अपच क्या है, अपच के मुख्य कारण, लक्षण, प्रकार, यौगिक चिकित्सा, आहार और सावधानी क्या रखनी चाहिए के बारे में बात करेंगे। अजीर्ण (अपच) को अंग्रेजी में डिस्पेप्सिया कहते हैं। यह एक ग्रीक शब्द है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है- कठिनाई से भोजन पचना। उसे हिन्दी में अपचन (Indigestion), मन्दाग्नि या इन्डाईजैशन कहते हैं। यह एक ऐसा आम रोग है जो अनेक रोगों को उत्पन्न करता है। इसमें भूख मर जाती है फिर भी लोग आदतन खाना खाते रहते हैं, फलस्वरूप रोग पनपता रहता है।
अपच क्या है, अपच के मुख्य कारण, लक्षण, प्रकार, यौगिक चिकित्सा, आहार और सावधानी

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अपच के कारण
- अधिक एवं असमय भोजन करना।
- शारीरिक परिश्रम का अभाव।
- चाय, कॉफी, माँस, मदिरा, मिठाई, मैदा से बने पदार्थ। गर्म, मिर्च मसालेयुक्त उत्तेजक भोजन। फास्ट फूड एवं जंक फूड डिब्बा बन्द आहार, बिना चबाये जल्दी-जल्दी खाना, चिन्ता, अवसाद, अजीर्ण उत्पन्न करता है।
- कुछ रोग जैसे गठिया, कैंसर, मधुमेह, फेफड़े, गुर्दे, यकृत (लीवर) के विभिन्न रोगों में भी अजीर्ण के लक्षण दिखते हैं।
- ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, तनाव संवेगों का सीधा प्रभाव पाचन-क्रिया पर पड़ता है क्योंकि इस स्थिति में पाचक ग्रन्थियाँ सिकुड़ जाती हैं। जिसके कारण पाचक रस निकलना बन्द हो जाता है और पाचन क्रिया बाधित हो जाती है।
अपच के लक्षण
इस रोग में छाती पर दबाव एवं कठोरता मालूम होती है। सिर में दर्द, मानसिक उदासी, चिड़चिड़ापन, खिन्नता, आलस्य, प्रमाद, जी मिचलाना, जीभ का मैलापन, दस्त आना, कब्ज हो जाना, मूत्र का गन्दाहोना, गले में जलन, गैस बनना, खट्टी डकार आना, पेट में भारीपन, कभी-कभी पेट में दर्द होना, मुँह में बार-बार पानी आना, पेशाब के साथ फास्फेट (सफेद पदार्थ) निकलना, स्वप्नदोष, प्रमेह, श्वेत प्रदर की शिकायत बढ़ जाना है।
अपच (अजीर्ण) के प्रकार
यह रोग मुख्यतः दो प्रकार का होता है
1. फरमेन्टेटिव डिस्पेप्सिया (वायुफल्लताजन्य अजीर्ण)
भोजन के कार्बोहाइड्रेट तथा स्टार्च के न पचने के कारण इस प्रकार का अजीर्ण उत्पन्न होता है। आमाशय में पाचक गैस्ट्रिक रस कम निकलने के कारण पाचन-क्रिया ठीक प्रकार से नहीं हो पाती जिसके कारण अधपचा भोजन आमाशय में पड़ा सड़ता रहता है जो अन्त में आँतों में खिसक जाता है।
2. प्यूट्रिड डिस्पेप्सिया (दुर्गन्धयुक्त अजीण)
प्रोटीन का पाचन आमाशय में होता है। पर, पाचक रस के कम निकलने से उसका पाचन पूरी तरह नहीं हो पाता है। प्रोटीन के न पचने से तथा खमीरीकरण सड़न के कारण मल में अत्यधिक बदबू उत्पन्न हो जाती है। मल में अपचित आहार विशेष रूप से प्रोटीन नाइट्रोजन के अंश (क्रीटोरिया) तथा कार्बनिक योगिकों की मात्रा बढ़ जाती है और उपयोगी बैक्टिरियल फ्लोरा का अभाव हो जाता है। ऐसी स्थिति को प्यूट्रिड डिस्पेप्सिया कहते हैं।
यौगिक चिकित्सा
आसन
- वज्रासन, पद्मासन, योग मुद्रा
- चक्की चलन आसन
