याददाश्त बढ़ाने के घरेलू उपाय, तरीका, योग और याददाश्त तेज कैसे करें

याददाश्त बढ़ाने के घरेलू उपाय, तरीका, योग और याददाश्त तेज कैसे करें। प्राय: जब हम कुछ याद करने की कोशिश करते हैं तो सिर खुजाते हैं। यह इस बात का द्योतक है कि स्मृति (याददाश्त) मस्तिष्क में स्थित है। हमारे सिर में दो महत्वपूर्ण अवयव हैं- (1) सेरीब्रम, (2) सेरीवेलम अर्थात् बड़ा मस्तिष्क और छोटा मस्तिष्क। इसके अतिरिक्त पीयूष ग्रन्थि (पिट्यूटरी ग्लैंड) है जो माथे में भृकुटि के पीछे स्थित होती है और पीनियल ग्लैंड जो पीयूष ग्रन्थि के पीछे स्थित होती है। इनके अलावा संवेदना एवं प्रज्ञा के और अन्य केन्द्र भी हैं।

याददाश्त बढ़ाने के घरेलू उपाय

याददाश्त बढ़ाने के घरेलू उपाय

याददाश्त तेज कैसे करें

वस्तुतः मस्तिष्क में किस बिन्दु विशेष पर याददाश्त का भण्डारण होता है। इस बात का अभी तक केवल सीमित ज्ञान ही उपलब्ध है। अनेक विद्वानों का मत निम्नवत् है-

  1. कुछ कहते हैं कि मस्तिष्क के बिन्दु विशेष में केद्रित होती है ।
  2. दूसरे लोग कहते हैं कि मस्तिष्क का अधिकांश भाग याददाश्त के भण्डारण के लिए प्रयुक्त होता है ।
  3. मस्तिष्क की शोध में कार्यरत वैज्ञानिक का मत है कि मस्तिष्क में याददाश्त का भंडारण दो भागों में होता है (अ) पहले भाग में प्रारम्भिक भंडारण थोड़े समय के लिए होता है । (ब) तत्पश्चात् दूसरे भाग में लम्बी अवधि के लिए भंडारण होता है।
  4. शारीरिक विज्ञान के विद्वानों और शोधकर्ताओं का मानना है कि विभिन्न विषयों से सम्बन्धित सूचनाओं के भंडारण के लिए मस्तिष्क में अलग-अलग विभाग हैं। मस्तिष्क के भाग विशेष में जिसे हिप्पोकैम्पस और थैलेमस कहते हैं, वहाँ अधिकतर यादों की आकृतियाँ भंडारित होती है। इस भंडारण गृह में अधिकतर स्थानों से सम्बन्धित यादें रखी जाती हैं

मस्तिष्क के विपरीत भाग ऐमीग्रेला में ज्यादातर संवेदनशील जानकारियाँ रखी जाती हैं । शोधकर्ताओं का यह भी मानना है कि वे यादें जो हमारी कार्यकुशलता अथवा अंतर्दृष्टि में वृद्धि करती हैं, मस्तिष्क में एक विशेष स्थान पर जमा रहती है।

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स्मरण – शक्ति वस्तु विषयों से सम्बन्धित श्रृंखला को सूक्ष्मता पूर्वक भंडारित करती हैं और आवश्यकतानुसार सूचनाओं को उपलब्ध करवाती है। यह धारणा शक्ति-शिक्षा और चिन्तन का केन्द्र है। मनोवैज्ञानिक स्मरणशक्ति अथवा धारणा शक्ति को निम्नलिखित भागों में बाँट सकते हैं-

1.स्मरण
2.पुनः आकलन
3.अभिज्ञान अर्थात् पहचान
4.पुनर्ज्ञान
याददाश्त बढ़ाने के घरेलू उपाय

मनोवैज्ञानिकों ने याददाश्त के बारे में जो कुछ खोजबीन की है, उसके आधार पर उनका मानना है कि हमारी चेतना के सम्पर्क में आने वाली जो बातें हमें याद रखनी चाहिये, वे याद रहती हैं और जो भूल जाने योग्य हैं, वे भूल जाती हैं ।

याद रखने के गुर

किसी वस्तु या घटना को याद रखने के लिए आई. आर. ए. नामक सूत्र का सहारा लिया जा सकता है। इसका अर्थ है-

  • आई – इसका अर्थ है इम्प्रेशन या छाप ।
  • आर – इसका अर्थ है रेपेटीशन या दुहराना ।
  • ए – इसका अर्थ है एसोसियेशन या सगुणन ।

