बनाकर धूप में सुखा लें। यही नीम की गोली है।

हींग का अर्क बनाने की विधि

तलाव- किस्म की असली शुद्ध हींग 60 ग्राम, घोड़ बच 30 ग्राम, कड़वा कूठ 100 ग्राम इन्हें कूट लें डेढ़ किलो पानी में भिगो दें। 24 घंटे भीगा रहने दें। अर्क बनाने के यन्त्र से अर्क (हींग के फायदे) बना लें। कोई पीना किलो अर्क तैयार हो जाएगा। हर तीन घंटों के बाद कोई 60-70 ग्राम के अन्दाज से, दिन में चार बार कैसे तैयार हो हींग का तेल

तेल सरसों 200 ग्राम, पानी 800 ग्राम, हींग (तलाव) 1 तोला, घोड़बच । तोला, कड़वा कूठ 1 तोला। ब्राह्मी । तोला। शंखपुष्पी । तोला। इनको कूटकर पानी में भीगने दें। कोई तीन घंटों के बाद इसे सिल बट्टे से पीस लें। लोहे की कड़ाही लेकर तेल उसमें डाल गरम करें। जब तेल से धुआं उठना शुरू हो जाए, इसे ठंडा कर लें। तीनों को कड़ाही में डालकर पकाना शुरू कर दें। पानी खत्म हो जाने पर तेल को ठंडा कर लें। तेल छान लें। मालिश में उपयोग करें।

हींग की चटनी बनाने की विधि

तलाव हींग को घी में भून लें मात्रा एक तोला। निम्न छः चीजें चार-चार तोले –

  1. हरड़
  2. बहेड़ा
  3. आंवला
  4. छोटी पीपल
  5. गुग्गल
  6. शिलाजीत। शहद 25 तोले

ऊपर दीं 1, 2, 3, 4, को कूटकर छान लें। अलग से हींग (हींग के फायदे), गुग्गल और शिलाजीत को पीस लें। इन सबको मिला दें। इन्हें थोड़ी-सी मात्रा घी में मिला, चिकना कर लें। एक बार फिर कूटें। इसे 24 घंटे यों ही रहने दें। फिर शहद में मिला दें। यही हींग की चटनी है। एक माशा प्रतिदिन, एक सप्ताह तक। फिर मात्रा दोगुनी कर दें।

निर्गुण्डी का काढ़ा बनाने का तरीका

निर्गुण्डी को म्यौड़ी भी कहते हैं। इसकी छाल दो तोले लें। पानी 500 ग्राम। छाल को कूटकर पानी में भिगो दें। सुबह इसे आंच पर चढ़ाकर सूखने दें। जब कोई 100 ग्राम पानी रह जाए। इसे छान लें। यही निर्गुण्डी का काढ़ा है और एक ही खुराक पहले हींग की चटनी खा लें, फिर इसे पीने से बहुत लाभ होता है। एक घंटा तक पानी मत पिएं।

हींग की बत्ती बनाने का तरीका

निम्न नौ चीजें लेकर पीस-छान लें। सबकी मात्रा समान हो।

S.Noनाम
1.हींग
2.हल्दी
3.दारुह हल्दी
4.रसौत
5.मजठि
6.नीम के पत्ते
7.निसोंथ
8.मालकांगनी
9.जमाल गोटा
हींग के फायदे

इन पाउडर को शहद के साथ नरम-मुलायम कर लें। साफ कपड़े की बत्ती में डालें। रात भर बत्ती नासूर में ही रहने दें। अगले दिन इसे निकालें। नीम के पत्तों से उबले पानी को हल्का ठंडा कर नासूर को धो लें। साफ कपड़े से पोंछकर सुखा लें। फिर नई बत्ती बनाकर डाल दें। यही इसे सुखा देगा।

हिंगु घृत बनाने की विधि

पांच तोले सफेद जीरा को भिगोकर रख दें। रात भर भीगा रहने दें। प्रातः सिल पर पीसकर छान लें। मात्रा 250 ग्राम बना लें। गाय या बकरी का शुद्ध घी 400 ग्राम। मसूर का जूस 200 ग्राम। बकरी का दूध का मट्ठा 400 ग्राम आदी का रस 200 ग्राम।

चित्रक की जड़ की छाल 500 ग्राम इसे चार घंटे भिगोकर रखें। अब सिल पर पीसकर तैयार कर लें। लोहे की कड़ाही में घी गरम करें। एक घंटे बाद सभी चीजें इस घी में डालकर हिलाएं। सारे सामान डालने के बाद चित्रक की लुगदी को इसी में ढंककर रख दें। धीमी आंच देकर थोड़ी बढ़ा दें। दरम्यानी (मद्धिम) आंच ही रखें। जब लगभग 100 ग्राम तरी बच जाए तो कड़ाही उतार कर ठंडा करें। अब घी छानकर अलग कर लें। यही हिंगु घृत है ।

50 ग्राम मसूर को 1 किलो पानी में भिगोकर रख दें। रात भर पड़ा रहने दें। सुबह इसे आंच पर गरम करें। उबलने दें। जब 150 ग्राम रह जाए, तो इसे मसलकर छान दें। हिंगु घृत को इस मसूर के पानी से लेना चाहिए। हमें असली और नकली हींग की पहचान जरूर आनी चाहिए। यदि हम पहचान न कर, नकली, घटिया हींग का प्रयोग करते हैं तो इससे होने वाले लाभ तो जाते रहेंगे, हानियां भी सहनी पड़ेंगी। अतः इस बात को ध्यान में रखकर असली हींग खरीदें, भले ही थोड़ी महंगी क्यों न हो।

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

Updated: July 23, 2023 — 11:01 am

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