जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय: जयप्रकाश नारायण का जन्म 11 सितम्बर, 1895 को पटना जिले के सिताय दिआरा गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम हरसूदयाल था। एवं उनकी माता का नाम फूलरानी था। साहस, निर्भीकता, त्याग, तपस्या और कष्टों को सहने की शक्ति से परिपूर्ण श्री जयप्रकाश उन लोकनायकों में से एक थे जो प्रजा के हित में लगातार लगे रहने के कारण लोकप्रिय नेता बन जाते हैं।
जयप्रकाश नारायण का जीवन परिचय

Jayaprakash Narayan Biography in Hindi
जन्म | 11 अक्टूबर 1902 |
जन्म स्थान | पटना जिले के सिताय दिआरा गाँव |
पिता का नाम | हरसूदयाल |
माता का नाम | माता का नाम |
मृत्यु | 8 अक्टूबर 1979 |
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जन्म एवं परिचय
आपका जन्म सन् 1902 में विजयदशमी के दिन पटना जिले के सिताय दिआरा गाँव में एक प्रतिष्ठित कायस्थ परिवार में हुआ था। आपके पिता का नाम हरसूदयाल तथा माता का नाम फूलरानी था। आपके पिता रेवेन्यू अधिकारी थे।
बचपन में जयप्रकाशजी पाते रहे। बहुत सीधे-सादे थे। स्कूली जीवन में वे छात्रवृत्ति प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त कर आपने पटना के कालेजियेट स्कूल में प्रवेश लिया और सरस्वती भवन छात्रावास में रहने लगे। सरस्वती भवन के छात्र राजनीति में भाग लेते थे। अतः आपमें भी राष्ट्रचेतना आ गई। सन् 1919 में आपने हाईस्कूल परीक्षा पास की। इस परीक्षा में आपको छात्रवृत्ति मिली। आपका विवाह ब्रजकिशोर बाबू की योग्य पुत्री प्रभावती के साथ हुआ।
विवाह के दो वर्ष बाद आप सात वर्ष तक अमेरिका में शिक्षा पाते रहे। इस बीच प्रभावती गांधीजी के आश्रम में रहीं। अमेरिका में आपने रोजी-रोटी जुटाने के लिए बागानों में काम किया। किसी होटल या रेस्तराँ में बर्तन धोये।
वेटर का काम किया। कभी जूते साफ करने का भी काम किया। अनेक कष्टों को सहते हुए आपने ओहायो विश्वविद्यालय से बी. ए. पास किया। छात्रवृत्ति मिलने लगी। फिर 80 डॉलर पर आप सहायक प्रोफेसर हो गये। यहीं से आपने एम. ए. की परीक्षा पास की। आप और अधिक पढ़ना चाहते थे किन्तु माता की हालत की गम्भीरता का समाचार सुनकर आप भारत लौट आये। इस समय ये पूरे मार्क्सवादी बन गये थे
भारत वापस आकर आप गांधीजी तथा नेहरूजी के सम्पर्क में आये। नेहरूजी ने इन्हें भारतीय कांग्रेस का मन्त्री बना दिया। गांधीजी और नेहरूजी गिरफ्तार कर लिए गये। देश में गिरफ्तारियों का ताँता लग गया।
आप भी गिरफ्तार हो गये और सन् 1933 में छोड़े गये। सन् 1934 में बिहार के भूकम्प में आपने सराहनीय काम किया। इसी समय आपने पटना में आचार्य नरेन्द्रदेव की अध्यक्षता में समाजवादी सभा का विशाल आयोजन किया।
‘करो या मरो’ एवं ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन में आप गिरफ्तार किये गये और हजारी बाग जेल में रखे गये। आप जेल से भागकर कष्टों को सहते हुए बनारस पहुँच गये। बनारस में रहते हुए आपने गुप्त पर्चों के द्वारा युवकों में उत्साह पैदा किया। बनारस से आप नेपाल गये। वहाँ से कश्मीर जाने का विचार किया किन्तु अमृतसर में पकड़ लिए गये। लाहौर जेल में आपको रखा गया। गुप्त बातें जानने के लिए कड़ी यन्त्रणाएँ दी जाने लगीं।
उपसंहार
इसी बीच चुनाव हुए। पार्टी हार गई और बिखर गई। अब आप सर्वोदय में शामिल हो गये। आपने घूम-घूमकर भूमिहीनों के लिए भूमि माँगी। रात-दिन कठिन परिश्रम करते रहने के कारण आप बहुत अस्वस्थ हो गये। बहुत प्रयत्न करने पर भी आपको मृत्यु से नहीं बचाया जा सका। अन्त में इनकी मृत्यु 8 अक्टूबर 1979 को हुई थी।
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