जब किसी बात को पढ़ते, देखते, सुनते हुए अगर हम अपने को एकाग्र रखें तो मन पर उसकी बात अच्छी छाप बनाई जा सकती है। यही ‘आई’ है। अर्थात् इम्प्रेशन । किसी विषय पर मनन करना ही उसे दोहराना है। अगर हमने किसी ड्रामे या सिनेमा के बारे में रोचक बातचीत या कहानी को ध्यान से सुनकर उसे ड्रामे या सिनेमा को पुनः देखें तो वह ‘आर’ है अर्थात् रेपीटीशन है । अगर लम्बे अंतराल पर भी किसी व्यक्ति या विषय का जिक्र हो तो यथोचित सगुणन के आधार पर हम तुरन्त पहचान सकते हैं। यानि पूर्व में देखे हुए व्यक्ति या सुने हुए विषय को पुनः पहचानने के लिए यदि दिमाग पर जोर डालें तो हमें याद आ जायेगा । इसी को ‘ए’ अर्थात् एसोसियेशन या सगुणन कहते हैं ।

भूल जाने के मुख्य कारण

किसी याद की गई बात को भूल जाने के चार लक्षण हैं-

1. स्मृति पटल का धूमिल होना जैसे

जैसे समय व्यतीत होता जाता है। हमारे स्नायुतंत्र में रासायनिक परिवर्तन होते रहते हैं जिसके कारण स्मृति धूमिल हो जाती है, फिर भी उसका कुछ न कुछ अंश याद रहता है ।

2. समय के साथ स्मृति का मंद हो जाना

समय के साथ स्मृति बिखर जाती है या मंद हो जाती है। अगर, याद की हुई बात या घटना को अक्सर याद नहीं करते रहते हैं तो संभव तक वह विस्मृत हो जाती है ।

3. नये ज्ञान को धारण कर लेना

जब हम अपने स्मृति में नये ज्ञान या घटना को धारण कर लेते हैं तो पुराना ज्ञान या बात विस्मृत होना संभव है क्योंकि उसका नया परिवर्तित ज्ञान अब हमें प्राप्त हो गया है और पुराने की कोई उपयोगिता नहीं रह गई है

4. स्वयं भुलाने की इच्छा

जब व्यक्ति किन्हीं घटना या परिस्थितियों को स्वयं भूल चाहता है तो वह मन को अन्य दिशा में मोड़ लेता है तो वह विस्मृत हो जाती है

यौगिक उपचार

आसन

पद्मासन, सिद्धासन, वज्रासन, स्वास्तिकासन या फिर पालथी मारकर कम से कम 5-10 मिनट बैठने से प्रारम्भ करें। धीरे-धीरे अपनी क्षमता एवं समय अनुसार यह बैठने का अभ्यास तीन घंटे तक बढ़ा सकते हैं। पर ध्यान रहे कि पीठ एवं रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधी रखें। उक्त आसनों में बैठने से टाँगों और जाँघों की माँसपेशियों की रक्त की आपूर्ति सीमित मात्रा में होगी और पेट, हृदय एवं सिर को अधिक मात्रा में रक्त प्राप्त होगा । इस वजह से स्नायु मस्तिष्क मजबूत होंगे तंत्र और

यदि सुबह, दोपहर एवं रात्रि में सोने से पहले चार बार ओंकार का दीर्घ उच्चारण 10-15 मिनट तक किया जाये तो सिर को अतिरिक्त मात्रा में रक्त की आपूर्ति होती है । वस्तुतः शीर्षासन एवं सर्वांगासन के नित्य अभ्यास से बुद्धि कुशाग्र होती है क्योंकि ये आसन शरीर को सिर के बल उल्टा करके किये जाते हैं। अतः थोड़े से प्रयत्न से हृदय सिर की ओर रक्त को पम्प कर सकता है. यह एक निर्विवाद सत्य है कि हर व्यक्ति के मस्तिष्क की शक्ति एवं क्षमता विशाल होती है जिसका हम केवपल 2-2% उपयोग कर पाते हैं। यदि हम थोड़ा सा भी प्रयत्न कर लें तो उस विशाल शक्ति का उपयोग कर सकते हैं।

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अस्वीकरण – यहां पर दी गई जानकारी एक सामान्य जानकारी है। यहां पर दी गई जानकारी से चिकित्सा कि राय बिल्कुल नहीं दी जाती। यदि आपको कोई भी बीमारी या समस्या है तो आपको डॉक्टर या विशेषज्ञ से परामर्श लेना चाहिए। Candefine.com के द्वारा दी गई जानकारी किसी भी जिम्मेदारी का दावा नहीं करता है।