भारत की आंतरिक सुरक्षा व चुनौतियाँ:- कोई भी देश तब ही प्रगति की राह पर अग्रसर रह सकता है, जब इसके नागरिक अपने देश में सुरक्षित हो। असुरक्षा की भावना न केवल नागरिकों का जीना दूभर कर देती है, बल्कि इससे देश की शान्ति एवं सुव्यवस्था के साथ-साथ इसकी प्रगति पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
भारत आज निःसन्देह बहुत तेजी से प्रगति कर रहा है, किन्तु इसकी आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष ऐसी चुनौतियाँ हैं, जो इसकी शान्ति एवं सुव्यवस्था पर प्रश्न चिह्न लगाती हैं। क्षेत्रवाद, साम्प्रदायिकता, आतंकवाद, नक्सलवाद, भाषावाद, अलगाववाद इत्यादि भारत की आन्तरिक सुरक्षा के समक्ष ऐसी ही कुछ खतरनाक चुनौतियाँ हैं।
भारत की आंतरिक सुरक्षा व चुनौतियाँ

क्षेत्रवाद
क्षेत्र के निवासियों द्वारा अपने क्षेत्र के प्रति निष्ठा रखना, उसे अन्यों से विशिष्ट मानना और क्षेत्र के हितों के प्रति जागरूक रहना क्षेत्रवाद है, लेकिन इसके संकीर्ण रूप ले लेने पर क्षेत्र बनाम राष्ट्र की भावना आ जाती है और तब सिर्फ क्षेत्र-विशेष की सुविधाओं की इच्छा के कारण यह नकारात्मक अवधारणा बन जाती है। इस तरह क्षेत्रवाद से तात्पर्य किसी क्षेत्र के लोगों की उस भावना एवं प्रयत्नों से हैं, जिनके द्वारा वे अपने क्षेत्र विशेष की आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक आदि शक्तियों में वृद्धि करना चाहते हैं।
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क्षेत्रवाद हमारी इस राष्ट्रीय एकता के मार्ग में बहुत बड़ी बाधा है। भारतीय राजनीति में क्षेत्रवाद के पनपने के कई कारण है। भौगोलिक विभिन्नता, आर्थिक असन्तुलन, भाषागत विभिन्नता व राज्यों के आकार में असमानता के कारण क्षेत्रवाद की समस्या अधिक तीव्र हुई है एवं पृथकतावाद को प्रोत्साहन मिला है। विकास में असन्तुलन के कारण भी राज्यों में मतभेद उभरते हैं। इन सबके अतिरिक्त भारत में जातिवाद के कारण भी क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिला है तथा हरियाणा और पंजाब इसके उदाहरण हैं।
साम्प्रदायिकता
इतिहास साक्षी है कि अनेक धर्मों, जातियों एवं भाषाओं वाला यह देश अनेक विसंगतियों के बावजूद सदा एकता के एक सूत्र में बंधा रहा है। यहाँ अनेक जातियों का आगमन हुआ और उनकी परम्पराएँ, विचारधाराएं और संस्कृति इस देश के साथ एकरूप हो गई। इस देश के हिन्दू, मुसलमान, सिख, ईसाई सभी परस्पर प्रेम से रहना चाहते हैं, लेकिन भ्रष्ट राजनेता उन्हें बाँटकर अपना उल्लू सीधा करने में जुटे रहते हैं। इस तरह धार्मिक कट्टरता के नाम पर कुछ स्वार्थी लोग दूसरे लोगों के दिलों में साम्प्रदायिकता की भावना भड़काकर देश को कमजोर करने की कोशिश कर रहे हैं।
आतंकवाद
वैसे तो आज लगभग पूरा विश्व ही किसी न किसी रूप में आतंकवाद की चपेट में है, किन्तु भारत दुनिया भर में आतंकवाद से सर्वाधिक त्रस्त देशों में से एक है। पिछले कुछ दशकों से भारत में आतंकी घटनाओं की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में आतंकवाद से सर्वाधिक त्रस्त राज्य जम्मू कश्मीर है। यूँ तो जम्मू-कश्मीर में स्वतन्त्रता प्राप्ति के साथ ही आतंकवाद प्रारम्भ हो गया था, जिसको पाकिस्तान से हमेशा प्रश्रय मिलता रहा है, किन्तु 1986 के बाद इसने गम्भीर रूप धारण कर लिया और अब भारत के लिए “कश्मीर समस्या’ सर्वाधिक ज्वलन्त समस्या का रूप धारण कर चुका है। इस आतंकवाद के केन्द्र में न केवल अलगाववादी संगठन, बल्कि मुस्लिम कट्टरपन्थी एवं पाकिस्तान समर्थित संगठन भी शामिल हैं।
