शिक्षा का महत्व पर निबंध? जीवन में शिक्षा का महत्व निबंध?

शिक्षा का महत्व पर निबंध:- शिक्षा ही जीवन है एवं जीवन ही शिक्षा है। सचमुच किसी भी देश की वास्तविक प्रगति उस देश के नागरिकों की शिक्षा (Importance of Education in You Life Essay) पर निर्भर करती है। शिक्षा ही वह अमूल्य निधि है, जो मनुष्य को विश्व के अन्य प्राणियों से अलग कर उसे श्रेष्ठ एवं सामाजिक प्राणी के रूप में जीवन जीने के योग्य बनाती है। शिक्षा के अभाव में न केवल व्यक्ति का, बल्कि पूरे समाज का विकास अवरुद्ध हो जाता है। शिक्षा के इन्हीं महत्त्वों को देखते हुए भारत सरकार ने सबके लिए शिक्षा को अनिवार्य करने के उद्देश्य से शिक्षा का अधिकार अधिनियम पारित किया है।

शिक्षा का महत्व पर निबंध

शिक्षा का महत्व पर निबंध
Right to Education

“शिक्षा का अधिकार (Right to Education)

अधिनियम 2009 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा सुनिश्चित करता है। यह अधिनियम मूलतः वर्ष 2005 के शिक्षा के अधिकार विधेयक का संशोधित रूप है। सन् 2002 में संविधान के 86वें संशोधन द्वारा अनुच्छेद 21ए के भाग 3 के माध्यम से 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया था, इसको प्रभावी बनाने के लिए 4 अगस्त, 2009 को लोकसभा में यह अधिनियम पारित किया गया।

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यह अधिनियम 1 अप्रैल, 2010 से पूरे देश में लागू हुआ और इसी के साथ भारत, शिक्षा को मौलिक अधिकार का दर्जा देने वाले विश्व के अन्य 135 देशों की सूची में शामिल हो गया। अब भारत सरकार की यह कानूनी ही नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी भी बन गयी है कि वह राज्य, परिवार और समुदाय की सहायता से देश के सभी 6 से 14 वर्ष तक के बच्चों के लिए मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा सुनिश्चित करें। शिक्षा का महत्व पर निबंध

14 वर्ष तक के बच्चों को मिले मुफ्त शिक्षा

उल्लेखनीय है कि भारत द्वारा वर्ष 1950 में 14 वर्ष तक के बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा देने के लिए संविधान में प्रतिबद्धता का प्रावधान किया गया था, जिसे आगे चलकर अनुच्छेद 45 के तहत राज्यों के नीति-निदेशक सिद्धान्तों में शामिल कर लिया गया किन्तु इस विषय पर महत्त्वपूर्ण सफलता तब मिली,

जब 12 दिसम्बर, 2002 को संविधान में 86वें संशोधन के द्वारा अनुच्छेद 21 के भाग 3 के माध्यम से 6 से 14 वर्ष तक के सभी बच्चों को मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया। फिर तो, शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने से सम्बन्धित पहला प्रारूप अक्टूबर, 2003 में तैयार कर आम लोगों से इस पर राय और सुझाव आमन्त्रित किए गए। इस प्रारूप के लिए प्राप्त सुझावों के आधार पर मुफ्त एवं अनिवार्य शिक्षा विधेयक 2004 का संशोधित प्रारूप तैयार किया गया।

शिक्षा का अधिकार अधिनियम

केन्द्रीय शिक्षा सलाहकार परिषद् समिति द्वारा जून 2005 में पुनः इस प्रारूप को तैयार कर मानव संसाधन विकास मन्त्रालय को सौंप दिया गया, जिसे बाद में प्रधानमन्त्री के विचारार्थ भेजा गया। हालाँकि 2006 में वित्त समिति एवं योजना आयोग ने आवश्यक कोष का अभाव बताकर इसे नामंजूर कर दिया था। लेकिन कहते हैं न कि ईमानदारी से किया गया कोई भी कार्य व्यर्थ नहीं जाता। इस मामले में भी ऐसा ही हुआ। और आखिरकार 2 जुलाई, 2009 को इस विधेयक को कैबिनेट की मंजूरी मिल ही गई।

फिर क्या था, 20 जुलाई 2009 को राज्यसभा एवं 4 अगस्त, 2009 को लोकसभा में यह ‘शिक्षा का अधिकार अधिनियम’ पारित हो गया, , जिसे 3 सितम्बर, 2009 को राष्ट्रपति की स्वीकृति प्राप्त हो गई। और वह दिन आ ही गया, जब 1 अप्रैल, 2010 को यह अधिनियम जम्मू-कश्मीर को छोड़कर पूरे देश में लागू हो गया। सभी को गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मिल सके, इसके लिए केन्द्रीय एवं राज्य शिक्षक पात्रता परीक्षा की शुरूआत की गई है। प्राथमिक एवं माध्यमिक विद्यालय का शिक्षक बनने की इच्छा रखने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इस परीक्षा को उत्तीर्ण करना अनिवार्य है।

अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ

शिक्षा का अधिकार अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

  • भारत के 6 से 14 वर्ष आयु वर्ग वाले सभी बच्चों को मुफ्त एवं आधारभूत शिक्षा उपलब्ध कराना अनिवार्य है।
  • इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए बच्चों से किसी प्रकार का कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा और न ही उन्हें शुल्क अथवा किसी खर्च की वजह से आधारभूत शिक्षा लेने से वंचित किया जाएगा।
  • यदि 6 से अधिक किन्तु 14 वर्ष से कम उम्र का कोई भी बच्चा किन्हीं कारणों से विद्यालय नहीं जा पाता है तो उसे उसकी उम्र के अनुसार उचित कक्षा में प्रवेश दिलाया जाएगा।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों को क्रियान्वित करने के लिए यदि आवश्यक हुआ तो सम्बन्धित सरकार तथा स्थानीय प्रशासन को विद्यालय भी खोलना होगा। अधिनियम में यह भी प्रावधान है। कि यदि किसी क्षेत्र में विद्यालय नहीं है, तो वहाँ पर तीन वर्ष की तय अवधि में विद्यालय का निर्माण करवाया जाना आवश्यक है।
  • सत्र के दौरान छात्र कभी भी प्रवेश पा सकता है।
  • उम्र प्रमाण-पत्र नहीं होने की स्थिति में भी किसी बच्चे को प्रवेश लेने से वंचित नहीं किया जा सकता।
  • प्राथमिक शिक्षा पूरी कर लेने वाले छात्र को एक प्रमाण-पत्र दिया जाएगा।
  • राज्य सरकारों द्वारा बच्चों की आवश्यकता का ध्यान रखते हुए लाइब्रेरी, क्लासरूम, खेल का मैदान और अन्य जरूरी संसाधन उपलब्ध कराए जायेंगे।
  • शिक्षा की गुणवत्ता में अनिवार्य सुधार के लिए एक शिक्षक पर अधिकतम 40 छात्र सुनिश्चित करने और आवश्यक हुआ, तो इसके लिए नए शिक्षकों की भर्ती कर उन्हें प्रशिक्षित करने का प्रावधान भी इस अधिनियम में है।
  • स्कूल शिक्षक द्वारा पाँच वर्षों के भीतर समुचित व्यावसायिक डिग्री प्राप्त नहीं करने की स्थिति में उसे नौकरी से वंचित करने का प्रावधान भी अधिनियम में है।
  • स्कूल का बुनियादी ढाँचा 3 वर्षों के भीतर नहीं सुधारने की स्थिति में उनकी मान्यता रद्द करने का प्रावधान भी इस अधिनियम में है।
  • सभी निजी स्कूलों की कक्षा 1 में आर्थिक रूप से कमजोर समुदायों (गरीबों) के बच्चों को प्रवेश हेतु 25 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
  • इस अधिनियम के प्रावधानों को प्रभावी बनाने की जिम्मेदारी केन्द्र एवं राज्य सरकार दोनों की है। वित्तीय खर्च भी दोनों सरकारों द्वारा वहन किया जाएगा।

अधिनियम की कुछ खामियाँ

एक ओर जहाँ शिक्षा का अधिकार अधिनियम में अनेक खूबियाँ हैं, वहीं इस अधिनियम में कुछ खामियाँ भी हैं, जो इस प्रकार हैं-

  • इस अधिनियम की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें 0-6 वर्ष आयु वर्ग और 14-18 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों पर ध्यान नहीं दिया गया है। अन्तर्राष्ट्रीय बाल अधिकार समझौते के अनुसार 18 वर्ष की आयु तक के बच्चों को बच्चा माना गया है, जिसे भारत सहित 142 देशों ने स्वीकृति प्रदान की है, फिर क्यों 14-18 वर्ष आयु-वर्ग के लिए शिक्षा की बात इस अधिनियम में नहीं की गई है।

इस अधिनियम की खामियों को यदि हम दरकिनार कर दें तो इसकी महत्ता से इनकार नहीं किया जा सकता। इसमें 6-14 वर्ष आयु वर्ग के सभी बच्चों को अनिवार्य रूप से प्रारम्भिक से माध्यमिक स्कूल तक की शिक्षा देने पर जोर दिया गया है। इससे इस आयु वर्ग के बच्चों का भविष्य उज्ज्वल होगा। इस अधिनियम का सर्वाधिक लाभ श्रमिकों के बच्चों, बाल मजदूरों, आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों या फिर ऐसे बच्चों को मिलेगा; जो सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, भौगोलिक, भाषाई अथवा अन्य कारणों से शिक्षा से वंचित रह जाते हैं।

भविष्य के निर्माण में शिक्षा का योगदान

इस अधिनियम के लागू होने के बाद यह आशा की जा सकती है कि विद्यालय न जाने वाले एवं बीच में ही विद्यालय छोड़ने वाले बच्चों को अब प्रशिक्षित शिक्षकों द्वारा गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त हो सकेगी। किसी भी देश में शिक्षित नागरिकों का बड़ा महत्त्व होता है। आर्थिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए हर स्तर पर जनशक्ति का विकास शिक्षा द्वारा ही होता है। शिक्षा के आधार पर ही अनुसन्धान और विकास को बल मिलता है। इस तरह शिक्षा वर्तमान ही नहीं भविष्य के निर्माण का भी सर्वाधिक महत्तवपूर्ण साधन है। इन सब दृष्टिकोणों से भी शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है।

हालाँकि यह दुर्भाग्य की बात है कि 86वें संविधान संशोधन 2002 में ही 6-14 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों के अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा के अधिकार की बात कही गई थी और सरकार 2010 में इसे अधिनियम के रूप में लागू कर पाई। यदि इसे काफी पहले पारित कर लागू कर दिया जाता, तो 2002 से 2010 के बीच के आठ वर्षों में बच्चों की पूरी एक पीढ़ी इस अधिकार से वंचित न हो पाती। लेकिन कोई बात नहीं देर आयद, दुरुस्त आयद! आशा है आने वाले समय में इस अधिनियम की सहायता से सबको समान रूप से शिक्षा प्राप्ति के अवसर उपलब्ध होंगे एवं विकास को अपेक्षित गति प्रदान की जा सकेगी। शिक्षा का महत्व पर निबंध

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