- पश्चिमोत्तानासन
- उत्तानपादासन
- पवन मुक्तासन
- शलभासन
- नौकासन
- सर्वांगासन
- हलासन
- मत्स्यासन
प्राणायाम
- अग्निसार प्राणायाम
- सूर्यभेदी प्राणायाम
- नाड़ीशोधन प्राणायाम
- उज्जायी प्राणायाम
किसी योग्य निर्देशन में अपनी क्षमता एवं रोग की तीव्रतानुसार आसन प्राणायाम करें तो हितकर होगा।
आहार सम्बन्धी सुझाव
- सबेरे उठते ही नित्य प्रति 3-4 गिलास पानी पियें।
- यदि एसीडिटी नहीं है तो 2-3 नीबू का सेवन पर्याप्त मात्रा में जल के साथ करना चाहिये।
- अजीर्ण की तरह अन्य रोगों में भूख खत्म हो जाने का अर्थ है कि शरीर में विष संचित हो गया है अतः रोगी को भोजन बन्द कर देना चाहिये और यदि संभव हो तो 3-4 दिन केवल रस, पानी, नीबू, शहद पर रहना चाहिये इससे संचित दूषित पदार्थ घुलकर बाहर निकल जाते हैं।
- उपवास के बाद स्वाभाविक भूख लगने पर सुविधानुसार संतरा, सेब, अनार, मौसमी, गाजर, लौकी का सूप, नारियल का पानी, छाछ, छेने का पानी अथवा 24 घण्टे पहले भिगोये हुए किशमिश या मुनक्कों को मसलकर छानकर पियें।
- विटामिन बी में वस्तुतः कई तत्व मिश्रित होते हैं अत: इसे ‘बी’ कॉम्पलेक्स कहा जाता है। जैसे बी-1, बी-2, बी-3, बी-6, बी-12 आदि । यह विटामिन बिना पालिश का सादा चावल, गेहूँ, बाजरा, चना, मूंग की दाल, लोबिया, सोयाबीन, अंकुरित दाल एवं अनाज, मूँगफली, दूध, पनीर, हरी सब्जियाँ, आलू, आम, सेब, संतरा, पपीता में पाया जाता है। अतः अजीर्ण के रोगी को इन पदार्थों का सेवन करना चाहिये। विटामिन ‘सी’, जौ, संतरा, मौसम्मी, अनन्नास, अनार, फालसा, अमरूद, हरी मिर्च, चुकन्दर, टमाटर, हरे पत्तेदार साग, सलाद के पत्ते, करेला, शलजम, पालक, मेथी में पाया जाता है, उसका भी सेवन लाभप्रद होगा।
- अजीर्ण एवं उदर के रोगों में यदि आधा कप साफ गेहूँ को दो कप पानी में भिगोकर 36 घण्टे बाद पियें। इसे रेजुवेलक पेय कहते हैं। इसी गेहूँ का भिगोकर तीन बार प्रयोग किया जा सकता है। बाद में इसको फेंक दें। इस पेय में उच्च गुणों से युक्त प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, डेक्सट्रिन्स, फास्फोरस, सैकराइन्स, लैक्टोवैसली, सैकरामाइसेज तथा एसपिरेगिलस आरोइपो प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। अतः इसे पुनः यौवनदाता इन्जाइमेटिक रेजुवेलक पेय कहते हैं। यह पेय पाचन संस्थान को सबल एवं सामर्थ्यवान बनाने वाला अनमोल दिव्य रसायन है।
सावधानी
- अजीर्ण बढ़ाने वाले उत्तेजक पदार्थ जैसे अधिक मिर्च-मसाले, तली चीजें, शराब आदि का सेवन न करें।
- प्रसन्नचित्त से धीरे-धीरे चबा-चबाकर भोजन करें।
- रात्रि को भोजन सूर्यास्त से पहले ही कर लेना चाहिये। भोजन भूख से आधा ही करें।
- कोई पाचक चूर्ण, गोली अथवा टॉनिक का प्रयोग न करें क्योंकि इनका उत्तेजक पदार्थ रोग को और जटिल बना देता है।
रोगी को चाहिये कि धैर्य के साथ आसन, प्राणायाम का अभ्यास करें तथा भोजन सम्बन्धी सावधानियाँ बरतें, रोग जड़ से चला जायेगा।
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