नक्सलवाद
भारत में नक्सलवाद की शुरूआत स्वाधीनता संग्राम से पहले ही हो चुकी थी, जो साम्यवादी या अन्य क्रान्तिकारी विचारधारा के रूप में यहाँ अपनी जड़ें जमा चुका था, किन्तु इसे यह नाम पश्चिम बंगाल के नक्सलवाड़ी नामक स्थान से मिला। मार्च 1967 में इस गाँव के एक आदिवासी किसान बियल किसन के खेत पर स्थानीय भूस्वामियों ने अधिकार कर लिया। इसकी प्रतिक्रियास्वरूप उस क्षेत्र के आदिवासियों ने भू-स्वामियों के विरुद्ध सशस्त्र विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को साम्यवादी क्रान्तिकारियों का भारी समर्थन मिला।
धीरे-धीरे इस तरह के विद्रोह भारत में अन्य जगहों पर भी होने लगे और उन्हें नक्सलवाड़ी में हुए ऐसे प्रथम विद्रोह के नाम पर नक्सलवादी विद्रोह का नाम दिया गया। इस तरह विद्रोह के एक नए रूप नक्सलवाद का प्रादुर्भाव हुआ। प्रारम्भ में यह विद्रोह पश्चिम बंगाल तक ही सीमित था, किन्तु धीरे-धीरे यह उड़ीसा, बिहार, झारखण्ड, आन्ध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र एवं छत्तीसगढ़ के क्षेत्रों में भी फैल गया। पहले इसका उद्देश्य भी अपने वास्तविक हक की लड़ाई था, किन्तु अब यह बहुत ही हिंसक विद्रोह के रूप में देश के लिए एक गम्भीर समस्या एवं चुनौती बन चुका है।
भाषावाद
भारत बहुभाषी देश है। यहाँ अनेक भाषाएँ बोलने वाले लोग रहते हैं। भाषाओं की बहुलता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि भारत के संविधान में ही 22 भाषाओं को मान्यता प्राप्त है। हिन्दी भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है, इसलिए इसे राजभाषा का दर्जा प्राप्त है। इसके बाद बांग्ला भारत में दूसरी सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। इसी तरह तमिल, तेलुगू, कन्नड़, मलयालम, मराठी इत्यादि अन्य भाषाएँ बोलने वालों की संख्या भी काफी है।
भाषाओं की बहुलता के कारण भाषायी वर्चस्व की राजनीति ने भाषावाद का रूप धारण कर लिया है। इसने अब तक कई संघर्षो को जन्म दिया है। विशेषकर दक्षिण भारत के लोग हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाए जाने का शुरू से विरोध करते रहे हैं एवं अपने विरोध-प्रदर्शन के लिए उन्होंने अब तक कई आन्दोलन भी किए है। इस तरह भाषावाद भी हमारी आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरे का रूप लेता जा रहा है।
अलगाववाद
भारत की संघात्मक व्यवस्था में प्रशासनिक एकरूपता पर बल दिया गया है। किन्तु, दुर्भाग्य से देश के कई भागों से नए राज्यों की माँग उठती रही है और नए राज्य न सिर्फ बनते रहे बल्कि एक के बाद एक नए राज्यों की माँग जोर पकड़ती जा रही है। 1953 में आन्ध्र प्रदेश का गठन भाषा के आधार पर किया गया था। उसके बाद सन् 2000 आते-आते भारत के कुल राज्यों की संख्या 28 हो गई। ध्यातव्य है कि अधिक अधिकार एवं सुविधाओं के नाम पर अब तक कई राज्यों का विभाजन या पुनर्गठन हो चुका है। जैसे उत्तर प्रदेश से उत्तराखण्ड, बिहार से झारखण्ड, मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ इत्यादि। इन सबके अतिरिक्त अब आन्ध्र प्रदेश से तेलंगाना, पश्चिम बंगाल से गोरखालैण्ड, बिहार से मिथिलांचल, असोम से बोडोलैण्ड, उत्तर प्रदेश से पूर्वांचल इत्यादि क्षेत्रों को भी राज्यों के रूप में अलग करने की माँगें जोर पकड़ते जा रही हैं।
आन्तरिक सुरक्षा विभाग का गठन
भारत सरकार का गृह मन्त्रालय आन्तरिक सुरक्षा से सम्बन्धित सभी मामले देखता है। इसके लिए इसके संघटक के रूप में आन्तरिक सुरक्षा विभाग का गठन किया गया है जो पुलिस, कानून और व्यवस्था तथा शरणार्थियों के पुनर्वास सम्बन्धी कार्य देखता है। जनवरी 2009 एवं फरवरी 2010 में आन्तरिक सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए प्रधानमन्त्री की अध्यक्षता में देश के सभी राज्यों के मुख्यमन्त्रियों का सम्मेलन आयोजित किया गया, जिसमें आन्तरिक सुरक्षा की स्थिति एवं इसके खतरों से निपटने के लिए आवश्यक कार्रवाई पर विस्तार से चर्चा हुई।
इसके बाद देश के सुरक्षा तन्त्र को सुदृढ़ बनने के लिए सरकार द्वारा कई उपाय किए गए। इनमें राष्ट्रीय जाँच एजेन्सी को कार्यात्मक बनाना, चार राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड हबों की स्थापना करना जिससे कि किसी सम्भावित आतंकी हमले से तीव्र एवं प्रभावी ढंग से निपटना सुनिश्चित हो सके, इन्टेलीजेन्स ब्यूरो की क्षमता को बढ़ाना जिससे यह चौबीसों घण्टे कार्य करने योग्य हो सके, केन्द्रीय अर्द्धसैनिक बलों की क्षमता बढ़ाना तथा तटीय सुरक्षा को मजबूत करना शामिल हैं।
आन्तरिक सुरक्षा की चुनौतियों का समाधान
राष्ट्र की आन्तरिक शान्ति तथा बाहरी दुश्मनों से रक्षा के लिए आन्तरिक सुरक्षा की इन चुनौतियों का शीघ्र समाधान परम आवश्यक है। इसके लिए केवल सरकारी प्रयासों से कुछ नहीं हो सकता, प्रत्येक नागरिक को आगे बढ़कर इसे रोकने का प्रयास करना होगा। यदि हम भारतवासी किसी कारणवश छिन्न-भिन्न हो गए, तो हमारी पारस्परिक फूट को देखकर अन्य देश हमारी स्वतन्त्रता को हड़पने का प्रयास करेंगे। यदि आतंकवाद, भाषावाद, क्षेत्रवाद, अलगाववाद, साम्प्रदायिकता एवं नक्सलवाद जैसी विघटनकारी और विध्वंसकारी प्रवृत्तियों को पूरी तरह से नियन्त्रित नहीं किया गया, तो भारत की एकता और अखण्डता पर हमेशा खतरा मंडराता रहेगा। जब देश में कोई भी दो राष्ट्रीय घटक आपस में संघर्ष करते हैं, तो उसका दुष्परिणाम पूरे देश को भुगतना पड़ता है।
निष्कर्ष
अतः भारत के प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि इसकी एकता और अखण्डता बनाए रखने के लिए हर बलिदान और त्याग करने को तत्पर रहे। हम अपनी चौकन्नी दृष्टि से ऐसे तत्त्वों को पनपने से रोक सकते हैं। देश के बुद्धिजीवियों और प्रबुद्ध नागरिकों का कर्तव्य है कि वे देश की जनता को इस दिशा में जागरूक कर समूचे राष्ट्र की एकता कायम रखने में अपना अमूल्य योगदान दें। चूँकि सशक्त और समृद्ध राष्ट्र ही राष्ट्रीय एकता की आधारशिला होती है इसीलिए देश की एकता और अखण्डता की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है।
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